UP Board and NCERT Solution of Class 10 Science
[विज्ञान] ईकाई 2 जैव जगत – Chapter- 5 Life Processes ( जैव प्रक्रम ) NCERT Question Answer
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं विज्ञान ईकाई 2 जैव जगत (Organic world) के अंतर्गत चैप्टर 5 Life Processes ( जैव प्रक्रम ) पाठ के NCERT के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर सहित प्रदान किया जा रहे हैं । UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें
पोषण, प्रकाश संश्लेषण, मनुष्य का पाचन तन्त्र, श्वसन, परिवहन, वाष्पोत्सर्ज, मानव में उत्सर्जी तन्त्र
Class | 10th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | Life Processes |
NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न–उत्तर
प्रश्न 1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?
उत्तर–हम जानते हैं कि बहुकोशिकीय जीवों में समस्त कोशिकाएँ वातावरण से सीधे सम्पर्क में नहीं होती हैं अतः सरल विसरण समस्त कोशिकाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है।
प्रश्न 2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे ?
उत्तर–सजीवों को अपनी संरचनाओं की मरम्मत एवं रखरखाव करना आवश्यक है। ये समस्त संरचनाएँ अणुओं से मिलकर बनी हैं। इसलिए हमें, हर समय, अणुओं को गतिशील रखने की क्षमता होनी चाहिए। अतः अदृश्य अणुगति, जीव के जीवित होने का प्रमाण है।
प्रश्न 3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-(i) भोजन– ऊर्जा एवं पदार्थों के स्रोत के रूप में।
(ii) ऑक्सीजन – भोजन पदार्थों का विखण्डन करके ऊर्जा प्राप्त करने के लिए।
(iii) जल– भोजन के सही पाचन के लिए तथा शरीर के अन्दर अन्य जैविक प्रक्रियाओं के लिए।
(iv) कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)।
प्रश्न 4. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे ?
उत्तर – अनेकों जैव प्रक्रम हैं जो जीवन के अनुरक्षण के लिए आवश्यक हैं, जैसे-(i) पोषण, (ii) श्वसन, (iii) उत्सर्जन, (iv) वहन आदि।
प्रश्न 5. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है?
उत्तर–स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में निम्नलिखित अन्तर हैं-
स्वयंपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition) |
विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Nutrition) |
1. यह पोषण हरे पौधों में पाया जाता है, जो भोजन के निर्माण के लिए अकार्बनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं। इसलिए हरे पौधों को स्वयंपोषी जीव कहते हैं। | 1. इसमें जन्तुओं को अपने कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकता के लिए पौधों तथा अन्य जीवों पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण: शाकाहारी, मांसाहारी, मृतजीवी आदि। |
2. इस पोषण में CO₂, जल, क्लोरो फिल तथा सूर्य के प्रकाश द्वारा कार्बनिक पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। | 2. विषमपोषी पोषण में यह प्रक्रिया नहीं होती है। |
3. यह पोषण हरे पौधों तथा साइनोबैक्टीरिया (नीले-हरे शैवाल) में होता है। | 3. यह पोषण प्रायः सभी जन्तुओं, मानव, परजीवी, कवक आदि में होता है। |
प्रश्न 6. प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?
उत्तर– (i) कार्बन डाइऑक्साइड– पादप वातावरण से CO₂ रंखों • द्वारा प्राप्त करते हैं।
(ii) जल– पादप, जड़ों द्वारा जल का अवशोषण मृदा में से करते हैं। तथा पत्तियों तक इसका परिवहन करते हैं।
(iii) क्लोरोफिल– हरे पत्तों में क्लोरोप्लास्ट होता है, जिसमें क्लोरोफिल मौजूद होते हैं।
(iv) सूर्य का प्रकाश– सूर्य से प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 7. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है ?
उत्तर– आमाशय में अम्ल माध्यम को अम्लीय बनाता है जो पेप्सिन (Pepsin) एन्जाइम की क्रिया में सहायक होता है।
प्रश्न 8. पाचक एन्जाइयों का क्या कार्य है ?
उत्तर–पाचक एन्जाइम प्रोटीन को अमीनो अम्ल में, कार्बोहायड्रेट को तुम में तथा वा की वसीय अम्लों व मितसराल में बदल देते हैं।
प्रश्न 9. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को जैसे अधिकल्पित किया गया है ?
उत्तर– पचे हुए भोजन का अवशोषण क्षुद्रांत्र में होता है। खुद्रांत्र की संरचना इस प्रकार से है कि कुल सतही क्षेत्रफल अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे अवश्लेषण का क्षेत्र भी बढ़ जाता है। अतः पाचित भोजन अधिक मात्रा में अवशोषित होकर रक्त में पहुँचता है और फिर इसका वहन सारे शरीर में होता है। बुद्रांत्र की अंदरूनी भिसि में बहुत बड़ी संख्या में अंगुलियाँ समान दीर्घरीम होते हैं। ये दीर्घरीम भोजन के अवशोषण को लिए एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करते हैं।
प्रश्न 10. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीब की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर– जो जीव पानी में रहता है, वह अपने चारों ओर पानी में घुली सॉक्सीजन का प्रयोग करता है। चूँकि पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की सत्रा बहुत कम होती है, अतः जलीय जीव में श्वसन दर अधिक होती है। स्थलीय जीव, पर्याप्त ऑक्सीजन वाले वातावरण से श्वसन अंगों द्वारा ऑक्सीजन लेते हैं। अतः जलीय जीवों की तुलना में स्थलीय जीवों की श्वसन दर काफी कम होती है।
प्रश्न 11. ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या है?
उत्तर– ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ निम्नलिखित प्रकार हैं-
प्रश्न 12. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है ?
उत्तर– ऑक्सीजन का परिवहन– मानव शरीर के फुफ्फुस कृपिकाओं की रुधिर वाहिकाओं में RBCs होते हैं, जिसमें मौजूद हमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयुक्त व्होकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है तथा सभी ऊतकों एवं अंगों तक पहुँच जाता है।
कार्बन डाइऑवरराइड (CO₂) का परिवहन– ऑक्सीजन की अपेक्षा CO, जल में अधिक विलेय है, इसलिए ऊतकों से फुफ्फुस तक परिवहन हमारे रुधिर (प्लाज्मा) में विलेय अवस्था में होता है।
प्रश्न 13. गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है ?
उत्तर– श्वास नली फुफ्फुस में कई छोटी-छोटी श्वसनिकाओं में विभाजित होती है। ये छोटी श्वसनिकाएँ बहुत छोटे-छोटे शैली जैसी रचना कूपिकाओं में खुलती हैं। कृपिकाओं की भित्ति बहुत पतली होती है जो कि रुधिर केशिकाओं से घिरी होती है। दोनों फुफ्फुस में लगभग 30 करोड़ कृपिकाएँ होती हैं जो कि लगभग 100 वर्ग मीटर सतह बनाते हैं।
प्रश्न 14. मानव में वहन तंत्र के घटक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?
उत्तर–मानव में वहन तंत्र के घटक हैं-हृदय, रुधिर वाहिकाएँ और रुधिर। उनके कार्य निम्न प्रकार हैं-
(i) हृदय–यह एक पंप की तरह कार्य करता है।
(ii) रुधिर वाहिकाएँ :
(a) धमनियाँ– हृदय से शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त ले जाती है।
(b) शिराएँ– विभिन्न अंगों से हृदय तक वापस डीऑक्सीजनेटेड रक्त शुद्धीकरण के लिए लाती हैं।
(c) केशिकाएँ– धमनी छोटी-छोटी वाहिकाओं में विभाजित हो जाती हैं, जिसे केशिकाएँ कहते हैं। रुधिर एवं आसपास की केशिकाओं के मध्य पदार्थों का विनिमय होता है।
(iii) रुचिर या रक्त– यह परिवहन का माध्यम है जो निम्नलिखित से बना होता है-
(a) प्लाज्मा–भोजन के अणुओं, CO₂, नाइट्रोजनी वर्थ, लवण, हार्मोन, प्रोटीन आदि का विलीन रूप में वहन करता है।
(b) RBCs-इनमें हीमोग्लोबिन होता है, जो ऑक्सीजन को ले जाती है।
(c) WBCs- संक्रमण से लड़ने में सहायता करती हैं। ये शरीर में आए रोगाणुओं को मारकर शरीर को स्वस्थ बनाए रखती हैं।
(d) प्लेटलेट्स– रक्तस्राव के स्थान पर रुधिर का थक्का बनाकर मार्ग अवरुद्ध कर देती है।
प्रश्न 15. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर– हृदय का दायाँ व बायाँ बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकता है तथा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है, क्योंकि पक्षी और स्तनधारी जंतुओं को अपने शरीर का तापक्रम बनाए रखने के लिए निरन्तर उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए यह बहुत लाभदायक होता है।
प्रश्न 16. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं ? उत्तर– उच्च संगठित पादप में निम्नलिखित वहन तंत्र होते हैं-
(i) जाइलम ऊतक– जाइलम ऊतक पादप के जड़ से खनिज लवण तथा जल इसके सभी अंगों तक पहुँचाता है। जाइलम ऊतक में जड़ों, तनों और पत्तियों की वाहिनिकाएँ तथा वाहिकाएँ आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक जाल बनाती हैं, जो पादप के सभी भागों से सम्बद्ध होता है।
(ii) फ्लोएम ऊतक– भोजन तथा अन्य पदार्थों का संवहन पत्तियों से अन्य सभी अंगों तक फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है।
प्रश्न 17. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है ?
उत्तर– जल तथा लवण, मृदा से पत्तियों तक जाइलम कोशिकाओं द्वारा परिवहित होते हैं। जड़, तने तथा पत्तियों की जाइलम कोशिकाएँ परस्पर जुड़कर संयोजी मार्ग बनाते हैं। जड़ों की कोशिकाएँ मृदा से लवण लेती हैं। ये मृदा तथा जड़ के लवणों की सान्द्रता में फर्क उत्पन्न कर देता है। इसलिए जल की निरन्तर गति जाइलम में होती रहती है। एक परासरण दबाव उत्पन्न होता है और जल व लवण एक कोशिका से दूसरी कोशिका में परासरण के कारण परिवहित होते रहते हैं। वाष्पोत्सर्जन के कारण जल की निरन्तर हानि होती रहती है तथा चूषण बल उत्पन्न होता है जिससे जल तथा लवों की निरन्तर गति होती रहती है और जल तथा लवणों का परिवहन होता रहता है।
प्रश्न 18. पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है ?
उत्तर– पादपों में निर्मित भोजन, फ्लोएम द्वारा भण्डारण अंगों जैसे जड़, फल, बीज तथा विकासशील हिस्सों में परिवहित होता है। इस क्रिया को स्थानान्तरण कहते हैं। यह कार्य चलनी कोशिकाओं तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होता है। भोजन कर्णी का परिवहन ऊपर तथा नीचे दोनों दिशाओं में होता है।
स्थानांतरण की क्रिया एक सक्रिय क्रिया है जिसमें ऊर्जा का प्रयोग होता है। पदार्थों का स्थानांतरण पत्ती की कोशिकाओं या भण्डारण के स्थान से फ्लोएम ऊतक में होता है। इसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो ATP अणु से प्राप्त होती है। यह ऊर्जा परासरण दाब बढ़ाता है, परिणामस्वरूप जल बाहर से फ्लोएम के अन्दर गति करता है। यह क्रिया भोजन का परिवहन पादपों के समस्त हिस्सों में कायम रखती है।
प्रश्न 19. वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर– वृक्काणु के ऊपरी सिरे पर कप के आकार की रचना होती है जिसे बोमन संपुट कहते हैं। बोमन संपुट का निचला सिरा नली के आकार का होता है जो मूत्र संग्राहक नलिका में खुलता है। बोमन संपुट में बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर केशिकाओं का गुच्छा होता है। प्रारम्भिक निस्यंद में कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोस, ऐमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थों का चयनित पुनरावशोषण हो जाता है।
प्रश्न 20. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं।
उत्तर– उत्सर्जक पदार्थों से मुक्ति पाने के लिए पादप निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग करते हैं-
(i) अनेकों उत्सर्जी उत्पाद कोशिकाओं के धानियों में भण्डारित रहते हैं। पादप कोशिकाओं में तुलनात्मक रूप से बड़ी धानियाँ होती हैं।
(ii) कुछ उत्सर्जी उत्पाद पत्तियों में भण्डारित रहते हैं। पत्तियों के गिरने के साथ ये हट जाते हैं।
(iii) कुछ उत्सर्जी उत्पाद, जैसे रेजिन या गम, विशेष रूप से निष्क्रिय पुराने ज़ाइलम में भण्डारित रहते हैं।
(iv) कुछ उत्सर्जी उत्पाद जैसे टेनिन, रेज़िन, गम छाल में भण्डारित रहते हैं। छाल के उतरने के साथ हट जाते हैं।
(v) पादप कुछ उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन जड़ों के द्वारा मृदा में भी करते हैं।
प्रश्न 21. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर– मूत्र की मात्रा पानी के पुनः अवशोषण पर प्रमुख रूप से निर्भर करती है। वृक्काणु नलिका द्वारा पानी की मात्रा का पुनः अवशोषण निम्नलिखित पर निर्भर करता है-
(i) शरीर में अतिरिक्त पानी की कितनी मात्रा है जिसको निकालना है। जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त जल है, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है। जब शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम है, तब सांद्र मूत्र की थोड़ी-सी मात्रा उत्सर्जित होती है।
(ii) कितने घुलनशील उत्सर्जक, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक जैसे यूरिया तथा यूरिक अम्ल तथा लवण आदि का शरीर से उत्सर्जन होता है।
जब शरीर में घुलनशील उत्सर्जक की अधिक मात्रा हो, तब उनके उत्सर्जन के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। अतः मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
अध्याय के कुछ महत्वपूर्ण अभ्यास प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो सम्बन्धित है–
(a) पोषण
(b) श्वसन
(c) उत्सर्जन
(d) परिवहन
उत्तर– (c) उत्सर्जन।
प्रश्न 2. पादप में जाइलम उत्तरदायी है–
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) ऐमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन
उत्तर–(a) जल का वहन।
प्रश्न 3. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है–
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर– (d) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4. पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है–
(a) कोशिकाद्रव्य
(b) माइटोकॉण्ड्रिया
(d) केन्द्रक
(c) हरित लवक
उत्तर– (a) माइटोकॉण्ड्रिया।
प्रश्न 5. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर– (i) वसा का पाचन छोटी आँत में होता है।
(ii) क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में होता है, जिससे उस पर एन्जाइम का कार्य करना मुश्किल हो जाता है।
(iii) यकृत द्वारा स्स्रावित पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता है, जिससे एन्जाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। यह पायसीकरण क्रिया कहलाती है।
(iv) पित्त रस अम्लीय माध्यम को क्षारीय बनाता है, ताकि अग्न्याशय से स्स्रावित लाइपेज एंजाइम क्रियाशील हो सके।
(v) लाइपेज एंजाइम वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है।
(vi) पाचित वसा अंत में आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है।
प्रश्न 6. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?
उत्तर– (i) लार में लार (सेलाइवरी) एमायलेज़ एन्जाइम होता है जो स्टार्च को शर्करा जैसे माल्टोस में परिवर्तित कर देता है।
स्टार्च + सेलाइवरी एमायलेज़ 0——शर्करा
(जटिल अणु) (सरल अणु)
(ii) लार भोजन को नम करती है जो भोजन के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में चबाने तथा तोड़ने में मदद करती है, जिससे कि सेलाइवरी एमायलेज़ स्टार्च को प्रभावशाली तरीके से पाचिंत कर सके।
प्रश्न 7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन–सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं ?
उत्तर– स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक शर्तें हैं-
(a) जैव कोशिकाओं में क्लोरोफिल की उपस्थिति।
(b) पादप की कोशिकाओं या हरे हिस्सों में पानी की आपूर्ति का प्रबन्ध या तो जड़ों के द्वारा या आसपास के वातावरण के द्वारा।
(c) पर्याप्त सूर्य प्रकाश उपलब्ध हो, क्योंकि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश ऊर्जा आवश्यक है।
(d) पर्याप्त CO₂, जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान शर्करा के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण अवयव है।
(e) स्वपोषी पोषण के सह-उत्पाद हैं-स्टार्च (शर्करा), जल तथा O2
प्रश्न 8. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर– वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
वायवीय श्वसन | अवायवीय श्वसन |
1. वायवीय श्वसन, ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। | 1. यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। |
2. ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। | 2. ग्लूकोस का अपूर्ण विखण्डन होता है। |
3. अन्तिम उत्पाद हैं: CO₂, जल तथा ऊर्जा। | 3. अन्तिम उत्पाद हैं-इथाइल ऐल्कोहॉल (या लैक्टिक अम्ल), CO₂ तथा थोड़ी-सी ऊर्जा। |
4. बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। एक ग्लूकोस अणु से 38 ATP अणु बनते हैं। | 4. कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। एक ग्लूकोस अणु से 2 ATP अणु बनते हैं। |
5. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण (ग्लाइकोलिसिस) कोशिकाद्रव्य में होता है जबकि अगला चरण माइटोकॉण्ड्रिया में होता है। | 5. पूरा अवायवीय श्वसन कोशिका- द्रव्य में होता है। |
जन्तु जिनमें अवायवीय श्वसन होता है– यीस्ट तथा परजीवी, जैसे टेपवर्म (फीताकृमि), एस्केरिस (गोलकृमि) आदि।
प्रश्न 9. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर– (i) कूपिका की भित्ति पतली होती है तथा रुधिर वाहिकाओं के जाल से ढकी हुई है, जिससे गैसों का आदान-प्रदान, रुधिर तथा कूपिका के अन्दर भरी हवा के बीच अधिकाधिक हो सके।
(ii) कूपिका की गुब्बारे के समान संरचना है, जो गैसों के आदान-प्रदान के लिए सतही क्षेत्र बढ़ा देती है।
प्रश्न 10. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर– रुधिर की औसत हीमोग्लोबिन मात्रा किसी भी लिंग में 14.5 g प्रति 100 mL रुधिर है। यदि हीमोग्लोबिन की मात्रा रुधिर में कम होती है, तो इसकी O₂ की वहन क्षमता भी घट जाती है। अतः वह मानव 02 की कमी के लक्षण दर्शाता है, जैसे साँस फूलना जो कि अक्सर लोहे की कमी से हुए एनीमिया का पहला लक्षण है।
प्रश्न 11. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है ?
उत्तर– मनुष्य के परिसंचरण तंत्र को दोहरा परिसंचरण इसलिए कहते हैं, क्योंकि प्रत्येक चक्र में रुधिर दो बार हृदय में जाता है। हृदय का दायाँ और बायाँ बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकता है। चूँकि हमारे शरीर में उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन जरूरी होता है। अतः शरीर का तापक्रम बनाए रखने तथा निरन्तर ऊर्जा की पूर्ति के लिए यह परिसंचरण लाभदायक होता है।
प्रश्न 12. जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर– जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में अन्तर निम्नलिखित हैं-
जाइलम | फ्लोएम |
1. जाइलम जड़ से पत्तियों तथा अन्य भागों में जल तथा घुले लवण परिवहित करते हैं। | 1. फ्लोएम, भोजन पदार्थों को घुली अवस्था में पत्तियों से पादप के दूसरे हिस्सों तक परिवहित करता है। |
2. जाइलम में पदार्थों का परिवहन वाहिकाओं तथा वाहिनियों द्वारा होता है, जो मृत ऊतक हैं। | 2. फ्लोएम में पदार्थों का परिवहन चालनी नलिकाओं द्वारा सहचर कोशिकाओं की मदद से होता है, जो जैव कोशिकाएँ हैं। |
3. वाष्पोत्सर्जन खिंचाव के कारण ऊपर की ओर जल तथा घुले लवणों का चढ़ना सम्भव हो पाता है। यह पत्ती की कोशि काओं से जल अणुओं के बाष्पीकरण से उत्पन्न खिंचाव के कारण होता है। | 3. स्थानान्तरण में पदार्थ फ्लोएम में ATP ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए होता है। यह परासरण दाब बढ़ा देता है जो फ्लोएम से पदार्थों को ऊतकों की ओर भेजता है, जिनमें दाब कम होता है। |
4. जल का परिवहन सरल भौतिक गति के अन्तर्गत होता है। ऊर्जा खर्च नहीं होती है। अतः ATP की आवश्यकता नहीं है। | 4. फ्लोएम में स्थानान्तरण एक सक्रिय क्रिया है तथा इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है। |
प्रश्न 13. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर– फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है-
कूपिका | वृक्काणु |
1. पतली भित्ति, गुब्बारे के समान संरचना, सतह महीन तथा नाजुक। | 1. पतली भित्ति, कप की आकृति की संरचना, जो पतली भित्ति वाले ट्यूब्यूल से जुड़ी है। |
2. गैसों के आदान-प्रदान के लिए रुधिर केशिकाओं का लम्बा-चौड़ा जाल। | 2. बोमेन संपुट में रुधिर केशिकाओं का गुच्छा होता है जिसे केशिका गुच्छ कहते हैं। इसका काम छानना है। वृक्काणु के ट्यूब्यू- लर हिस्सों के ऊपर रुधिर वाहिकाओं का एक जाल होता है, जो लाभप्रद पदार्थों तथा जल का पुनः अवशोषण करता है। |
3. कूपिकाएँ सतही क्षेत्र बढ़ा देती हैं, जिसमें CO₂ का रुधिर से वायु में तथा 0 का वायु से रुधिर में विसरण हो सके। | 3. वृक्काणु भी सतही क्षेत्र बढ़ाता है, रुधिर को छानने के लिए तथा निस्यंद से लाभप्रद पदार्थ तथा जल के पुनः अवशोषण के लिए। अन्त में मूत्र बचेगा। |
4. कूपिकाएँ केवल फेफड़ों में गैसों के आदान-प्रदान के लिए सतही क्षेत्र बढ़ाती हैं। | 4. वृक्काणु के नलिकाकार हिस्से मूत्र को संग्राहक वाहिनी तक ले जाती हैं। |
5. कूपिकाएँ बहुत छोटी होती हैं और प्रत्येक फेफड़े में एक बहुत बड़ी संख्या में पाई जाती हैं। | 5. वृक्काणु, जो छानने की आधार इकाई है. एक बड़ी संख्या में प्रत्येक गुर्दे में होते हैं। |