Rahul sankrtyayn ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय, जीवनी, एवम् रचनाएँ Biography

Rahul sankrtyayn ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय, जीवनी, एवम् रचनाएँ (Biography of rahul sanskrtyayn).

मेरे प्यारे विद्यार्थियो हम यहाँ पर आपको हिंदी साहित्य के महान लेखक राहुल सांकृत्यायन जी का जीवन परिचय प्रदान कर रहे है और उनकी रचनाये एवम् जीवन का सार नीचे उलेखित किया गया है। Biography of Rahul sankrtyayn. Rahul sanskrtyayan Ji ka Jeevan Parichay (Biography) Sahityik Parichay of Rahul sankrtyayn.

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Rahul sankrtyayn ji ka jivan parichy, jivani, and Rachnaaye राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय, जीवनी, एवम् रचनाएँ Biography

लेखक का  संक्षिप्त जीवन परिचय (फ्लो चार्ट)
  • जन्म – 9 अप्रैल, सन् 1893 ई०।
  • जन्म स्थान –पन्दहा ग्राम, जिला आजमगढ़।
  • साहित्य में पहचान  उपाशक तथा यात्री
  • मृत्यु – 14 अप्रैल 1963 ई०।
  • कालआधुनिक काल।
पूरा नाम राहुल सांकृत्यायन।
बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे।
जन्म 9 अप्रैल, सन् 1893 ई०।
जन्म स्थान पन्दहा ग्राम, जिला आजमगढ़।
निवास स्थान कनैला।
पिता गोवर्धन पाण्डे।
माता  कुलवंती।
काल आधुनिक काल।
विषय यात्रा व्रतांत।
पुरस्कार साहित्य अकादमी, पद्म भूषण।
मृत्यु 14 अप्रैल 1963 ई०।

जीवन परिचय 

राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल, सन् 1893 ई० को रविवार के दिन अपने नाना पं० रामशरण पाठक के यहाँ पन्दहा ग्राम, जिला आजमगढ़ में हुआ था। इनके पिता पं० गोवर्धन पाण्डे एक कट्टर धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। वे पन्दहा से दस मील दूर कनैला ग्राम में रहते थे। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था। ‘सांकृत्य’ इनका गोत्र था। इसी के आधार पर सांकृत्यायन कहलाये।

बौद्ध धर्म में आस्था होने पर अपना नाम बदल कर महात्मा बुद्ध के पुत्र के नाम पर ‘राहुल’ रख लिया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय और फिर निजामाबाद में हुई, जहाँ से इन्होंने सन् 1907 ई0 में उर्दू में मिडिल पास किया। इसके उपरान्त इन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की। यहीं इनमें पालि-साहित्य के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ। इनके पिता की इच्छा थी कि आगे भी पढ़ें, पर इनका मन कहीं और था।

इन्हें घर का बन्धन अच्छां न लगा। इनकी इस प्रवृत्ति के कई कारण थे। इनके नाना पं० रामशरण पाठक सेना में सिपाही थे और उस जीवन में दक्षिण भारत की खूब यात्रा की थी। इस विगत जीवन की कहानियाँ वे बालक केदार को सुनाया करते थे, जिसने इनके मन में यात्रा-प्रेम को अंकुरित कर दिया। इसके बाद इन्होंने कक्षा 3 की उर्दू पाठ्य-पुस्तक (मौलवी इस्माइल की उर्दू की चौथी किताब) पढ़ी थी, जिसमें एक शेर

स प्रकार था –

सैर कर दुनिया की गाफ़िल जिन्दगानी फिर कहाँ?

जिन्दगी गर कुंछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ?

इस शेर के सन्देश ने बालक केदार के मन पर गहरा प्रभाव डाला। इसके द्वारा इनके घुमक्कड़ी जीवन की उत्पत्त्ति हुई और आगे चलकर इन्होंने बाकायदा घुमक्कड़ों के निर्देशन के लिए ‘धुमक्कड़-शास्त्र’ ही लिख डाला। इन्होंने किशोरावस्था पार करने के बाद ही लिखना शुरू कर दिया था। इनका अध्ययन जितना विशाल था, साहित्य-सृजन भी उतना ही विराट् था।

ये छत्तीस एशियाई और यूरोपीय भाषाओं के ज्ञाता थे और लगभग 150 ग्रंथों का प्रणयन करके इन्होंने राष्ट्रभाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी-भाषा और साहित्य के क्षेत्र में इन्होंने ‘अपभ्रंश काव्य साहित्य’, ‘दक्खिनी हिन्दी साहित्य’ आदि श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की थीं। इनकी रचनाओं में एक ओर प्राचीनता के प्रति मोह और इतिहास के प्रति गौरव का

भाव विद्यमान है  और इसी क्रम में सन् 1927 से लगातार हिंदी साहित्यसेवा करते हुए 14 अप्रैल, सन् 1963 ई० को भारत के इस पर्यटनप्रिय साहित्यकार का निधन हो गया।

यात्राएँ

राहुल जी के यात्रा-विवरण अत्यन्त रोचक, रोमांचक, शिक्षाप्रद, उत्साहवर्धक और ज्ञान-प्रेरक हैं। इन्होंने पाँच-पाँच बार तिब्बत, लंका और सोवियत भूमि की यात्रा की थी। छह मास यूरोप में रहे थे। एशिया को इन्होंने जैसे छान ही डाला था।

कोरिया, मंचूरिया, ईरान, अफगानिस्तान, जापान, नेपाल, केदारनाथ-बदरीनाथ, कुमायूँ-गढ़वाल, केरल-कर्नाटक, कश्मीर-लद्दाख आदि के पर्यटन को इनकी दिग्विजय कहने में कोई अत्युक्ति न होगी। कुल मिलाकर राहुल जी की पाठशाला और विश्वविद्यालय यही घुमक्कड़ी जीवन था।

रचनाएँ

  1. कहानी संग्रह- सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा तक, बहुरंगी मधुपुरी, कनैल की कथा।
  2. उपन्यास- सिंह सेनापति, जीने के लिए, मधुर स्वप्न, राजस्थान निवास, दिवोदास, जय योधेय, भागो नही दुनिया को बदलो बाइसवी      सदी।
  3. जीवनी कार्ल मार्क्स, स्तालिन, माओ त्से तुंग ।
  4. यात्रा साहित्य लंका, जापान, इरान, किन्नर देश की ओर, चीन में क्या देखा, मेरी लद्दाख यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, तिब्बत में सवा        बर्ष, रूस में पच्चीस मास ।
पुरस्कार
  • साहित्य अकादमी
  • पद्म भूषण।
भाषा-शैली

राहुल जी की भाषा शैली बनावट नहीं है

 इनकी शैली व्यंगात्मक, विवेचनात्मक, वर्णनात्मक हैं।

यह भी देखे-

Jeevan Parichay || Jivan Parichaya || Biography || Jeevani || Jivani || Vyaktitva and Krititva

जीवन परिचय || जीवनी || रचनाएँ || व्यक्तित्व और कृतित्व 

Post Overview

Post Name

Rahul sankrtyayn  ji ka Jivan Parichay, jivani

Class All
Subject Hindi
Topic Jivan Parichay/ Biography/ Jeevani 
Board All Board and All Students 
State Uttar Pradesh
Session All 
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