UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science Chapter- 1 Matter in Our Surroundings ( हमारे आस- पास के पदार्थ ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Dirgh  Uttareey Prashn

UP Board and NCERT Solution of Class 9 Science [विज्ञान] ईकाई 1 द्रव्य- प्रकृति एवं व्यवहार – Chapter- 1 Matter in Our Surroundings ( हमारे आस- पास के पदार्थ )दीर्घ  उत्तरीय प्रश्न Dirgh  Uttareey Prashn

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं विज्ञान ईकाई 1  द्रव्य- प्रकृति एवं व्यवहार  के अंतर्गत चैप्टर 1 (हमारे आस- पास के पदार्थ) पाठ के दीर्घ  उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं कि पोस्ट आपको पसंद आयेगी अगर पोस्ट आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ में जरुर शेयर करें

Class  9th  Subject  Science (Vigyan)
Pattern  NCERT  Chapter-  Matter in Our Surroundings

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न / Dirgh Uttareey Prashn 

प्रश्न 1. ‘द्रव्य’ से क्या तात्पर्य है? द्रव्य के मूल लक्षणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- द्रव्य-प्रकृति में विभिन्न प्रकार की सजीव तथा निर्जीव वस्तुएँ पायी जाती हैं। वे सभी वस्तुएँ जो स्थान घेरती हैं, जिनमें द्रव्यमान होता है और जिनका अनुभव हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा कर सकते हैं द्रव्य कहलाती हैं। ये सभी वस्तुएँ किसी-न-किसी पदार्थ की बनी होती हैं, जैसे लकड़ी से बनी मेज-कुर्सी, लोहे से बनी आलमारी, मशीनें एवं यंत्र, धातुओं से बने बर्तन, ईंट-पत्थर से बने भवन इत्यादि। ये पदार्थ विभिन्न प्रकार की अवस्थाओं ठोस, द्रव तथा गैस में होते हैं। ये सभी पदार्थ द्रव्य होते हैं। द्रव्य की पहचान उसके तीन मूल लक्षणों से होती है।

द्रव्य के मूल लक्षण

(1) द्रव्य स्थान घेरता है-सभी ठोस वस्तुएँ, सभी द्रव तथा सभी गैसें स्थान घेरती हैं-अर्थात् एक वस्तु द्वारा घेरे गये स्थान में दूसरी वस्तु नहीं रखी जा सकती। द्रव्य से बनी कोई वस्तु जितना स्थान घेरती है, उसे वस्तु का आयतन कहते हैं। अतः आयतन द्रव्य का एक मूल लक्षण है।

(2) द्रष्य में जड़त्व होता है-किसी भी प्रकार के द्रव्य (ठोस, द्रव अथवा गैस) से बनी वस्तु पर कोई बाह्य बल लगाये बिना, वस्तु की विराम अथवा एकसमान गति की अवस्था में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। द्रव्य की इस प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं। किसी वस्तु के जड़त्व की नाप वस्तु के द्रव्यमान से की जाती है अर्थात् द्रव्य से निर्मित प्रत्येक वस्तु में द्रव्यमान होता है। अतः द्रव्यमान द्रव्य का मूल लक्षण है।

(3) गुरुत्वाकर्षण-द्रव्य के किन्हीं भी दो कणों अथवा पिण्डों के बीच पारस्परिक आकर्षण का बल कार्य करता है, जिसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। द्रव्य के किसी एक खण्ड द्वारा द्रव्य के किसी दूसरे खण्ड पर गुरुत्वाकर्षण बल आरोपित करना द्रव्य का मूल लक्षण है। अतः द्रव्य की परिभाषा निम्नवत् दी जा सकती है-

द्रव्य ब्रह्माण्ड का वह अवयव है जो स्थान घेरता है, जिसमें जड़त्व अथवा द्रव्यमान होता है तथा जिसमें गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न करने का गुण होता है।”

प्रश्न 2. द्रव्य की भौतिक अवस्थाओं का अन्तर उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-द्रव्य की भौतिक अवस्थाएँ-द्रव्य की तीन प्रमुख भौतिक अवस्थाएँ होती हैं। कोई भी पदार्थ इन तीनों में से किसी भी अवस्था में रह सकता है तथा ऊष्मा के आदान-प्रदान से एक अवस्था से दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता है। ये निम्नलिखित हैं-

(1) ठोस अवस्था-इस अवस्था में द्रव्य या उससे निर्मित वस्तु की आकृति दृढ़ होती है तथा आकार भी सुनिश्चित होता है। उदाहरणतः बर्फ, लकड़ी एवं धातुओं से बनी वस्तुएँ आदि।

(2) द्रव अवस्था-इस अवस्था में द्रव्य का आकार अथवा आयतन (घेरा गया स्थान) तो निश्चित होता है परन्तु आकृति निश्चित नहीं होती अर्थात् द्रव को जिस ठोस बर्तन में रखा जाता है वह उसी की आकृति ग्रहण कर लेता है। उदाहरणतः जल, तेल, पारा आदि।

(3) गैसीय अवस्था-इस अवस्था में द्रव्य का आकार या आयतन भी निश्चित नहीं होता। वह जिस बर्तन में रखा जाता है उसी की आकृति का हो जाता है तथा बर्तन से उपलब्ध सम्पूर्ण स्थान को घेर लेता है। उदाहरणतः वायु, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, जल, वाष्प या भाप आदि।

प्रश्न 3. पदार्थ की अवस्था पर ताप और दाब का क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-ताप और दाब का पदार्थ की अवस्था पर प्रभाव पड़ता है। जब किसी ठोस को गर्म किया जाता है तो उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। वे तेजी से कंपन करते हैं और अधिक स्थान ग्रहण करते हैं और वे फैलने लगते हैं। एक निश्चित तापमान पर वे आकर्षण के बंधन से मुक्त हो स्वतंत्रतापूर्वक घूमने लगते हैं। तब उसके अणुओं की गति नहीं बढ़ती और उनकी व्यवस्था और क्रम में परिवर्तन होने लगता है तब वे तरल अवस्था में बदल जाते हैं। तरल को गर्म करने से अणुओं का वेग बढ़ जाता है। उनकी गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। तेज गति वाले अणुओं का संवेग जब उन पर भीतर की तरफ लग रहे बल से अधिक बढ़ जाता है तो वे वाष्प अवस्था में बदल जाते हैं और तरल की सतह से बाहर निकल आते हैं।

प्रश्न 4. गैसें बर्तन की दीवारों पर दाब क्यों डालती हैं? संपीडित गैसों के सामान्य उदाहरण दीजिए व उनके उपयोग लिखिए।

उत्तर- गैसीय अवस्था में, कण सभी दिशाओं में गतिशील रहते हैं और बर्तन की दीवारों से टकराते रहते हैं और बर्तन की दीवारों पर दाब आरोपित करते हैं। सिलिंडर में गैस उच्च दाब पर भरी जाती है और वह अत्यधिक संपीडित होती है। वह गैस संपीडित गैस कहलाती है। अत्यन्त उच्च दाब पर संपीडित गैस द्रवित हो जाती है, इसे द्रवीकृत गैस कहते हैं। उदाहरणार्थ-

(i) घरों में खाना बनाने के लिए उपयोग किये जाने वाले सिलिंडर में उच्च दाब पर पेट्रोलियम गैस भरी जाती है जिसे द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस कहते हैं।

(ii) संपीडित ऑक्सीजन अस्पतालों में प्रयोग की जाती है और मरीजों को दी जाती है जो सामान्य रूप से श्वसन नहीं कर पाते हैं।

(iii) संपीडित प्राकृतिक गैस का उपयोग आजकल एक स्वच्छ ईंधन के रूप में वाहन चलाने में किया जाता है।

प्रश्न 5. वाष्पीकरण या वाष्पन क्या है ? उन कारकों का उल्लेख कीजिए जिन पर वाष्पीकरण की दर निर्भर करती है।

उत्तर-वाष्पीकरण या वाष्पन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई द्रव अपने क्वथनांक से भी कम ताप पर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। वायुमण्डल से ऊष्मा लेकर द्रव की खुली सतह के कण वाष्प में बदल जाते हैं। वाष्पीकरण की दर निम्न कारकों पर निर्भर करती है-

(i) द्रव की खुली सतह द्रव को छोटे या कम खुली सतह वाले बर्तन में रखने पर वाष्पन की दर कम और चौड़े या अधिक खुली सतह वाले वर्तन में अधिक होती है।

(ii) वायु का ताप: वायुमण्डल का ताप अधिक होने पर वाष्पीकरण की दर अधिक होती है।

(iii) वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता या नमी कम होने पर वाष्पीकरण की दर अधिक और अधिक होने पर कम होती है।

(iv) वायु की गति में वृद्धि– जब वायु की गति बढ़ जाती है तो जलवाष्प तेजी से दूर ले जायी जाती है जिससे आस-पास के स्थान में जलवाष्प की मात्रा कम हो जाती है और वाष्पन की दर बढ़ जाती है। यह सामान्य अनुभव की बात है कि तेज वायु में कपड़े जल्दी सूखते हैं।

प्रश्न 6. विसरण क्या है? जल में मिलाने पर किसका विसरण तेजी से होगा-ठोस का या द्रव का ? उत्तर- विसरण-जब एक क्रिस्टल या द्रव की बूँद को जल में मिलाया जाता है, तो उसके कण धीरे-धीरे समान रूप में जल से फैल जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जब दो अलग प्रकार के कणों वाले पदार्थ सम्पर्क में होते हैं, तो उन पदार्थों के कणों का स्वतः मिश्रित होना विसरण कहलाता है। अतः “सम्पर्क में होने पर दो या अधिक प्रकार के कणों का स्वतः मिश्रित होना, विसरण कहलाता है।”

एक ठोस का दूसरे ठोस में विसरण संभव नहीं है या अत्यन्त कम है। एक ठोस का या एक द्रव का किसी द्रव में विसरण सामान्य प्रक्रिया है और किसी द्रव का अन्य द्रव में विसरण की दर ठोस की अपेक्षा अधिक होती है। ताप के साथ भी विसरण की दर बढ़ जाती है।

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