UP Board and NCERT Solution of Class 10 Science [विज्ञान] ईकाई 2 जैव जगत –Chapter- 7 How do organisms reproduce? ( जीव जनन कैसे करते हैं? ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं विज्ञान ईकाई 2 जैव जगत (Organic world) के अंतर्गत चैप्टर 7 How do organisms reproduce? ( जीव जनन कैसे करते हैं? ) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं हमारी मेहनत की क़द्र करते हुए इसे अपने मित्रों में शेयर जरुर करेंगे।
जनन की आवश्यकता, पौधों में लैंगिक जनन, जननात्मक स्वास्थ्य, जनन के मूल तत्त्व, जन्तुओं में लैंगिक जनन, मानव जनसंख्या एवं परिवार नियोजन, जनन के प्रकार, मानव में लैंगिक जनन, यौन संचारित रोग और उनकी रोकथाम
Class | 10th | Subject | Science (Vigyan) |
Pattern | NCERT | Chapter- | How do organisms reproduce? |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मानव के मादा जनन तंत्र का आरेख खींचकर निम्नलिखित भागों को नामांकित कीजिए–
(a) वह भाग जो अंड उत्पन्न करता है।
(b) वह भाग जहाँ अंड एवं शुक्राणु का मिलन होता है।
(c) वह भाग जहाँ निषेचित अंड (युग्मनज) स्थापित होता है। जब मानव अंड का निषेचन नहीं होता है, तब क्या होता है?
उत्तर– (i) अंडाशय (Ovary)
(ii) अंडवाहिका (Fallopian tubes)
(iii) गर्भाशय की परत में (Lining of the uterus) निषेचन नहीं होने की अवस्था में गर्भाशय की अंतःभित्ति की मांसल एवं स्पोंजी परत धीरे-धीरे टूट कर रुधिर एवं म्यूकस के रूप में योनि मार्ग से निष्कासित होती है।
प्रश्न 2. पुष्प में निषेचनोपरान्त होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर– पुष्प में निषेचन के पश्चात् अनेक परिवर्तन होते हैं। इसके फलस्वरूप पुष्प के अण्डाशय से फल का तथा बीजाण्डों से बीजों का निर्माण होता है। पुष्प में निम्नलिखित प्रमुख परिवर्तन होते हैं-
(1) बाह्यदल– प्रायः मुरझाकर गिर जाते हैं। टमाटर, बैंगन, रसधारी आदि के फलों में लगे रहते हैं।
(2) दल– प्रायः मुरझाकर झड़ जाते हैं।
(3) पुंकेसर– सूखकर गिर जाते हैं।
(4) वर्तिकाग्र– सूखकर गिर जाती है।
(5) वर्तिका– मुरझा जाते हैं।
(6) अण्डाशय– फल में बदल जाता है।
(7) बीजाण्ड– बीज में बदल जाता है।
(8) अण्डाशय की भित्ति– फलभित्ति बनाती है।
(9) बीजाण्ड– इसमें निम्नलिखित परिवर्तन होने से बीज का निर्माण होते हैं
(i) अण्डकोशिका– भ्रूण बनाती है।
(ii) सहायक कोशिकाएँ– नष्ट हो जाती हैं।
(iii) प्रतिमुख कोशिकाएँ– नष्ट हो जाती हैं।
(iv) द्वितीयक केन्द्रक– भ्रूणकोष बनाता है।
इस प्रकार अन्त में, फल तथा इसके अन्दर एक या अनेक भ्रूणपोषी या अभ्रूणपोषी बीज होते हैं।
प्रश्न 3. (a) किसी द्विलिंगी पुष्प का उदाहरण दीजिए।
(b) परागकणों का अंकुरण दर्शाने के लिए किसी स्त्रीकेसर की अनुदैर्ध्य–काट का आरेख खींचिए। निम्नलिखित भागों को नामांकित कीजिए–
(i) वर्तिकाग्र
(ii) नर युग्मक
(iii) मादा युग्मक
(iv) अंडाशय
(v) वर्तिका
(vi) परागनली
(c) किसी पुष्प में निषेचन का स्थान तथा उसके उत्पाद का उल्लेख कीजिए।
उत्तर– (a) गुड़हल तथा सरसों के पुष्प द्विलिंगी पुष्प के उदाहरण हैं।
(b)
(c) किसी पुष्प में निषेचन का स्थान बीजांड है। बीजांड में भ्रूण विकसित होता है। बीजांड में एक कठोर आवरण विकसित होता है तथा बीज में परिवर्तित हो जाता है। अंडाशय तीव्रता से वृद्धि करता है तथा परिपक्व होकर फल बनाता है। अतः निषेचन के उत्पाद बीज एवं फल हैं।
प्रश्न 4. प्रजनन क्या है? नामांकित चित्र की सहायता से मादा मानव जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
अथवा मनुष्य की मादा जनन तन्त्र की संरचना तथा कार्य लिखिए।
उत्तर–प्रजनन– यह जीवधारियों का विशिष्ट लक्षण है। प्रजनन द्वारा जीवधारी की सन्तति पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। मनुष्य एकलिंगी होता है। इसमें नर तथा मादा जननांग अलग-अलग होते हैं। स्त्री और पुरुष को द्वितीयक लैगिक लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है।
मादा जनन अंग– स्त्री में निम्न जनन अंग पाये जाते हैं-
(i) अंडाशय (Ovary)- एक जोड़ी अण्डाशय उदरगुहा में स्थित होते हैं। ये अण्डाकार, ठोस रचनायें होती हैं। अण्डाशय में अण्ड पुटिकाओं का निर्माण अण्डजन कोशिकाओं से होता है। परिपक्व अण्ड पुटिका अण्डाशय की सतह पर पहुँचकर फट जाती है और अण्डाणु को मुक्त कर देती है।
(ii) मुखिका– अण्डाशय से सटी कीपनुमा, झालरदार तथा रोमाभि संरचना होती है। इसे मुखिका या फ्रिम्ब्रियेटेड कीप भी कहते हैं।
(iii) अण्डवाहिनी– मुखिका एक छोटी, कुण्डलित अण्ड-वाहिनी में खुलती है। इसका प्रारम्भिक भाग संकरा तथा रोमाभि होता है, इसे फैलोपियन नलिका कहते हैं। फैलोपियन नलिकायें पीछे की ओर एक चौड़े, पेशीय, ग्रन्थिल, रोमाभविहीन गर्भाशय में खुलती हैं। गर्भाशय में भ्रूण का विकास होता है।
(iv) योनि– गर्भाशय का पश्च भाग योनि कहलाता है। योनि के अधर तल पर स्थित मूत्राशय एक छोटे मूत्रमार्ग द्वारा योनि के पश्च भाग में खुलता है, इसे मूत्रजनन वेश्म कहते हैं। यह मादा जनन छिद्र या भग द्वारा शरीर से बाहर खुलता है।
(v) क्लाइटोरिस– भग के अग्रछोर पर एक छोटी-सी पेशीय रचना क्लाइटोरिस होती है।
(vi) सहायक जनन ग्रन्थियाँ (Accessory Genital Glands)- मादा जननांगों से सम्बन्धित बार्थोलिन ग्रन्थियाँ, रेक्टल ग्रन्थियाँ तथा पेरीनियल ग्रन्थियाँ होती हैं। ये जनन में सहायता करती हैं।
प्रश्न 5. नामांकित चित्र की सहायता से मनुष्य में नर जनन तंत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर– नर जनन अंग मनुष्य एकलिंगी एवं जरायुज होता है। पुरुष में निम्न जननांग पाये जाते हैं-
(i) वृषण (Testes)- एक जोड़ी वृषण उदरगुहा से बाहर थैली सदृश वृषण कोषों (sacrotal sacs) में स्थित होते हैं। वृषण का निर्माण शुक्रजनन नलिकाओं (seminiferous tubules) से होता है। शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्रजनन द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है। वृषण में एक संकरी, चपटी संरचना चिपकी होती है, इसे एपीडिडाइमिस कहते हैं। एपीडिडाइमिस के पश्च भाग में शुक्रवाहिनी निकलती है।
स्तनी प्राणियों में वृषण शरीर के बाहर वृषण कोष में पाये जाते हैं, क्योंकि उच्च ताप के कारण शरीर के भीतर वृषण में शुक्राणुओं का निर्माण नहीं हो पाता है।
(ii) शुक्रवाहिनी (Vas deferens)- शुक्रवाहिनी वृंक्षण नाल (inguinal canal) से उदरगुहा में पहुँचकर मूत्रवाहिनी के साथ फन्दा बनाती हुई थैली सदृश रचना शुक्राशय (seminal vesicle) में खुल जाती है।
(iii) शुक्राशय (Seminal Vesicle)- थैली सदृश्य शुक्राशय मूत्राशय के आधार भाग से लगा होता है, यह एक ग्रन्थिल रचना होती है। इसमें क्षारीय तरल स्स्रावित होता है जो शुक्राणुओं को सक्रिय रखता है। शुक्राणु सहित यह तरल ‘वीर्य’ (semen) कहलाता है।
(iv) मूत्रमार्ग (Urethra)- शुक्राशय एक संकरी स्खलन नलिका (ejaculatory duct) द्वारा मूत्रमार्ग में खुलता है। मूत्रमार्ग मैथुन अंग शिश्न (penis) से होता हुआ इसके शिखर पर स्थित मूत्रजनन छिद्र (urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलता है।
(v) शिश्न (Penis)- यह मांसल बाह्य जननांग है। शिश्न शुक्राणुओं को मादा की योनि में पहुँचाता है; इससे शुक्राणु सुगमतापूर्वक मादा के गर्भाशय में पहुँच जाते हैं।
(vi) सहायक जनन ग्रन्थियाँ (Accessory Genital Glands)- नर जननांगों से सम्बन्धित या इनके निकट स्थित ग्रन्थियाँ होती हैं; जैसे- (अ) प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ, (ब) काउपर्स ग्रन्थियाँ, (स) पेरीनियल ग्रन्थियाँ, तथा (द) रेक्टल ग्रन्थियाँ। ये जनन में सहायता करती हैं।
सहायक ग्रन्थियों के स्राव तथा शुक्राणुओं के मिलने से वीर्य (semen) बनता है। यह शुक्राणुओं की स्त्री की योनि में पहुँचाने के लिए तरल माध्यम का कार्य करता है। यह शुक्राणुओं का पोषण करता है और इन्हें सक्रिय रखता है। मैथुन के समय स्त्री के जनन मार्ग को चिकना बनाकर घर्षण को कम करता है।
प्रश्न 6. परिवार नियोजन से आप क्या समझते हैं? परिवार नियोजन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। अथवा परिवार नियोजन को परिभाषित कीजिए। नियोजित परिवार के लिए दो स्थायी विधियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा परिवार नियोजन की स्थायी विधियाँ कौन–कौन सी हैं? किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर– परिवार नियोजन (परिवार कल्याण) (Family Plan- ning) – परिवार कल्याण (परिवार नियोजन) का मुख्य उद्देश्य जन्म दर को कम करना है। जब परिवार में सीमित 2-3 बच्चे होंगे तो कल्याणकारी योजनाओं को भली प्रकार बनाया जा सकता है। परिवार में बच्चों को पेटभर अच्छा भोजन, तन ढकने को वस्त्र, उचित शिक्षा एवं उनके स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल आसानी से की जा सकती है। इससे परिवार का कल्याण होगा। परिवार सीमित रखने के विभिन्न उपाय हैं। इसको दो विधियों में बाँटा गया है- (1) अस्थायी विधियाँ (2) स्थायी विधियों।
- अस्थायी विधियाँ (Temporary Methods)
(i) आत्मसंयम (Self-control)- पुरुष का स्त्री के साथ केवल सुरक्षित काल में ही लैंगिक सम्पर्क हो। शेष दिनों में आत्मसंयम रखें।
(ii) लूप (Loop)- अस्पतालों में परिवार कल्याण विभाग द्वारा स्त्रियों को लूप लगाने की व्यवस्था है। इसके लगवाने के बाद गर्भधारण नहीं हो सकता।
(iii) निरोध (Condom) – निरोध का प्रयोग पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसके प्रयोग से गर्भधारण नहीं हो सकता।
(iv) स्त्रियों का सुरक्षित काल (Safe Period)- मासिक धर्म के एक सप्ताह पूर्व तथा एक सप्ताह बाद का समय सुरक्षित काल कहा जाता है। इस समय में गर्भधारण करने की सम्भावनाएँ कम रहती हैं। यह विधि विश्वसनीय नहीं है।
(v) रासायनिक औषधियाँ (Pills) – अस्पताल से गर्भनिरोधक गोलियाँ प्राप्त की जा सकती हैं जिससे गर्भधारण करने की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं।
(vi) गर्भसमापन (Abortion)- अनावश्यक बच्चे के लिए अस्पताल जाकर लेडी डॉक्टर की सलाह से गर्भसमापन कराया जा सकता है। किसी अप्रशिक्षित अकुशल स्त्री द्वारा गर्भ समापन नहीं कराना चाहिए, इससे महिला के जीवन को खतरा हो सकता है।
- स्थायी विधियाँ (Permanent Methods)
(i) पुरुष का ऑपरेशन (Vasectomy) – शुक्रनलिका का यह बहुत ही साधारण ऑपरेशन है। इसमें किसी प्रकार का भय नहीं है।
(ii) महिला का ऑपरेशन (Tubectomy) – अण्डनलिका का यह ऑपरेशन साधारण होता है। घाव पूरा होने की अवधि में सावधानी रखनी चाहिए।
प्रश्न 7. पौधों में अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा पादपों में अलैंगिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर– अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
इस प्रकार के जनन में दो लिंगों की आवश्यकता नहीं होती। इसमें जीव स्वयं गुणित होते हैं। अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियाँ निम्न प्रकार हैं।
(1) विखण्डन (Fission)- जब जीव पूर्ण विकसित होता है तब यह दो भागों में विभाजित हो जाता है, इसे विखण्डन कहते हैं। पहले केन्द्रक विभाजित होता है और फिर कोशिका द्रव्य। विखण्डन से जब दो जीव बनते हैं तो उस प्रक्रिया को द्विखण्डन कहते हैं। इससे दो संतति कोशिकाएँ बनती है।
कभी-कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में कोशिका के चारों ओर एक संरक्षक परत या भित्ति बन जाती है। ऐसी अवस्था को पुटी (Cyst) कहते हैं। पुटी के अन्दर कोशिका कई बार विभाजित हो जाती है जिससे बहुत-सी संतति कोशिकाएँ बन जाती हैं। पुटी के फटने के बाद बहुत-सी कोशिकाएँ बाहर निकल जाती हैं।
(2) मुकुलन (Budding)- शरीर पर एक बल्ब की तरह की संरचना बनती है जिसे मुकुल (bud) कहते हैं। शरीर का केन्द्रक दो भागों में विभाजित हो जाता है और उनमें से एक केन्द्रक मुकुल में आ जाता है। मुकुल पैतृक जीव से अलग होकर वृद्धि करता है और पूर्ण विकसित जीव बन जाता है। उदाहरणतः यीस्ट और हाइड्रा।
(3) खण्डन (Fragmentation) – स्पाइरोगाइस जैसे कुछ जीव पूर्ण विकसित होने के बाद साधारणतः दो या अधिक खण्डों में टूट जाते हैं। ये खण्ड वृद्धि करके पूर्ण विकसित जीव बन जाते हैं।
(4) बीजाणुजनन (Sporogenesis)- कुछ जीवाणु तथा निम्नवर्गीय जीव बीजाणु विधि द्वारा जनन करते हैं। बीजाणु कोशिका की विराम-अवस्था है जिसमें प्रतिकूल परिस्थिति में कोशिका की रक्षा के लिए उसके चारों ओर एक मोटी भित्ति बन जाती है। अनुकूल परिस्थिति में मोटी भित्ति टूट जाती है और जीवाणु सामान्य विधि से जनन करता है और वृद्धि करके पूर्ण विकसित जीव बन जाता है। इस विधि द्वारा जनन करने के कुछ उदाहरण हैं-म्यूकर, फर्न अथवा मॉस।
(5) कायिक प्रवर्धन (Vegetative Reproduction)- पौधे के किसी भी कायिक अंग जैसे पत्ता, तना अथवा जड़ का उपयोग करके नया पौधा तैयार करने की प्रक्रिया को कायिक प्रवर्धन कहते हैं। इस विधि का उपयोग प्रायः उच्चवर्गीय पौधों विशेषतः उद्यान में लगाने वाले तथा फल देने वाले पौधों में किया जाता है। पौधों में कायिक प्रवर्धन एक सामान्य विधि है। उदाहरणतः अमरूद, शकरकन्द अथवा पोदीने की छोटी-छोटी जड़ों पर अपस्थानिक कलियाँ होती हैं। ये कलियाँ अनुकूल परिस्थितियों में वृद्धि करके विकसित पौधा बना देती हैं।
अन्य पौधों में उनकी शाखाएँ कुछ दूरी तक उगती हैं और उसके बाद उनमें भूमि की ओर अपस्थानिक जड़ें और ऊपर की ओर पत्तियाँ निकलती हैं। आलू की शल्की कार्यों के कक्ष में कलियाँ होती हैं। इन कलियों से वायवीय प्ररोह विकसित हो जाते हैं। इसके अन्य उदाहरण हैं- अदरक, हल्दी, प्याज, केला, लहसुन तथा जलकुम्भी।
पत्तियाँ (Leafs) – ब्रायोफिल्लम के पौधों में पत्तियों के किनारों पर स्थित खाँचों में अपस्थानिक कलिकाएँ होती हैं जो अनुकूल दशाओं में विकसित होकर पूरा पौधा बना देती हैं।
किसानों ने पौधों में कायिक प्रवर्धन विधि का उपयोग अपने आर्थिक लाभ के लिए किया है। इस विधि से वह उद्यानों तथा नर्सरी में नये-नये पौधे उगा सकता है। कायिक प्रवर्धन में रोपण, कलम, दाब कलम तथा ऊतक संवर्धन जैसी विधियाँ अपनायी जाती हैं।