UP Board Solution of Class 10 Social Science (Economics) Chapter- 1 विकास (Vikas) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter- 1 विकास (Vikas)  लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-4: अर्थशास्त्र आर्थिक विकास की समझ   खण्ड-1 विकास के अंतर्गत चैप्टर-1 विकास पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name विकास
Part 3  Economics [अर्थशास्त्र]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name विकास

विकास (Vikas)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मानव विकास में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?

उत्तर- मानव विकास में स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। स्वास्थ्य से तात्पर्य व्यक्ति के सर्वमुखी विकास से है। स्वास्थ्य से अभिप्राय केवल जीवित रहना या रोगों का निवारण करना ही नहीं है बल्कि जनसंख्या नियंत्रण, परिवार कल्याण तथा नशीले पदार्थों पर रोक लगाने आदि पक्षों पर भी ध्यान दिया जाता है। जिन देशों में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी ये सभी सुविधाएँ मिलती हैं, उन देशों में स्वस्थ मानव संसाधन देश के सामाजिक तथा आर्थिक विकास में सक्रिय योगदान देकर देश को विकसित देशों की श्रेणी में ला सकते हैं।

प्रश्न 2. आय के आधार पर विभिन्न देशों की तुलना कैसे की जाती है?

उत्तर –  देशों की तुलना करने के लिए उनकी आय सबसे महत्त्वपूर्ण मानक समझी जाती है। जिन देशों की आय अधिक है उन्हें अधिक विकसित समझा जाता है और कम आय वाले देशों को कम विकसित। यह धारणा इस बात पर आधारित है कि अधिक आय से इंसान की जरूरत की सभी चीजें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराई जा सकती हैं। इसलिए ज्यादा आय अपने-आप में विकास का प्रमुख मापदंड है।

प्रश्न 3. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण (आवश्यक) है?

उत्तर – धारणीयता से अभिप्राय है- ‘सतत्’ पोषणीय विकास अर्थात् ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी तक ही सीमित न रहे बल्कि आगे आने वाली पीढ़ी को भी मिले। वैज्ञानिकों का कहना है कि हम संसाधनों का जैसे प्रयोग कर रहे हैं, उससे लगता है कि संसाधन शीघ्र समाप्त हो जाएँगे और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए नहीं बचेंगे। यदि हमें विकास को धारणीय बनाना है अर्थात् निरंतर जारी रखना है, तो हमें संसाधनों का प्रयोग इस तरह से करना होगा जिससे विकास की प्रक्रिया निरंतर जारी रहे और भावी पीढ़ी के लिए संसाधन बचे रहें।

प्रश्न 4. एक विकसित देश की क्या विशेषताएँ होती हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- एक विकसित देश की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- उच्च जीवन स्तर, उच्च जीडीपी, उच्च बाल कल्याण, उत्कृष्ट स्वास्थ्य सुविधाएँ, उत्कृष्ट परिवहन, संचार और शैक्षिक सुविधाएँ, बेहतर आवास और रहने की स्थिति, औद्योगिक, बुनियादी ढाँचा और तकनीकी उन्नति, उच्च प्रति व्यक्ति आय और जीवन प्रत्याशा आदि में वृद्धि।

प्रश्न 5. राष्ट्रीय आय-वृद्धि हेतु कोई तीन उपाय सुझाइए।

उत्तर – भारत में राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए-

  1. जनसंख्यावृद्धि पर नियंत्रण भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति आय कम है। अतः राष्ट्रीय आय में वृद्धि नहीं हो पाती है, इसलिए देश के नागरिकों को शिक्षित करना तथा उन्हें जनसंख्या-वृद्धि के गंभीर परिणामों से अवगत कराने की आवश्यकता है।
  2. कृषि विकास के प्रयास भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान सबसे अधिक है, लेकिन देश में आज भी परम्परागत तरीके से कृषि कार्य किया जाता है, जिससे उपज काफी कम प्राप्त होती है। यदि कृषि का आधुनिकीकरण किया जाए तो कृषि उपज में वृद्धि होने से देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होगी।
  3. बचत वृद्धि को प्रोत्साहन देश की जनता में बचत के प्रति जागरूकता व पूँजी निर्माण में वृद्धि के प्रयास सरकार के द्वारा किये जाने चाहिए, जिससे अधिक उत्पादन किया जा सके। जब उत्पादन अधिक होगा तो रोजगार भी अधिक लोगों को मिलेगा, जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।

प्रश्न 6. शिशु मृत्यु दर रोकने के कोई तीन उपाय बताइए।

उत्तर – शिशु मृत्यु दर रोकने के तीन उपाय निम्नवत् हैं-

  1. शिक्षा का प्रसार देश के नागरिकों में रूढ़िवादिता और अज्ञानता को कम करने के लिए शिक्षा का प्रसार जरूरी है। शिक्षा का प्रसार होने से नागरिकों में नए-नए विचार आएँगे और जाग्रति उत्पन्न होगी। अतः शिशु मृत्यु-दर को रोकने के लिए स्त्रियों का शिक्षित होना अतिआवश्यक है।
  2. जीवनस्तर में उन्नयन जीवन-स्तर के सुधार में निर्धनता बड़ी बाधक है। सभी के पास रोजगार होगा तो निर्धनता दूर होगी। फलस्वरूप गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार के साथ-साथ उपयुक्त वातावरण भी प्राप्त होगा, इससे शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी।
  3. बाल चिकित्सालय देश के प्रत्येक क्षेत्र में एक बाल चिकित्सालय की व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें जन्म के बाद बच्चों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का समाधान अतिशीघ्र किया जा सके, जिससे शिशु/बाल मृत्यु दर में कमी आ सके।

                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मानव विकास सूचकांक क्या है? मानव विकास नापनेवाले मूलभूत अवयवों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – मानव विकास सूचकांक एक ऐसा मापदंड है जिसके द्वारा विश्व के विभिन्न देशों का सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में उपलब्धियों के आधार पर स्थान निर्धारित किया जाता है। इस मापदंड द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न देशों की तुलनात्मक प्रगति का ज्ञान प्राप्त करने में सफल हुआ। ऐसा इसलिए किया गया जिससे कुछ ऐसे देशों की सहायता की जा सके जो उनके विकास के लिए आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने 1990 में अपनी प्रथम मानव विकास रिपोर्ट में ‘मानव विकास सूचकांक’ का प्रयोग किया ताकि विश्व के विभिन्न देशों की सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में उपलब्धियों को आँका जा सके।

मानव विकास नापने वाले मूलभूत अवयव मानव विकास एक विस्तृत धारणा है। इसमें मनुष्य के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन का विकास शामिल है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव विकास को नापने के लिए तीन प्रमुख अवयवों को आधार बनाया है-

  1. दीर्घ आयु मानव विकास सूचकांक के अनुसार जिन देशों में जीवन प्रत्याशा अधिक होगी, उन्हें विकसित देश माना जाएगा। इसमें केवल दीर्घ आयु ही शामिल नहीं है बल्कि एक अच्छा व स्वस्थ जीवन जीना भी विकास के लिए जरूरी है। शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति देश के विकास के लिए काम कर सकता है।
  2. शिक्षा अथवा ज्ञान किसी देश में जितने अधिक लोग साक्षर होंगे, उस देश के विकास का स्तर भी उतना अधिक ऊँचा होगा। एक साक्षर व्यक्ति देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  3. जीवन स्तर जिस देश के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय अधिक होगी वह देश विकास की श्रेणी में उच्च स्तर पर गिना जाएगा क्योंकि ऐसे देश में लोग न केवल अपनी आवश्यकताओं को ही पूरा करेंगे बल्कि एक अच्छा जीवन तर बनाएँगे जो विकास के लिए जरूरी है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने विश्व के 173 देशों में मानव विकास सूचकांक के आधार पर मूल्यांकन किया। इस आधार पर 53 देशों को उच्च मानव विकास की श्रेणी में, 84 देशों को मध्यम श्रेणी में तथा 26 देशों को निम्न श्रेणी में रखा। भारत इस सूची में 126वें स्थान पर है।

प्रश्न 2. विकास मापने का यू.एन.डी.पी. का मापदंड किन पहलुओं में विश्व बैंक के मापदंड से अलग है? अथवा एक विकसित देश की क्या विशेषताएँ होती हैं? स्पष्ट कीजिए।

अथवा विकसित देशों की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर – विकास को मापने का विश्व बैंक का मापदण्ड केवल ‘आय’ पर आधारित है। इस मापदण्ड की अनेक सीमाएं हैं। आय के अतिरिक्त भी कई अन्य मापदण्ड हैं जो विकास मापने के लिए आवश्यक है, क्योंकि मानव मात्र पर्याप्त आय के बारे में नहीं सोचता, बल्कि वह अपनी सुरक्षा, दूसरों से आदर और बराबरी का व्यवहार पाना, स्वतंत्रता आदि जैसे अन्य लक्ष्यों के बारे में भी चिंतन करता है।

यू.एन.डी.पी. द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट में विकास के लिए निम्नलिखित मापदंड अपनाए गए-

  1. लोगों का स्वास्थ्य मानव विकास का प्रमुख मापदंड है स्वास्थ्य या दीर्घायु। विभिन्न देशों के लोगों की जीवन प्रत्याशा जितनी अधिक होगी, वह मानव विकास की दृष्टि से उतना ही अधिक विकसित देश माना जाएगा।
  2. शैक्षिक स्तर मानव विकास का दूसरा प्रमुख मापदंड शैक्षिक स्तर है। किसी देश में साक्षरता की दर जितनी ज्यादा होगी वह उतना ही विकसित माना जाएगा और यह दर यदि कम होगी तो उस देश को अल्पविकसित कहा जाएगा।
  3. प्रतिव्यक्ति आय मानव विकास का तीसरा मापदंड है प्रतिव्यक्ति आय। जिस देश में प्रतिव्यक्ति आय अधिक होगी उस देश में लोगों का जीवन स्तर भी अच्छा होगा और अच्छा जीवन स्तर विकास की पहचान है। जिन देशों में लोगों की प्रतिव्यक्ति आय कम होगी, लोगों का जीवन स्तर भी अच्छा नहीं होगा। ऐसे देश को विकसित देश नहीं माना जा सकता।

प्रश्न 3.भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के किन स्त्रोतों का प्रयोग किया जाता है? ज्ञात कीजिए। अब से 50 वर्ष पश्चात् क्या संभावनाएँ हो सकती हैं?

उत्तर- भारत के लोगों द्वारा उपयोग किए जा रहे ऊर्जा के वर्तमान स्त्रोतों का विवरण इस प्रकार है-

  1. प्राकृतिक गैस प्राकृतिक गैस का भी अब शक्ति के साधन के रूप में बहुत प्रयोग किया जाने लगा है। गैस को पाइपों के सहारे दूर-दूर के स्थानों पर पहुँचाया जाता है। इससे अनेक औद्योगिक इकाइयाँ चल रही हैं।
  2. जल विद्युत यह ऊर्जा का नवीकरणीय संसाधन है। अब तक ज्ञात सभी संसाधनों में यह सबसे सस्ता है। इसका प्रयोग घरों, दफ्तरों तथा औद्योगिक इकाइयों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  3. कोयला कोयले का प्रयोग ईंधन के रूप में तथा उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। वाष्प इंजन जिसमें कोयले का प्रयोग होता है, रेलों और उद्योगों में काम में लाया जाता है।
  4. खनिज तेल खनिज तेल का प्रयोग सड़क परिवहन, जहाजों, वायुयानों आदि में किया जाता है। तेल को परिष्कृत करके डीजल, मिट्टी का तेल पेट्रोल आदि प्राप्त किए जाते हैं।
  5. ऊर्जा के अन्य स्रोतऊर्जा के कुछ ऐसे स्रोत भी हैं जिनका प्रयोग अभी कुछ समय पूर्व से ही किया जाने लगा है। ये सभी स्रोत नवीकरणीय हैं। जैसे-पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोगैस, भूतापीय ऊर्जा आदि।

ऊर्जा के अधिकांश परंपरागत साधनों का प्रयोग लंबे समय से हो रहा है। हे सभी स्रोत अनवीकरणीय हैं अर्थात् एक बार प्रयोग करने पर समाप्त हो जाते हैं। इनकी पुनः पूर्ति संभव नहीं है। आनेवाले 50 वर्षों में ये संसाधन यदि इसी रह इस्तेमाल किए जाते रहे, तो समाप्तप्राय हो जाएँगे। यदि हमें इन संसाधनों को बचाना है तो ऊर्जा के नए और नवीकरणीय संसाधनों को खोजकर उनका अधिकाधिक प्रयोग करना होगा।

प्रश्न 4. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

उत्तर- धारणीयता से अभिप्राय है सतत पोषणीय विकास अर्थात् ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी तक ही सीमित न रहे बल्कि आगे आने वाली पीढ़ी को भी मिले। वैज्ञानिकों का कहना है कि हम संसाधनों का जैसे प्रयोग कर रहे हैं, उससे लगता है कि संसाधन शीघ्र समाप्त हो जाएंगे और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए नहीं बचेंगे। यदि हमें विकास को धारणीय बनाना है अर्थात् निरंतर जारी रखना है, तो हमें संसाधनों का प्रयोग इस तरह से करना होगा जिससे विकास की प्रक्रिया निरंतर जारी रहे और भावी पीढ़ी के लिए संसाधन बचे रहें।

धारणीयता की अवधारणा विकास के लिए निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण है: (1) यह भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखती है। (2) यह प्राकृतिक संसाधनो का विवेकपूर्ण प्रयोग करने में प्रोत्साहित करती है। (3) यह गुणवत्तापूर्ण जीवन को महत्त्व देती है।

प्रश्न 5. राष्ट्रीय आब और प्रति व्यक्ति आय में अन्तर स्पष्ट कीजिए। देशों की स्थिति में तुलना के लिए इनमें से कौन-सी विधि बेहतर है?

अथवा राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में क्या अंतर होता है?

उत्तर- राष्ट्रीय आय का अर्थ किसी देश के उत्पादन की एक इकाई की वास्तविक उत्पादन का अनुमान प्रतिवर्ष लगाया जाता है, जैसे किसी एक राष्ट्र की समस्त उत्पादन (समस्त व्यक्तियों की उत्पादन के योग) का अनुमान लगाया जाता है। यह सम्पूर्ण उत्पादन उस राष्ट्र की ‘राष्ट्रीय आय’ या ‘लाभांश’ होती है। संक्षेप में किसी एक वर्ष के अन्तर्गत उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं के बाजार मूल्य के जोड़ को राष्ट्रीय आय कहते हैं।

प्रति व्यक्ति आय प्रति व्यक्ति आय किसी देश, राज्य, नगर या अन्य क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की औसत आय है। इसका अनुमान उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों की आय के जोड़ को क्षेत्र की कुल जनसंख्या से विभाजित करके लगाया जाता है। प्रति व्यक्ति आय विभिन्न देशों के अलग-अलग जीवन स्तर का एक महत्त्वपूर्ण सूचकांक होती है।

 राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में अन्तर

राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय का अर्थ समझ लेने पर दोनों के अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

राष्ट्रीय आय

  1. राष्ट्र की वर्ष भर में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक योग को राष्ट्रीय आय कहते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय आर्थिक विकास की सूचक नहीं है।
  3. राष्ट्रीय आय राष्ट्र में उत्पादित विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा का योग होती है।

प्रति व्यक्ति आय

  1. राष्ट्र की राष्ट्रीय आय को कुल जनसंख्या से भाग देने पर प्राप्त भागफल को प्रति व्यक्ति आय कहते हैं।
  2. प्रति व्यक्ति आय आर्थिक विकास की सूचक होती है।
  3. प्रति व्यक्ति आय राष्ट्र की औसत आय होती है।

राष्ट्रीय आय मापने की रीतियां

(1) परिगणना रीति अथवा उत्पादन गणना रीति इस रीति के अन्तर्गत किसी देश में एक निश्चित अवधि के भीतर (प्रायः एक वर्ष) उत्पत्ति के साधनों द्वारा उत्पन्न की गई समस्त वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योग ज्ञात करके उसमें से चल पूंजी की स्थान पूर्ति और अचल पूंजी का मूल्य ह्रास, घिसावट और प्रतिस्थापना व्यय घटा दिया जाता है तथा जो कुछ विशुद्ध उत्पादन शेष रहता है, वही राष्ट्रीय आय कहलाती है। इस रीति का मुख्य दोष यह है कि उत्पादन, गणना करते समय कभी-कभी किसी वस्तु या सेवा का मूल्य दो बार जोड़ लिया जाता है। इसके अलावा इस रीति के अन्तर्गत उत्पत्ति और व्यापार सम्बन्धी आँकड़े वस्तुओं की उत्पत्ति का अनुमान करने के लिये तो उपयुक्त ठहर सकते हैं, परन्तु सेवाओं का मूल्य मापन इस रीति के द्वारा कोई सरल कार्य नहीं है।

(2) आय गणना रीति इस रीति के अन्तर्गत सरकार को मिलने वाली आयकर की राशि के आधार पर देश के सभी व्यक्तियों की वार्षिक आय का अनुमान लगाकर उसे जोड़ दिया जाता है। राष्ट्रीय आय आँकने की यह रीति भी दोषपूर्ण है। एक तो यह किसी देश के सभी नागरिकों की आय के ऊपर लगाया जाता है। दूसरे, जो व्यक्ति आयकर जमा करते हैं, ने आयकर से बचने हेतु अपनी आय-व्यय का झूठा हिसाब-किताब दिखाकर अपनी आय को कम दिखाने का प्रयत्न करते हैं। अतएव आय-गणना रीति के आधार पर राष्ट्रीय आय का सही और वास्तविक अनुमान लगाना कठिन है।

(3) व्यावसायिक गणना रीति इस रीति में देश के समस्त नागरिकों की आय की गणना उनके विभिन्न व्यवसायों के आधार पर की जाती है तथा विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए व्यक्तियों की आय का योग ही राष्ट्रीय आय को सूचित करता है। उत्पादन गणना रीति और व्यावसायिक गणना रीति के बीच मुख्य भेद यह है कि प्रथम रीति में राष्ट्रीय आय की गणना का आधार व्यवसाय और उद्योग की रीति है, जबकि दूसरी रीति में राष्ट्रीय आय की गणना का आधार व्यवसायों में लगे व्यक्तियों की आय है। कृषि प्रधान देश में दूसरी रीति के द्वारा राष्ट्रीय आय की सही गणना सम्भव नहीं है, क्योंकि कृषि व्यवसायों में संलग्न व्यक्तियों कीवास्तविक आय का ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

(4) व्यय गणना रीति इस रीति के अन्तर्गत समस्त नागरिकों द्वारा उपयोग की गई बस्तुओं और सेवाओं का मूल्य ज्ञात करके इसमें समस्त बचत का मूल्य जोड़ लिया जाता है तथा यही योग राष्ट्रीय आय को सूचित करता है। राष्ट्रीय आय आँकने की यह रीति भी दोषपूर्ण है, क्योंकि एक तो नागरिकों द्वारा उपभोग पर व्यय की गई रकम का अनुमान लगाना कोई सरल कार्य नहीं है। दूसरे, उपभोग व्यय के साथ-साथ बचत व्यय को ज्ञात करना और भी जटिल साध्य कार्य है। तीसरे, जिस देश के अधिकांश व्यक्ति अपनी बचत को गाड़कर रखते हैं, वहाँ बचत पूँजी को ज्ञात करना एकदम असम्भव है।

(5) उत्पादनं रीति और आय रीति का मिश्रित उपयोग भारतीय अर्थशास्त्री डॉ. वी. के. आर. वी. राव ने उत्पादन गणना रीति और आय गणना रीति को मिलाकर एक नई मिश्रित रीति को जन्म दिया तथा इस प्रणाली के आधार पर भारत की राष्ट्रीय आय का सफलतापूर्वक अनुमान लगाया। इस रीति का प्रयोग ऐसे देश में उपयुक्त सिद्ध होता है, जहाँ न तो आय सम्बन्धी समस्त आँकड़े उपलब्ध होते हैं और न उत्पादन सम्बन्धी ही समस्त आँकड़े उपलब्ध होते हैं।

(6) सामाजिक लेखा रीति प्रो. रिचर्ड स्पेन द्वारा प्रतिपादित इस रीति के अनुसार देश की जनसंख्या को आय के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक वर्ग के लोगों की आय ज्ञात कर एक औसत निकाल लिया जाता हैं। उनकी कुल जनसंख्या को इस अनुमानित औसत आय से गुणा कर देने पर उनकी सम्पूर्ण आय ज्ञात हो जाती है। इस प्रकार विभिन्न वर्गों द्वारा प्राप्त कुल आय का योग राष्ट्रीय आय होता है।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Civics) Chapter- 5 लोकतंत्र के परिणाम (Loktantr ke Parinam) Notes

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