UP Board Solution of Class 10 Social Science (Economics) Chapter- 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक (Bhartiya Arthvyavastha ke Kshetrak) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter- 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक(Bhartiya Arthvyavastha ke Kshetrak)  लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-4: अर्थशास्त्र आर्थिक विकास की समझ   खण्ड-1 विकास के अंतर्गत चैप्टर-2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
Part 3  Economics [अर्थशास्त्र]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name विकास

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक (Bhartiya Arthvyavastha ke Kshetrak)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आर्थिक तथा अनार्थिक क्रियाओं में अंतर बतायें। अंतर के केवल दो बिंदु लिखें।

उत्तर- आर्थिक तथा अनार्थिक क्रियाओं में अंतर

आर्थिक क्रियाएं

  1. आर्थिक क्रियायें वे मानवीय क्रियायें हैं जो धन के उत्पादन, विनिमय, वितरण और उपयोग से संबंध रखती है।
  2. आर्थिक क्रियाओं का वैधानिक होना आवश्यक है।

अनार्थिक क्रियाये

  1. अनार्थिक क्रियायें वे मानवीय क्रियायें हैं जो सेवा भाव तथा जनकल्याण से संबंध रखती हैं।
  2. अनार्थिक क्रियायें अवैधानिक भी हो सकती हैं।

प्रश्न. 2. संगठित तथा असंगठित क्षेत्रक में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर – संगठित तथा असंगठित क्षेत्रक में अंतर निम्नलिखित हैं-

संगठित क्षेत्रक

  1. ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं।
  2. रोजगार की अवधि नियमित होती है।
  3. इस क्षेत्रक को अनेक सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन करना होता है। जैसे कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम आदि।
  4. इस क्षेत्रक में बैंक, अस्पताल, स्कूल आदि शामिल हैं।

असंगठित क्षेत्रक

  1. ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होते हैं।
  2. रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती है।
  3. इस क्षेत्रक को किसी अधिनियम का पालन नहीं करना होता।
  4. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में वे लोग भी शामिल हैं, जो छोटे काम करते हुए स्व-रोजगार में लगे हैं।

प्रश्न ३. भारत में पाई जाने वाली बेरोजगारी के कोई तीन प्रकार समझाइए।

उत्तर – भारत में निम्न प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है-

  1. प्रच्छन्न बेरोजगारी प्रच्छन्न बेरोजगारी उस स्थिति में विद्यमान होती है जब एक श्रम की सीमान्त भौतिक उत्पादकता शून्य होती है या कभी-कभी ऋणात्मक होती है। दूसरे शब्दों में प्रच्छन्न बेरोजगारी की स्थिति में एक काम करने के लिए जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है उससे अधिक श्रमिक उस काम में लगे होते हैं। यदि कुछ श्रमिक हटा दिए जायें तो कुल उत्पाद में कमी नहीं होगी। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या काफी गंभीर है, भारत में यह बेरोजगारी 25% तथा 30% के बीच में है।
  2. मौसमी बेरोजगारी भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि एक मौसमी व्यवसाय है। यह बेरोजगारी मौसम में परिवर्तन के फलस्वरूप पैदा होती है। भारत में लगभग 166 लाख लोग मौसमी बेरोजगार हैं।
  3. औद्योगिक बेरोजगारी भारत में औद्योगिक बेरोजगारी के उत्पन्न होने के कई कारण है। पहला कारण उत्पादन में पूँजी प्रधान तकनीक को अपनाना। दूसरा कारण गाँव के लोगों को शहर में नौकरी करने आना। गाँवों के लोगों के शहर में आने के कारण औधोगिक शहरों में श्रमिकों की संख्या बढ़ गई है परन्तु भारत में अभी इतने उद्योग स्थापित नहीं हुए कि बढ़ती हुई श्रम-शक्ति को अपने में खपा सके।

प्रश्न 4. – एक संगठित क्षेत्रक क्या है? इसके कोई तीन लाभ लिखें। अथवा रोजगार के संगठित क्षेत्रों को परिभाषित कीजिए।

उत्तर- संगठित क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक को औपचारिक क्षेत्रक भी कहते हैं। यह वह क्षेत्र है जिसमें श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ (जैसे भविष्य निधि, उपदान, पेंशन आदि) प्राप्त होते हैं। इसके कर्मचारी श्रम संघ बना सकते हैं। इस क्षेत्रक में काम करने वाले कर्मचारी नियमित होते हैं।

संगठित क्षेत्रक के लाभ (1) संगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त होते हैं। (2) श्रमिक अपने हितों की रक्षा के लिए श्रम संघ बना सकते हैं। (3) यदि उनसे अतिरिक्त काम लिया जाता है, तो उस अतिरिक्त काम का अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।

प्रश्न 5. भारत एक विकासशील देश है। इस देश के अधिकांश लोग अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्रक में कार्यरत हैं। ऐसा क्यों?

उत्तर- भारत में द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक धीमी गति से विकसित हो रहे हैं इसलिए यहाँ प्राथमिक क्षेत्रक में ही जनसंख्या की जीविका का अधिक भार है।

कुटीर उद्योगों के उपेक्षित होने के कारण यहाँ के तृतीयक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ही प्रबल नियंत्रण है। कुटीर उद्योग पूरी तरह उपेक्षित हैं और लगभग ऐसे सभी उद्योग बंद होने की दशा में हैं।

धनी व्यक्तियों का द्वितीयक क्षेत्रक पर एकाधिकार होने के कारण केवल चंद धनी व्यक्तियों का द्वितीयक क्षेत्रक में एकाधिकार है। वे अपने भारतीय भाइयों को रोजगार देने के स्थान पर विदेशी नागरिकों और फर्म से काम कराने को अधिक महत्त्व देते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विकसित हो जाने के बाद उनके लिए ऐसा करना और आसान हो गया है।

विश्व व्यापार संगठन की असफलता के कारण विश्व व्यापार संगठन के सचिवीय सम्मेलन के आदेशों का मौन अनुपालन करते हुए यहाँ श्रम कानूनों को बेहद लचीला बनाकर पूँजीवादी प्रकृति का सामंतवाद स्थापित कर दिया गया है। विश्व व्यापार संगठन कहने भर को संयुक्त राष्ट्र संघ की एक एजेन्सी है लेकिन वस्तुतः यह अमरीकी बर्चस्व के पिंजरे का तोता या पालतू पक्षी है।

प्रश्न 6. आर्थिक क्रियाओं से क्या अभिप्राय है? प्रमुख आर्थिक क्रियाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर- वे सभी क्रियाएँ जिनसे मनुष्य को धन प्राप्त होता है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे- खेती करना, नौकरी करना आदि। आर्थिक क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं-

  1. प्राथमिक आर्थिक क्रियाएँप्रकृति के सहयोग से जो आर्थिक क्रियाएँ की जाती हैं उन्हें प्राथमिक आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। जैसे- खनन कार्य, कृषि कार्य तथा मत्स्य पालन आदि।
  2. द्वितीयक आर्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ जो प्राकृतिक उत्पादों की सहायता से विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करती हैं, उन्हें द्वितीयक क्रियाएँ कहते हैं। जैसे-कपास से कपड़े बनाना, लकड़ी से कागज बनाना आदि।
  3. तृतीयक आर्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ जो किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करती, बल्कि प्राथमिक व द्वितीयक आर्थिक क्रियाओं के विकास में सहायता करती हैं, उन्हें तृतीयक आर्थिक क्रियाएँ कहने हैं। जैसे- परिवहन के साधन, बैंक तथा बीमा कंपनियाँ आदि।

प्रश्न 7. विकसित देशों में आर्थिक क्रियाओं के महत्त्व का वर्णन करें।

उत्तर- विकसित देशों में विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक ही आर्थिक सक्रियता का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक रहा है। जैसे-जैसे कृषि प्रणाली परिवर्तित होती गई, कृषि क्षेत्रक समृद्ध होता गया, वैसे-वैसे पहले की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन होने लगा। क्रय-विक्रय की गतिविधियाँ कई गुना बढ़ गईं। विनिर्माण की नवीन प्रणाली के प्रचलन से कारखाने अस्तित्व में आए और उनका प्रसार होने लगा। कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से द्विनीयक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण हो गया। अब कुल उत्पादन की दृष्टि से सेवा क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ गया है। अधिकांश श्रमजीवी लोग सेवा क्षेत्रक में ही नियोजित हैं।

प्रश्न 8. केंद्र सरकार ने ‘काम के अधिकार’ को लागू करने के लिए क्या तरीका अपनाया?

उत्तर– केंद्र सरकार ने ‘काम के अधिकार’ को लागू करने के लिए एक कानून बनाया है। इसे ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005’ के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के अंतर्गत उन सभी लोगों को, जो काम करने में सक्षम हैं तथा जिन्हें काम की जरूरत है, सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है। यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी।

प्रश्न 9. संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के कौन- कौन से लाभ मिलते हैं?

उत्तर- संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के लाभ मिलते हैं। उन्हें एक निश्चित समय तक काम करना होता है। यदि वे अधिक काम करते हैं तो नियोक्ता द्वारा उन्हें अतिरिक्त वेतन दिया जाता है। वे सवेतन छुट्टी, अवकाश काल में भुगतान, भविष्य निधि, सेवानुदान इत्यादि पाते हैं। वे चिकित्सीय लाभ पाने के हकदार होते हैं और नियमों के अनुसार कारखाना मालिक को पेयजल और सुरक्षित कार्य-पर्यावरण जैसी सुविधाओं को सुनिश्चित करना होता है। सेवानिवृत्त होने पर पेंशन भी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 10. अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं? उत्तर- रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- 1. संगठित क्षेत्रक, 2. असंगठित क्षेत्रक।

  1. संगठित क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्यस्थल आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। उन्हें सरकारी नियमों और विनियमों का पालन करना होता है। इसे संगठित क्षेत्रक कहते हैं। इसमें कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के लाभ मिलते हैं। उनसे एक निश्चित समय तक ही काम करने की आशा की जाती है। यदि वे अधिक काम करते हैं तो उन्हें अतिरिक्त वेतन दिया जाता है। वे सवेतन छुट्टी, अवकाश काल में भुगतान, भविष्य निधि, सेवानुदान पाते हैं। वे सेवानिवृत्ति पर पेंशन भी प्राप्त करते हैं।
  2. असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों असंगठित क्षेत्रक से निर्मित होता है। ये इकाइयाँ अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं। इसमें नियमों और विनियमों का पालन नहीं होता। यहाँ कम वेतन वाले रोजगार हैं और प्रायः नियमित नहीं हैं। यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने, सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण से छुट्टी इत्यादि का कोई प्रावधान नहीं है। रोजगार में भारी अनिश्चितता है। श्रमिकों को बिना किसी कारण के काम से हटाया जा सकता है। इस रोजगार में संरक्षण नहीं है तथा कोई लाभ नहीं है।

प्रश्न 11. अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्रक से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर – द्वितीयक क्षेत्रकद्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्राथमिक क्षेत्रक के बाद की स्थिति है। यहाँ वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती हैं, बल्कि निर्मित की जाती हैं। इसलिए विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह प्रक्रिया किसी कारखाना, किसी कार्यशाला या घर में हो सकती है। जैसे-कपास के पौधे से प्राप्त रेशे का उपयोग कर हम सूत कातते और कपड़ा बुनते हैं। गन्ने को कच्च्चे माल के रूप में उपयोग कर हम चीनी और गुड़ बनाते हैं। हम मिट्टी से ईंट बनाते हैं और ईंटों से घर और भवनों का निर्माण करते हैं। चूँकि यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से सम्बद्ध है, इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।

प्रश्न 12. अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्रक से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर – तृतीयक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती है। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती हैं, बल्कि उत्पादन-प्रक्रिया में सहयोग करती हैं। जैसे- प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रकों और ट्रेनों द्वारा परिवहन करने की आवश्यकता पड़ती है। कभी-कभी वस्तुओं को गोदामों में भण्डारित करने की आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन और व्यापार में सुविधा के लिए टेलीफोन पर दूसरों से वार्तालाप करने या पत्राचार (संवाद) या बैंकों से ऋण लेने की भी आवश्यकता होती है। परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंक सेवाएँ और व्यापार तृतीयक गतिविधियों के कुछ उदाहरण हैं। चूँकि ये गतिविधियाँ वस्तुओं के अलावा सेवाओं का सृजन करती हैं, इसलिए तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी आवश्यक सेवाएँ भी हैं, जो प्रत्यक्ष प से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं। जैसे-हमें शिक्षकों, डॉक्टरों, धोबी, नाई, मोची एवं वकील जैसे व्यक्तिगत सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले और प्रशासनिक एवं लेखाकरण कार्य करने वाले लोगों की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ जैसे-इंटरनेट कैफे, ए.टी.एम. बूथ, कॉल सेंटर, सॉफ्टवेयर कम्पनी इत्यादि भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।

प्रश्न 13. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में उद्योगों के किन्हीं तीन योगदानों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- (i) उद्योगों से उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है और जीवन स्तर उन्नत होता है।

(ii) रोजगार के साधनों में वृद्धि होती है तथा मानव संसाधन पुष्ट होते हैं।

(iii) राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है और पूंजी निर्माण होता है।

                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के आधार पर आर्थिक गतिविधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- आर्थिक गतिविधियों को विभाजित करने का एक तरीका यह है कि परिसंपत्तियों के स्वामित्व और सेवाओं के वितरण के लिए जिम्मेदार कौन है? इस आधार पर दो प्रकार के उद्यम पाए जाते हैं- 1. सार्वजनिक तथा 2. निजी।

  1. सार्वजनिक क्षेत्रक इसमें उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध कराती है। सार्वजनिक क्षेत्रक का ध्येय लाभ कमाना नहीं बल्कि जन-सेवा होता है। सरकारें सेवाओं (Services) पर किए गए व्यय की भरपाई करो (Taxes) या अन्य तरीको से करती हैं। रेलवे, डाक-व्यवस्था, बैंक तथा बीमा कंपनियाँ आदि सार्वजनिक क्षेत्रक के उदाहरण हैं। ऐसे काम जो देश हित से जुड़े हैं तथा जिनका प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है. सरकार के नियंत्रण में ही रहते हैं।
  2. निजी क्षेत्रक निजी क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर स्वामित्व और सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होती है। निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का ध्येय लाभ अर्जित करना होता है। इनकी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए हमें इन एकल स्वामियों और कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड अथवा रिलायन्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी कंपनियों निजी स्वामित्व में हैं।

अधिकांश गतिविधियाँ ऐसी हैं जिनकी प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार पर है। इन पर व्यय करने की अनिवार्यता भी सरकार की है; जैसे- स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना। कुछ गतिविधियाँ ऐसी हैं जिन्हें सरकारी समर्थन की आवश्यकता होती है। निजी क्षेत्रक उन उत्पादनों अथवा व्यवसायों को तब तक जारी नहीं रख सकते जब तक सरकार उन्हें प्रोत्साहित नहीं करती।

प्रश्न 2. “भारत में विकास प्रक्रिया से जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? विस्तार से बताइए।

या आर्थिक क्रियाओं के क्षेत्रों के नाम लिखिए। पिछले कुछ वर्षों में भारत में तृतीयक क्षेत्र के बढ़ते हुए महत्त्व के मुख्य कारण क्या हैं? समझाइए।

या भारत में तृतीयक क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ने के कोई तीन कारण लिखिए।

या तृतीयेक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से भिन्न कैसे है? व्याख्या कीजिए।

या अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्रक से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर- भारत में विकास प्रक्रिया से जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। वर्ष 1973-74 और 2013-14 के बीच चालीस वर्षों में यद्यपि सभी क्षेत्रकों में उत्पादन में वृद्धि हुई है किंतु सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्रक के उत्पादन में हुई है। वर्ष 2013-14 में तृतीयक क्षेत्रक सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभरा। भारत में प्राथमिक क्षेत्रक का जी.डी.पी. में योगदान केवल एक चौथाई है जबकि द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों का योगदान जी.डी.पी. में तीन चौथाई है। भारत में तृतीयक क्षेत्रक के महत्त्वपूर्ण होने के कई कारण हैं; जैसे- 1. कृषि के क्षेत्र में तथा द्वितीयक क्रियाओं के क्षेत्र में विकास हुआ, जिससे उनसे संबंधित सेवाओं की माँग बढ़ गई। 2. भारत जैसे विकासशील देश में इन सुविधाओं/सेवाओं को बुनियादी सुविधाएँ सेवाएँ माना जाता है। इसलिए सरकार इनका प्रबंध अच्छी तरह से करती है। 3. आय के बढ़ने के साथ-साथ लोग होटल, पर्यटन, निजी अस्पताल, निजी विद्यालयों की माँग शुरू कर देते हैं। इससे भी सेवाओं का क्षेत्र विस्तृत होता है। 4. विगत दशकों में सूचना व संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाओं में तीव्र वृद्धि हुई है। इस प्रकार स्पष्ट है कि तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में काफी वृद्धि हुई है। इससे जी.डी.पी. में प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रको के मुकाबले तृतीयक क्षेत्रक का योगदान बढ़ता जा रहा है।

आर्थिक क्रियाओं के क्षेत्र आर्थिक क्रियाओं के क्षेत्र निम्नवत् हैं-

  1. प्राथमिक क्षेत्रक जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ की खेती।
  2. द्वितीयक क्षेत्रक इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ शामिल होती हैं जिनमें प्राकृतिक या प्राथमिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए, बाँस एवं सबाई घास के कागज का निर्माण।
  3. तृतीयक क्षेत्रक इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, रेलवे, दूरसंचार, दुकानदार, वकील आदि।

प्रश्न 3. संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना कीजिए।

या संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में अन्तर कीजिए।

या संगठित तथा असंगठित कार्य क्षेत्र के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के शोषण को रोकने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?

या रोजगार के संगठित तथा असंगठित क्षेत्रों में अन्तर कीजिए।

या आर्थिक गतिविधियाँ, रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?

या संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में विभेद कीजिए एवं असंगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों में बहुत अंतर पाया जाता है। इन दोनों क्षेत्रकों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं-

संगठित क्षेत्रक

  1. ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं।
  2. इसमें सरकारी नियमों, विनियमों का पालन किया जाता है।
  3. यहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है।
  4. इस क्षेत्रक में कर्मचारियों को रोजगार-सुरक्षा के लाभ मिलते हैं। उन्हें सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि, सेवानुदान आदि प्राप्त होता है।
  5. सरकारी संस्थानो, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थाओं तथा बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करना इसके उदाहरण है।

असंगठित क्षेत्रक

  1. ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होते।
  2. इसमें सरकारी नियमों, विनियमों का पालन नहीं किया जाता।
  3. यहाँ रोजगार की अवधि नियमित नहीं होती।
  4. इस क्षेत्रक में कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा नहीं मिलती। यहाँ सवेतन छुट्टी, भविष्य-निधि, सेवानुदान आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है।
  5. इसमें भूमिहीन श्रमिक, छोटे किसान, सड़को पर विक्रय करने वाले, श्रमिक तथा कबाड़ उठाने वाले लोग शामिल हैं।

असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के शोषण को रोकने के लिए सुझाव

असंगठित क्षेत्र में श्रमिको के शोषण को रोकने के लिए कुछ प्रमुख सुझाव अग्रवत् हैं-

  1. असंगठित श्रम के क्षेत्र में कई तरह के कार्य और व्यवसाय होने के कारण इस क्षेत्र के श्रमिको की सुरक्षा के लिए उन्हें चिह्नित करना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए व्यापक कानून बनाना होगा, जो इस क्षेत्र के मजदूरों के लिए न्यूनतम सुरक्षा तथा कल्याण के प्रावधान सुनिश्चित करे।
  2. सरकार को यदि आवश्यकता महसूस हो तो वह विविध रोजगारों के लिए विशेष कानून बनाए।
  3. यह ध्यान रखना होगा कि किसी नए कानून से वह प्रमुख अधिकार या सामाजिक सुरक्षा न छिन जाए, जिसकी व्यवस्था व्यापक कानून ने की है। इस व्यवस्था से भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था का भी सम्मान होगा तथा कई तरह के कामों में लगे मजदूरों की विशेष जरूरतें भी पूरी हो सकेंगी।
  4. सीमांत और छाटे किसानो के लिए ऋण का बेहतर प्रबंधन, सिंचाई परियोजनाओं का विकास, फसल जोखिम पर सुरक्षा और तकनीक का विकास असंगठित क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकता है।
  5. गैर-कृषि क्षेत्र में कौशल विकास द्वारा रोजगार के बेहतर अवसर बनाना, सामूहिक विकास केन्द्रों की स्थापना करना, अधिकाधिक लोगों को ‘स्किल इंडिया’ से जोड़ना भी प्रभावी उपाय हो सकते हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ावा मिल सकता है।
  6. इसके अलावा स्किल मार्ट, कौशल पुस्तकालय और रोजगार मेलों के आयोजन को अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है।
  7. असंगठित क्षेत्र में हमारे देश की आबादी का एक बड़ा तबका आता है, इसलिए कार्यदशाओं, न्यूनतम मजदूरी और श्रमिक हितों का संरक्षण करने के लिए कानून को पुनःसंरचित करना होगा। साथ ही यह भी ध्यान देना होगा कि ये सभी नीतियाँ और कानून सैद्धांतिक न होकर व्यावहारिक रूप में भी अमल में आएँ ताकि असंगठित कामगारों को जरूरी लाभ मिल सके।

असंगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों की समस्याएँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न में प्रश्न 5 का उत्तर देखें।

प्रश्न 4. असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों की समस्याओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर – असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों की प्रमुख समस्याएँ निम्नवत् है-

  1. बेहद कम आमदनीअसंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की आय संगठित क्षेत्र की तुलना में न केवल कम है, बल्कि कई बार तो यह जीवन-स्तर के न्यूनतम निर्वाह के लायक भी नहीं होती। इसके अलावा, अक्सर कृषि और निर्माण क्षेत्रों में पूरे वर्ष काम न मिलने की वजह से वार्षिक आय और भी कम हो जाती है। इस क्षेत्र में न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है।

2 . अस्थायी रोजगार असंगठित क्षेत्र में रोजगार की गारंटी न होने के कारण रोजगार का स्वरूप अस्थायी होता है, जो इस क्षेत्र में लगे कामगारों को हतोत्साहित करता है। रोजगार स्थिरता न होने के कारण इनमें मनोरोग का खतरा भी संगठित क्षेत्र के कामगारों से अधिक होता है।

  1. श्रम कानूनों के तहत नहीं आते अधिकांश असंगठित श्रमिक ऐसे उद्यमों में काम करते हैं जहाँ श्रमिक कानून लागू नहीं होते। इसलिए इनकी कार्य-दशा भी सुरक्षित नहीं होती और इनके लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे बहुत अधिक होते हैं।
  2. खतरनाक उद्यमों में भी सुरक्षा नहीं बाल श्रम, महिलाओं के साथ अन्याय की सीमा तक असमानता और उनका शारीरिक, मानसिक तथा यौन शोषण आम बात है। कई व्यवसायों में स्वास्थ्य मानकों के न होने का मसला भी चुनौती के रूप में इस क्षेत्र से जुड़ा है। माचिस के कारखाने में काम करने वाले, कांच उद्योग में काम करने वाले, हीरा तराशने वाले, कीमती पत्थरों पर पॉलिश करने वाले, कबाड़ बीनने वाले, पीतल और कांसे के बर्तन बनाने वाले तथा आतिशबाजी बनाने वाले उद्यमों में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक काम करते हैं। वे खतरनाक और विषाक्त रसायनों तथा जहरीले धुएँ आदि के संपर्क में आकर श्वास संबंधी बीमारियों, दमा, आँखों में जलन, तपेदिक, कैंसर आदि जैसी जानलेवा बीमारियों के शिकार बन जाते हैं।
  3. बढ़ती हुई जटिल आर्थिकसामाजिक व्यवस्था जटिल आर्थिकसामाजिक व्यवस्था के बढ़ने से इन कामगारों का दैनिक जीवन कहीं ज्यादा व्यस्त और जीवन-स्तर कहीं ज्यादा निम्न हो गया है। आय और व्यय के बीच असंगति ने इनकी आर्थिक स्थिति को इस लायक नहीं छोड़ा है कि ये बेहतर जीवन जी सकें। इसीलिए सरकार समय-समय पर अनेक योजनाएँ चलाती तो है, लेकिन इसके सामने अनेक बाधाएँ हैं, जो उन योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन के आहे आती है।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Economics) Chapter- 1 विकास (Vikas) Notes

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