भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पर निबंध || Bhartiya Samaj Mein Nari ka Sthan Par Nibandh Hindi || Essay on Women’s Situation in India in Hindi
भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में समय के साथ बदलाव आया है। प्रारंभिक काल में महिलाएं सम्मानित और शक्तिशाली थीं, लेकिन मध्यकाल में सामाजिक और धार्मिक बंधनों के कारण उनकी स्थिति में गिरावट आई। आज, महिलाओं को शिक्षा, राजनीति, और रोजगार के क्षेत्रों में अधिकार मिल रहे हैं, लेकिन कई स्थानों पर अब भी उन्हें भेदभाव, असमानता और हिंसा का सामना करना पड़ता है। हालाँकि, महिला सशक्तिकरण के लिए कई कानून और योजनाएं बनाई गई हैं, फिर भी समाज में पूर्ण समानता स्थापित करने के लिए और प्रयासों की आवश्यकता है।
भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति
अन्य शीर्षक
- नारी जागरण,
- नारी उत्थान,
- विकासशील भारत एवं नारी
- भारतीय समाज में नारी की स्थिति
- स्वातन्त्र्योत्तर भारत में महिला,
- आधुनिक नारी की समस्याएँ,
- आधुनिक भारत में नारी का स्थान
रूपरेखा –
- प्रस्तावना
- भारतीय समाज में नारी की स्थिति
- नारी की स्थिति में परिवर्तन
- भारतीय नारी बलिदान की प्रतिमा
- वर्त्तमान समय में नारी शिक्षा की आवश्यकता
- उपसंहार।
प्रस्तावना – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं जिनमें सामंजस्य होने पर ही यह गाड़ी सरपट दौड़ पाती है! देश के निर्माण में पुरुषों के साथ स्त्रियों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय समाज में नारियों की पूजा विभिन्न रूपों में होती रही है। ‘मनुस्मृति’ में कहा गया है- “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः”, अर्थात् जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
भारतीय समाज में नारी की स्थिति – हम नारी की स्थिति को निम्न बिन्दुओं के आधर पर समझ सकते हैं-
(i) प्राचीनकाल में नारी – प्राचीन समय में नारियों को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे, परिवार में उनका स्थान प्रतिष्ठापूर्ण था, गृहस्थी का कोई भी कार्य उनकी सहमति के बिना नहीं हो सकता था। उन्हें शिक्षा प्राप्ति, शास्त्रार्थ और अपने विभिन्न कौशलों का विकास करने की स्वतन्त्रता प्राप्तथी। कैकेयी, अनसूया, दमयन्ती, सीता, सावित्री, शकुन्तला, गार्गी, अपाला आदि श्रेष्ठ नारियां इसी काल से सम्बन्धित हैं।
(ii) मध्यकाल में नारी की स्थिति- मध्यकाल आते-आते स्त्री की दशा दयनीय हो गई। उसे हीन दृष्टि से देखा जाने लगा। उसका कार्यक्षेत्र केवल घर की चारदीवारी ही रह गया। अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा, आदि अनेक कुरीतियों के फलस्वरूप नारी का जीवन नरकमय बनता चला गया। पुरुषों की स्वार्थ-परता, के कारण उसके अधिकारों छीना जाने लगा, कार्यक्षेत्र सीमित हो गया, साहित्यकार भी नारी को दोषों की खान के रूप में देखने लगे थे। पर्दा प्रथा प्रारम्भ हुई, नारी घर की चारदीवारी में कैद हो गई, शिक्षा से भी नारी को वंचित किया गया। आर्थिक एवं सामाजिक कुरीतियों ने पराधीन भारत में नारियों को इतना दीन-हीन बना दिया था कि वे अपने अस्तित्व को ही भूल गई थीं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने नारी की इसी शोचनीय दशा का वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में किया है-
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।।
(iii) वर्तमान काल : नारी की स्थिति में परिवर्तन – वर्तमान काल में समय के परिवर्तन के साथ-साथ स्त्रियों की दशा में भी परिवर्तन होता गया। धीरे-धीरे भारतीय विचारकों एवं नेताओं का ध्यान स्त्री-दशा में सुधार की ओर आकर्षित हुआ। राजा राममोहनराय ने सती प्रथा का अन्त कराने का सफल प्रयास किया। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने पुरुषों की भाँति महिलाओं को भी समान अधिकार दिए जाने पर बल दिया। गांधीजी सहित अन्य अनेक नेताओं ने महिला उत्थान के लिए जीवनपर्यन्त कार्य किए। देश की स्वतन्त्रता के साथ-साथ नारी-वर्ग में भी चेतना का विकास हुआ। आज की नारी अबला से सबला बनती जा रही है।
भारतीय नारी : बलिदान की प्रतिमा- रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बलिदान देकर देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से युद्ध किया। गांधीजी को चरित्र-निर्माण की मूल प्रेरणा देनेवाली उनकी माता पुतलीबाई ही थीं। पन्ना धाय, हाडारानी, के रूप में हमें बलिदान की प्रेरणा हमेशा मिलती रहेगी। और भी श्री सावित्रीबाई फ़ुले, श्रीमती सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पण्डित, इन्दिरा गांधी, राजकुमारी अमृतकौर, डॉ० सुशीला नय्यर, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदि के रूप में हमें आज के प्रगतिशील नारी-समाज के दर्शन होते हैं।
वर्त्तमान समय में नारी शिक्षा की आवश्यकता– नारी का सम्बन्ध दो परिवारों से होता है। वह एक ओर तो पिता के घर से ससुराल में जाकर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालती है। यदि नारी पढ़ी-लिखी, जागरूक, सचेत है तो वह दोनों कुलों को पवित्र कर देती है। नारी संतान को जन्म देती है, उसका संस्कार करती है तथा उसे भावी पीढ़ी को संवारने का पूरा अवसर मिलता है। स्पष्ट है कि पढ़ी-लिखी नारी इस दिशा में जो कार्य कर सकती है वह अशिक्षित नारी नहीं कर सकती। वह जमाना गया जब हम लोगों की सोच यह थी कि पुत्री तो पराया धन है, इसे तो ससुराल विदा करना है, अतः इस पर पैसा खर्च करके क्यों पढ़ाया जाए? अब यह सोच बदल रही है। जागरूक शिक्षित बालिकाएं समाज के हर क्षेत्र में अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रही हैं , पुरुषो के कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं।
आधुनिक भारत में नारी का स्थान – स्वतन्त्र भारत में महिलाओं की प्रगति के लिए हमारी सरकार पर्याप्त ध्यान दे रही है। आज की नारी डॉक्टरी, इन्जीनियरी, अध्यापकी, लिपिकी, आदि क्षेत्रों में तो लगी ही हैं, पुलिस, रक्षा विभागों, आदि में भी उच्च पदस्थ रही हैं। किरण वेदी (आई. पी.एस.), बछेन्द्री पाल (पर्वतारोहण में) अपना उच्च स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। दहेज प्रथा को भी समाप्त करने के लिए कानून बन चुका है।
उपसंहार – इस प्रकार हम देखते हैं कि जैसे प्राचीन समय में नारियों का सम्मान था वैसे ही आज के समय में भी अग्रसर है। मध्यकाल में नारियों को जितनी उपेक्षा मिली उससे कही ज्यादा सम्मान वर्तमान समय में मिल रहा है। फिर भी अभी कुछ परिवर्तन शेष हैं जिन्हें समाज द्वारा जल्द ही अपने प्रयासों से लागू किया जाएगा और स्त्री पुरुष भेद को मिटाकर देश की उन्नति में सलग्न होंगे।