UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Geography [भूगोल] Chapter- 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन (Vana Evam Vanya Jiv Sansadhana) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-2 : भूगोल समकालीन भारत-2 खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | वन एवं वन्य जीव संसाधन |
Part 3 | Geography [भूगोल] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | वन एवं वन्य जीव संसाधन |
वन एवं वन्य जीव संसाधन (Vana Evam Vanya Jiv Sansadhana)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत सरकार द्वारा वनों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर-भारत सरकार ने देश में पाए जाने वाले वनों को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में बाँटा है, जो इस प्रकार हैं-
- रक्षित वन – इन वनों को नष्ट होने से बचाने के लिए सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। देश के कुल वन क्षेत्र का 1/3 भाग रक्षित वनों के अन्तर्गत आता है।
- आरक्षित वन – इन वनों को राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा पूर्ण संरक्षण प्रदान किया जाता है। यहाँ पर लोगों द्वारा की जाने वाली कटाई और शिकार पर पूरी तरह से सरकार द्वारा रोक लगी हुई है। भारत में आधे से अधिक वन क्षेत्र को आरक्षित घोषित किया हुआ है तथा सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है।
- अवर्गीकृत वन – ऐसे सभी वन जो रक्षित व आरक्षित श्रेणी में नहीं आते और बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, उन्हें अवर्गीकृत वन कहा जाता है।
उपरोक्त वर्गीकरण के आधार पर देश के मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में आरक्षित वन हैं, जबकि बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान में केवल रक्षित वन तथा पूर्वोत्तर राज्यों एवं गुजरात में अवर्गीकृत वन पाए जाते हैं।
प्रश्न 2. भारतीय वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रमुख प्रावधान बताइए।
उत्तर – भारतीय वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-
- कई परियोजनाओं की घोषणा की गई जिनका प्रमुख उद्देश्य गंभीर खतरे में पड़े विशेष वन्य प्राणियों को रक्षा प्रदान करना था, जैसे- गैंडा, बाघ, कश्मीरी हिरण (हंगुल), मगरमच्छ, एशियाई शेर आदि।
- इसी अधिनियम के अंदर कुछ समय पहले भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा, भारतीय गोडावन, हिम तेंदुआ आदि के शिकार और व्यापार पर सम्पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध लगाकर कानूनी रक्षण दिया गया है।
- वन्य जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे, सम्मिलित किये गये।
- सारे भारत में रक्षित जातियों की सूची प्रकाशित करके संकटग्रस्त जातियों के बचाव पर, शिकार प्रतिबंधन पर, वन्य जीव आवासों का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने आदि पर प्रबल जोर दिया गया।
- केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा वन्य जीव अभ्यारण्य पशु विहार स्थापित किए गए।
प्रश्न 3. लुप्त वन्य प्राणी एशियाई चीता का विवरण कीजिए।
उत्तर – भूमि पर रहने वाला तथा विश्व का सबसे तेज दौड़ने वाला एशियाई चीता एक बलिष्ठ स्तनधारी प्राणी है। इसके दौड़ने की गति लगभग 112 किमी. प्रति घंटा है। बिल्ली परिवार के सदस्य चीते को प्रायः तेंदुआ मान लिया जाता है। तेंदुए और चीते में अंतर उसकी आँख के कोने से मुँह तक नाक के दोनों ओर फैली आँसुओं की लकीर जैसा निशान है। एशियाई चीता 20वीं शताब्दी में एशिया और अफ्रीका में बड़ी संख्या में पाया जाता था। किन्तु वनों के नष्ट होने से उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हुए। साथ ही शिकारियों द्वारा मारे जाने के कारण ये लुप्त होते जा रहे हैं। भारत में 1952 ई. में इन्हें लुप्त वन्य प्राणी घोषित कर दिया।
प्रश्न 4. हिमालयन ‘यव’ के बारे में बताइए।
उत्तर – हिमालयन यव (चीड़ की प्रकार का सदाबहार वृक्ष) एक औषधीय पौधा है जो हिमालय प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है। इस पेड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से ‘टकसोल’ नामक रसायन निकाला जाता है तथा इससे कैंसर का उपचार किया जाता है। इससे बनाई गई दवाई विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है। इसके अत्यधिक निष्कासन से इस वनस्पति को खतरा उत्पन्न हो गया है। कई क्षेत्रों पर तो इसके हजारों पेड़ सूख गए हैं।
प्रश्न 7. निम्मलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) जैवविविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा जैवविविधता क्या है? मानव जीवन में इसकी महत्ता का वर्णन कीजिए।
उत्तर – जैवविविधता में वनस्पति तथा वन्य जीवन एवं मनुष्यों में अनेक प्रकार के पेड़-पौधे, जीव-जन्तु तथा मानव की अनेक जातियाँ, उप-जातियाँ पायी जाती हैं। इसी को जैव-विविधता कहते हैं।
मनुष्य को जैव विविधता के कारण आवश्यकता की अनेक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं जिससे पृथ्वी पर उसका जीवन संभव होता है। ऐसे में जैवविविधता मनुष्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
(ii) विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारक हैं?
उत्तर – मानवीय क्रियाएँ निम्न प्रकार से प्राकृतिक वनस्पति जात एवं प्राणि जात के ह्रास का कारण बनती हैं-
- पशुओं के अति चारण से भी वनस्पति जगत को नुकसान पहुँचता है क्योंकि इससे प्राकृतिक वनस्पति पनप नहीं पाती और वह स्थान धीरे-धीरे बंजर हो जाता है।
- मानव अपने स्वार्थ के अधीन होकर कभी ईंधन के लिए तो कभी कृषि के लिए वनों को अंधाधुंध काटता है। इससे वन्य वनस्पति तो नष्ट होती ही है साथ ही वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास भी छिन जाता है।
- जब उद्योगों खासकर रासायनिक उद्योगों का कूड़ा-कचरा खुले स्थानों पर फेंका जाता है तब भूमि प्रदूषण होता है।
- वृक्षों के अंधाधुंध कटने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचता है, जैसे वर्षा का कम होना।
प्रश्न 8. वनों को किस प्रकार संरक्षित किया जा सकता है?
उत्तर- प्राकृतिक संपदा वन किसी देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे निम्न उपाय अपनाकर वनों को संरक्षित किया जा सकता है-
- लकड़ी के ईंधन का उपयोग कम-से-कम हो। उसके लिए पूरक साधनों का विकास किया जाय।
- वनों को हानिकारक कीड़े-मकोड़ों, बीमारियों, आग आदि से सुरक्षित रखा जाय।
- वनों की उपयोगिता और उसकी महत्ता की जानकारी के लिए जनचेतना व जनजागरण पैदा किया जाय।
- वनों की अंधाधुंध कटाई पर प्रतिबन्ध लगाने की आवश्यकता है
- पशुओं की अति चराई पर रोक लगाई जाए।
- वनों से वृक्ष काटने पर उनके स्थान पर वृक्षारोपण करना आवश्यक है।
- वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए क्षेत्रों का निर्धारण करना चाहिए।
- वन क्षेत्रों को संरक्षित करने की नितांत आवश्यकता है।
प्रश्न 9. वनों से हमें कौन-कौन से अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं?
उत्तर – वनों से होने वाले अप्रत्यक्ष लाभ इस प्रकार हैं-
- वन बाढ़ की रोकथाम में सहायक होते हैं। वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकने में भी सहायक होती हैं। 2. वन मनोहारी और आकर्षक क्षेत्र होते हैं जो पर्यटकों के आकर्षण क्षेत्र बन जाते हैं।
- वन जलवायु को मृदुल बनाते हैं। वन गमीं और सदीं की तीव्रता को कम करने में सहायक होते हैं।
- वायुमंडल की नमी को आकर्षित कर वन वर्षा कराने में सहायक होते हैं।
- वन मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वृक्षों की पत्तियाँ गल – सड़कर मिट्टी में मिल जाती हैं, जिससे ह्यूमस की मात्रा बढ़ जाती है और मिट्टी अधिक उप जाऊ हो जाती है।
प्रश्न 10. वनों से होने वाले प्रत्यक्ष लाभ बताइए।
उत्तर – वन किसी भी देश की बहुमूल्य प्राकृतिक निधि होते हैं, इनसे हमें निम्नलिखित प्रत्यक्ष लाभ होते हैं-
- वन वन्य जीवों के आश्रय स्थल हैं, जिनसे पारिस्थितिकी को संतुलित रखने में सहायता मिलती है।
- वन आदि जनजातियों के आश्रय स्थल हैं। इन जातियों को वनों से भोजन जैसे-कंद मूल, फल एवं वन्य पशुओं से भोजन पूर्ति में सहायता मिलती है।
- आधुनिक युग में वस्तुओं की पैकिंग के लिए लकड़ी का प्रयोग बढ़ रहा है, जो हमें बड़े पैमाने पर जंगलों से प्राप्त होती हैं।
- वनों से हमें पर्याप्त मात्रा में लकड़ी प्राप्त होती हैं। लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में, फर्नीचर बनाने तथा कोयला बनाने में होता है।
- वनों से उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है। कागज लुगदी, दियासलाई, रेशम, समूर आदि के लिए कच्चा माल वनों से मिलता है।
प्रश्न 11. ‘चिपको आंदोलन’ क्या है?
उत्तर- प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने 1970 में उत्तराखण्ड में चिपको आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण करने वालों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। गढ़वाल, टिहरी व कुमाऊँ के क्षेत्रों में पेड़-पौधों की अंधाधुंध हो रही कटाई को रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने एक मानवीय रास्ता अपनाया। इसके लिए उन्होंने वहाँ के आदिवासी व जनजाति के लोगों को तैयार किया जिसमें वे पेड़ की कटाई के समय उससे चिपके रहते थे और कहते थे कि पहले हमें काटो फिर पेड़ों को। इस आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर – भारत में प्रकृति एवं उसके तत्त्वों के प्रति आस्था-पूजा सदियों पुरानी परम्परा रही है। शायद इन्हीं विश्वासों के कारण विभिन्न वनों को मूल एवं कौमार्य रूप में आज भी बचाकर रखा है, जिन्हें पवित्र पेड़ों के झुरमुट या देवी-देवताओं के वन कहते हैं।
भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृतियाँ हैं और प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति और इसकी कृतियों को संरक्षित करने के अपने-अपने पारम्परिक तरीके हैं। आमतौर पर झरनों, पहाड़ी चोटियों, पेड़ों और पशुओं को पवित्र समझकर उनके सम्मान और संरक्षण के लिए एक रिवाज बना दिया गया है। कुछ समाज कुछ विशेष पेड़; जैसे-पीपल, बरगद, महुआ, बेल आदि की पूजा करते हैं। तुलसी और पीपल के वृक्ष देव-निवास समझे जाते हैं। विभिन्न धार्मिक आयोजनों में इनका विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है। छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा करते हैं। ओडिशा और बिहार की जनजातियाँ शादी के समय इमली और आम के पेड़ की पूजा करती हैं। इसी प्रकार गाय, बन्दर, लंगूर आदि की लोग उपासना करते हैं। राजस्थान में बिश्नोई समाज के गाँवों के आस-पास काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय और भौरों के झुण्ड हैं जो वहाँ के अभिन्न अंग है, यहाँ इनको कोई नुकसान नहीं पहुँचता तथा इनका संरक्षण किया जाता है। अतः हिन्दू एवं विभिन्न जातीय समुदायों द्वारा ऐसी अनेक धार्मिक परम्पराएँ हैं जिनके द्वारा वन और वन्य जीव संरक्षण में रीति-रिवाज सहयोग प्रदान करते हैं।
प्रश्न 2. भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीवन संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है?
उत्तर – भारत में वन संरक्षण और रक्षण की प्राचीन परम्परा रही है। वन हमारे देश में कुछ समुदायों के आवास भी हैं, इसलिए ये समुदाय इनके संरक्षण
के लिए आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में तो स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ अपने वन आवास स्थलों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। सरिस्का बाघ रिजर्व में राजस्थान के गाँवों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के तहत वहाँ से खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं। राजस्थान के ही अलवर जिले में 5 गाँवों के लोगों ने तो 1,200 हेक्टेयर वन भूमि भैरोंदेव डाक व सेंक्चुरी घोषित कर दी जिसके अपने ही नियम कानून हैं, जो शिकार को वर्जित करते हैं तथा बाहरी लोगों की घुसपैठ से यहाँ के वन्य जीवों को बचाते हैं।
उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध ‘चिपको आन्दोलन’ कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही सफल नहीं रहा अपितु इसने स्थानीय पौधों की जातियों की वृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्तराखण्ड में ही टिहरी जनपद के किसानों का ‘बीज बचाओ आन्दोलन’ और ‘नवदानय’ ने रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग करके यह दिखा दिया है कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन सम्भव है।
भारत में संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम ने भी वनों के प्रबन्धन और पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदाय की भूमिका को उजागर किया है। औपचारिक रूप से इन कार्यक्रमों का आरम्भ 1988 में ओडिशा से हुआ था। यहाँ ग्रामस्तर पर इस कार्यक्रम को सफल बनाने के उद्देश्य से संस्थाएँ बनाई गईं जिनमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप से कार्य करते हैं।