UP Board Solution of Class 10 Social Science (Economics) Chapter- 5 उपभोक्ता अधिकार (Upbhokta Adhikar ) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter- 5 उपभोक्ता अधिकार (Upbhokta Adhikar ) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-4: अर्थशास्त्र आर्थिक विकास की समझ   खण्ड-2  के अंतर्गत चैप्टर-5  उपभोक्ता अधिकार पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name  उपभोक्ता अधिकार
Part 3  Economics [अर्थशास्त्र]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

उपभोक्ता अधिकार (Upbhokta Adhikar )

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘उपभोक्ता सुरक्षा परिषदें’ किस प्रकार उपभोक्ताओं की मदद करती हैं? तीन तरीके स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- उपभोक्ता सुरक्षा परिषदें निम्न प्रकार से उपभोक्ताओं की मदद करती हैं- (i) विक्रेताओं या उत्पादकों द्वारा शोषण होने पर उपभोक्ता सुरक्षा परिषद् या उपभोक्ता अदालत, उपभोक्ताओं द्वारा शिकायत करने पर सुनवाई करती है। (ii) उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तन्त्र स्थापित किया गया है। (iii) जिला स्तर के न्यायालय 20 लाख तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करते हैं, राज्यस्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालतें -1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से सम्बन्धित मुकदमों को देखती हैं।

प्रश्न 2. ‘कोपरा’ (COPRA) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर-1986 में भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया। सन् 1986 में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 बनाया गया जो कोपरा के नाम से प्रसिद्ध है। इस अधिनियम के द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए गए। सर्वप्रथम राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत कहते हैं। राज्य स्तर पर इसे राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर इसे जिला मंच कहा जाता है।

इस समय देश में 500 के लगभग जिला उपभोक्ता अदालतें हैं। इन उपभोक्ता अदालतों का काम तेजी से हो इसलिए 1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को 1991 और 1993 में संशोधन करके कानून को और कड़ा बनाया गया है ताकि उपभोक्ताओं की शिकायतों का जल्दी से और बेहतर निपटारा हो सके।

प्रश्न 3. ‘कोपरा’ के अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों का निपटारा कैसे किया जाता है?

उत्तर- ‘कोपरा’ के अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तन्त्र स्थापित किया गया है। जिला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करता है, राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी वाली माँगों से सम्बन्धित केसों को देखती है। यदि कोई केस जिला न्यायालय में खारिज कर दिया जाता है तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है। इस प्रकार इस अधिनियम ने उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालय में प्रस्तुति का अधिकार देकर हमें काफी समर्थ बनाया है।

प्रश्न 4. ‘उपभोक्ता इण्टरनेशनल’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का निर्माण किया, जिसे ‘उपभोक्ता इण्टरनेशनल’ कहते हैं। यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता आन्दोलन का आधार बना। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उपयुक्त तरीके अपनाने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों पर दबाव डालता है। उपभोक्ता इण्टरनेशनल में आज 115 से भी अधिक देशों की 220 संस्थाएँ शामिल हैं।

प्रश्न 5. मानकीकरण से क्या अभिप्राय है? कुछ ऐसे उपायों के नाम बताएँ, जिनका मानकीकरण जरूरी है।

उत्तर – मानकीकरण से अभिप्राय है विभिन्न उत्पादों की गुणवत्ता देखकर उनके लिए मानक या प्रमाण चिह्न निर्धारित करना। जब उपभोक्ता कोई वस्तु खरीदे तो ये प्रमाण-चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित कराने में मदद करते हैं। कुछ उत्पाद जो उपभोक्ता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता हैं, जैसे कि एल.पी.जी. सिलेण्डर्स, खाद्य रंग एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री, सीमेण्ट, बोतलबन्द पेयजल आदि। इनके उत्पादन के लिए यह जरूरी होता है कि उत्पादक इन संगठनों से प्रमाण प्राप्त करें।

प्रश्न 6. उपभोक्ताओं का बाजार में किस प्रकार शोषण होता है? किन्हीं पाँच तथ्यों सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- भानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं का बाज़ार से क्रय करता है उसे उपभोक्ता कहते हैं। दूकानदार जो वस्तुओं का विक्रय करता है, उसे विक्रेता कहते हैं। विक्रेता, क्रेता को अपनी मधुर भाषा से क्रेता को लुभाकर वस्तु का वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य वसूलता है और उसका शोषण करता है। वह क्रेता का निम्न प्रकार से शोषण करता है-

(1) पुरानी तथा घटिया वस्तुओं को नये तथा सुन्दर डिब्बों में पैक करके बेचता है।

(2) लोकल वस्तु को ब्रान्डेड लेबल एवं मार्क लगाकर बेचता है।

(3) वस्तु में उसी के आकार, रंग तथा रूप की निःशुल्क प्राप्त होने वाली अथवा बहुत कम मूल्य से मिलने वाली वस्तु को मिलाकर ऊँचे मूल्य पर बेचता है।

(4) वह वस्तु को बेचते समय विक्रय रसीद न देकर कर (Tax) की चोरी करता है।

(5) त्रुटिपूर्ण तराजू एवं बाटों का प्रयोग करके क्रेता का शोषण करता है।

प्रश्न 7. उपभोक्ता शोषण क्या है? बाजार में उपभोक्ताओं के शोषण की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं? अथवा उपभोक्ता का शोषण रोकने के कोई दो उपाय लिखिए।

उत्तर- उपभोक्ता शोषण उपभोक्ता शोषण उस स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यापारी उपभोक्ता को घटिया वस्तु देते हैं या खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य लेकर उन्हें धोखा देते हैं।

उपभोक्ताशोषण की विधियाँ उपभोक्ता के शोषण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) कम तौलना एवं कम मापना बाज़ार में बेचा गया सामान कभी- कभी सही ढंग से तौला अथवा मापा नहीं जाता।

(ii) वटिवा सामानकभी-कभी उत्पादक एवं व्यापारी उपभोक्ता को घटिया सामान दे देता है। अन्तिम तिथि निकल जाने के पश्चात् भी उपभोक्ताओं को दवाएँ बेचना तथा खराब घरेलू उपकरणों को बेचना ये सभी उपभोक्ता शोषण के अन्तर्गत आते हैं।

(iii) अधिक या भारी कीमतें प्रायः दूकानदार निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक ले लेते हैं।

(iv) नकली चाल असली वस्तुओं व पुर्जों के स्थान पर नकली माल बेच दिया जाता है।

(v) मिलान्ट अशुद्धता अधिक लाभ कमाने के लोभ में महँगे खाद्य-पदार्थों जैसे घी, तेल और मसालों में मिलावट की जाती है।

(vi) कृत्रिम अभाव कभी-कभी व्यापारी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर देते हैं और उन वस्तुओं की जमाखोरी करते हुए उन्हें अधिक व ऊँचे दामों में बेचते हैं।

(vii)झूठी या अधूरी जानकारी व्यापारी वस्तुओं के विषय में झूठी व आधी-अधूरी जानकारी देकर उपभोक्ता को आसानी से धोखे में डाल देते हैं। सौन्दर्य प्रसाधन, दवाइयाँ, विद्युत उपकरण आदि कुछ ऐसे सामान्य उदाहरण हैं जिन्हें खरीदते समय उपभोक्ता कठिनाई का सामना करते हैं।

(viii) विक्रय पश्चात् सेवा की असन्तोषजनक सुविधा बहुत सी महँगी वस्तुओं जैसे-कार तथा बिजली व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बिक्री के बाद भी रख-रखाव की पर्याप्त आवश्यकता पड़ती है। लेकिन भुगतान के पश्चात् व्यापारी ऐसी सेवाओं को असन्तोषजनक ढंग से प्रदान नहीं करते।

प्रश्न 8. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत शिकायत करने की कानूनी विधि समझाइए।

उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत शिकायत करने की कानूनी विधि

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत शिकायत करने की कानूनी विधि में निम्नलिखित चरण शामिल हैं-

(क) अपनी शिकायतों को दूर करवाने के लिए उपभोक्ता जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग को प्रार्थना-पत्र भेज सकता है। अपील करने की कोई फीस नहीं है। उपभोक्ता स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से अपील कर सकता है। वह प्रार्थना-पत्र डाक द्वारा भी भेज सकता है परन्तु सुनवाई के समय उपभोक्ता को स्वयं उपस्थित होना पड़ेगा।

(ख) शिकायत की 5 प्रतियाँ भरनी होती है।

(ग) प्रार्थना-पत्र पर शिकायत करने वाले अथवा अधिकृत प्रतिनिधि के हस्ताक्षर होने चाहिए।

(घ) प्रार्थना-पत्र में निम्नलिखित सूचनायें होनी चाहिए-

(i) सुनवाई का कारण।

(ii) शिकायत का शीर्षक (यदि हो सके।)

(iii) शिकायत करने वाले का नाम, विवरण तथा पता।

(iv) विरोधी दल के विरुद्ध क्या शिकायत है।

(v) विरोधी दल पर लगाए गए आरोपों के दस्तावेजों की प्रतिलिपियाँ।

(vi) प्रार्थना-पत्र के साथ प्रलेखों की हस्ताक्षरित सूची भेजी जानी चाहिए।

(vii) मुआवजे की राशि जिसमें हानि की राशि, शिकायत के खर्चे भी शामिल हों।

(viii) विरोधी दल/दलों के नाम, विवरण तथा पता ताकि उनकी आसानी से पहचान की जा सके।

प्रश्न 9. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की प्रमुख विशेषताएँ लिखें।

उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह अधिनियम सभी वस्तुओं तथा सेवाओं पर लागू होता है।
  2. इसमें सभी क्षेत्रक चाहे वे सार्वजनिक हों, निजी हों या सहकारी हों, आते हैं।
  3. यह उपभोक्ताओं को कई अधिकार प्रदान करता है।
  4. इसने उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने तथा उनको बढ़ाने के लिए केन्द्रीय और राज्यस्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना की है।
  5. इसमें राष्ट्रीय, राज्य और जिले स्तर पर तीन स्तरीय अर्द्ध-न्यायिक मशीनरी की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

प्रश्न 10. मानकीकरण क्या है? भारत में मानकीकरण उत्पाद के लिए दो एजेन्सियों के नाम लिखिए।

उत्तर- मानकीकरण उत्पाद के मानकीकरण के अन्तर्गत सरकार उत्पाद के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करती है। न्यूनतम मानक बनाए रखने के लिए सरकार ने कई संस्थायें बनाई हैं। मानकीकरण के माध्यम से सरकार उपभोक्ताओं को गुणवत्ता की कमी से बचाती है।

दो एजेन्सियों के नाम हैं- (i) बी.आई.एस. तथा (ii) एगमार्क।

                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. उपभोक्ता की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों का वर्णन कीजिए।

या भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मापदंडों को लागू करना चाहिए?

उत्तर- सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं-

  1. कानूनी उपाय उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए भारत सरकार ने सन् 1986 में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम बनाया। इस कानून के द्वारा राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, राज्य स्तर पर इसे राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर इसे जिला मंच कहा जाता है। इस अधिनियम में 1991 और 1993 में संशोधन करके कानून को और कड़ा बनाया गया है ताकि उपभोक्ताओं की शिकायतों का जल्दी और बेहतर निपटारा हो सके।

सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून बनाया जिसे ‘सूचना पाने व अधिकार’ के नाम से जाना जाता है। यह सभी नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

  1. प्रशासनिक उपाय सरकार ने आवश्यक वस्तुओं का वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा करके कालाबाजारी, जमाखोरी तथा मुनाफा वसूली को रोकने का प्रयास किया है जिससे उपभोक्ताओं का शोषण न हो।
  2. तकनीकी उपाय तकनीकी उपाय में सरकार द्वारा विभिन्न वस्तुओं का मानकीकरण करना शामिल है। इसमें विभिन्न चीजों की गुणवत्ता की जाँच करके एगमार्क व आई.एस.आई. की मोहर लगाई जाती है। अब उपभोक्ता के लिए विभिन्न उत्पादों की खरीद के समय इन प्रामाणिक चिह्नों को देखना संभव है।

इस प्रकार सरकार ने तकनीकी, प्रशासनिक तथा कानूनी उपाय अपनाकर उपभोक्ताओं को उत्पादकों, व्यापारियों तथा दुकानदारों के शोषण से बचाने में मदद की है।

प्रश्न 2. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाइए।

या भारत में उपभोक्ता आंदोलन का आरम्भ करने के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या (का वर्णन)कीजिए।

उत्तर- उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवसायों में शामिल होते थे। बाज़ार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह माना जाता था कि एक उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह एक वस्तु या सेवा को खरीदते समय सावधानी बरते। संस्थाओं को लोगों में जागरूकता लाने में भारत और पूरे विश्व में कई वर्ष लग गए। इन्होंने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाल दी। भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के फलस्वरूप हुआ। अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 तक उपभोक्ता संस्थाएँ बड़े पैमाने पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शन का आयोजन करने लगीं। इसके लिए उपभोक्ता दल बनाए गए। भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई।

इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।

प्रश्न ३. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।

या वे कौन-से विभिन्न कारक हैं जिनके द्वारा बाजार में उपभोक्ताओं का शोषण किया जाता है?

या उपभोक्ताओं का शोषण किस प्रकार किया जाता है? उदाहरण देकर समझाइए।

या तीन ऐसे कारकों को बताइए जिसमें उपभोक्ताओं का शोषण होता है।

या उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

या उपभोक्ताओं के शोषण के किन्हीं चार कारणों की समीक्षा कीजिए।

या उपभोक्ता जागरूकता हेतु कोई चार उपाय सुझाइए।

या उन तीन तरीकों की व्याख्या कीजिए जिनके द्वारा उपभोक्ता का बाजार में शोषण किया जाता है।

उत्तर- व्यापारी, दुकानदार और उत्पादक कई तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। अतः उपभोक्ताओं का जागरूक होना अति आवश्यक है। उपभोक्ताओं को शोषित करने के कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं-

  1. घटिया सामान कुछ बेईमान उत्पादक जल्द्री धन एकत्र करने के उद्देश्य से घटिया किस्म का माल बाजार में बेचने लगते हैं। दुकानदार भी ग्राहक को घटिया माल दे देता है क्योंकि ऐसा करने से उसे अधिक लाभ होता है।
  2. कम तोलना या मापना बहुत-से चालाक व लालची दुकानदार ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की चीजें कम तोलकर या कम मापकर उनको ठगने का प्रयत्न करते हैं।
  3. अधिक मूल्य जिन चीजों के ऊपर विक्रय मूल्य नहीं लिखा होता, वहाँ कुछ दुकानदारों का यह प्रयत्न होता है कि ऊँचे दामों पर चीजों को बेचकर अपने लाभ को बढ़ा लें।
  4. मिलावट करना लालची उत्पादक अपने लाभ को बढ़ाने के लिए खाने-पीने की चीजों; जैसे- घी, तेल, मक्खन, मसालों आदि में मिलावट करने से बाज नहीं आते। ऐसे में उपभोक्ताओं को दोहरा नुकसान होता है। एक तो उन्हें घटिया माल की अधिक कीमत देनी पड़ती है दूसरे, उनके स्वास्थ्य को भी नुकसान होता है।
  5. सुरक्षा उपायों की अवहेलना कुछ उत्पादक विभिन्न वस्तुओं को बनाते समय सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। बहुत-सी चीजें हैं जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है; जैसे- प्रेशर कुकर में खराब सेफ्टी वॉल्व के होने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। ऐसे में उत्पादक थोड़े-से लालच के कारण जानलेवा उपकरणों को बेचते हैं।
  6. अधूरी या गलत जानकारी बहुत-से उत्पादक अपने सामान की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पैकेट के ऊपर लिख देते हैं जिससे उपभोक्ता धोखा खाते हैं। जब वे ऐसी चीजों का प्रयोग करते हैं तो उल्टा ही पाते हैं और अपने-आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं।
  7. असंतोषजनक सेवा बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें खरीदने के बाद एक लंबे समय तक सेवाओं की आवश्यकता होती है; जैसे-कूलर, फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्कूटर और कार आदि। परंतु खरीदते समय जो वादे उपभोक्ता से किए जाते हैं, वे खरीदने के बाद पूरे नहीं किए जाते। विक्रेता और उत्पादक एक-दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी डालकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं।
  8. कृत्रिम अभाव लालच में आकर विक्रेता बहुत-सी चीजें होने पर भी उन्हें दबा लेते हैं। इसकी वजह से बाजार में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा हो जाता है। बाद में इसी सामान को ऊँचे दामों पर बेचकर दुकानदार लाभ कमाते हैं। इस प्रकार विभिन्न तरीकों द्वारा उत्पादक, विक्रेता और व्यापारी उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। उक्त कारणों से स्पष्ट है कि उपभोक्ता जागरूकता अति आवश्यक है।

प्रश्न 4. उपभोक्ता के अधिकारों की व्याख्या कीजिए।

या उपभोक्ता के अधिकारों पर एक निबन्ध लिखिए।

या उपभोक्ता के अधिकारों से आप क्या समझते हैं?

या उपभोक्ता के कुल कितने अधिकार होते हैं? सभी अधिकारों के नामों का उल्लेख कीजिए।

या उपभोक्ता के किन्हीं तीन अधिकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- उपभोक्ताओं से सम्बन्धित मुख्य अधिकार निम्नलिखित हैं-

  1. सुरक्षा का अधिकार (i) जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं, तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है क्योंकि ये जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक होते हैं।

(ii) उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और विनियमों का पालन करें।

(iii) ऐसी बहुत-सी वस्तुएँ और सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है।

  1. सूचना का अधिकार उपभोक्ताओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य की मात्रा की गुणवत्ता के बारे में सूचना प्राप्त करें।
  2. चुनने का अधिकार उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि वह वस्तुओं तथा सेवाओं की किस्म तथा उचित मूल्य की जानकारी रखें और यदि एक ही विक्रेता है, तो उपभोक्ता को पूर्ण अधिकार है कि वह इच्छानुसार ठीक मूल्य पर सही वस्तु का चुनाव कर सके।
  3. सुनवाई का अधिकार हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उपभोक्ता के हितों से जुड़ी विभिन्न संस्थाएँ उन्हें यह आश्वासन दें कि उनकी समस्याओं का पूरा ध्यान दिया जाएगा।
  4. शिकायतें निपटाने का अधिकार हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह जब उत्पादकों द्वारा शोषित हो अथवा ठगा जाए तो उनकी शिकायत कर उसके हक में ठीक प्रकार से निपटारा हो।
  5. प्रतिनिधित्व का अधिकार (i) कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रि-स्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है।

(ii) यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में खारिज कर दिया जाता है, तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Economics) Chapter- 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था (Vaishvikaran aur Bhartiya Arthvyavastha) Notes

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