UP Board Solution of Class 9 Social Science भूगोल (Geography) Chapter- 4 जलवायु (Jalwaayu) Long Answer

UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Geography[भूगोल ] Chapter- 4 जलवायु (Jalwaayu) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-2: भूगोल समकालीन भारत-1 खण्ड-2  के अंतर्गत चैप्टर-4 जलवायु (Jalwaayu) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 9th]
Chapter Name जलवायु (Jalwaayu)
Part 3  Geography [भूगोल]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name समकालीन भारत-1

जलवायु (Jalwaayu)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्न प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए-

(i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?

(ii) भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?

(iii) भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों?

(iv) किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?

(v) मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?

(vi) मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?

उत्तर- (i) भारत की जलवायु को मुख्य रूप से तीन कारक प्रभावित करते है- (अ) अक्षांश, (ब) ऊँचाई, (स) वायुदाब एवं पवनें।

(ii) भारत में मानसून प्रकार की जलवायु होने का कारण यह है कि देश की जलवायु मानसूनी हवाओं या बदलती मौसम स्थितियों से प्रभावित होती है। यह भूमि और जल निकायों के अलग-अलग ताप और दबाव की स्थितियों के कारण ऐसा होता है। भारत में मानसून जून के उत्तरार्द्ध से सक्रिय होता है और सितंबर तक चलता है।

(iii) भारत में सबसे ज्यादा दैनिक तापमान भारत के मरुस्थल में होता है क्योंकि रेत शीघ्र गर्म होने से दिन में तापमान अधिक होता है।

(iv) मालाबार तट पर दक्षिण-पश्चिमी पवनों के कारण वर्षा होती है।

(v) मानसून अरबी शब्द ‘मौसिम’ है जिससे मानसून शब्द बना है। मानसून को मौसमी हवा की गति के रूप में वर्णित किया जाता है जो वर्षा और अवक्षेपण लाती है। इसके अतिरिक्त, हवा की दशा में मौसमी बदलाव को भी मानसून कहा जाता है। मानसून के मौसम के बीच में वर्षा की अचानक समाप्ति को मानसून ‘विराम’ कहा जाता है।

(vi) विभिन्न अक्षांशों में स्थित होने एवं उच्चावच लक्षणों के कारण भारत की मौसम सम्बन्धी परिस्थितियों में बहुत ज्यादा भिन्नताएँ पायी जाती हैं। किन्तु ये भिन्नताएँ मानसून के कारण कम हो जाती हैं क्योंकि मानसून पूरे भारत में बहती हैं। सम्पूर्ण भारतीय भूदृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव जीवन तथा उनके त्यौहार-उत्सव, सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं। मानसून के आगमन का पूरे देश में भरपूर स्वागत होता है। भारत में मानसून के आगमन का स्वागत करने के लिए विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। मानसून झुलसाती गर्मी से राहत प्रदान करती है। मानसून वर्षा कृषि क्रियाकलापों के लिए पानी उपलब्ध कराती है। वायु प्रवाह में ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन एवं इससे जुड़ी मौसम सम्बन्धी परिस्थितियाँ ऋतुओं का एक लयबद्ध चक्र उपलब्ध कराती हैं जो पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधती है। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं एवं सम्पूर्ण देश को एकसूत्र में बाँधती हैं। नदी घाटियाँ जो इन जलों को संवहन करती हैं, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है। भारत के लोगों का सम्पूर्ण जीवन मानसून के इर्द-गिर्द घूमता है। इसलिए मानसून को एकसूत्र में बाँधने वाला समझा जाता है।

प्रश्न 2. उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?

उत्तर– हवाओं में लगातार कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे और आगे बढ़ती हुई देश के आन्तरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई ज्यादातर आर्द्रता खोने लगती हैं। इसी के परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है। कोलकाता से दिल्ली की ओर बढ़ने पर वर्षा धीरे-धीरे घटती जाती है। उदाहरण के लिए, कोलकाता में जहाँ 162 सेमी वर्षा होती है वहीं वाराणसी में 107 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है। मानसून शाखा का दबाव और उसकी आर्द्रता पश्चिम की ओर क्रमशः घटती जाती है। यही कारण है कि मानसून की इस शाखा के दिल्ली तक पहुँचते-पहुँचते वर्षा करने की क्षमता घटती जाती है।

प्रश्न 3. कारण बताएँ-

(i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?

(ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।

(iii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।

(iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।

(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।

उत्तर- (i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन – भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून पवनों की दिशा में मौसमी परिवर्तन का मूल कारण स्थल एवं जल पर विपरीत वायुदाब क्षेत्रों का विकसित होना है। यह वायु के तापमान के कारण होता है। स्पष्ट है कि स्थल एवं जल असमान रूप से गर्म होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग ज्यादा गर्म हो जाता है। परिणामस्वरूप स्थल भाग के आन्तरिक क्षेत्रों में निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। जबकि समुद्री क्षेत्रों में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है। अतः समुद्री पवनें समुद्र से स्थल की ओर गतिशील होती हैं। शीत ऋतु में स्थिति इसके विपरीत होती है अर्थात् पवन स्थल से समुद्र की ओर गतिशील होती है।

(ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है– भारत के ज्यादातर भागों में जून से सितम्बर के मध्य वर्षा होती है। भारत में कई माह में भारत के उत्तरी भाग में गर्मी बहुत पड़ती है। फलस्वरूप यहाँ की वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है जिससे यहाँ वायुदाब कम हो जात जाता है। जबकि हिन्द महासागर पर वायुदाब ज्यादा होता है। पवन प्रवाह का यह सर्वमान्य नियम है कि वह उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर संचरित होनी है। ऐसे में पवनें हिन्द महासागर से भारत के उत्तरी भाग की ओर चलने लगती हैं। जलवाष्प से परिपूर्ण ये पवनें अपनी सम्पूर्ण आर्द्रता भारत में ही समाप्त कर देती हैं। ये पवनें जून से सितम्बर तक भारत में सक्रिय रहती हैं। यही कारण है कि भारत में अधिकांश वर्षा जून से सितम्बर माह की अवधि में होती है। भारत में मानसून की अवधि 100 से 120 दिन तक होती है।

(iii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा – पीछे हटते मानसून की ऋतु सितम्बर से आरम्भ हो जाती है। अब पवनें धरातल से समुद्र की ओर बहने लगती हैं। इसलिए ये शुष्क होती हैं और स्थल भाग पर वर्षा नहीं करतीं। जिस समय ये पवनें बंगाल की खाड़ी पर पहुँचती हैं तो वहाँ से ये आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। अब ये उत्तर-पूर्वी पवनों के प्रभाव में आकर इनकी दिशा भी उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर हो जाती है। और ये पवनें उत्तर-पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं। आर्द्रता ग्रहण की हुई ये पवनें तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा करती हैं। अक्टूबर-नवम्बर में पीछे हटते मानसून और बंगाल की खाड़ी पर उत्पन्न होने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के मिले-जुले प्रभाव से पूर्वी तट पर भारी वर्षा होती है। तमिलनाडु तट पर अक्तूबर-नवम्बर में भारी वर्षा होती है।

(iv) पूर्वी तट के डेल्टा में चक्रवात- बंगाल की खाड़ी में प्रायः निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता रहता है जबकि इस समय पूर्वी तट पर स्थित कृष्णा, कावेरी तथा गोदावरी के डेल्टा प्रदेश में अपेक्षाकृत वायुदाब का उच्च क्षेत्र होता है। पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि अण्डमान सागर पर पैदा होने वाला चक्रवातीय दबाव मानसून एवं अक्टूबर-नवम्बर के दौरान उपोष्ण कटिबन्धीय जेट धाराओं द्वारा देश के आन्तरिक भागों की ओर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। ये चक्रवात विस्तृत क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमण्डल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।

(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है- राजस्थान तथा गुजरात के कुछ क्षेत्र अरब सागरीय मानसून शाखा द्वारा प्रभावित होते हैं। इस शाखा के मध्य कोई प्राकृतिक अवरोधक नहीं हैं जो मानसून पवनों को रोककर राजस्थान तथा गुजरात के कुछ क्षेत्र में वर्षा करा सकें। अरावली पर्वतमाला इस मानसून शाखा के समानान्तर स्थित होने के कारण यह वर्षा कराने में असमर्थ रहती है। मरुभूमि होने के कारण यहाँ वाष्पीकरण अधिक होता है, संघनन नहीं होता। वनस्पतिहीन होने के कारण वायुमण्डलीय आर्द्रता यहाँ आकर्षित नहीं होती।

पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा से प्रभावित होने के कारण –

(i) यह क्षेत्र पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित है।

(ii) पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा नहीं होती।

(iii) इससे यहाँ प्रायः सूखा पड़ने की सम्भावना रहती है।

प्रश्न 4. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर- भारत की उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत के निर्णायक प्रभाव तथा दक्षिण में महासागर होने के बावजूद भी तापमान, आर्द्रता एवं वर्षा में विविधता विद्यमान है। जलवायु में इस विभिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. एक अन्य विभिन्नता वर्षण में है। जबकि हिमालय के ऊपरी भागों में वर्षण ज्यादातर हिंग के रूप में होता है, देश के शेष भागों में वर्षा होती है। मेघालय में 400 सेगी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में वार्षिक वर्षण 10 सेभी से भी कम होती है।
  2. उदाहरण के लिए, गर्मियों में राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में, उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस होता है जबकि उसी समय देश के उत्तर में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, सर्दियों की किसी रात में जम्मू-कश्मीर के द्वास में तापमान -4.5 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि तिरुवन्तपुरम् में यह 22 डिग्री सेल्सियस हो सकता है।
  3. उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटत्ती जाती है।
  4. अण्डमान व निकोबार एवं केरल में दिन व रात के तापमान में बहुत कम भिन्नता होती है।
  5. देश के ज्यादातर भागों में जून से सितम्बर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर ज्यादातर वर्षा अक्टूबर एवं नवम्बर में होती है।

प्रश्न 5. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।

उत्तर- उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवम्बर से प्रारम्भ होकर फरवरी तक विद्यमान रहती है। इस मौसम में आकाश मेघरहित एवं स्वच्छ रहता है। तापमान कम रहता है और मन्द गति से हवाएं चलती हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठण्डे महीने होते हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के ऊपरी ढालों पर हिमपात होता है। इस ऋतु में देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर बहती है तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं जिससे ये अपने साथ आर्द्रता लाती हैं। देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं। शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अन्तर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्य सागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत ज्यादा जरूरत होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा की कुल मात्रा कम होती है, लेकिन ये रबी फसलों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 6. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताइए।

उत्तर- भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ-

(i) मानसून की अवधि जून के प्रारंभ से सितंबर के मध्य तक 100 से 120 दिन के बीच होती है।

(ii) इसके आगमन के आस-पास सामान्य वर्षण में अचानक वृद्धि हो जाती है। यह कई दिनों तक लगातार होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गर्जन व बिजली चमकने के साथ अचानक आगमन को मानसून ‘प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है।

(iii) मानसून में आर्द्र एवं शुष्क अवधियाँ होती हैं जिन्हें वर्षण में विराम कहा जाता है।

(iv) वार्षिक वर्षा में प्रतिवर्ष अत्यधिक भिन्नता होती है।

(v) यह कुछ पवनविमुखी ढलानों एवं मरुस्थल को छोड़कर भारत के शेष क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराती है।

(vi) वर्षा का वितरण भारतीय भूदृश्य में अत्यधिक असमान है। मौसम के प्रारम्भ में पश्चिमी घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती है अर्थात् 250 से. मी. से अधिक। दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, लेह में बहुत कम वर्षा होती है। सर्वाधिक वर्षा देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में होती है।

(vii) उष्णकटिबंधीय दबाव की आवृत्ति एवं प्रबलता मानसून वर्षण की मात्रा एवं अवधि को निर्धारित करते हैं।

(viii) भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों में मानसून सितंबर के प्रारंभ में वापसी शुरू कर देती हैं। अक्टूबर के मध्य तक यह देश के उत्तरी हिस्से से पूरी तरह लौट जाती है और दिसंबर तक शेष भारत से भी मानसून लौट जाता है।

(ix) मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक ओर देश के कुछ भागों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है, वहीं दूसरी ओर यह देश के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बन जाता है।

प्रश्न 7. दक्षिण-पश्चिमी मानसून उत्तर-पूर्वी मानसून से किस प्रकार भिन्न है? कोई चार अन्तर लिखिए।

उत्तर- उत्तर-पूर्वी मानसून एवं दक्षिण-पश्चिमी मानसून में अन्तर

उत्तर-पूर्वी मानसून

दक्षिण-पश्चिमी मानसून

1.ये पवनें शीतकाल में स्थल से चलती हैं। अतः शुष्क एवं ठंडी होती हैं। ये पवनें उष्ण कटिबन्धीय समुद्री भागों से चलकर आनी हैं। अतः ये पवनें गर्म और आर्द्र होनी हैं।
2. भारत में दिसम्बर से फरवरी तक की अवधि में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलने वाली पवनों को उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें कहते हैं। भारत में जून से सितम्बर तक की अवधि में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने वाली आर्द्र पवनों को दक्षिण-पश्चिम मानसून कहते हैं।
3.देश के शेष भागों में स्वच्छ आकाश, निम्न तापमान व आर्द्रता, मन्द समीर और वर्षा रहित मौसम सुहावना होता है। दक्षिण-पश्चिमी मानसून दो शाखाओं-बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बँट जाता है।
4.ये पवनें शीतकाल में देश के उत्तरी भागों में उच्च दाव की स्थिति पैदा होने के कारण देश के इस भाग से बाहर की ओर बहने लगती हैं। इस अवधि में भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में निम्न दाब क्षेत्र पाया जाता है।
5.ये पवनें बंगाल की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण कर तमिलनाडु के तट पर वर्षा करती हैं। इन पवनों से देश के अधिकांश भागों में लगभग 90 प्रतिशत वर्षा होती है।

प्रश्न 8. सम और विषम जलवायु में अन्तर स्पष्ट कीजिए। उत्तर- सम और विषम जलवायु में अन्तर

सम जलवायु

विषम जलवायु

1. ग्रीष्म ऋतु में न अधिक गर्मी तथा शीत ऋतु में न ज्यादा ठण्ड का पड़ना ही सम जलवायु की विशेषता है। महाद्वीपीय जलवायु का अर्थ ऐसी जलवायु से है, जिसमें ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्मी तथा शीत ऋतु में ज्यादा ठण्ड पड़ती है।
2. इस प्रकार की जलवायु समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में पायी जाती है। केरल के तटीय भागों में सम जलवायु पायी जाती है। विषम जलवायु महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में पायी जाती है। भारत के भीतरी भागों की जलवायु विषम है। दिल्ली और कानपुर क्षेत्रों की जलवायु विषम है।
3. सम जलवायु प्रदेशों में वर्षा की अवधि और वर्षा की मात्रा प्रायः दोनों ही अधिक होते हैं। विषम जलवायु वाले क्षेत्रों में वर्षा की अवधि और वर्षा की मात्रा दोनों ही कम पायी जाती है।
4.सम जलवायु समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में मिलने के कारण इसे अनुसमुद्री या समुद्री जलवायु कहते हैं। महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में इस प्रकार की जलवायु मिलने के कारण, इसे महाद्वीपीय जलवायु भी कहते हैं।
5.सम जलवायु वाले क्षेत्रों में वार्षिक ताप परिसर कम होता है। इन भागों में दैनिक ताप परिसर वार्षिक ताप परिसर से अधिक होता है। विषम जलवायु वाले क्षेत्रों में वार्षिक ताप परिसर अधिक पाया जाता है। उच्च वार्षिक ताप परिसर के साथ दैनिक ताप परिसर भी अधिक होता है।

प्रश्न 9. किसी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- किसी क्षेत्र की जलवायु को छह प्राकृतिक कारक प्रभावित करते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. सागर तट से दूरी – जैसे-जैसे स्थलीय क्षेत्र की सागर से दूरी बढ़ती जाती है, तो इसका समकारी प्रभाव घटने लगता है। इस तरह यह तापमान तथा वर्षा की प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इसे महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं। महाद्वीपीय व्यवस्था का आशय है कि गर्मी में बहुत गर्मी और सर्दी में बहुत ज्यादा ठण्ड पड़ती है।
  2. उच्चावच – ऊँचे पर्वत शीतल व गर्म वायु को रोकने का कार्य करते हैं। यदि इन पर्वतों की ऊँचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के मार्ग को रोकने में सक्षम होते हैं तो वे उस क्षेत्र में वर्षा लाने में समर्थ होते हैं। पर्वतों के पवन विमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।
  3. अक्षांशीय स्थिति- पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है। तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता जाता है। कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है, जो उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में आता है। कर्क रेखा के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबन्ध में आता है। इसलिए भारत की जलवायु में उष्ण कटिबन्धीय एवं उपोषण कटिबन्धीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ पायी जाती हैं।
  4. वायुदाब एवं पवनें- किसी क्षेत्र-विशेष का वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षण की प्रवृत्ति को भी प्रभावित करता है।
  5. स्थलीय क्षेत्र की ऊँचाई- भारत के उत्तर में पर्वत है जिनकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है। भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है। हिमालय पर्वत मध्य एशिया से आने वाली सर्द हवाओं को इस उपमहाद्वीप में आने से रोकता है। यही कारण है कि मध्य एशिया की अपेक्षा भारत में ठण्ड अपेक्षाकृत कम होती है। जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचे स्थानों की जाते हैं, वायुमण्डल विरल होता जाता है तथा तापमान गिरने लगता है। इसलिए पहाड़ियाँ गर्मियों में अपेक्षाकृत ठण्डी होती हैं।
  6. महासागरीय धाराएँ – समुद्र की ओर से स्थल की ओर आने वाली पवनों के साथ-साथ महासागरीय धाराएँ भी तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठण्डी जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर होती है, वह तट गर्म या ठण्डा हो जाएगा।

प्रश्न 10. ग्रीष्म ऋतु में भारत की जलवायु दशा का विवेचन कीजिए।

उत्तर- भारत में मार्च, अप्रैल, मई और जून माह को ग्रीष्म काल में शामिल किया जाता है। ग्रीष्मकाल में सम्पूर्ण भारत में उच्च तापमान और निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। ग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में शुष्क और गर्म हवाएँ बालती हैं। इन शुष्क एवं गर्म पवनों का स्थानीय नाम ‘लू’ है। मई माह में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में शाम के समय धूल भरी आँधियाँ चलती हैं। कभी-कभी इन आँधियों के बाद हल्की वर्षा होती है, जिससे कष्टदायक गर्मी से कुछ राहत मिलती है। ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा होती है, जिसका स्थानीय नाम आप्तवृष्टि है। इस समय ढक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत उच्च दाब होने के कारण, मानसून से पूर्व की वर्षा का क्षेत्र आगे नहीं बढ़ पाता है। इस ऋतु में बंगाल और असम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं।

प्रश्न 11. वायुदाब व पवन-तन्त्र किसी स्थान की जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- भूगोलवेत्ताओं के अनुसार पवनें उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं। सर्दियों में हिमालय के उत्तर में उच्च वायुदाब क्षेत्र बना हाता है। इसीलिए ठण्डी शुष्क पवनें इस क्षेत्र से महासागरों की ओर निम्न दाब क्षेत्रों की ओर दक्षिण दिशा में बहती हैं। गर्मियों में भीतरी एशिया तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, वायु दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती है। इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं, नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती है। मानसून की अवधि 100 से 120 दिन के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केन्द्रित है।

  1. पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण चक्रवात-हिमालय के दक्षिण से बहने वाली उपोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी जेट धाराएँ शीत ऋतु के महीनों में देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभों के लिए जिम्मेदार हैं। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त उष्ण कटिबन्धीय तूफानों का पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का कारण बनते हैं। यह पश्चिमी विक्षोभों के कारण होने वाला गैर-मानसूनी वर्षण है। इन तूफानों को मिलने वाली आर्द्रता का स्त्रोत भूमध्य सागर एवं अटलांटिक महासागर है।
  2. कोरिआलिस बल – भारतीय उपमहाद्वीप में पवनों की दिशा में मौसम के अनुरूप परिवर्तन कोरिआलिस बल के कारण होता है। भारत उत्तर-पूर्वी पवनों के क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं। ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं।
  3. जेट धाराएँ- क्षोभमण्डल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक सँकरी पट्टी में स्थित हवाएँ होती हैं। इनकी गति गर्मी में 110 किमी प्रति घण्टा एवं सर्दी में 184 किमी प्रति घण्टा के बीच विचलन करती है। हिमालय के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराओं की गतिविधियों एवं गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर बहने वाली पश्चिमी जेट धाराओं की उपस्थिति मानसून को प्रभावित करती है। प्रायः जब उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी-दक्षिण प्रशान्त महासागर में उच्च वायुदाब होता है तो उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है। किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशान्त महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठण्डी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अन्तराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का सम्बन्ध एलनीनो से है। इसलिए इस परिघटना को एंसो (ENSO) (एलनीनो दक्षिणी दोलन) कहा जाता है।

हवाओं में निरन्तर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे बढ़ती हुई देश के आन्तरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

UP Board Solution of Class 9 Social Science भूगोल (Geography) Chapter- 3 अपवाह (Apavaah) Long Answer

 

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