UP board Class- 10th Drawing (चित्रकला) भीमबेटका की कलात्मक विशेषता (Bhimbetka ki kalatmak Visheshta) , भारत के प्रागैतिहासिक चित्रकला के केन्द्र (Bharat ke Pragaitihasik Chitrakala ke Kendra) होशंगाबाद क्षेत्र (Hoshangabad Kshetr)

UP board Class- 10th Drawing (चित्रकला) भीमबेटका की कलात्मक विशेषता (Bhimbetka ki kalatmak Visheshta) , भारत के प्रागैतिहासिक चित्रकला के केन्द्र (Bharat ke Pragaitihasik Chitrakala ke Kendra) होशंगाबाद क्षेत्र (Hoshangabad Kshetr)

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की चित्रकला के अंतर्गत भीमबेटका की कलात्मक विशेषता (Bhimbetka ki kalatmak Visheshta) , भारत के प्रागैतिहासिक चित्रकला के केन्द्र (Bharat ke Pragaitihasik Chitrakala ke Kendra) होशंगाबाद क्षेत्र (Hoshangabad Kshetr) के बारे मे बताएंगे जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Class  10th
Subject Drawing (चित्रकला)
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name भीमबेटका की कलात्मक विशेषता, भारत के प्रागैतिहासिक चित्रकला के केन्द्र, होशंगाबाद क्षेत्र

भीमबेटका की कलात्मक विशेषताए 

प्रागैतिहासिक चित्रों से संबंधित विवरण समय समय पर भारतीय पुरातत्व विभाग की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। इस दिशा के नवीन शोधकों में विक्रम विश्वविद्यालय के वी. एस. वाकाणकर का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने भोपाल, ग्वालियर, मन्दसोर आदि के समीपवर्ती क्षेत्र में स्थित अनेक शिलाश्रयों एवं उनमें अंकित चित्रों की खोज कर प्रागैतिहासिक चित्रकला संबंधी हमारे ज्ञान को बढ़ाया है। उनकी विशिष्ट खोज होशंगाबाद और भोपाल के बीच स्थित ‘भीमबेटका’ की गुफायें हैं जहाँ से बड़ी मात्रा में पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। यहाँ स्थित 600 से अधिक गुफाओं में से 475 में शिलाचित्र प्राप्त हुए हैं। अधिकतर गुफायें मध्यपाषाण काल की हैं। यहाँ से सम्पूर्ण प्रागैतिहासिक काल में मानव आवास के साक्ष्य मिले हैं। चित्रों का समय मध्य पाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल (ई. पू. 10000-700 ई. पू.) तक है। अधिकतर चित्र लाल तथा सफेद रंग के हैं। कुछ हरे और पीले रंगों में भी हैं। इनमें गेंडा, चीता, जंगली सूअर, गाय, बैल, नीलगाय, भैंस, भालू, बन्दर, सांभर, हिरन आदि पशुओं का कलात्मक अंकन किया गया है। कुछ चित्रों में नृत्य, आभूषण, माता- पुत्र, मदिरा पान, आखेट तथा विभिन्न वेशभूषा का प्रदर्शन भी मिलता है। एक चित्र में किसी जुलूस का चित्रण है जिसमें अश्वारोही मनुष्य दिखाये गये हैं।

भीमबेटका के शिलाश्रयों एवं गुफाओं की खोज वाकाणकर महोदय ने 1958 में की थी तथा 1972 में यहाँ उत्खनन कार्य कराया था। 1973 1976 के बीच यहाँ पुणे तथा विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के तत्वावधान में वी. एन. मिश्र तथा वाकाणकर द्वारा व्यापक उत्खनन करवाये गये। वाकाणकर तथा वी. एन. मिश्र के अतिरिक्त आर. एन. मिश्र, जगदीश गुप्त, एस. के. पाण्डेय आदि विद्वानों ने यहाँ के गुहा चित्रों का सम्यक् विवरण प्रस्तुत किया। सितम्बर 1973 के ‘धर्मयुग’ साप्ताहिक में भीमबेटका की गुफाओं का रहस्य शीर्षक के अन्तर्गत वी. एन. मिश्र ने एक महत्वपूर्ण सचित्र लेख प्रकाशित कर इन गुहाचित्रों की सम्यक् जानकारी सामान्य जन के लिये सुलभ कराई।

 

भारत के प्रागैतिहासिक चित्रकला के केन्द्र

मिर्जापुर क्षेत्र-इसके अन्तर्गत लिखनिया, कोहबर, पभोसा, विंढम,लोहरी, सैंप, कण्डाकोट, सोरहोघाट, विजयगढ़, चुनार आदि हैं। चित्रित गुफायें अधिकतर सोन नदी घाटी में हैं। इनमें आखेट और नृत्य के चित्र हैं। स्थानीय भाषा में गुफा के लिये ‘दरी’ शब्द का प्रयोग अब भी किया जाता है। लिखनिया दरी के एक चित्र में। कुछ घुड़सवार पालतू हथिनी की सहायता से जंगली हाथी को पकड़ते हुए प्रदर्शित किये गये हैं। घुड़सवार अपने हाथों में लम्बे भाले लिये हुए हैं। एक अन्य चित्र घायल सूअर का है जो मुंह खोले अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए दिखाया गया है। इसी क्षेत्र के कुछ अन्य चित्र सोरहोघाट में साही का शिकार तथा कुछ मानव आकृतियाँ, कोहबर में कुछ पशु आकृतियाँ तथा तलवार लिये दो वीरों की आकृतियाँ, घोड़मंगर में गैंडे के शिकार तथा विजयगढ़ के समीप शिलाश्रयों में छतों पर की गयी चित्रकारियां उल्लेखनीय हैं। विंढम के समीप भी कुछ शिलाचित्र बने हुए मिलते हैं।

बाँदा क्षेत्रयहाँ सरतह, मलवा, करियाकुंड, अमावाँ, बरगढ़ आदि से चित्रकला के उदाहरण प्राप्त होते हैं। मानिकपुर के शिलाश्रय में तीर-कमानधारी घुड़सवार तथा पहियारहित छकड़ा गाड़ी में बैठे व्यक्ति का दृश्य चित्रित किया गया है।

सबसे अधिक शिलाचित्र मध्य प्रदेश के रायगढ़, महादेव पर्वत श्रेणी में पंचमढ़ी, होशंगाबाद क्षेत्र, भोपाल क्षेत्र आदि से मिले हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

रायगढ़ क्षेत्रइसके अन्तर्गत सिंघनपुर, कबरा पहाड़, नवागढ़, बोतालदा एवं खरसिया आते हैं। सिंघनपुर के चित्र सबसे अच्छे हैं। इनमें भैंसा, सूअर, सूंढ़ उठाये हुए हाथी, भैंसे आदि पशु चित्रित हैं। भैसे पर कुछ व्यक्ति बरछे से आक्रमण करते हुए दिखाये गये हैं। कबरा पहाड़ की गुफा में छत पर गेरुए लाल रंग में चित्रकारियां की गयी हैं। यहाँ क्षेपांकन पद्धति के चित्र भी मिलते हैं। सिंघनपुर के पास ही बोतालदा नामक लम्बी सुरंग जैसी एक गुफा है जिसमें सूअर, हरिण आदि पशुओं के चित्र अंकित हैं।

एण्डरसन, पर्सी ब्राउन, ए. एन. दत्त, एम. एन. घोष तथा गार्डन जैसे विद्वानों ने रायगढ़ क्षेत्र में स्थित सिंघनपुर के शिलाचित्र केन्द्र का अत्यन्त विशद रूप में विवरण प्रस्तुत किया है।

पंचमढ़ी क्षेत्रयह स्थल महादेव पर्वत श्रेणी में स्थित है। सबसे अधिक संख्या में शिलाचित्र यहीं से मिलते हैं। इन चित्रों को प्रकाशित करने तथा उन पर शोधपूर्ण लेख डी. एच. गार्डेन ने प्रस्तुत किया।

पंचमढ़ी क्षेत्र के अन्तर्गत इमलीखोह, निम्बूभोज, लस्करिया खोह, माड़ादेव, सोनभद्र, बनियाबेरी, काजरी, छोटा महादेव, बड़ा महादेव आदि कई स्थल हैं। यहाँ पर शिकार के अतिरिक्त दैनिक जीवन से संबंधित चित्रकारियाँ भी अंकित हैं। इन चित्रों को स्थानीय भाषा में ‘पुतरी’ कहा जाता है। लाल रंग में बनी होने के कारण वी. एस. अग्रवाल इन्हें ‘रकत की पुतरियाँ’ कहते हैं।

 

होशंगाबाद क्षेत्र

पंचमढ़ी से लगभग 45 मील की दूरी पर नर्मदा नदी के रमणीक तट पर स्थित है। इसी के समीप स्थित आदमगढ़ की पहाड़ी के अनेको शिलाश्रयों में आदिम प्रकृति के चित्र अंकित हैं जिनमें हल्के पीले रंग में बनाया गया विशाल हाथी का चित्र सबसे पुराना है। एक अन्य महत्वपूर्ण चित्र 10′ × 6′ के आकार का बड़े भैंसे का है जिसे दोहरी रेखाओं में शिलाश्रय के ऊपरी भाग में पूरे विस्तार से चित्रित किया गया है। इस शिलाश्रय पर विभिन्न कालों एवं शैलियों में किये गये चित्रण के पाँच-छः स्तर एक साथ दिखाई देते हैं। एक हाथी के नीचे तथा पैरों के समीप कई शैलियों में अस्त्र लिये हुए घुड़सवार चित्रित किये गये हैं। सूँड़ के सामने एक लघुकाय भैंसे का चित्र है जिसके पैर काफी पतले और लम्बे बनाये गये

हैं। नीचे दाहिने किनारे पर चार धनुर्धरों के एक समूह का भव्य अंकन मिलता है जिन्हें चलते हुए दिखाया गया है। आस-पास के शिलाश्रयों में अश्वारोहियों, वन्य जीवों का चित्र तथा एक शिलाश्रय पर दो सीधी रेखाओं में बनाया गया मोर का बड़ा चित्र तथा एक पर आदिम वनदेवी का चित्र बना हुआ है।

भोपाल-रायसेन क्षेत्र-सूचीबद्ध उपलब्ध शिलाश्रयों की स्थिति एवं संख्या की दृष्टि से भोपाल क्षेत्र सबसे विस्तृत और समृद्ध है। यहाँ के प्रमुख शिलाश्रय है-नयापुरा, भीमबेटका, धरमपुरी, गुफा मन्दिरा, मदमदा, बरखेड़ा, साँची, उदयगिरि, भोजपुर आदि।

रायसेन क्षेत्र के शिलाश्रय रामछज्जा, खरबई, नरवर (पुतली कराड़) हैं।

उपरोक्त सभी शिलाश्रयों से अनेक शिलाचित्र प्राप्त हुए हैं। धरमपुरी के शिलाश्रय में गेरुए रंग में बना हिरन के शिकार का एक दृश्य सुन्दर है। भीमबेटका के चित्रों का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। सिहोर जिले में शहदकराड़ के पास कुछ ऐसे शिलाश्रय हैं जिन पर श्वेत रंग में चित्रकारी की गयी है। रायसेन क्षेत्र के रामछज्जा में गेंडे के शिकार का चित्र अंकित है। खरवई गाँव के पास कई चित्रमय शिलाश्रय हैं। नरवर में सफेद, गहरे लाल, पीले, गेरुएं एवं काले रंगों में बने हुए चित्र लगभग एक सौ शिलाश्रयों में मिले हैं।

मध्य प्रदेश के अन्य भागों सागर, रीवां पन्ना छतरपुर क्षेत्र, कटनी, नरसिंहपुर, ग्वालियर चम्बल घाटी क्षेत्रों में बहुसंख्यक चित्रित शिलाश्रय फैले हुए हैं। इनके विषय में शोधपूर्ण लेख वेदानन्द, वाकाणकर, सत्येन मुकर्जी, श्यामकुमार पाण्डेय जैसे शोधकों ने प्रस्तुत किये हैं। रीवां पन्ना क्षेत्र में स्थित करपटिया, नौगांव, देवरा, पन्ना की गुफायें; कटनी क्षेत्र में बजरंग मन्दिर, नरसिंहपुर में बिजौरी, ग्वालियर में शिवपुरी-चोरपुरा, कंकालीमाता टीला, फतेहपुर सीकरी, चम्बल घाटी क्षेत्र में मोड़ी, इन्द्रगढ़ कँवली, छिबड़ानाला, सुजानपुरा, भानपुरा झलबाड़ा, कोटा दर्रा आदि के शिलाश्रय उल्लेखनीय हैं।

बिहार, उड़ीसा, हैदराबाद-रायचूर क्षेत्र तथा दक्षिणी भारत से भी बहुसंख्यक चित्रित शिलाश्रय प्राप्त होते हैं। सभी स्थानों पर प्रागैतिहासिक चित्रों की प्राप्ति के निश्चित प्रमाण मिलते हैं। कहीं-कहीं चट्टानों पर खोदकर भी चित्र बनाये गये है। अटक के पास सिन्ध नदी के किनारे स्थित मन्दोरी गन्दाब तथा घड़ियाला नामक स्थलों पर खुली हुई चट्टानों पर खोदकर चित्र बनाये गये हैं। इनमें मानव और पशुओं की आकृतियाँ हैं। कुछ में घोड़े, हाथी, ऊँट पर सवार सशस्त्र योद्धा युद्ध करते हुए दिखाये गये हैं। सम्भलपुर (उड़ीसा) रायचूर (हैदराबाद), बिलारी (मद्रास) आदि स्थानों से चट्टानों पर उत्कीर्ण चित्र प्राप्त होते हैं। इन चित्रों को वी. एस. अग्रवाल महोदय ‘चट्टानों की छिताई करके बनाई गयी आकृतियाँ’ कहना पसन्द करते हैं।

इस प्रकार इन चित्रों के अवलोकन के पश्चात् हम यह कह सकते हैं कि प्रागैतिहासिक मानव केवल इधर-उधर से खाद्य सामग्री जुटाकर अपनी उदरपूर्ति ही नहीं करता था अपितु अपनी अमूर्त भावनाओं को दृश्य रूप में व्यक्त करना भी जानता था।

 

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