UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Civics [नागरिक शास्त्र] Chapter- 5 लोकतंत्र के परिणाम (Loktantr ke Parinam) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-3: (नागरिक शास्त्र) लोकतांत्रिक राजनीति-2 खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर-5 लोकतंत्र के परिणाम पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | लोकतंत्र के परिणाम |
Part 3 | Civics [नागरिक शास्त्र] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | लोकतंत्र के परिणाम |
लोकतंत्र के परिणाम (Loktantr ke Parinam)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लोकतंत्र का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
उत्तर – लोकतंत्र, जिसे अंग्रेजी में ‘Democracy’ कहते हैं, की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘डेमोस’ (Demos) और क्रेशिया (Cratia) के मिलने हे हुई है। डेमोस का अर्थ है-प्रजा तथा क्रेशिया का अर्थ है-सत्ता। अतः लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता जनता के हाथों में होती है।
लोकतंत्र की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
- सीले का कथन है, “लोकतंत्र वह शासन-व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का भाग हो।”
- डायसी के अनुसार, “लोकतंत्र वह शासन-व्यवस्था है जिसमें शासक वर्ग अपेक्षाकृत राष्ट्र का एक बड़ा भाग होता है।”
- संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की बड़ी सरल परिभाषा दी है। उनके अनुसार, “लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा शासन है।”
- लॉर्ड ब्राइस ने लोकतंत्र सरकार की परिभाषा देते हुए कहा है, “लोकतंत्र एक ऐसा शासन है जिसमें शासन की शक्ति किसी एक व्यक्ति, किसी एक वर्ग विशेष अथवा वर्गों में नहीं पाई जाती, बल्कि सम्पूर्ण समुदाय के हाथों में रहती है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लोकतंत्र वह शासन-व्यवस्था है जिसमें देश का शासन जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाए और जो जनता के प्रति उत्तरदायी हो।
प्रश्न 2. लोकतंत्र के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रकार को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- 1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र – प्रत्यक्ष लोकतंत्र उसे कहते हैं, जिसमें राज्य की इच्छा जनता द्वारा आम सभाओं के माध्यम से प्रकट की जाती है। इसमें जनता अपने प्रतिनिधियो को निर्वाचित करके नहीं भेजती, वरन् स्वयं एकत्रित होकर अधिकारियों को नियुक्त करती है, कर निर्धारित करती है तथा कानून बनाती है। ऐसा लोकतंत्र छोटे-छोटे राज्यों में ही स्थापित किया जा सकता है। प्राचीन यूनान तथा रोम के नगर-राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रणाली प्रचलित थी। आधुनिक राज्यों में इसे लागू नहीं किया जा सकता। स्विट्जरलैंड के कुछ कैंटनों, अमेरिका तथा रूस के कुछ राज्यों तथा गणतंत्रों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की व्यवस्था है।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र के आधुनिक साधनों में जनमत संग्रह, प्रस्तावाधिकार तथा प्रत्यावर्तन के साधन हैं। इन साधनों द्वारा मतदाता कानून के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से भाग ले सकते हैं। जनमत संग्रह का थोड़ा-बहुत प्रयोग अन्य देशों में भी किया जाता है।
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र – यह सरकार का वह रूप है जिसमें राज्य की इच्छा जनता द्वारा निर्वाचित थोड़े से व्यक्ति समुदाय द्वारा प्रकट होती है। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता एक निश्चित समय के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। ये प्रतिनिधि अपने मतदाताओं की भावनाओं के अनुसार कानून बनाते हैं। प्रतिनिधियों में से बहुमत दल मंत्रिमण्डल का निर्माण करता है जो शासन चलाता है। विश्व के अधिकतर देशों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना की गई है।
प्रश्न 3. लोकतंत्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- लोकतंत्र में राज्य सत्ता जनता में निहित होती है। वास्तविक लोकतंत्र तभी संभव है जबकि देश में समानता, स्वतंत्रता तथा भाई-चारे की भावनाएँ विद्यमान हौं, अतएव लोकतंत्र के निम्नलिखित मूलभूत आधार अथवा विशेषताएँ हैं-
(i) समानता – समानता लोकतंत्र का मुख्य आधार है। समानता में अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, जात-पात, धर्म, रंग व लिंग आदि का भेदभाव नहीं होता। सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी समान हैं। राजनीतिक समानता के साथ-साथ सामाजिक तथा आर्थिक समानता लाने का प्रयास किया जाता है।
(ii) स्वतंत्रता – स्वतंत्रता लोकतंत्र का दूसरा मुख्य आधार है। नागरिकों को सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
(iii) धातृभाव – लोकतंत्र का तीसरा मुख्य आधार भ्रातृभाव है। सभी नागरिक मिलकर कार्य करें। लोगों में अपनी जाति अथवा नस्ल की प्रभुसत्ता की भावना नहीं होनी चाहिए।
(iv) जन–कल्याण – लोकतंत्र में किसी एक वर्ग विशेष अथवा व्यक्ति का भला नहीं किया जाता, वरन् सारी जनता का कल्याण करना राज्य का उद्देश्य होता है।
(v) जन प्रभुसत्ता – लोकतंत्र में प्रभुसत्ता लोगों में निहित होती है। सरकार लोगों की इच्छा के अनुसार शासन चलाती है। सरकार की शक्तियों का अंतिम स्त्रोत लोग ही होते हैं।
प्रश्न 4. लोकतांत्रिक शासन में सरकार का उत्तरदायी होना क्यों आवश्यक है?
अथवा लोकतांत्रिक शासन एक उत्तरदायी शासन होता है। उदाहरण देकर उत्तर लिखिए।
उत्तर- आज के समय में लोकतांत्रिक सरकार को प्रायः प्रतिनिधिक लोकतंत्र कहते हैं। प्रतिनिधि लोकतंत्र में लोग सीधे शासन में भाग नहीं लेते हैं, बल्कि चुनाव की प्रक्रिया के द्वारा अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं। ये प्रतिनिधि मिलकर सारी जनता के लिए निर्णय लेते हैं और सरकार चलाते हैं। चूंकि लोकतंत्र में सरकार जनता के द्वारा चुनी जाती है इसलिए उसे जनसामान्य के कल्याण के लिए निर्णय लेने पड़ते हैं और कार्य करने पड़ते हैं। सरकार को समाज समानता, स्वतंत्रता तथा सामाजिक न्याय के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए कार्य करना पड़ता है।
प्रश्न 5. “लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाएँ शान्ति और सद्भाव का जीवन जीने में नागरिकों के लिए मददगार साबित होती हैं।” इस कथन की उपयुक्त उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर- लोकतंत्र पूर्व शान्ति सद्भाव का वातावरण : नागरिकों के इस प्रकार का जीवन व्यतीत करने में सरकार उनके साथ निम्न प्रकार से मददगार साबित होती है
- सभी को समान अवसर प्राप्त होना – लोकतान्त्रिक सरकार सर्वोत्तम प्रकार की सरकार सिद्ध हुई है। इसकी तुलना में तानाशाही सरकार, एक पार्टी सरकार एवं राजतन्त्र सरकारें इतनी लोकप्रिय नहीं हुई हैं। तानाशाही सरकार में जब कभी भी लोगों को ऊपर उठने का अवसर मिलता है, वे उठते हैं और प्रजातन्त्र स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं। प्रजातन्त्र का अपना ही आकर्षण है तथा जो लोग ऐसे शासन के अभ्यस्त हो जाते हैं वे अन्य प्रकार के शासन की ओर देखते तक नहीं।
- विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता – लोकतन्त्र में व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता होती है। उन्हें ऐसा करने में न तो किसी प्रकार के आतंक का डर रहता है और ना ही पुलिस हिरासत से जाने का डर रहता हैं। चिली, म्यांमार, पुर्तगाल, घाना आदि देशों में प्रायः यही देखने को मिलता है। लोकतन्त्र में व्यक्ति पिंजरे के पक्षी की भाँति नहीं होता। वह स्वतन्त्रतापूर्वक कार्यों में भाग ले सकता है।
- लोगों को सरकार चलाने का अधिकार – लोकतन्त्र में लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार होता है। यह लोगों की अपनी सरकार होती है क्योंकि वह सरकार लोगों के द्वारा बनाई गई होती है। इस प्रकार की सरकारें लोगों को अधिक प्रिय होती हैं।
- सामाजिक–आर्थिक समानता का सुनिश्चित होना – लोकतन्त्र (प्रजातन्त्र) में सामाजिक-आर्थिक समानता अधिक सुनिश्चित होती है। जो लोग अनेक सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से उत्पीड़ित हो रहे हों, उन्हें प्रजातन्त्र में एक जीवन की किरण नजर आती है जहाँ वे अनेक प्रकार के शोषण से स्वयं को बचा सकते हैं।
प्रश्न 6. किन्हीं चार तरीकों को स्पष्ट कीजिए, जिनमें लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ असमानता और गरीबी को कम करने में समर्थ रही हैं?
अथवा “लोकतांत्रिक व्यवस्था राजनीतिक समानता पर आधारित होती है।” उदाहरणों सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब देश में आर्थिक विकास तेज होता है तो ऐसी स्थिति में राजनीतिक समानता तो कायम रहती है लेकिन आर्थिक समानता कायम नहीं रह पाती। ऐसी स्थिति में सरकार अधिक आय वालों से कर के रूप में रकम वसूल करती है तथा गरीब और मध्यम वर्ग के लिए कई लोककल्याणकारी कार्य करती है।
जैसे- सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, जन-वितरण प्रणाली की दुकान तथा अन्य जन-सुविधाएँ उपलब्ध कराती है जिससे आर्थिक विषमता में कमी आती है।
असमानता और गरीबी कम करने के लिए किए गए उपाय–
(i) गरीबों के लिए जनकल्याण योजनाएँ चलाना।
(ii) बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देना।
(iii) निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना।
(iv) निर्धन वृद्ध व्यक्ति को वृद्धावस्था पेंशन प्रदान करना।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों की गरिमा और आजादी के लिए किस प्रकार प्रयत्नशील है?
उत्तर- व्यक्ति की गरिमा और आजादी के मामले में लोकतांत्रिक व्यवस्था किसी भी अन्य शासन-प्रणाली से काफी आगे है। प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ के लोगों से सम्मान पाना चाहता है। अकसर टकराव तभी पैदा होते हैं जब कुछ लोगों को लगता है कि उनके साथ सम्मान का व्यवहार नहीं किया गया। गरिमा और आजादी की चाह ही लोकतंत्र का आधार है। वैसे लोकतांत्रिक सरकारें सदा नागरिकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करतीं फिर जो समाज लंबे समय गुलाम रहे हैं उनके लिए यह अहसास करना आसान नहीं है कि सभी व्यक्ति समान हैं। दुनिया के अधिकांश समाज पुरुष-प्रधान रहे हैं। महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद यह माना जाने लगा है कि महिलाओं के साथ गरिमा और समानता का व्यवहार लोकतंत्र की जरूरी शर्त है। भारत में स्वतंत्रता के तुरंत बाद महिलाओं को भी पुरुषों के समान दर्जा देते हुए सभी आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार बिना किसी भेदभाव के दिए गए। स्त्रियों की साक्षरता सुधारने के लिए बहुत से स्कूल कॉलेज खोले गए। पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण दिया गया। इस प्रकार महिलाओं की गरिमा के लिए बहुत से काम किए गए। यही बात जातिगत असमानता पर भी लागू होती है। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने कमजोर और भेदभाव का शिकार हुई जातियों के लोगों को समान दर्जे और अवसर के दावे को बल दिया है। आज भी जातिगत भेदभाव और दमन के उदाहरण देखने को मिलते हैं पर इनके पक्ष में कानूनी या नैतिक बल नहीं मिलता। भारत में जातिगत भेदभाव दूर करने के लिए अस्पृश्यता कानून बनाया गया है जिसके द्वारा छुआछूत के व्यवहार का निषेध किया गया है। इसके अत्तिरिक्त सभी जातियों को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार दिए गए हैं और पिछड़ी हुई जातियों को अपना उत्थान करने के, उन्हें और लोगों के बराबर लाने के लिए विशेषाधिकार दिए गए हैं।
इस प्रकार भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने व्यक्ति की गरिमा और आजादी के लिए बहुत प्रयत्न किए है।
प्रश्न 2. लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?
या लोकतांत्रिक शासन प्रणाली से होने वाले कोई चार लाभ लिखिए।
या लोकतंत्र के किन्हीं तीन लाभों का उल्लेख कीजिए
या लोकतंत्र उत्तरदायी, जिम्मेवार एवं वैध शासन क्यों माना जाता है?
या लोकतांत्रिक शासन एक उत्तरदा। शासन होता है। उदाहरणों सहित उत्तर लिखिए।
या लोकतन्त्र एक उत्तरदायी एवं वैध शासन व्यवस्था है। स्पष्ट उल्लेख करें।
उत्तर – लोकतांत्रिक व्यवस्था उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करती है। निम्नलिखित तत्त्वों से इसे समझा जा सकता है-
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव – सभी लोकतांत्रिक देशों में एक निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराए जाते हैं। ये चुनाव निष्पक्ष होते हैं। सभी दल स्वतंत्र रूप से अपने उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं और मतदाता अपनी इच्छानुसार किसी को भी चुन सकते हैं। ये प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं और जनता की इच्छा पर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।
- कानूनों पर खुली चर्चा – लोकतांत्रिक देशों में सरकार जो भी कानून बनाती है वह एक लंची प्रक्रिया के बाद बनता है। उस पर पूरी वहस तथा विचार विमर्श किया जाता है फिर उसे जनता के समक्ष रखा जाता है। इसलिए इस बात की संभावना होती है कि लोग उसके फैसलों को मानेंगे और वे ज्यादा प्रभावी होंगे।
- सूचना का अधिकार – लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को सरकार तथा काम-काज के बारे में जानकारी पाने का अधिकार प्राप्त है। यदि कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फैसले लेने में नियमों का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ जानने का अधिकार है चल्कि उसके पास इसके साधन भी उपलब्ध है।
- जवाबदेह सरकार का गठन – लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक ऐसी सरकार का गठन होता है जो कायदे-कानून को मानती है और लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाने और खुद को उनके प्रति जवाबदेह बनाने वाली कार्यविधि भी विकसित कर लेती है। इस प्रकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था निश्चित रूप से अन्य शासनों से बेहतर है, यह वैध व्यवस्थाप्य वस्था है, इसलिए पूरी दुनिया में लोकतंत्र के विचार के प्रति समर्थन का भाव है।
प्रश्न ३. लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?
या लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है?
उत्तर – लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को संभालती हैं। इससे इन टकरावों के विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है। कोई भी समाज अपने विभिन्न समूहों के बीच के टकरावों को स्थायी तौर पर खत्म नहीं कर सकता। इनके बीच बातचीत से सामंजस्य बैठाने का तरीका विकसित कर सकते हैं। सामाजिक अंतर, विभाजन और टकरावों को सँभालना निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक बड़ा गुण है। इसके लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की दो शर्तों को पूरा करना होता है-
(i) लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान रखना होता है। उनके साथ काम करने की जरूरत होती है तभी सरकार जन-सामान्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर पाती है। बहुमत और अल्पमत की राय कोई स्थायी चीज नहीं होती।
(ii) बहुमत के शासन का अर्थ धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का मतलब होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक प्रत्येक नागरिक को किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का मौका मिलता है।
प्रश्न 4. भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए किन्हीं चार आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए।
या भारत लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक किन्हीं तीन दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक चार दशाएँ निम्नलिखित हैं-
- निष्पक्ष प्रेस – लोकतंत्र की सफलता के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना अति आवश्यक है। प्रेस दलों और पूँजीपतियों से स्वतन्त्र होनी चाहिए, ताकि वह सच्चे समाचार दे सके। स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए आवश्यक है कि प्रेस ईमानदार, निष्पक्ष और संकुचित साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर हो।
- गरीबी का अन्त – लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी का अन्त किया जाये, जनता को भरपेट भोजन मिले और मजदूरों का शोषण न हो तथा समाज में आर्थिक समानता हो।
- राजनीतिक दलों का आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होना – लोकतंत्र की सफलता में राजनीतिक दलों का विशेष हाथ होता है। राजनीतिक दल धर्म व जाति पर आधारित होकर आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिए।
4.नागरिकों का उच्च चरित्र – लोकतंत्र की सफलता के लिए नागरिकों का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। नागरिकों में सामाजिक एकता की भावना होनी चाहिए और उन्हें प्रत्येक समस्या पर राष्ट्रीय हित से सोचना चाहिए। उच्च चरित्र का नागरिक अपना मत नहीं बेचता और न ही झूठी बातों का प्रचार करता है। वह उन्हीं बातों तथा सिद्धान्तों का साथ देता है, जिन्हें वह ठीक समझता है।
UP Board Solution of Class 10 Social Science (Civics) Chapter- 4 राजनीतिक दल (Rajnitik Dal) Notes