Nirala Ka Jivan Parichay : Surykant Tripathi Nirala Jivan Parichay :सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Biography) jivani in Hindi

Nirala Ka Jivan Parichay : Surykant Tripathi Nirala Jivan Parichay – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Biography) jivani in Hindi and English

Nirala Ka Jivan Parichay : Surykant Tripathi Nirala Jivan Parichay – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Biography) jivani Rachana Lekhak Niral ki Pramukh Rachnaye?

Nirala Ka Jivan Parichay : Surykant Tripathi Nirala Jivan Parichay - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Biography) jivani

नाम  सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जन्म  सन् 1896 ई०
पिता  रामसहाय त्रिपाठी जन्मस्थान  बंगाल के मेदिनीपुर जिले में
युग  छायावादी युग मृत्यु  सन् 1961 ई0
उपनाम  निराला व महाप्राण  पत्नी  मनोहर देवी 

जीवन-परिचय- (Nirala Ka Jeevan Parichay)

निलाजी (Nirala) का जन्म सन् 1896 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के रहने वाले थे और मेदिनीपुर में नौकरी करते थे। वहीं पर निराला की शिक्षा बंगला के माध्यम से आरम्भ हुई।

 बचपन में ही इनका विवाह ‘मनोहरा देवी’ से हो गया था। ‘रामचरितमानस’ से इन्हें विशेष प्रेम था। बालक सूर्यकान्त के सिर से माता-पिता की छाया अल्पायु में ही उठ गयी। निराला जी को बंगला भाषा और हिन्दी साहित्य का अच्छा ज्ञान था। इनकी पत्नी एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गयीं।

पत्नी के वियोग के समय में ही आपका परिचय पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी से हुआ। निराला जी को बार-बार आर्थिक कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। आर्थिक कठिनाइयों के बीच ही इनकी पुत्री सरोज का देहान्त हो गया। ये स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द जी से बहुत प्रभावित थे। इनकी मृत्यु सन् 1961 ई0 में हुई।

साहित्यिक परिचय (Sahityik Parichay)

महाप्राण  निराला का उदय छायावादी कवि के रूप में हुआ। इन्होंने अपने साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ ‘जन्मभूमि की वन्दना’ नामक एक कविता की रचना करके किया। इन्होंने ‘सरस्वती’ और ‘मर्यादा’ पत्रिकाओं का निरन्तर अध्ययन करके हिन्दी का ज्ञान प्राप्त किया। ‘जुही की कली’ नामक कविता की रचना करके इन्होंने हिन्दी जगत् में अपनी पहचान बना ली। छायावादी लेखक के रूप में प्रसाद पन्त और महादेवी वर्मा के समकक्ष ही इनकी गणना की जाती है। ये छायावाद के चार स्तम्भों में से एक माने जाते हैं।

रचनाएँ (Rachnayen)

निराला जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • काव्य संग्रह – अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), अनामिका (द्वितीय) (1939) (इसी संग्रह मैं ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी प्रसिद्ध कविताओं का संकलन है), तुलसीदास (1939), कुकुरमुत्ता (1942), अणिमा (1943), बेला (1946), नए पत्ते (1946), अर्चना (1950), आराधना (1953), गीत कुंज (1954), सांध्य काकली, अपरा (संचयन) ।
  • उपन्यास – अप्सरा (1931), अलका (1933), प्रभावती (1936), निरूपमा (1936), कुल्ली भाट ( 1938-39), बिल्लेसुर बकरिहा (1942), चोटी की पकड़ (1946), काले कारनामे (1950) (अपूर्ण), चमेली (अपूर्ण), इन्दुलेखा (अपूर्ण)।
  • कहानी संग्रह – लिलि (1934), सखी (1935), सुकुल की बीवी (1941), चतुरी चमार (1945), ‘सखी’ संग्रह की कहानियों का ही इस नए नाम से पुनर्प्रकाशन |
  • निबन्ध-आलोचना- रवीन्द्र कविता कानन (1929), प्रबंध पद्म (1934), प्रबंध प्रतिमा (1940), चाबुक (1942), चयन (1957), संग्रह (1963)। पुराण कथा – महाभारत (1939), रामायण की अन्तर्कथाएँ (1956)।
  • बालोपयोगी साहित्यभक्त ध्रुव (1926), भक्त प्रहलाद (1926), भीष्म (1926), महाराणा प्रताप (1927), सीखभरी कहानियाँ ( ईसप की नीति कथाएं ) (1969)
  • अनुवाद – रामचरितमानस (विनय भाग) (1948), आनंदमठ, विषवृक्ष, कृष्णकांत का वसीयतनामा, कपालकुंडला, दुर्गेश नन्दिनी, राजसिंह, राजरानी देवी चौधरानी, युगलांगुलीय, चन्द्रशेखर, रजनी, श्री रामकृष्णवचनामृत, परिव्राजक, विवेकानंद, राजयोग (अंशानुवाद)।

भाषा-शैली- (Bhasha Shaili)

निराला जी ने  शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किया है। भाषा में अनेक स्थलों पर शुद्ध तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ हैं, जिसके कारण इनके भावों को सरलता से समझने में कठिनाई होती हैं। छायावाद पर आधारित इनकी रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली तथा प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग हुआ है।

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