UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Geography[भूगोल ] Chapter- 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी-वनस्पति (Prakritik Vanspati Tatha Vany Praani) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-2: भूगोल समकालीन भारत-1 खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर-5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी-वनस्पति (Prakritik Vanspati Tatha Vany Praani) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी-वनस्पति (Prakritik Vanspati Tatha Vany Praani) |
Part 3 | Geography [भूगोल] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | समकालीन भारत-1 |
प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी-वनस्पति (Prakritik Vanspati Tatha Vany Praani)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में प्रयुक्त होने वाले कुछ औषधीय पादपों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए। ये औषधीय पादप किन रोगों का उपचार करते हैं?
उत्तर-भारत में प्रयोग में लाए जाने वाले औषधीय पादपों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
- नीम- जैव और जीवाणु प्रतिरोधक है।
- कचनार-फोड़ा (अल्सर) व दमा रोगों के लिए प्रयोग होता है। इस पौधे की जड़ और कली पाचन शक्ति में सहायता करती है।
- जामुन – पके हुए फल से सिरका बनाया जाता है जो कि वायुसारी और मूत्रवर्धक है और इसमें पाचन शक्ति के भी गुण हैं। बीज का बनाया हुआ पाउडर मधुमेह रोग में सहायता करता है।
- अर्जुन- ताजे पत्तों का निकाला हुआ रस कान के दर्द के इलाज में सहायता करता है। यह रक्तचाप की नियमितता के लिए भी लाभदायक है।
- सर्पगंधा – यह रक्तचाप के निदान के लिए प्रयोग होता है।
- बबूल – इसके पत्ते आँख की फुंसी के लिए लाभदायक हैं। इससे प्राप्त गोंद का प्रयोग शारीरिक शक्ति की वृद्धि के लिए होता है।
- तुलसी पादप – जुकाम और खाँसी की दवा में इसका प्रयोग होता है।
प्रश्न 2. भारत में वन्य जीवन पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर- भारत प्राणी सम्पत्ति में एक सम्पन्न देश है। भारत में उच्चावच, वर्षण तथा तापमान आदि में भिन्नता के कारण जैव एवं वानस्पतिक विविधता पायी जाती है। भारत में जीवों की 90000 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। यहाँ 2000 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह कुल विश्व का 13 प्रतिशत है। यहाँ मछलियों की 2,546 प्रजातियाँ हैं जो विश्व का लगभग 12 प्रतिशत है। भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं। स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ये असम, कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्द्र वनों में पाए जाते हैं। एक सींग वाले गैंडे अन्य जानवर हैं जो पश्चिम बंगाल तथा असम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं। कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में क्रमशः जंगली गधे तथा ऊँट रहते हैं। भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंघा, गैजल तथा विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण आदि कुछ अन्य जानवर हैं जो भारत में पाए जाते हैं।
यहाँ बन्दरों, बाघों एवं शेरों की भी अनेक प्रजातियाँ पायी जाती हैं। भारतीय बाघों का प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है। बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखण्ड के वनों, पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगों वाला बैल जैसा जीव है जिसका भार लगभग एक टन होता है। तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़), जंगली भेड़ तथा कियांग (तिब्बती जंगली गधे) भी यहाँ पाए जाते हैं। कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं। नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में
कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल पाए जाते हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ की प्रजाति का एक ऐसा प्रतिनिधि है जो विश्व में केवल भारत में पाया जाता है। नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल पाए जाते हैं। मोर, बत्तख, तोता, सारस, पैराकीट आदि वन्य जीव हैं जो भारत के वनों तथा आर्द्र क्षेत्रों में रहते हैं।
प्रश्न 3. ऊँचाई के अनुसार पर्वतीय वनों का वर्णन कीजिए। उत्तर- हिमालय पर्वत पर पाए जाने वाले वनों को पर्वतीय वन कहते हैं। इस क्षेत्र की वनस्पति में ऊँचाई के अनुसार अन्तर पाया जाता है। इस क्षेत्र को ऊँचाई के अनुसार निम्न वानस्पतिक क्रमों में बाँटा गया है-
- उपोष्ण कटिबन्धीय पर्वतीय वनस्पति- यह वनस्पति 1,000- 2,000 मीटर की ऊँचाई तक उत्तर-पूर्वी हिमालय एवं पूर्वी हिमालय पर पायी जाती है। इस भाग में वर्षा अधिक होती है। अतः इन वनों में सदाहरित वृक्ष पाए जाते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। ये सदापर्णी वन हैं।
- उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन- ये वन उत्तर-पश्चिमी हिमालय पर 1,000 मीटर की ऊँचाई तक पाए जाते हैं। यहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है। इस कारण यह वृक्ष शुष्क मौसम में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इनका मुख्य वृक्ष साखू है।
- शंकुधारी वन- 1,500 से 3,000 मीटर की ऊँचाई तक शंकुधारी (कोणधारी) वन पाए जाते हैं। इनकी पत्तियाँ नुकीली होती हैं। इन वनों के मुख्य वृक्ष देवदार, सीडर, स्प्रूस तथा सिल्वर-फर हैं। इन शंकुल वृक्षों के साथ अल्पाइन चरागाह 2,250 से 2,750 मीटर तक की ऊँचाई के मध्य पाए जाते हैं। इन चरागाहों का उपयोग ऋतु-प्रवास चराई के लिए किया जाता है। प्रमुख पशुचारक जातियाँ गुज्जर तथा बकरवाल हैं।
प्रश्न 4. वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत में भिन्नता के लिए उत्तरदायी कारकों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
उत्तर- तापमान, आर्द्रता, भूमि-मृदा एवं वर्षण भारत में वानस्पतिक एवं वन्य-प्राणियों में विविधता हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारक हैं, जिनका विवरण इस प्रकार हैं-
- वर्षण – भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा लौटती हुई उत्तर-पूर्वी मानसून द्वारा वर्षा होती है। भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा वाले क्षेत्रों की अपेक्षा कम गहन वनस्पति पायी जाती है।
- तापमान – हवा में नमी के साथ तापमान, वर्षण तथा मृदा वनस्पति के प्रकार को निर्धारित करते हैं। हिमालय की ढलानों तथा प्रायद्वीपीय पहाड़ियों पर उपोष्ण कटिबन्धीय तथा अल्पाइन वनस्पति पायी जाती है।
- मरुस्थल की रेतीली जमीन कैक्टस एवं काँटेदार झाड़ियों को उगने में सहायता प्रदान करती है जबकि गीली, दलदली, डेल्टाई मृदा मैंग्रोव तथा डेल्टाई वनस्पति के उगने में सहायक होती है। कम गहराई वाली पहाड़ी ढलानों की मृदा शंकुधारी वृक्षों के उगने में सहायक होती है।
- सूर्य का प्रकाश- किसी भी स्थान पर सूर्य के प्रकाश का समय उस स्थान के अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई एवं ऋतु पर निर्भर करता है। प्रकाश अधिक समय तक मिलने के कारण वृक्ष गर्मी की ऋतु में जल्दी बढ़ते हैं। लम्बे समय तक सूर्य का प्रकाश पाने वाले क्षेत्रों में गहन वनस्पति पाई जाती है।
- भूमि-भूमि प्राकृतिक वनस्पति को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करती है। यह वनस्पति के प्रकार को प्रभावित करती है। उपजाऊ भूमि को कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि वन चरागाहों एवं विभिन्न वन्य प्राणियों को आश्रय प्रदान करते हैं। विभिन्न प्रकार की मृदा, विभिन्न प्रकार की वनस्पति को उगने में सहायता प्रदान करती है।
प्रश्न 5. संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न –
(i) भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है?
(ii) जीव मंडल निचय से क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दो।
(iii) कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबन्धीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं।
उत्तर- (i) भारत में पादपों एवं जीवों के वितरण को निर्धारित करने वाले तत्त्व इस प्रकार हैं- जलवायु, मृदा, उच्चावच, अपवाह, तापमान, सूर्य का प्रकाश, वर्षण आदि।
(ii) जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय या इसके संयोजन वाले पारिस्थितिक तंत्र हैं, जिन्हें यूनेस्को के मानव और जीवमंडल कार्यक्रम-1971 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है। यह जीव मंडल निचय प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के प्रतिनिधि होते हैं जो बड़े पैमाने पर विस्तृत होते हैं। (क) नीलगिरि संरक्षित जैविक क्षेत्र, (ख) नोरनेक जीव मंडल क्षेत्र।
(iii) (क) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन में पाये जाने वाले जीव – लंगूर, बन्दर, हाथी।
(ख) पर्वतीय वनस्पति वनों में मिलने वाले जीव-घने बालों वाली भेंड़, लाल पांडा, आइबैक्स।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में अन्तर कीजिए-
(i) वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत में अन्तर।
(ii) सदाबहार और पर्णपाती वन।
उत्तर – (i) (क) वनस्पति जगत शब्द किसी प्रदेश या समय विशेष के पेड़-पौधों के लिए प्रयुक्त होता है जबकि प्राणी जगत शब्द जीव जन्तुओं की प्रजातियों के लिए प्रयोग किया जाता है। (ख) वनस्पति जगत में जंगल, घास के मैदान आदि शामिल हैं जबकि प्राणीजगत में पक्षियों, मछली, जानवर, कीड़े आदि शामिल हैं।
(ii) सदाबहार और पर्णपाती वन में अन्तर
पर्णपाती वन |
सदाबहार वन |
1.इन वनों में बहुत-से पक्षी, छिपकली, साँप, कछुए आदि पाए जाते हैं। | इन वनों में बहुत-से पक्षी, चमगादड़, बिच्छू एवं घोंघे आदि पाए जाते हैं। |
2.ये वन भारत के पूर्वी भागों, उत्तर- पूर्वी राज्यों, हिमालय के पास की पहाड़ियों, झारखण्ड, पश्चिम ओडिशा, छत्तीसगढ़ तथा पूर्वी घाट के पूर्वी ढलानों, मध्य प्रदेश तथा बिहार में पाए जाते हैं। | ये वन पश्चिमी घाट के ढलानों, लक्षद्वीप, अण्डमान-निकोबार, असम के ऊपरी भागों, तटीय तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओडिशा एवं भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाए जाते हैं। |
3.इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ों में सागोन, बाँस, साल, शीशम, चन्दन, सौर, नीम आदि प्रमुख है। | इन वनों में प्रायः पाए जाने वाले वृक्षों में आबनूस, महोगनी, राजवुड आदि हैं। |
4. ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेमी के बीच होनी है। | ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेमी या इससे अधिक होती है। |
5.इन वनों में पौधे अपने पत्ते शुष्क गर्मी के मौसम में 6 से 8 सप्ताह के लिए गिरा देते हैं! | इन वनों में पौधे अपने पत्ते वर्ष के अलग-अलग महीनों में गिराते हैं जिससे ये पूरे वर्ष हरे-भरे नजर आते हैं। |
6.इन वनों में प्रायः पाये जाने वाले पशुओं में शेर और बाघ हैं। | इन वनों में प्रायः पाये जाने वाले पशुओं में हाथी, बन्दर, लैमूर, एक सींग वाले गैंडे और हिरण हैं। |
प्रश्न 4. भारत में विभिन्न प्रकार की पायी जाने वाली वनस्पति के नाम बताएँ और अधिक ऊँचाई पर पायी जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर- भारत में पायी जाने वाली प्रमुख वनस्पतियाँ इस प्रकार हैं-
(i) उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन,
(ii) उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन,
(iii) उष्ण कटिबन्धीय कँटीले वन तथा झाड़ियाँ,
(iv) मैंग्रोव।
इन वनों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
(i) पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में ‘भी अन्तर दिखाई देता है। वनस्पति में जिस प्रकार का अन्तर हम उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों से टुण्ड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अन्तर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है।
(ii) 1000 मीटर से 2000 मीटर तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय वन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है।
(iii) 1500 से 3000 मीटर की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़, देवदार, सिल्वर-फर, स्यूस, सीडर आदि पाए जाते हैं।
(iv) ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं।
(v) अधिक ऊँचाई पर प्रायः शीतोष्ण कटिबन्धीय घास के मैदान पाए जाते हैं। प्रायः 3600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबन्धीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।
प्रश्न 5. भारत में बहुत संख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं, उदाहरण सहित कारण दीजिए।
उत्तर-भारत में बड़ी संख्या में जीव एवं पादप प्रजातियाँ संकटापन्न हैं। लगभग 1300 पादप प्रजातियाँ भारत में संकट में हैं जबकि 20 पादप प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। बहुत बड़ी संख्या में पादप और जीव प्रजातियों के संकटग्रस्त होने के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) कृषि, उद्योग एवं आवास हेतु वनों की तेजी से कटाई।
(ii) विदेशी प्रजातियों का भारत में प्रवेश।
(iii) व्यापारियों द्वारा अपने व्यवसाय के विकास के लिए जंगली जानवरों का बड़े पैमाने पर अवैध शिकार।
(iv) रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट पदार्थों तथा तेजाबी जमाव के कारण जीवों की मृत्यु।
(V) वास्तव में मानव द्वारा पर्यावरण से छेड़छाड़ तथा पेड़-पौधों एवं जीवों के अत्यधिक दोहन से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ गया है। इसी कारण पेड़-पौधों तथा वन्य प्राणियों की कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
प्रश्न 6. भारत में वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी क्यों है?
उत्तर – भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी है क्योंकि भारत एक विशाल देश है, इसलिए यहाँ विभिन्न प्रकार की जलवायु तथा मिट्टी पायी जाती है। परिणामस्वरूप यहाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती हैं। किसी प्रदेश के प्राकृतिक वनस्पति का स्वरूप वहाँ की जलवायु की दशाओं तथा मृदा पर निर्भर करता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मृदा, आर्द्रता, तापमान में अत्यधिक भिन्नता के साथ अलग-अलग प्रकार का वातावरण पाया जाता है। पूरे देश में वर्षा का भी असमान वितरण पाया जाता है इसीलिए भारत वनस्पति जगत तथा प्राणीजगत की धरोहर में धनी है।