UP Board Solution of Class 10 Social Science (Civics) Chapter- 2 संघवाद (Sanghvad) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Civics [नागरिक शास्त्र] Chapter- 2 संघवाद (Sanghvad) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-3: (नागरिक शास्त्र) लोकतांत्रिक राजनीति-2   खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर-2 संघवाद  पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name संघवाद 
Part 3  Civics [नागरिक शास्त्र]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name संघवाद 

संघवाद (Sanghvad)

लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. श्रीलंकाई तमिलों ने अपने अपने अधिकारों के लिए किस तरह संघर्ष किया?

उत्तर – श्रीलंकाई तमिलों ने अपने अधिकारो को प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दल का गठन किया। तमिलों ने तमिल को राजभाषा बनाने, क्षेत्रीय स्वायत्तता प्राप्त करने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों की माँग को लेकर संघर्ष किया। किन्तु तमिलों की जनसंख्या वाले क्षेत्र की स्वायत्तता की उनकी माँगों की श्रीलंकाई सरकार द्वारा लगातार अनदेखी की गयी। 1980 ई. के दशक तक श्रीलंका के उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में स्वायत्त तमिल ईलम बनाने की माँग को लेकर अनेक राजनीतिक संगठन बने।

प्रश्न 2. बहुसंख्यकवाद ने श्रीलंका में किस प्रकार सामाजिक तनाव को जन्म दिया?

उत्तर – श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहलियों के हितों को ध्यान में रखकर कानून बनाये गए। इसके कारण सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सिंहलियों का एकाधिकार हो गया। इन सरकारी फैसलों ने श्रीलंकाई तमिलों की नाराजगी और शासन को लेकर उनमें बेगानापन बढ़ाया। उन्हें लगा कि संविधान और सरकार की नीतियाँ उन्हें समान राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर रही हैं, उनके हितों की अनदेखी की जा रही है। परिणाम यह हुआ कि तमिल और सिंहली समुदायों के संबंध बिगड़ते चले गए। इस टकराव ने गृहयुद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 3. बेल्जियम में विभिन्न भाषायी लोगों के बीच सामाजिक तनाव के कारण बताइए।

उत्तर – बेल्जियम की कुल आबादी का 59 प्रतिशत हिस्सा फ्लेमिश इलाके में रहता है और डच बोलता है। 40 फीसदी लोग वेलोनिया में रहते हैं और फ्रेंच बोलते हैं। शेष एक फीसदी लोग जर्मन बोलते हैं। अल्पसंख्यक फ्रेंच भाषी लोग ज्यादा समृद्ध और ताकतवर रहे हैं। बहुत बाद में जाकर आर्थिक विकास और शिक्षा का लाभ पाने वाले डच भाषी लोगों को इस स्थिति से नाराजगी हुई थी। इससे 1950-60 ई. के दशक में फ्रेंच और डच बोलने वाले समूहों के बीच तनाव बढ़ने लगा। डच बोलने वाले लोग संख्या के हिसाब से अपेक्षाकृत ज्यादा थे लेकिन धन और समृद्धि के मामले में कमजोर और में थे।

प्रश्न 4. सत्ता की साझेदारी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।

अथवा लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी क्यों जरूरी है? कोई तर्क दीजिए।

उत्तर – लंबे समय से यही मान्यता चली आ रही थी कि सरकार की सारी शक्तियाँ एक व्यक्ति या किसी खास स्थान पर रहने वाले व्यक्ति समूह के हाथ में रहनी चाहिए। अगर फैसले लेने की शक्ति बिखर गई तो तुरंत फैसले लेना और उन्हें लागू करना संभव नहीं होगा। लेकिन, लोकतंत्र का एक बुनियादी सिद्धांत है कि जनता सारी राजनीतिक शक्ति का स्रोत है। इसमें लोग स्वशासन की संस्थाओं के माध्यम से अपना शासन चलाते हैं। एक अच्छे लोकतांत्रिक शासन में समाज के विभिन्न समूहों और उनके विचारों को उचित सम्मान दिया जाता है और सार्वजनिक नीतियाँ तय करने में सबकी बातें शामिल होती हैं। इसलिए उसी लोकतांत्रिक शासन को अच्छा माना जाता है जिसमें ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदार बनाया जाए।

प्रश्न 5. सत्ता के ऊर्ध्वाधर वितरण तथा बँटवारे का क्षैतिज वितरण में क्या अंतर है?

उत्तर – ऊर्ध्वाधर वितरण और क्षैतिज वितरण में निम्नलिखित अन्तर है-

ऊर्ध्वाधर वितरण

1: उर्ध्वाधर वितरण के अंतर्गत सरकार के विभन्न स्तर के विभिन्न स्तरों में सत्ता का बँटवारा होता है।

  1. इसमें उच्चतर तथा निम्नतर स्तर की सरकारें होती हैं।
  2. इसमें निम्नतर स्तर के अंग उच्चतर स्तर के अंगों के अधीन काम करते हैं।

क्षैतिज वितरण

  1. क्षैतिज वितरण के अंतर्गत सरकार के विभिन्न अंगों जैसे कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में सत्ता का बंटवारा होता है।
  2. इसमें सरकार के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी-अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं।
  3. इसमें प्रत्येक अंग दूसरे पर नियंत्रण रखता है।’

प्रश्न 6.प्रत्यक्ष लोकतंत्र और परोक्ष लोकतंत्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – प्रत्यक्ष लोकतंत्र और परोक्ष लोकतंत्र में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्रत्यक्ष लोकतंत्र

  1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र में स्वयं नागरिक ही कानून बनाते हैं। उदाहरण : स्विट्जरलैंड। अथवा प्राचीन यूनान में एथेन्स नगर राज्य।
  2. प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता और सरकार में कोई अंतर नहीं होता।
  3. प्रत्यक्ष लोकतंत्र बहुत छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त तथा संभव होते हैं।
  4. प्रत्यक्ष लोकतंत्र में चुनाव कराने की कोई आवश्यकता नहीं होती अथवा इनके आयोजन में किसी तरह की जटिल प्रक्रिया नहीं होती।

परोक्ष लोकतंत्र

  1. परोक्ष लोकतंत्र में नागरिकों के प्रतिनिधि कानून बनाते हैं। उदाहरण: भारत ।
  2. परोक्ष लोकतंत्र में जनता के प्रति- निधि सरकार का निर्माण करते हैं।
  3. बड़े राज्यों के लिए परोक्ष लोक- तंत्र ही उपयुक्त तथा संभव है।
  4. परोक्ष लोकतंत्र में एक निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराना जरूरी है और इसकी एक जटिल प्रक्रिया है।

प्रश्न 7. सत्ता के क्षैतिज वितरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। साथ ही भारत के संदर्भ में उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर- (1) जब शासन के विभिन्न अंग जैसे- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिक के बीच सत्ता के बँटवारे की व्यवस्था हो तब इसे सत्ता का क्षैतिज वितरण कहा जाता है।

(2) भारत में राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद् कार्यपालिका के रूप में कार्य करते हैं। वैसे ही संघ विधायिका तथा सर्वोच्च न्यायालय, न्यायपालिका के भाग होते हैं। इनके बीच शक्तियों का विभाजन होता है ताकि कोई भी सत्ता का असीमित उपयोग न कर सके।

(3) हर अंग एक-दूसरे पर अंकुश रखता है। जैसे- भारतीय न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों पर अंकुश रखती है और विधायिका और कार्यपालिका न्यायपालिका के। इस प्रकार वे शक्ति को संतुलित रखते हैं।

प्रश्न 8. भारतीय संविधान की तीन सूचियों में वर्णित तीन-तीन विषयों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर – भारतीय संविधान में वर्णित तीन सूचियों में केन्द्र व राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन इस प्रकार है-

(1) संघ सूची संघ सूची में लगभग 97 विषय दिये गये हैं जिन पर केवल संसद ही कानून बना सकती है। देश की सुरक्षा, रेलवे, जहाजरानी, मुद्रा तथा डाक एवं ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा के लिए केन्द्रीय सरकार कानून बनाती है।

(2) राज्य सूची राज्य सूची में लगभग 66 ऐसे विषय हैं जिन पर राज्य सरकारें कानून बना सकती है; जैसे- कृषि, स्वास्थ्य, वन, सिंचाई, विद्युत, राज्य में कानून एवं व्यवस्था, पुलिस तथा मनोरंजन जैसे महत्त्वपूर्ण विषय हैं।

(3) समवर्ती सूची समवर्ती सूची में लगभग 47 विषय हैं, जिन पर संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते हैं। यदि समवर्ती सूची के किसी भी विषय पर संघ सरकार तथा राज्य सरकार दोनों ही कानून पास कर दें, तो संघ सरकार का कानून कार्यान्वित किया जाएगा।

केंद्रीय संसद द्वारा पारित कानूनों को अंतिम रूप से स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है तथा राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित कानूनों को अंतिम रूप से स्वीकृति के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाता है। कानूनों पर केन्द्रीय स्तर पर राष्ट्रपति और राज्य स्तर पर राज्यपाल द्वारा अनुमोदित होने पर यह कानून प्रभावी हो जाता है।

प्रश्न 9. : भारत में अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक प्रणाली को क्यों अपनाया गया?

उत्तर- भारत में निम्न कारणों से अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को चुना गया –

(1) विभिन्नताओं का देश भारत विभिन्नताओं का देश है। यहाँ के लोगों में अनेक तरह की विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। उनके धर्म, भाषाएँ, रीति- रिवाज तथा संस्कृतियाँ भिन्न-भिन्न हैं। सभी तरह के लोगों को अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में आसानी से प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है।

(2) आकार भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से इसका दुनिया में सातवाँ स्थान है। प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से विधायिका में हिस्सेदारी नहीं कर सकता है और समय-समय पर सरकार संबंधी सभी निर्णय नहीं ले सकता है।

(3) जनसंख्याजनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद भारत का विश्व में ‘दूसरा स्थान है। 2011 ई. की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 121 करोड़ से भी ज्यादा लोग रहते हैं। इतना विशाल जनसमूह एक स्थान पर एक साथ इकट्ठा होकर विधायिका के रूप में कैसे कार्य कर सकता है। यही कारण है कि सामान्यतया पाँच वर्षों के बाद सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर (18 वर्ष तथा उससे ज्यादा आयु के) नागरिक ही अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं।

                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

या भारत में संघीय व्यवस्था कैसी है? इसके चार लक्षण बताइए।

या “भारतीय संघवाद एक अर्द्ध-संघीय ढाँचा है।” इसकी पुष्टि में किन्हीं तीन कारकों का उल्लेख कीजिए।

या भारत में संघीय शासन की किन्हीं दो विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

या क्या भारतीय संघ एक अर्ध-संघीय ढाँचा है? आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

उत्तर- स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने भारत को राज्यों का संघ घोषित किया। इसमें संघ शब्द नहीं आया पर भारतीय संघ का गठन संघीय शासन व्यवस्था के सिद्धांत पर हुआ। भारतीय संघात्मक शासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. दो स्तरीय शासन व्यवस्था संविधान ने दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था-संघ सरकार और राज्य सरकारें। बाद में पंचायतों और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।
  2. शक्तियों का बँटवारा संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के विधायी अधिकारों को तीन हिस्सों में बाँटा गया। संघ सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के विषय रखे गए जिन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया। राज्य सूची में कम महत्त्व के विषय थे जिन पर राज्य सरकार कानून बना सकती है। समवर्ती सूची पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं। किंतु टकराव की स्थिति में केंद्र का कानून मान्य होगा।
  3. कठोर संविधान हमारे संविधान में केंद्र व राज्य के बीच सत्ता का बँटवारा लिखित रूप से किया गया है। इसमें परिवर्तन करना आसान नहीं है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से उसे मंजूर कराया जाता है। इस प्रकार कठोर संविधान संघात्मक शासन की प्रमुख विशेषता है।
  4. शक्तिशाली न्यायपालिका संघात्मक शासन में न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। भारत में शक्तियों के बँटवारे से संबंधित कोई विवाद होने की स्थिति में फैसला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में ही होता है।
  5. वित्तीय स्वायत्तता सरकार चलाने और अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कर लगाने, राजस्व उगाहने और संसाधन जमा करने का अधिकार है। राज्य सरकारों को वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त है।
  6. एकीकृत न्यायपालिका भारत में संघात्मक शासन के कारण केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग कार्यपालिका और व्यवस्थापिका है किंतु न्यायपालिका दोनों के लिए एक ही है। ऐसा इसलिए किया गया जिससे केंद्र व राज्यों के झगड़ों का निपटारा किया जा सके।
  7. राज्यों के अपने संविधान नहीं हैंभारतीय संघ के सारे राज्यों को बराबर अधिकार नहीं है। भारत के राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं।
  8. केंद्रीकृत संघवादभारतीय संघात्मक शासन अन्य देशों के शासन से भिन्न है। भारत में दो प्रकार की सरकारें होते हुए भी केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया है। केंद्र को अधिक अधिकार दिए गए हैं। इसलिए भारतीय संघ को एकीकृत संघवाद कहा जाता है।

प्रश्न 2. भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से किस प्रकार भिन्न है?

या “भारतीय संघात्मक शासन केंद्रीकृत संघवाद का नमूना है।” इस कथन को तर्क सहित स्पष्ट करें।

या भारतीय संविधान की संघात्मक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

आपातकाल में यह किस प्रकार एकात्मक हो जाता है? या भारत की संघात्मक शासन-व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर – भारतीय संघात्मक शासन अन्य देशों के संघात्मक शासन से भिन्न है। अमेरिका, कनाड़ा आदि देशों में पूर्ण संघात्मक शासन है। किंतु भारतीय संघ  में कुछ एकात्मक शासन की विशेषताएँ भी हैं जो उसे अन्य देशों के संघात्मक शासन से अलग बनाती हैं। भारतीय संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ उसे अन्य देशों के संघात्मक शासन से अलग बनाती हैं-

(i) भारतीय संविधान में कहीं भी संघात्मक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इसमें केवल यह कहा गया है कि भारत राज्यों का संघ है।

(ii) केंद्र सरकार को राज्य सरकारों से अधिक विषय दिए गए हैं। संघ सूची में सबसे अधिक तथा महत्त्वपूर्ण विषय हैं। विशेष परिस्थितियों में, आपातकाल के समय केंद्र राज्य सूची पर भी कानून बना सकता है। यदि राज्यपाल यह सिफारिश करे कि किसी विषय पर केंद्र कानून बनाए तो केंद्र राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकता है। समवर्ती सूची में भी केंद्र के कानूनों को महत्त्व दिया जाता है। अवशिष्ट विषय भी केन्द्र के अधिकार में रखे गए हैं। इस प्रकार केन्द्र सरकार को राज्य सरकार से अधिक अधिकार दिए गए हैं।

(iii) एकीकृत न्यायपालिका संघात्मक शासन में केंद्र व राज्यों के लिए अलग-अलग न्यायपालिका होती है किंतु भारत में केंद्र और राज्यों के लिए न्यायपालिका का एक ही ढाँचा काम करता है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा फिर जिला अदालतें काम करती हैं।

(iv) राज्यों के अपने संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत नहीं हैं। अमेरिका आदि संघात्मक देशों में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत है किंतु भारत में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत नहीं हैं। पूरे देश का एक संविधान, एक राष्ट्रध्वज व एक राष्ट्रगीत है जो देश को एकात्मकता की ओर ले जाते हैं।

(v) भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति केवल भारत का नागरिक कहलाता है। उसे अलग-अलग राज्यों की नागरिकता प्राप्त नहीं होती, जबकि संघात्मक शासन में नागरिक अपने देश का तथा जिस राज्य में निवास करता हो, उसका भी नागरिक होता है; जैसे- अमेरिका में दोहरी नागरिकता है।

(vi) आपातकालीन परिस्थितियों में, विदेशी आक्रमण या आर्थिक संकट के समय पूरे देश में शासन का स्वरूप एकात्मक हो जाता है। राज्य सरकारों को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाता है। सभी अधिकार केंद्र सरकार के पास आ जाते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में ऐसा संघात्मक शासन है जिसका झुकाव एकात्मकता की ओर है। यह कभी भी आवश्यकतानुसार एकात्मक स्वरूप ग्रहण कर सकता है।

प्रश्न 3. शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या प्रमुख अन्तर हैं? इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें।

उत्तर- शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में अन्तर

शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में निहित अन्तर को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

(i) संघात्मक शासन में दोहरी शासन व्यवस्था होती है-एक केन्द्र स्तर पर तथा दूसरी राज्य स्तर पर, जबकि एकात्मक शासन में सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्र में निहित होती हैं। प्रान्तों की शासन व्यवस्था केन्द्र के अधीन होती है। संघात्मक व्यवस्था में शक्तियाँ केन्द्र तथा राज्यों में विभाजित होती हैं। अमेरिका, बेल्जियम तथा भारत में संघीय व्यवस्था है। भारत में 28 राज्य हैं, जबकि अमेरिका में राज्यों की संख्या 50 है। ब्रिटेन तथा श्रीलंका में एकात्मक सरकारें हैं।

(ii) संघात्मक शासन व्यवस्था में लिखित तथा कठोर संविधान का होना अत्यावश्यक है, जैसा कि अमेरिका का संविधान है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह अनिवार्य शर्त नहीं है। ब्रिटेन में अलिखित तथा लचीला संविधान है।

(iii) संघात्मक शासन व्यवस्था में दोहरा संविधान तथा दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है, परन्तु भारत में संघीय शासन व्यवस्था होने के बावजूद भी इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान है। एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान होता है।

(iv) संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका का स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष होना अति आवश्यक है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह आवश्यक नहीं है।

प्रश्न 4. भारत में पंचायती राजव्यवस्था का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

उत्तर – भारत में गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन-व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है। भारत में पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढाँचा पाया जाता है। निचले स्तर पर ग्राम पंचायत, उसके ऊपर पंचायत समिति तथा सबसे ऊपर जिला परिषद् काम करती है।

  1. ग्रामीण स्तर ग्रामीण स्तर पर, प्रत्येक गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। यह एक तरह की परिषद् है जिसमें कई सदस्य और एक अध्यक्ष होता है। सदस्य वार्डों से चुने जाते हैं और उन्हें ‘पंच’ कहा जाता है। अध्यक्ष को प्रधान या सरपंच कहा जाता है। इनका चुनाव गाँव में रहने वाले सभी वयस्क व्यक्ति करते हैं। यह पूरे पंचायत के लिए फैसला लेने वाली संस्था है। पंचायतों का काम ग्रामसभा की देख-रेख में चलता है। इसे ग्राम पंचायत का बजट पास करने और इसके काम-काज की समीक्षा के लिए साल में कम-से-कम दो या तीन बार बैठक करनी होती है।
  2. पंचायत समिति कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है। इसे मंडल या प्रखंड स्तरीय पंचायत भी कह सकते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव उस इलाके में सभी पंचायत सदस्य करते हैं।
  3. जिला परिषद् किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन होता है। जिला परिषद् के अधिकांश सदस्यों का चुनाव होता है। जिला परिषद् में उस जिले से लोकसभा और विधान सभा के लिए चुने गए सांसद और विधायक तथा जिला

स्तर की संस्थाओं के कुछ अधिकारी भी सदस्य के रूप में होते हैं। जिला परिषद् का प्रमुख इस परिषद् का राजनीतिक प्रधान होता है।

प्रश्न 5. भारतीय संघ में केन्द्र राज्य सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – केन्द्रराज्य संबंध सत्ता की साझेदारी की संवैधानिक व्यवस्था वास्तविकता में कैसा रूप लेगी यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता किस तरह इस व्यवस्था का अनुसरण करते हैं। काफी समय तक हमारे यहाँ एक ही पार्टी का केन्द्र और अधिकांश राज्यों में शासन रहा। इसका व्यावहारिक मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारों ने स्वायत्त संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया। जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें रहीं तो केन्द्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश की। उन दिनों केन्द्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी। यह संघवाद की भावना के प्रतिकूल काम था।

1990 के बाद से यह स्थिति काफी बदल गई। इस अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। यही दौर केन्द्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था। चूँकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी। इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी। इस प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केन्द्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया। इस प्रकार आज संघीय व्यवस्था के तहत सत्ता की साझेदारी संविधान लागू होने के तत्काल बाद वाले दौर की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।

प्रश्न 6. भारत में स्थानीय स्वशासन के किन्हीं तीन गुणों एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।

या भारत में स्थानीय स्वशासन से आप क्या समझते हैं? इस शासन के किन्हीं दो गुणों एवं किन्हीं दो दोषों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- भारत में स्थानीय स्वशासन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 4 का उत्तर देखें।

भारत में स्थानीय स्वशासन के गुण लघु उत्तरीय प्रश्न में प्रश्न 3 का उत्तर देखें।

भारत में स्थानीय स्वशासन की समस्याएँ (दोष) – भारत में स्थानीय स्वशासन की कुछ प्रमुख समस्याएँ (दोष) निम्नवत् हैं-

  1. ग्राम सभाओं की बैठकें नियमित रूप से नहीं होती हैं।
  2. अधिकांश राज्य सरकारों ने स्थानीय सरकारों को पर्याप्त अधिकार नहीं दिए हैं।
  3. कर्मचारियों की कमी और बुनियादी ढाँचे की कमी जैसे मुद्दे सतत् रूप से बने रहते हैं।
  4. पंचायतों और नगरपालिकाओं की वित्तीय शक्तियों का कुशलतापूर्वक उपयोग अब तक संभव नहीं हो पाया है।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Civics) Chapter- 1 सत्ता की साझेदारी (Satta ki Sajhedari) Notes

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