UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Civics [नागरिक शास्त्र] Chapter- 4 राजनीतिक दल (Rajnitik Dal) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-3: (नागरिक शास्त्र) लोकतांत्रिक राजनीति-2 खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर-4 राजनीतिक दल पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | राजनीतिक दल |
Part 3 | Civics [नागरिक शास्त्र] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | राजनीतिक दल |
राजनीतिक दल (Rajnitik Dal)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. “भारतीय राजनीतिक दलों के कुशल कार्यान्वयन के लिए आंतरिक लोकतंत्र का न होना, एक चुनौती है।” उदाहरणों सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- राजनीतिक दल की सबसे बड़ी चुनौती आंतरिक लोकतंत्र का न होना है। सारी दुनिया में यह प्रवृत्ति बन गई है कि सारी ताकत एक या कुछेक नेताओं के हाथ में सिमट जाती है। पार्टियों के पास न सदस्यों की खुली सूची होती है न नियमित रूप से सांगठनिक बैठकें होती हैं। इनके आंतरिक चुनाव भी नहीं होते। कार्यकर्ताओं से वे सूचनाओं का साझा भी नहीं करते। सामान्य कार्यकर्त्ता अनजान ही रहता है कि पार्टी के अंदर क्या चल रहा है। उसके पास न तो नेताओं से जुड़कर फैसलों को प्रभावित करने की ताकत होती है, न ही कोई और माध्यम-परिणामस्वरूप पार्टी के नाम पर सारे फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते हैं।
प्रश्न 2. आधुनिक लोकतंत्र राजनीतिक दलों के बिना क्यों नहीं ठहर सकता? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- आधुनिक लोकतंत्र राजनीतिक दलों के बिना निम्न कारणों से नहीं ठहर सकता-
(i) विशाल देशों में एक या दो व्यक्ति द्वारा शासन संभव नहीं है, ऐसी स्थिति में एक विचारधारा के समूह राजनीतिक दल ही शासन का संचालन कर सकते हैं।
(ii) सरकार की गलत नीतियों को कुछ लोगों द्वारा विरोध का कारगर असर नहीं पड़ता, ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल की सरकार की गलत नीतियों का विरोध कर सकती है।
(iii) राजनीतिक दल में एक विचारधारा के लोग सम्मिलित होते हैं जो चुनाव में बहुमत मिलने पर सरकार का गठन करते हैं, लेकिन अगर विभिन्न विचारधाराओं के लोग जो विभिन्न चुनाव क्षेत्रों से जीतकर सरकार का गठन करते हैं। यदि उनमें कोई मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो उनके द्वारा गठित सरकार क्षणिक ही होगी।
प्रश्न ३. अपने प्रदेश के दो क्षेत्रीय दलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – हमारे प्रदेश के दो प्रमुख क्षेत्रीय दल निम्नवत् हैं-
- समाजवादी पार्टी (सपा) – यह देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का प्रमुख क्षेत्रीय दल है। 1992 में अपने गठन के बाद से सपा लगभग एक दशक तक सत्ता में रही। इसने केन्द्र में भी सत्ता में साझेदारी की है। इस पार्टी का गठन उत्तर प्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग हो कर किया था। 1990 के दशक की शुरुआत में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद मुलायम का प्रभाव काफी बढ़ा। इससे पहचान की राजनीति को भी खास कर उत्तर भारत में काफी बढ़ावा मिला था। मुलायम 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वने और इस पद पर पूरे एक साल और 201 दिन तक रहे। 1991 के आम चुनाव में जनता दल की हार के बाद उन्हें यह कुर्सी छोड़नी पड़ी। उसके बाद उन्होंने सपा की स्थापना की और दो बार मुख्यमंत्री बने। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को पूर्ण बहुमत मिला और अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि 2017 तथा 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
- राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) – यह भी उत्तर प्रदेश का एक अन्य प्रमुख दल है जिसकी स्थापना पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजीत सिंह ने 1996 में की थी। राज्य के जाट बहुल जिलों में इसका प्रभाव है। अजीत सिंह को राजनीति की विरासत अपने पिता स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिली, मगर वे सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों सहित विभिन्न पार्टियों से गठबंधन करते रहे हैं ताकि सत्ता में प्रासंगिक बने रहें। वर्तमान में इस पार्टी के अध्यक्ष अजीत सिंह के सुपुत्र जयन्त चौधरी हैं। हालाँकि निर्वाचन आयोग ने अप्रैल, 2023 में इस पार्टी का राज्य स्तर की पार्टी (क्षेत्रीय दल) का दर्जा समाप्त कर दिया।
प्रश्न 4. राष्ट्रीय व प्रांतीय दलों में अंतर स्पष्ट कीजिएं।
उत्तर- संघीय व्यवस्था वाले लोकतांत्रिक देशों में दो प्रकार के राजनीतिक दल होते हैं- राष्ट्रीय व प्रांतीय।
राष्ट्रीय दल – जो दल पूरे देश में फैले होते हैं तथा जिन दलों को लोकसभा चुनाव में पड़े कुल वोटों का अथवा चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में पड़े कुल वोटों का 6 प्रतिशत हासिल होता है और लोकसभा के चुनाव में – कम-से-कम चार सीटों पर जीत दर्ज करता है उन्हें राष्ट्रीय दल कहते हैं।
प्रांतीय दल – जब कोई दल राज्य विधानसभा के चुनावों में पड़े कुल मतों का 6 फीसदी या उससे अधिक हासिल करता है और कम-से-कम दो सीटों पर जीत दर्ज करता है तो उसे प्रांतीय दल कहते हैं।
प्रश्न 5. शासक दल और विरोधी दल में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रतिनिधि लोकतंत्र वाले देशों में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दल अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं और जनता उनमें से कुछ का चुनाव करती है। ऐसे में राजनीतिक दल दो रूपों में काम करते हैं- शासक दल, विरोधी दल।
शासक दल – जो दल चुनाव जीत जाता है वह सरकार बनाता है और सत्ता में आकर देश का शासन चलाता है। इसके लिए पार्टी नेता चुनती है, उनको प्रशिक्षित करती है और उन्हें मंत्री बनाती है ताकि वे शासन चला सकें।
विरोधी दल – जो राजनीतिक दल चुनाव में हार जाते हैं वे सरकार तो नहीं बनाते किंतु संसद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विरोधी दल के रूप में काम करते हैं। सरकार की गलत नीतियों और असफलताओं की आलोचना करने के साथ वे अपनी अलग राय भी रखते हैं। इस प्रकार विरोधी दल शासक दल को निरंकुश होने से रोकता है।
प्रश्न 6. किसी भी राजनीतिक दल के क्या गुण होते हैं?
उत्तर- राजनीतिक दल के निम्नलिखित गुण होते हैं-
(i) राजनीतिक दल समाज के सामूहिक हितों को ध्यान में रखकर कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम बनाते हैं।
(ii) दल लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं।
(iii) दल किसी समाज के बुनियादी राजनीतिक विभाजन को भी दर्शाते हैं।
(iv) दल समाज के किसी एक हिस्से से संबंधित होता है इसलिए इसका नजरिया समाज के उस वर्ग-विशेष की तरफ झुका होता है।
(v) किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके सामाजिक आधार से तय होती है।
(vi) राजनीतिक दल के तीन मुख्य हिस्से हैं- नेता, सक्रिय सदस्य, अनुयायी या समर्थक।
प्रश्न 7. क्षेत्रीय दलों के गुणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- क्षेत्रीय दलों के गुणों की विवेचना निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर की जा सकती है-
(i) क्षेत्रीय दलों का सम्बन्ध क्षेत्र विशेष की समस्याओं से होता है। अतः वे इनका समाधान करके अपने-अपने क्षेत्र के लोगों की सेवा में तत्पर रहते हैं।
(ii) जब इन दलों के सदस्य संसद के लिए निर्वाचित हो जाते हैं, तो वे अपनी स्थानीय समस्याओं की ओर सम्पूर्ण राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करते हैं।
(iii) क्षेत्रीय दल सत्तारूढ़ दल के साथ-साथ विरोधी दल के साथ भी सहयोग करते हैं। अतः ये केन्द्र सरकार को सतर्क एवं जागरूक रखने का भी महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।
(iv) सशक्त एवं संगठित क्षेत्रीय दलों ने संघीय व्यवस्था को सुदृढ़ किया है क्योंकि अधिकांश क्षेत्रीय दलों ने अपने क्षेत्र विशेष के हितों को वरीयता देते हुए भी राष्ट्रीय नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रति निष्ठा का परिचय दिया है।
(v) क्षेत्रीय दलों ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए प्रयास किए हैं जिसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई है। इन्होंने विकास को नई गति तथा दिशा प्रदान करने के उद्देश्य से अपने क्षेत्र के लोगों की राजनीतिक रुचि को प्रोत्साहित किया है। इसके कारण ही राष्ट्र में प्रतिद्वन्द्वी अथवा स्पर्धा वाला निर्वाचन सम्बन्धी परिवेश देखने को मिलता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. दलीय व्यवस्था के विभिन्न प्रकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर- राजनीतिक दल लोकतंत्र की एक अनिवार्य शर्त हैं। अलग-अलग देशों में इन राजनीतिक दलों की अलग-अलग संख्या पाई जाती है। इस आधार पर तीन प्रकार की दलीय व्यवस्थाएँ पाई जाती हैं-
- एकदलीय व्यवस्था – जिन देशों में सिर्फ एक ही दल को सरकार बनाने और चलाने की अनुमति है, उन देशों में एकदलीय व्यवस्था पाई जाती है। चीन में सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी को शासन करने की अनुमति है। हालाँकि कानूनी रूप से वहाँ भी लोगों को राजनीतिक दल बनाने की आजादी है पर वहाँ की चुनाव प्रणाली सत्ता के लिए स्वतंत्र प्रतिद्वन्द्विता की अनुमति नहीं देती इसलिए लोगों को नया राजनीतिक दल बनाने का कोई लाभ नहीं दिखता। किसी भी लोकतंत्रीय व्यवस्था के लिए कम-से-कम दो दलों का होना आवश्यक है।
- द्विदलीय व्यवस्था – कुछ देशों में सत्ता आमतौर पर दो मुख्य दलों के बीच बदलती रहती है। वहाँ अनेक दूसरी पार्टियाँ हो सकती हैं वे भी चुनाव लड़कर कुछ सीटें जीत सकती हैं पर सिर्फ दो ही दल बहुमत पाने और सरकार बनाने के प्रबल दावेदार होते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसी ही दो-दलीय व्यवस्था है।
- बहुदलीय व्यवस्था – जब अनेक दल सत्ता के लिए होड़ में हों और दो दलों से ज्यादा के लिए अपने दम पर या दूसरों से गठबंधन करके सत्ता में आने का ठीक-ठाक अवसर हो तो इसे बहुदलीय व्यवस्था कहते हैं। भारत में भी ऐसी ही बहुदलीय व्यवस्था है। इस व्यवस्था में कई दल गठबंधन बनाकर भी सरकार बना सकते हैं। अकसर बहुदलीय व्यवस्था बहुत तालमेल वाली लगती है और देश को राजनीतिक अस्थिरता की तरफ ले जाती है। पर इसके साथ ही इस प्रणाली में विभिन्न हितों और विचारों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल जाता है। दलीय व्यवस्था का चुनाव करना किसी देश के हाथ में नहीं है। यह एक लंबे दौर के काम-काज के बाद खुद विकसित होती हैं।
प्रश्न 2. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं का वर्णन कीजिए।
या राजनीतिक दलों के कोई चार कार्य लिखिए।
या राजनीतिक दलों से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- राजनीतिक दल – राजनीतिक दल को लोगों के एक ऐसे संगठित समूह के रूप में समझा जा सकता है जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है। समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर यह समूह कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तय करता है।
लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका – लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं-
- चुनाव लड़ना – राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में चुनाव राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों के बीच लड़ा जाता है। राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चुनाव कई तरीकों से करते हैं। भारत में दल के नेता ही उम्मीदवार चुनते हैं।
- नीतियाँ व कार्यक्रम जनता के सामने रखना – दल अलग-अलग नीतियों और कार्यक्रमों को मतदाताओं के सामने रखते हैं और मतदाता अपनी पसंद की नीतियाँ और कार्यक्रम चुनते हैं। लोकतंत्र में समान या मिलते-जुलते विचारों को एक साथ लाना होता है ताकि सरकार की नीतियों को एक दिशा दी जा सके। दल तरह-तरह के विचारों को बुनियादी राय तक समेट लाता है। सरकार प्रायः शासक दल की राय के अनुसार नीतियाँ तय करती है।
- कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका – राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कानूनों पर औपचारिक बहस होती है और विधायिका में पास करवाना पड़ता है। लेकिन विधायिका के सदस्य किसी न किसी दल के सदस्य होते हैं। इस कारण वे अपने दल के नेता के निर्देश पर फैसला करते हैं।
- सरकार बनाना – दल ही सरकार बनाते व चलाते हैं। जो दल चुनाव जीतता है वह सरकार बनाता है तथा महत्त्वपूर्ण नीतियों और फैसलों के मामले में निर्णय भी लेता है। पार्टियाँ नेता चुनती हैं उनको प्रशिक्षित करती हैं फिर उन्हें मंत्री बनाती हैं ताकि वे पार्टी की इच्छानुसार शासन चला सकें।
- विरोधी दल के रूप में काम करना – चुनाव हारने वाले दल शासक दल के विरोधी पक्ष की भूमिका निभाते हैं। सरकार की गलत नीतियों और असफलताओं की आलोचना करने के साथ वे अपनी अलग राय भी रखते हैं। विरोधी दल सरकार के खिलाफ आम जनता को गोलबंद करते हैं।
- जनमत निर्माण करना – राजनीतिक दल जनमत निर्माण का कार्य भी करते हैं। चुनावों के समय, चुनाव प्रचार के दौरान तथा बाद में सरकार बनाने के बाद भी राजनीतिक दल विभिन्न मुद्दों को उठाकर जनता को राजनीतिक शिक्षण देने का काम करते हैं जिससे एक स्वस्थ जनमत का निर्माण होता है।
- कल्याणकारी कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाना – दल ही सरकारी मशीनरी और सरकार द्वारा चलाए गए कल्याण कार्यक्रमों तक लोगों की पहुँच बनाते हैं। एक साधारण नागरिक के लिए किसी सरकारी अधिकारी की तुलना में किसी राजनीतिक कार्यकर्ता से जान-पहचान बनाना, उससे संपर्क साधना आसान होता है। इसी कारण लोग दलों को अपने करीब मानते हैं। दलों को भी लोगों की माँगों को ध्यान में रखना होता है वरना जनता अगले चुनावों में उन्हें हरा सकती है।
प्रश्न ३. राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
उत्तर- लोकतंत्र में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किंतु उन्हें कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो अग्रलिखित हैं-
- आंतरिक लोकतंत्र का अभाव – पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव पाया जाता है। पार्टियों के पास न सदस्यों की खुली सूची होती है, नियमित रूप से सांगठनिक बैठकें होती हैं। इनके आंतरिक चुनाव भी नहीं होते। कार्यकर्ताओं से वे सूचनाओं का साझा भी नहीं करते। सामान्य कार्यकर्ता अनजान ही रहता है कि पार्टियों के अंदर क्या चल रहा है। परिणामस्वरूप पार्टी के नाम पर सारे फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते हैं। चूँकि कुछ ही नेताओं के पास असली ताकत होती है। इसलिए पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों से निष्ठा की जगह नेता से निष्ठा ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाती है।
- वंशवाद की चुनौती – दलों के जो नेता होते हैं वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं। अनेक दलों में शीर्ष पद पर हमेशा एक ही परिवार के लोग आते हैं। यह दल के अन्य सदस्यों के साथ अन्याय है। यह बात लोकतंत्र के लिए भी अच्छी नहीं है क्योंकि इससे अनुभवहीन और बिना जनाधार वाले लोग ताकत वाले पदों पर पहुँच जाते हैं।
- धन और अपराधी तत्त्वों की घुसपैठ – सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए वह हर तरीका अपना सकते हैं। वे ऐसे उम्मीदवार खड़े करते हैं जिनके पास काफी पैसा हो या पैसे जुटा सकें। कई बार पार्टियाँ चुनाव जीत सकने वाले अपराधियों का समर्थन करती हैं या उनकी मदद लेती हैं जिससे राजनीति का अपराधीकरण हो गया है।
- विकल्पहीनता की स्थिति – सार्थक विकल्प का अर्थ विभिन्न पार्टियों की नीतियों और कार्यक्रमों में अंतर होना है। कुछ वर्षों से दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता गया है। यह प्रवृत्ति दुनिया भर में देखने को मिलती है। भारत की सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मसलों पर बड़ा कम अंतर रह गया है। जो लोग इससे अलग नीतियाँ बनाना चाहते हैं उनके पास कोई विकल्प उपलब्ध नहीं होता।
प्रश्न 4. राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढंग से करें, इसके लिए उन्हें मजबूत बनाने के कुछ सुझाव दीजिए।
या विधायकों तथा संसद सदस्यों को दलबदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी? संविधान में क्या संशोधन किया गया?
उत्तर- क्यों लाया गया दल–बदल विरोधी कानून? – लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल काफी अहम भूमिका निभाते हैं। सैद्धांतिक तौर पर राजनीतिक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका यह है कि वे सामूहिक रूप से लोकतांत्रिक फैसला लेते हैं। हालाँकि आजादी के कुछ ही वर्षों के भीतर यह महसूस किया जाने लगा कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने सामूहिक जनादेश की अनदेखी की जाने लगी है। विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से सरकारे बनने और गिरने लगीं।
1960-70 के दशक में ‘आया राम गया राम’ की राजनीति देश में काफी प्रचलित हो चली थी। दरअसल अक्टूबर 1967 को हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने 15 दिनों के भीतर 3 बार दल-बदलकर इस मुद्दे को राजनीतिक मुख्यधारा में ला खड़ा किया था। इसी के साथ जल्द ही दलों को मिले जनादेश का उल्लंघन करने वाले सदस्यों को चुनाव में भाग लेने से रोकने तथा अयोग्य घोषित करने की जरूरत महसूस होने लगी। अंततः वर्ष 1985 में संविधान संशोधन के जरिये दल-बदल विरोधी कानून लाया गया।
राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को सुधारने के लिए गए प्रयास या दिए गए सुझाव – भारत में राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को सुधारने के लिए जो प्रयास किए गए हैं या जो सुझाव दिए गए हैं वे निम्नलिखित हैं-
(i) विधायकों और सांसदों को दल-बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। निर्वाचित प्रतिनिधियों के मंत्रीपद या पैसे के लोभ में दल-बदल करने में आई तेजी को देखते हुए ऐसा किया गया। नए कानून के अनुसार अपना दल बदलने वाले सांसद या विधायक को अपनी सीट भी गँवानी होगी। इस कानून से दल-बदल में कमी आई है।
(ii) उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए एक आदेश जारी किया है। इसके द्वारा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी संपत्ति का और अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथपत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस नई व्यवस्था से लोगों को अपने उम्मीदवारों के बारे में बहुत-सी पक्की सूचनाएँ उपलब्ध होने लगी हैं।
(iii) चुनाव आयोग ने एक आदेश के जरिए सभी दलों के लिए सांगठनिक चुनाव कराना और आयकर का रिटर्न भरना जरूरी बना दिया है। दलों ने ऐसा करना शुरू कर भी दिया है, पर कई बार ऐसा सिर्फ खानापूर्ति के लिए होता है।
कुछ अन्य कदम जो राजनीतिक दलों में सुधार के लिए सुझाए गए हैं-
(i) राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। सभी दल अपने सदस्यों की सूची रखें, अपने संविधान का पालन करें, सबसे बड़े पदों के लिए खुले चुनाव कराएँ।
(ii) राजनीतिक दल महिलाओं को एक खास न्यूनतम अनुपात में जरूर टिकट दें। इसी प्रकार दल के प्रमुख पदों पर भी औरतों के लिए आरक्षण होना चाहिए।
(iii) चुनाव का खर्च सरकार उठाए। सरकार दलों को चुनाव लड़ने के लिए धन दे।
(iv) राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाया जाए। यह काम पत्र लिखने, प्रचार करने और आंदोलन के जरिए किया जा सकता है। यदि दलों को लगे कि सुधार न करने से उनका जनाधार गिरने लगेगा तो इसे लेकर वे गंभीर होने लगेंगे।
(v) सुधार की इच्छा रखने वालों का खुद राजनीतिक दलों में शामिल होना। राजनीतिक दलों ने अभी तक इन सुझावों को नहीं माना है। अगर इन्हें मान लिया गया तो संभव है कि इनसे कुछ सुधार हो।