UP Board Solution of Class 10 Social Science (Civics) Chapter- 3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले (Jati Dharm Aur Langik Masle) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Civics [नागरिक शास्त्र] Chapter- 3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले (Jati Dharm Aur Langik Masle) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-3: (नागरिक शास्त्र) लोकतांत्रिक राजनीति-2   खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर-3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name जाति, धर्म और लैंगिक मसले
Part 3  Civics [नागरिक शास्त्र]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name जाति, धर्म और लैंगिक मसले

जाति, धर्म और लैंगिक मसले (Jati Dharm Aur Langik Masle)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?

उत्तर- 1. भारतीय राज्य की तरफ से किसी भी धर्म को संरक्षण नहीं दिया गया है। यहाँ सभी धर्मों को समान माना जाता है। 2. धर्म के आधार पर किसी भी भेदभाव को अवैधानिक घोषित किया गया है। 3. संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। उदाहरणार्थ, यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता।

प्रश्न 2. लोकतंत्र का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए।

उत्तर – लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता जनता के हाथों में होती है। ‘लोकतंत्र’ शब्द, जिसे अंग्रेजी में ‘डेमोक्रेसी’ (Democracy) कहते हैं, की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दों- ‘डिमोस (Demos)’ तथा ‘क्रेटिया (Cratia)’ से हुई है। ‘डिमोस’ का अर्थ है, जनता तथा ‘क्रेटिया’ का अर्थ है, सत्ता। इस प्रकार लोकतन्त्र वह शासन प्रणाली है जिसमें शासन करने की शक्ति जनता के हाथों में होती है। प्रसिद्ध अमेरिकन राष्ट्रपति लिंकन के शब्दों में; “लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है।”

प्रश्न 3. लोकतंत्र के कितने तथा कौन-कौन से रूप होते हैं?

अथवा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर-लोकतंत्र दो प्रकार का होता है- 1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र, 2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र ।

  1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रत्यक्ष लोकतंत्र उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें देश के सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप में शासन में भाग लेते हैं। सभी मतदाता एक स्थान पर इकट्ठे होकर कानून बनाते हैं, महत्त्वपूर्ण योजनाओं पर सोच-विचार करते हैं, निर्णय लेते हैं तथा उन्हें लागू करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करते हैं। यह प्रजातंत्र का शुद्धतम रूप है। परंतु यह प्रणाली केवल बहुत छोटे तथा कम जनसंख्या वाले राज्यों में ही लागू करना संभव है। प्राचीन काल में यूनान के नगर-राज्यों में यह प्रणाली प्रचलित थी। आजकल यह प्रणाली स्विट्जरलैंड में मौजूद है।
  2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र अप्रत्यक्ष लोकतंत्र उस शासन व्यवस्था को कहते हैं, जिसमें साधारण मतदाता कुछ समय के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर लेते हैं, जो जनता की इच्छा के अनुसार जनता की भलाई के लिए शासन चलाते हैं। वे कानूनों का निर्माण करते हैं, उन्हें लागू करते हैं तथा प्रशासन चलाते हैं। भारत, अमेरिका, इंग्लैंड तथा जापान आदि राज्यों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र मौजूद है।

प्रश्न 4. सांप्रदायिकता किस प्रकार एक समस्या बन जाती है?

उत्तर – किसी एक धर्म के लोगों का समूह संप्रदाय कहलाता है। जब यह संप्रदाय ‘अपने-आप को श्रेष्ठ तथा अन्य संप्रदायों को हीन समझने लगे तो सांप्रदायिकता की समस्या उत्पन्न होती है। यह समस्या तब शुरू होती है जब धर्म को राष्ट्र को आधार मान लिया जाता है। समस्या तब और विकराल हो जाती है जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्षपोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरों से श्रेष्ठ माना जाने लगता है और कोई एक धार्मिक समूह अपनी माँगों को दूसरे समूह के विरोध में खड़ा करने लगता है। इस प्रक्रिया में जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है तो स्थिति और विकट होने लगती है। राजनीति से धर्म को जोड़ना ही सांप्रदायिकता है।

प्रश्न 5. जातिवाद क्या है? भारतीय राजनीति पर इस कुप्रथा के पड़े प्रभावों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – जातिवाद का अभिप्रायजातिवाद वह संकीर्ण विचारधारा है जो अपनी ही जाति को उच्च व श्रेष्ठ समझकर उसी की भलाई अथवा महिमामंडन के कुत्सित प्रयासों में लगी रहती है।

भारतीय राजनीति पर जाति प्रथा के प्रभाव (i) भारत के सभी प्रांतों (राज्यों) की राजनीति जाति प्रथा की कुरीतियों से ग्रसित है। भारतीय लोकतंत्र जाति प्रथा से गहरे तौर पर प्रभावित है। सामान्यतः चुनाव से पूर्व प्रत्याशियों का चयन जातिगत आधार पर किया जाता है। (ii) मतदाता प्रायः जाति को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं और यहाँ तक कि सत्ताधारी राजनीतिक दल जातियों के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखकर मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री इत्यादि का चयन करते हैं। यह सभी राजनीतिक व्यवस्थाएँ या निर्णय संकीर्ण और रोगग्रस्त मानसिकता को बढ़ावा देते आ रहे हैं।

प्रश्न 6. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।

उत्तर- संविधान निर्माताओं ने साम्प्रदायिकता से निपटने के लिए भारत हेतु धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना तथा इसकी सफलता के लिए संविधान में महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए-

  1. सभी धर्मों को समान भाव देनासंविधान सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार-प्रसार करने की आजादी देता है।
  2. धर्म के आधार पर भेदभाव को असंवैधानिक बताना संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है। हा
  3. किसी धर्म को राजकीय धर्म स्वीकार करना भारतीय राज्य ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा रहा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।

प्रश्न 7. जाति पर आधारित ‘निर्वाचन’ होने में क्या हानियाँ हैं? किन्हीं दो हानियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- (i) जाति के आधार पर झगड़नाचुनाव के दिन विभिन्न जातियों के समूह एक दूसरे के साथ लड़ते-झगड़ते और कभी चुनाव स्थल की मतपेटियाँ ही गायब करते देखे और सुने जाते हैं।

(ii) राजनीतिक दलों द्वारा जातिगत नेताओं को बढ़ावा देनाचुनाव प्रचार के दिनों में प्रायः सार्वजनिक सभाओं के लिए मंच उसी इलाके में बनाए जाते हैं जहाँ किसी जाति विशेष की संख्या अधिक होती है। कुछ राजनीतिक दल जाति विशेष के नेताओं को उकसाते हैं। नारों से प्रभावित जाति विशेष के लोग उन्हें सिक्कों से तौलते हैं और उनके गुण, कर्म तथा योग्यता को दर-किनार कर उन्हें वोट देते हैं।

प्रश्न 8. भारत में जाति प्रथा का राजनीति एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर- भारत में जातिप्रथा वोटरों के ध्रुवीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राजनीतिक दल समाज में लोगों को जातीय आधार पर बाँट कर अपना वोट बढ़ाते हैं और इस कृत्य का राजनीतिक सफलता हेतु उपयोग करते हैं। जातियों में विभाजित भारतीय समाज का राजनीतिक दल देश की स्वतंत्रता के समय से अपने हित में उपयोग करते आ रहे हैं। जातीय विचारधारा को उग्र करने से समाज में वैमनस्य फैलता है तथा सामाजिक समरसता कम होती है। जिन जातियों में पहले से ही पढ़ाई-लिखई का प्रचलन था और जिनकी शिक्षा पर पकड़ थी, आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी उन्हीं का बोलबाला है। जिन जातियों को पहले शिक्षा से वंचित रखा जाता था उनके सदस्य अभी भी स्वाभाविक तौर पर पिछड़े हुए हैं।

                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र कीजिए जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमज़ोर स्थिति में होती हैं।

या अपने देश में महिलाओं को सामाजिक तथा राजनैतिक अधिकार दिये जाने के पक्ष में तीन तर्क दीजिए। क्या उन्हें किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण प्राप्त है?

या भारत में महिलाओं के प्रति भेदभाव के तरीकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- हमारे देश में आज़ादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। पर वे अभी भी पुरुषों से काफी पीछे हैं। हमारा समाज अभी भी पितृप्रधान है। महिलाओं के साथ अभी भी कई तरह के भेदभाव होते हैं-

(i) जनगणना 2011 के अनुसार, महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 64.6 फीसदी है, जबकि पुरुषों में 80.9 फीसदी। स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती है। अभी भी माँ-बाप अपने संसाधनों को लड़के-लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने की जगह लड़कों पर ज्यादा खर्च करना पसंद करते हैं।

(ii) साक्षरता दर कम होने के कारण ऊँची तनख्वाह वाले और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है। भारत में स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक काम करती हैं किंतु अक्सर उनके काम को मूल्यवान नहीं माना जाता।

(iii) काम के हर क्षेत्र में यानी खेल-कूद की दुनिया से लेकर सिनेमा के संसार तक और कल-कारखानों से लेकर खेत-खलिहानों तक महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है। भले ही दोनों ने समान काम किया हो।

(iv) भारत के अनेक हिस्सों में अभी भी लड़की को जन्म लेते ही मार दिया जाता है। अधिकांश परिवार लड़के की चाह रखते हैं। इस कारण लिंग अनुपात गिरकर प्रति हज़ार लड़कों पर 943 (शिशु लिंग अनुपात 919) रह गया है।

(v) भारत में सार्वजनिक जीवन में, खासकर राजनीति में महिलाओं की भूमिका नगण्य ही है। अभी भी महिलाओं को घर की चहारदीवारी के भीतर रखा जाता है।

महिलाओं के लिए पंचायती राज के अंतर्गत स्थानीय सरकारों और नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पद आरक्षित हैं।

प्रश्न 2. विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण भी दीजिए।

या सांप्रदायिकता लोकतंत्र के लिए घातक है। दो कारण लिखिए।

या सांप्रदायिकता लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों है? दो तर्क दीजिए।

उत्तर- सांप्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है-

(i) सांप्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में ही दिखती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी-बनाई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं।

(ii) सांप्रदायिक भावना वाले धार्मिक समुदाय राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन किया जाता है तथा फिर धीरे-धीरे धर्म पर आधारित अलग राज्य की माँग करके देश की एकता को नुकसान पहुँचाया जाता है; जैसे- भारत में अकाली दल, हिंदू महासभा आदि दल धर्म के आधार पर बनाए गए। धर्म के आधार पर सिखों की खालिस्तान की माँग इसका उदाहरण है।

(iii) सांप्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा धर्म और राजनीति का मिश्रण किया जाता है। राजनीतिक दलों द्वारा अधिक वोट प्राप्त करने के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया जाता है; जैसे- भारत में भारतीय जनता पार्टी धर्म के नाम पर वोट हासिल करने की कोशिश करती है। बाबरी मस्जिद का मुद्दा इसका उदाहरण है।

(iv) कई बार सांप्रदायिकता सबसे गंदा रूप लेकर संप्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है। विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान में भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए थे। आजादी के बाद भी बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई है। 1984 के हिंदू-सिख दंगे इसका प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न ३. बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं?

या भारत में किस तरह की जातिगत असमानताएँ आज भी व्याप्त हैं?

या “भारतीय समाज में जाति प्रथा अभी भी प्रचलित है।” इसके कारण क्या हैं? इसको समाप्त करने के दो उपाय बताइए।

उत्तर- आधुनिक भारत में जाति की संरचना और जाति व्यवस्था में भारी बदलाव आया है। किंतु फिर भी समकालीन भारत से जाति प्रथा विदा नहीं हुई है। जातिगत असमानता के कुछ पुराने पहलू अभी भी बरकरार हैं-

(i) अभी भी ज्यादातर लोग अपनी जाति या कबीले में ही शादी करते हैं।

(ii) संवैधानिक प्रावधान के बावजूद छुआछूत की प्रथा अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

(iii) जाति व्यवस्था के अंतर्गत कुछ जातियाँ लाभ की स्थिति में रहीं तथा कुछ को दबाकर रखा गया। इसका प्रभाव आज भी नजर आता है। यानी ऊँची जाति के लोगों की आर्थिक स्थिति सबसे अच्छी है व दलित तथा आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सबसे खराब है।

(iv) हर जाति में गरीब लोग हैं पर गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों में अधिक संख्या निचली जातियों के लोगों की है। ऊँची जातियों में गरीबी का प्रतिशत सबसे कम है।

(v) आज सभी जातियों में अमीर लोग हैं पर यहाँ भी ऊँची जाति वालों का अनुपात बहुत ज्यादा है और निचली जातियों का बहुत कम ।

(vi) जो जातियाँ पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में आगे थीं, आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी उन्हीं का बोलबाला है। जिन जातियों को पहले शिक्षा से वंचित रखा जाता था, उनके सदस्य अभी भी पिछड़े हुए हैं। आज भी जाति आर्थिक हैसियत के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं।

जाति प्रथा को समाप्त करने के उपाय जाति प्रथा को समाप्त करने के उपाय निम्नलिखित हैं-

(i) अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देकर जातिवाद को रोका जा सकता है। जब एक जाति के लोग दूसरी जाति में विवाह संबंधों की स्थापना करेंगे तो जातिवाद की समाप्ति स्वतः ही हो जाएगी।

(ii) जातिवाद को रोकने के लिए शिक्षा का स्तर इतना ऊँचा उठना चाहिए कि लोग जातीय संकीर्णता से दूर रहें।

प्रश्न 4. राजनीति में जाति किस प्रकार अनेक रूप ले सकती है? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।

उत्तर-     राजनीति में जाति

सांप्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। इस चिंतन पद्धति के अनुसार एक जाति के लोग एक स्वाभाविक सामाजिक समुदाय का निर्माण करते हैं और उनके हित एक जैसे होते हैं तथा दूसरी जाति के लोगों से उनके हितों का कोई मेल नहीं होता।

जैसा कि हमने सांप्रदायिकता के मामले में देखा है, यह मान्यता हमारे अनुभव से पुष्ट नहीं होती। हमारे अनुभव बताते हैं कि जाति हमारे जीवन का एक पहलू जरूर है लेकिन यही एकमात्र या सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण पहलू नहीं है। राजनीति में जाति अनेक रूप ले सकती है-

(i) जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाए। जब सरकार का गठन किया जाता है, तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों का उचित जगह दी जाए।

(ii) राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।

(iii) सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति-एक वोट की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हों। इससे उन जातियों के लोगों में नयी चेतना पैदा हुई जिन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता था।

प्रश्न 5. किस प्रकार से लैंगिक भिन्नता ने राजनीति को प्रभावित किया? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर – समाज में यत्र-तत्र, सर्वत्र सामाजिक असमानताओं का रूप दृष्टिगत होता है। लेकिन राजनीति के अध्ययन से इन तथ्यों की पुष्टि होना आवश्यक है। लैंगिक असमानता को नैसर्गिक अथवा स्वाभाविक तथा अपरिवर्तनीय मान लिया जाता है; परन्तु लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक आकृति नहीं अपितु इनके विषय में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और पूर्वनिर्धारित सामाजिक भूमिकाएँ हैं।

विश्व में मनुष्य जाति की जनसंख्या का लगभग आधा भाग महिलाएँ हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में (विशेषकर राजनीति में) उनकी भूमिका न्यूनतम ही है। यह तथ्य अधिकांश सामाजिक वर्गों के सर्वेक्षण पर आधारित है। पहले केवल पुरुषों को ही मतदान करने तथा सार्वजनिक पदों पर चुनाव लड़ने की अनुमति थी। शनैः शनैः राजनीति में लैंगिक मुद्दे सामने आए। विश्व के विभिन्न भागों में महिलाओं ने अपने संगठन बनाए और समानता के अधिकारों को प्राप्त करने का उ‌द्घोष किया। विभिन्न देशों में तो महिलाओं के मतदान अधिकार के लिए भी आंदोलन किए गए। इन आंदोलनों के अंतर्गत महिलाओं के राजनीतिक एवं वैधानिक स्तर को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा एवं रोजगार के अवसर बढ़ाने की प्रमुख माँगें रखी गईं। समूल परिवर्तन की माँग करने वाले अधिकांश महिला आंदोलनों ने स्त्रियों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन में भी समानता की माँग उठाई। इन आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहा जाता है।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Civics) Chapter- 2 संघवाद (Sanghvad) Notes

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