UP Board Solution of Class 10 Social Science (Geography) Chapter- 3 जल संसाधन (Jal Sansaadhan) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Geography [भूगोल] Chapter- 3 जल संसाधन (Jal Sansaadhan) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-2 : भूगोल समकालीन भारत-2   खण्ड-1  के अंतर्गत चैप्टर 3 जल संसाधन पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name जल संसाधन
Part 3  Geography [भूगोल]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name जल संसाधन

जल संसाधन (Jal Sansaadhan)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जल दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं?

या जल दुर्लभता क्या है? इसके तीन मुख्य कारण बताइए।

उत्तर- जल के विशाल भंडार तथा नवीकरणीय गुणों के होते हुए भी यदि जल की कमी महसूस की जाए तो उसे जल दुर्लभता कहते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में जल की कमी या दुर्लभता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हो सकते हैं-

  1. बढ़ती जनसंख्या जल अधिक जनसंख्या के घरेलू उपयोग में ही नहीं बल्कि अधिक अनाज उगाने के लिए भी चाहिए। अतः अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए जल संसाधनों का अतिशोषण करके सिंचित क्षेत्र को बढ़ा दिया जाता है।
  2. जल का असमान वितरण भारत में बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूखा पड़ता है। वर्षा बहुत कम होती है। ऐसे क्षेत्रों में भी जल दुर्लभता या जल की कमी देखी जा सकती है।
  3. निजी कुएँ या नलकूप बहुत-से किसान अपने खेतों में निजी कुएँ व नलकूपों से सिंचाई करके उत्पादन बढ़ा रहे हैं किंतु इसके कारण लगातार भू-जल का स्तर नीचे गिर रहा है और लोगों के लिए जल की उपलब्धता में कमी हो सकती है।
  4. औद्योगीकरण स्वतंत्रता के बाद हुए औद्योगीकरण के कारण भारत में अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। इस कारण भी जल की कमी का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 2. बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना कीजिए।

उत्तर- नदियों पर बाँध बनाकर एक साथ कई उद्देश्यों को पूरा किया जाता है; जैसे-बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन तथा मत्स्य पालन। ऐसी योजनाओं को बहु-उद्देशीय योजनाएँ कहा जाता है। इस परियोजना से कुछ लाभ होते हैं तो कुछ हानियाँ भी होती हैं।

लाभ नदियों पर बाँध बनाकर केवल सिंचाई ही नहीं की जाती अपितु इनका उद्देश्य विद्युत उत्पादन, घरेलू और औद्योगिक उत्पादन, जल आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन और मछली पालन भी है। इसलिए बाँधों को बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ भी कहा जाता है। यहाँ एकत्रित जल के अनेक – उपयोग समन्वित होते हैं।

हानियाँ नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियंत्रित करने से उनक प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण तलछट बहाव कम हो जाता है। अत्यधिक तलछट जलाशय की तलों पर जमा होता रहता है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है। नदी जलीय जीव आवासों में भोजन की कम हो जाती है। बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट देते हैं जिससे जलीय जीवों क नदियों में स्थानांतरण अवरुद्ध हो जाता है। बाढ़ के मैदान में बने जलाशयों के वहाँ मौजूद वनस्पति और मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं। इन परियोजनाओं के कारण स्थानीय लोगों को अपनी जमीन, आजीविका और संसाधनों से लगाव व नियंत्रण आदि को कुर्बान करना पड़ता है।

प्रश्न 3. औद्योगीकरण और शहरीकरण किस प्रकार जल दुर्लभता के लिए उत्तरदायी रहे हैं?

उत्तर – स्वतंत्रता के बाद भारत में तेजी से औद्योगीकरण और शहरीकरण हुआ। उद्योगों की बढ़ती हुई संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को अत्यधिक जल के अलावा उनको चलाने के लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। इसकी काफी हद तक पूर्ति जल विद्युत से होती है। शहरों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या तथा शहरी जीवन-शैली के कारण न केवल जल और ऊर्जा की आवश्यकता में बढ़ोतरी हुई है अपितु इनसे संबंधित समस्याएँ और भी गहरी हुई हैं। यदि शहरी आवास समितियों को देखें तो पाएँगे कि उनके अंदर जल आपूर्ति के लिए नलकूप स्थापित किए गए हैं। इस प्रकार शहरों में जल संसाधनों का अतिशोषण हो रहा है और जल दुर्लभता उत्पन्न हो रही है।

प्रश्न 4. ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – कुछ सामाजिक संगठन बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं। इसमें एक आंदोलन ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ है। यह आंदोलन एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाया जा रहा है जो जनजातीय लोगों, किसानों पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। मूल रूप से शुरू में यह आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे मुद्दों पर केन्द्रित था। हाल ही में इस आंदोलन का लक्ष्य बाँध से विस्थापित गरीब लोगों को सरकार से संपूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।

प्रश्न 5. प्राचीन काल के जल संग्रहण के साक्ष्यों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- पुरातत्त्व व ऐतिहासिक अभिलेख/दस्तावेज बताते हैं कि हमने प्राचीन काल से ही सिंचाई के लिए पत्थरों और मलबे से बाँध, जलाशय या झीलों के तटबंध और नहरों जैसी सर्वश्रेष्ठ जलीय कृतियाँ बनाई हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(i) ईसा से एक शताब्दी पहले इलाहाबाद के नजदीक श्रिगवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।

(ii) चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बृहत् स्तर पर बाँध, झील व सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया।

(iii) कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश), बेन्नूर (कर्नाटक) तथा कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र बनाए गए।

(iv) 11वीं शताब्दी में सबसे बड़ी कृत्रिम झील भोपाल झील बनाई गई।

(v) 14वीं सदी में इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी फोर्ट झील में जल की संप्लाई के लिए हौज खास (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कुशल जल-प्रबन्धन के लिए क्या आवश्यक है? वर्षा जल संग्रहण और छत वर्षा जल संग्रहण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कुशल जल-प्रबन्धन हेतु निम्न बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है-

  1. भूमिगत जलस्रोत को सूखने से बचाना चाहिए।
  2. जलाशय प्रदूषणरहित होना चाहिए।
  3. जल आपूर्ति की पाइप को स्वच्छ रखा जाए।
  4. विभिन्न क्षेत्रों के लिये कुशल जल प्रबन्ध स्वीकार किया जाए।
  5. जल संरक्षण तथा इसके कुशल प्रबन्धन के लिये लोगों में जागरूकता लानी चाहिए।
  6. जल-प्रबन्धन में सभी लोगों को सम्मिलित किया जाए।
  7. उपचारित जल बागवानी, वाहन धोना, शौचालय आदि के लिए उपयोग में नहीं लाना चाहिए।
  8. सभी नलकूप जिनसे जल प्राप्त किया जाता हो, की मात्रा निर्धारित हो। वर्षा जल का संग्रह करना एक तकनीक है। इसके अन्तर्गत कृत्रिम भण्डार बनाकर वर्षा के जल का संग्रह किया जाता है। इस प्रक्रिया से भूमिगत जल का स्तर बढ़ता है। वर्षा जल का संग्रहण तालाब, जलाशय, कुएँ एवं बाँध बनाकर किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण कर इसका निम्न रूप में उपयोग किया जा सकता है- (i) जल स्तर बढ़ाना, (ii) ग्रीष्म तथा शुष्क ऋतु में घरेलू जल की आवश्यकता पूरा करना, (iii) प्रदूषण रोकना, (iv) जल की बढ़ती माँग को पूरा करना, (v) बाढ़ को रोकना आदि।

वर्षा जल संग्रहण की विधियाँ 1. रोक बाँध का बनाना, 2. छत के वर्षा जल को इकट्ठा करना, 3. कुओं को भरना, 4. तालाब बनाना, 5. सोखने के गड्डे बनाना आदि।

छत वर्षा जल संग्रहण एक साधारण और सस्ती तकनीक है, जो छत के वर्षा जल के संग्रहण में प्रयुक्त होती है। इसमें निम्न क्रियाएँ शामिल हैं- (i) छत का वर्षा जल भूमिगत टैंक में एकत्रित करना, (ii) कुएँ, खाई और जलाशय बनाना, (iii) जल को सोखने के लिए गड्ढे बनाना।

प्रश्न 2. राजस्थान में जल अभाव की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न तरीकों पर विचार-विमर्श कीजिए।

उत्तर – राजस्थान जलाभाव के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए निम्न तरीके अपनाए गए हैं-

(i) राजस्थान के कुछ क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर, बाड़मेर, फलोदी में सभी घरों में जमीन के नीचे पानी को तालाबों या ‘टांका’ में संग्रहित करके रखा जाता है। कई बार तो यह टांका इतना बड़ा होता है जितना की घर का एक कमरा।

(ii) अनेक हवेलियों में छोटे-छोटे कुएँ घर के एक कोने में बनाए जाते थे। आजकल शहरों में जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर बहुत ज्यादा नीचा नहीं है वहाँ बोरिंग करके ट्‌यूबवैल लगाकर नलों द्वारा छोटे-छोटे कस्बों, उपनगरों में जल- आपूर्ति घरों में की जाती है।

(iii) राजस्थान नहर (इन्दिरा गाँधी नहर) कुछ क्षेत्रों में सिंचाई और जल- आपूर्ति के लिए बनाई गई।

(iv) वर्षा के दिनों में छत पर वर्षा जल संग्रहण के लिए साधारण विधियाँ अपनाई जाती हैं और उस संग्रहित पानी को कालान्तर में पिया जाता है।

(v) राजस्थान के कुछ ऐसे कृषि क्षेत्र और गैर-कृषि क्षेत्र हैं जिन्हें धीरे-धीरे वर्षा पर आधारित फसलों के उगाने के लिए कृषि योग्य क्षेत्र में बदल दिया है। राजस्थान में खादिन जो जैसलमेर में है और कुछ क्षेत्रों जैसे अलवर, भरतपुर, उदयपुर में जोहड़ और झीलें बनाई गई हैं।

प्रश्न 3. कई नदी घाटी परियोजनाओं को बहुउद्देशीय परियोजनाएँ क्यों कहते हैं? बहुउद्देशीय परियोजनाओं द्वारा पूरित किन्हीं पाँच उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने इन बहुउद्देशीय परियोजनाओं को आधुनिक भारत के ‘मंदिर तथा तीर्थ स्थल’ कहा है; क्योंकि इन परियोजनाओं से अनेक उद्देश्यों की पूर्ति होती है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने बाढ़-नियन्त्रण, सिंचाई सुविधाओं का विकास, जल-विद्युत के विकास के लिए अनेक नदी घाटी योजनाओं का निर्माण किया गया। इन परियोजनाओं के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. उद्योगों का विकास नियमित और सस्ती शक्ति पर निर्भर करता है। उद्योगों की इन योजनाओं से शक्ति की सुलभता के साथ पर्याप्त मात्रा में पानी सुलभ होता है।
  2. बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के अन्तर्गत मुख्य नदियों और नहरों में अन्तःस्थलीय जल परिवहन सुविधा मिल जाती है। भारी परिवहन के लिए यह सबसे सस्ता साधन है।
  3. इन परियोजनाओं से मछली उत्पादन कर आर्थिक लाभ होता है। बाँधों के पीछे बने जलाशयों में मछलियों के बीज तैयार किए जाते हैं तथा कई चुनी हुई प्रजातियों की मछलियों को पाला जाता है।
  4. बाँधों के जल ग्रहण क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीकों से वृक्षारोपण से न केवल वनों का विस्तार होता है, अपितु मृदा संरक्षण में मदद मिलती है तथा वातावरण रमणीक और आकर्षक बनता है।
  5. नदी-घाटी परियोजनाओं से पहले वर्षा काल में बाढ़ों का आना एक – सामान्य-सी बात थी जिससे अपार जन-धन की हानि होती थी। अनमोल मृदा बह जाती थी। मृदा पर ही कृषि विकास निर्भर करता है। इस ज्वलन्त समस्या के निदान के लिए नदियों पर बाँध बनाकर, प्रवाह की तीव्रता को नियन्त्रण कर नदी घाटियों ने मृदा संरक्षण करने में सफलता प्राप्त कर ली है।
  6. नदियों पर बाँधों के पीछे बड़ी-बड़ी झीलों का निर्माण किया गया है। इनमें वर्षा का पानी एकत्र हो जाता है। शुष्क ऋतु में जब पानी की आवश्यकता होती है तब इस पानी का सदुपयोग नहरों द्वारा सिंचाई के लिए किया जाता है। सिंचाई सुविधाओं के विस्तार से कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ है और कृषि उत्पादकता कई गुना बढ़ गया है। एक खेत से वर्षा में दो-तीन फसलें ली जाने लगी हैं।

प्रश्न 4. बहुउद्देशीय परियोजनाएँ किस प्रकार देश को आत्मनिर्भर बनाने तथा लोगों का जीवन स्तर सुधारने में सहायक हैं? किन्हीं पाँच बिन्दुओं की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – देश को आत्मनिर्भर बनाने में बहुउद्देशीय परियोजनाओं का योगदान 1. इन परियोजनाओं से कृषि को ऊर्जा मिलने से कृषि का मशीनीकरण सम्भव हो गया है इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।

  1. उद्योगों को ऊर्जा इन योजनाओं से मिलती है जिससे देश में औद्योगिक उत्पादन बढ़ा है तथा हम अधिकांश औद्योगिक माल में आत्मनिर्भर ही नहीं हुए हैं बल्कि अपना अतिरिक्त औद्योगिक उत्पादन का निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमाते हैं।
  2. बहुउद्देशीय परियोजनाओं से खेतों को निर्वाध गति से जल की पूर्ति होती है जिससे समय पर फसलों की सिंचाई के कारण कृषि उत्पादन बढ़ता है तथा खाद्यान्नों की पूर्ति पर्याप्त होने से खाद्यान्नों के मामले में देश आत्मनिर्भर होता है।

लोगों के जीवन स्तर को उठाने में बहुउद्देशीय परियोजनाओं का योगदान(i) औद्योगिक उत्पादन बढ़ने से श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, उनकी आय में वृद्धि होती है तथा दैनिक जीवन में आवश्यक तया आरामदायक वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। इससे उनका जीवन स्तर सुधरता है।

(ii) कृषि उत्पादन बढ़ने से किसानों की आय में वृद्धि होती है। वे अधिक धन कमाते हैं तथा अपने दैनिक जीवन को अधिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं तथा जीवन को सुखद बनाते हैं।

प्रश्न 5. बहुउद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ बताइए।

उत्तर – आजादी से पहले देश में सिंचाई के लिए जो योजनाएँ बनायी जाती थीं, उनका एकमात्र उद्देश्य जल को सिंचाई हेतु खेतों तक पहुंचाना था। अतः इन योजनाओं का लाभ सीमित था किन्तु आजादी के पश्चात् बनायी गयी बहुउद्देशीय परियोजनाओं के उद्देश्य व्यापक होते थे। इसलिए इन योजनाओं से होने वाले प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं-

(i) बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एक ही समय में अनेक प्रयोजनों की सिद्धि करती हैं। ये जल-विद्युत के अतिरिक्त सिचाई के लिए उपयुक्त सुविधाएँ, नौका परिवहन के लिए अनुकूल परिस्थितियों और मत्स्य पालन के लिए उत्तम क्षेत्र प्रदान करती हैं।

(ii) इन परियोजनाओं से वनरोपण में भी जल का उपयोग किया जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में नहरों द्वारा नौका परिवहन में भी सहायता मिलती है।

(iii) इन परियोजनाओं से जलसंग्रहण तथा भण्डारण में सहायता मिलती है जिसे हम सिंचाई आदि कार्य के लिए प्रयोग कर सकते हैं, जैसे- राजस्थान नहर में सतलुज नदी का पानी सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है।

(iv) बहुमुखी परियोजनाओं से बाढ़ रोकने में सहायता मिलती है, जैसे- दामोदर नदी को पहले ‘बंगाल का शोक’ कहा जाता था क्योंकि इस नदी की बाढ़ पश्चिम बंगाल के लोगों के दुख का कारण बनती थी। किन्तु दामोदर परियोजना के निर्माण के बाद बाढ़ पर नियन्त्रण पा लिया गया है।

(v) ये परियोजनाएँ जल विद्युत के विकास में भी अनेक प्रकार से सहायक होती हैं। वर्षा के दिनों में यह बड़ी मात्रा में पानी एकत्र कर लेती हैं जिससे पूरे वर्ष जल विद्युत प्राप्त होती रहती है। जल को बार-बार ऊँचाई से नीचे गिराकर जल-विद्युत पैदा की जाती है। जल से प्राप्त की जाने वाली विद्युत प्रदूषण रहित होती है।

प्रश्न 6. बहुउद्देशीय परियोजनाओं के हानिकारक प्रभाव बताइए।

उत्तर – इन परियोजनाओं के लाभदायक प्रभावों के साथ-साथ इनके हानिकारक प्रभाव भी हैं। इसीलिए इनका विरोध किया जाता है। इनके हानिकारक प्रभावों का विवरण इस प्रकार है-

(i) बाँधों के कारण अमीर भूमि मालिकों और गरीब भूमिहीनों में सामाजिक दूरी बढ़ गई है। बाँध उसी जल के अलग-अलग उपयोग और लाभ चाहने वाले लोगों के बीच संघर्ष पैदा करते हैं। गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान नगरीय क्षेत्रों में अधिक जलआपूर्ति देने पर परेशान किसान उपद्रव पर उतारू हो गए।

(ii) जो बाँध बाढ़ नियन्त्रण के लिए बनाए जाते हैं उनके जलाशयों में तलछट जमा होने के कारण वे बाढ़ का कारण बन जाते हैं। अत्यधिक वर्षा होने पर बड़े बाँध कई बार बाढ़-नियन्त्रण में असफल रहे हैं।

(iii) बाँध के जलाशय पर तलछट जमा होने से यह तलछट जो कि प्राकृतिक उर्वरक है, बाढ़ के मैदानों तक नहीं पहुँचती जिसके कारण भूमि निम्नीकरण की समस्याएँ बढ़ती हैं।

(iv) इन बहुउद्देशीय परियोजनाओं के कारण भूकम्प आने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।

(v) नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो जाता है जिससे तलछट बहाव कम हो जाता है। अत्यधिक तलछट जलाशय की तली पर जमा होने से नदी का तल चट्टानी हो जाता है और नदी जलीय जीव आवासों में भोजन की कमी हो जाती है।

(vi) बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँध देते हैं जिससे विशेषकर अण्डे देने की ऋतु में जलीय जीवों का नदियों में स्थानान्तरण अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 7. बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – यह सिंचाई भारत के मेघालय राज्य में विशेष रूप से प्रचलित है। इस सिंचाई विधि में नदियों व झरनों के जल को बाँस से बने पाइप द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया जाता है। लगभग 200 वर्ष पुरानी इस सिंचाई प्रणाली की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(i) बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली से पहाड़ी शिखरों पर सदानीरा झरनों की दिशा परिवर्तित करने के लिए बाँसों का प्रयोग किया जाता है। इन पाइपों के माध्यम से जल पहाड़ के निचले स्थानों पर पहुँचाया जाता है।

(ii) संकुचित किए हुए चैनल सेक्शन और पथान्तरण इकाई जल सिंचाई के अन्तिम चरण में प्रयुक्त की जाती है। अन्तिम चैनल सेक्शन से पौधों की जड़ों के निकट जल गिराया जाता है।

(iii) इसमें जल प्रवाह को इनकी स्थितियों में परिवर्तन करके नियन्त्रित किया जाता है।

(iv) लगभग 18-20 लीटर सिंचाई का पानी बाँस में आ जाता है तथा उसे सैकड़ों मीटर दूरी तक ले जाया जाता है। अन्त में पानी का बहाव 20-80 बूँद प्रति मिनट तक घटाकर पौधे पर छोड़ दिया जाता है।

(v) यदि पाइपों को सड़कों के पार ले जाना हो तो उन्हें भूमि पर ऊँचाई से ले जाया जाता है।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Geography) Chapter- 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन (Vana Evam Vanya Jiv Sansadhana) Notes

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