UP Board Solution of Class 10 Social Science (Geography) Chapter- 4 कृषि (Krishi) Notes

UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Geography [भूगोल] Chapter- 4 कृषि (Krishi) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes

प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-2 : भूगोल समकालीन भारत-2   खण्ड-1  के अंतर्गत चैप्टर-4 कृषि पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 10th]
Chapter Name कृषि
Part 3  Geography [भूगोल]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name कृषि

कृषि (Krishi)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में खाद्य उत्पादन में ह्रास के कारण बताइए।

उत्तर – देश में खाद्यात्र फसलों के स्थान पर फलों, सब्जियों, तिलहनों, दलहनों और औद्योगिक फसलों का उत्पादन करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इससे खाद्यान्नों के अंतर्गत कुल बोए गए क्षेत्र में ह्रास का क्रम परिलक्षित हो रहा है। इस प्रवृत्ति के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. कुएँ और नलकूप के सूखने के कारण कुएँ और नलकूप अत्यधिक सिंचाई के कारण सूख गए हैं। इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए।
  2. अपर्याप्त भण्डार सुविधाएँ और बाजार के अभाव के कारणअपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ और बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं। इससे किसानों को खरीद मूल्य कम मिलता है परंतु उन्हें मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं।
  3. गैरकृषि भू उपयोगों के कारण भूमि के गैर कृषि भू-उपयोगों और कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण बोए गए क्षेत्र में कमी आई है।
  4. उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग होने के कारण उर्वरकों, कीटनाशकों के अधिक प्रयोग ने भूमि की उपजाऊ क्षमता को कम किया है।
  5. असक्षम जल प्रबंधन के कारण असक्षम जल प्रबंधन से जलाक्रांतता और लवणता की समस्याएँ खड़ी हो गई हैं।

प्रश्न 2. वाणिज्यिक कृषि से क्या आशय है?

उत्तर – वाणिज्यिक कृषि या बाजार कृषि, कृषि का वह प्रकार है जिसका मुख्य उद्देश्य विपणन है। इसका आशय यह है कि फसल प्रक्रिया से प्राप्त उत्पादों को आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए बिक्री के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।

वाणिज्यिक कृषि का प्रमुख लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है। कृषि के वाणिज्यीकरण का स्तर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। उदाहरणार्थ-हरियाणा और पंजाब में चावल एक वाणिज्यिक फसल है लेकिन ओडिशा में चावल एक जीविका फसल है।

रोपण कृषि में शामिल चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि भी एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि है। इस तरह की कृषि में एक बड़े क्षेत्र में एकल फसल की कृषि की जाती है। रोपण कृषि उद्योग और कृषि के बीच एक अंतरापृष्ठ है। रोपण कृषि बड़े पैमाने पर की जाती है जो अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है। इससे प्राप्त समस्त उत्पादन उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है। भारत में असम और उत्तरी बंगाल में चाय, कर्नाटक में कॉफी प्रमुख रोपण फसल है। चूँकि रोपण कृषि में उत्पादन बिक्री के लिए होता है इसलिए इसके विकास में परिवहन और संचार साधन से सम्बन्धित उद्योग और बाजार महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

प्रश्न 3. ‘ऑपरेशन फ्लड’ क्या है?

उत्तर – दुग्ध क्रांति का ऑपरेशन फ्लड भारत में दुग्ध की कमी को दूर करने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है। इसे श्वेत क्रान्ति भी कहते हैं। 13 जनवरी, 1970 को इस योजना की शुरुआत हुई। राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड देश के दूध उत्पादकों को 700 से अधिक शहरों और नगरों के उपभोक्ताओं से जोड़ता है। ऑपरेशन फ्लड की आधारशिला ‘ग्राम दुग्ध सहकारी समितियाँ’ हैं। ये समितियाँ उत्पादकों से दूध खरीदती हैं। ऑपरेशन फ्लड के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं-

(i) दूध उत्पादन में वृद्धि।

(ii) ग्रामीण क्षेत्र की आय में वृद्धि

(iii) उपभोक्ताओं को उचित दाम पर दूध उपलब्ध कराना

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-

(i) एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का विवरण दें।

(ii) भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दें।

(iii) सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ।

(iv) दिन-प्रतिदिन कृषि के अन्तर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?

उत्तर – (i) चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ वाली फसल है। चाय के लिए उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु, ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मृदा और सुगम जल निकास वाले ढलवाँ क्षेत्रों में उगायी जाने वाली फसल है। इसके लिए पूरे वर्ष कोष्ण, नम एवं पालारहित जलवायु की आवश्यकता होती है। वर्ष भर समान रूप से होने वाली वर्षा चाय की पत्तियों के विकास हेतु उपयुक्त होती है। इसके लिए वार्षिक वर्षा 150 सेमी से 200 सेमी तथा तापमान 20 डिग्री से 30 डिग्री के मध्य होना चाहिए।

(ii) गेहूँ भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है। गेहूँ की कृषि भारत के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भागों में की जाती है। उत्तर-पश्चिम में गंगा-सतलज का मैदान और दक्कन का काली मृदा वाला क्षेत्र देश के दो प्रमुख गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश देश के प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य हैं।

(iii) सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों का विवरण इस प्रकार है- (1) जोतों की चकबन्दी, (2) खाद्यान्नों की अधिक उपज देने वाले बीजों से हरित क्रान्ति, (3) जमींदारी प्रथा का अन्त और चकबन्दी, (4) किसानों को फसल बीमा के माध्यम से बाढ़, चक्रवात, आग, बीमारी आदि से होने वाली हानियों से सुरक्षा कवच प्रदान करना, (5) किसानों को ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों के माध्यम से कम ब्याज दर पर ऋण का प्रावधान, (6) किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना के माध्यम से किसानों के हित का संरक्षण, (7) सरकार द्वारा किसानों की उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करना, (8) आकाश वाणी एवं दूरदर्शन के चैनलों के माध्यम से कृषि के वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित ज्ञानप्रद कार्यक्रमों का प्रसारण, (9) सरकार द्वारा स्वायल कार्ड जारी कर भूमि का परीक्षण कराया जाता है और उन्हें इस बात की जानकारी दी जाती है कि उन्हें अपनी जमीन में किस उर्वरक का और कितनी मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। (iv) कृषि भूमि के दिन-प्रतिदिन घटने के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं-

  1. खाद्यान्न का अभाव भारत में निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि भूमि में कमी आयी है। देश वर्तमान में अधिक से अधिक खाद्यान्न अभाव की ओर जा सकता है।
  2. कच्चे माल की समस्या पैदा होना इससे देश को खाद्यान्न की समस्या और कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल की समस्या हो सकती है।
  3. कृषि उत्पादों की मात्रा में वृद्धि होना ऐसी स्थिति में भारत को विदेश से खाद्यान्न का आयात करना पड़ सकता है। कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हो जाएगी।
  4. किसानों का निर्धन होना कृषि भूमि के घटने से किसानों में निर्धनता बढ़ेगी। ऐसे में यदि जनसंख्या को नियन्त्रित करने का प्रयास नहीं किया जाएगा तो समस्या अत्यन्त विकट हो जाएगी।

प्रश्न 5. व्यापारिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए कुछ सुझाव दीजिए।

उत्तर- 1. कृषि में आधुनिक तकनीक का प्रयोग। (2) खेतों को विखंडन होने से बचाना तथा चकबंदी कर खेतों का आकार बड़ा करना। (3) किसानों को अपनी फसलों का निर्यात स्वयं करने का अधिकार दिया जाना। (4) विकसित और परिवर्तित बीजों का प्रयोग। (5) फसलों के लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था करना। (6) सरकार द्वारा वाणिज्यिक कृषि करने वाले किसानों को निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से प्रोत्साहन देना। (7) वाणिज्यिक कृषि करने वाले किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना।

प्रश्न 6. गहन जीविका कृषि से आप क्या समझते हैं? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर – इस प्रकार की कृषि में भूमि पर गहन कृषि की जाती है तथा कृषि उत्पादों की खपत प्रायः कृषक परिवार में ही हो जाती है। जो अधिशेष उपज स्वयं के उपभोग से बच जाती है, उसे ही बेचा जाता है। गहन जीविका कृषि की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. इसमें अत्यधिक पैदावार पाने के लिए किसानों द्वारा जैव रासायनिक उर्वरकों एवं सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता है।
  2. भूस्वामित्व में वंशानुगत अधिकार के कारण जोतों का आकार निरंतर छोटा होता जा रहा है। वैकल्पिक रोजगार के अभाव में किसान सीमित भूमि से अधिक से अधिक उपज प्राप्त करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 7. भूदान आंदोलन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-गाँधी जी की ‘ग्राम स्वराज’ के विचार से प्रभावित विनोबा भावे ने गाँधी जी के मरणोपरांत उनके विचारों को देश में जन-जन तक पहुँचाने के लिए लगभग पूरे देश की पदयात्रा की। इस दौरान जब वे आंध्र प्रदेश के गाँव पोचमपल्ली पहुँचकर वहाँ भाषण दे रहे थे, उसी समय कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण-पोषण के लिए कुछ भूमि माँगी। भावे जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि वे सहकारी खेती करें तो वे भारत सरकार से बात करके उनके लिए जमीन उपलब्ध करवा सकते हैं। इसी समय श्री रामचंद्र रेड्डी नामक धनवान किसान ने अपनी 80 एकड़ भूमि 80 भूमिहीन किसानों को देने की पेशकश की। इस प्रयास को ‘भूदान’ के नाम से जाना गया। इसके बाद भावे जी ने कई यात्राएँ कीं और कुछ बड़े जमींदारों ने उनके विचारों से प्रभावित होकर अपने कई गाँव भूमिहीनों में बाँटने की पेशकश की जिसे ‘ग्रामदान’ के नाम से जाना गया। इस कार्य में कुछ ऐसे जमींदार भी सम्मिलित थे जिन्होंने भूमि सीमा कानून से बचने के लिए अपनी भूमि का कुछ हिस्सा दान में दिया था। विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए इस भूदान-ग्रामदान आंदोलन को भारत में ‘रक्तहीन क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 8. रबर की कृषि हेतु आवश्यक भौगोलिक दशाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

उत्तर – मूल रूप से भूमध्यरेखीय फसल रबर विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण जलवायु में उगाई जाती है। रंबर की फसल के लिए 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम एवं आर्द्र-जलवायु 200 सेमी से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों में प्रयुक्त होता है। इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारों पहाड़ियों में उगाया जाता है। प्राकृतिक रबड़ के उत्पादन में भारत को विश्व में पाँचवाँ स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 9. कृषि की तीन समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – कृषि की तीन समस्याएँ इस प्रकार हैं-

(i) बढ़ती जनसंख्या धीरे-धीरे खाद्य फसलों की कृषि का स्थान फलों, सब्जियों, तिलहनों और औद्योगिक फसलों की कृषि लेती जा रही है। इससे अनाजों और दालों के अंतर्गत निबल बोया गया क्षेत्र कम होता जा रहा है। भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता खाद्य उत्पादन देश की, भविष्य की खाद्य सुरक्षा पर प्रश्न- चिह्न लगाता है।

(ii) भूमि के आवासन भूमि के आवासन इत्यादि जैसे गैर-कृषि भू-उपयोगों और कृषि की बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्द्धा के कारण बोए गए निबल क्षेत्र में कमी आयी है।

(iii) रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का अत्यधिक प्रयोगरासायनिक उर्वरक, पीडकनाशी और कीटनाशी, जिन्होंने कमी नाटकीय परिणाम प्रस्तुत किए गए थे, को अब मिट्टी के निम्नीकरण का दोषी माना जा रहा है।

प्रश्न 10. भारतीय कृषि की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर – भारतीय कृषि की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(i) उर्वरकों और रासायनिक खाद का प्रयोग न करने के कारण भूमि की उत्पादकता कम तथा फसल उत्पादन भी कम होता है।

(ii) भारतीय कृषि प्रायः मानसूनी वर्षा, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता तथा अन्य पर्यावरणीय तत्त्वों पर निर्भर करती है।

(iii) भारत के लोगों का जीवन स्तर निम्न होने के कारण ये लोग आधुनिक कृषि नहीं कर सकते। इनके कृषि उपकरण भी पुरानी प्रकृति के हैं। ये लोग धन कमाने के लिए कृषि नहीं करते बल्कि अपने और अपने परिवार की उदरपूर्ति के लिए कृषि करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में पाए जाने वाले मोटे अनाजों का वर्णन कीजिए। इन अनाजों के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ बताइए।

उत्तर – ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है।

ज्वार क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। महाराष्ट्र राज्य इस फसल का सबसे बड़ा उत्पादक है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश इसके अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

बाजरा यह बलुआ और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। राजस्थान बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

रागी यह शुष्क प्रदेशों की फसल है। यह लाल, काली, बलुआ दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगायी जाती है। कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, झारखंड में भी यह महत्त्वपूर्ण फसल है।

मक्का यह खाद्यान्न व चारा दोनों रूपों में प्रयोग होती है। यह एक खरीफ की फसल है जो 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान में और पुरानी जलोढ़ मिट्टी पर अच्छी प्रकार से उगायी जाती है। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

प्रश्न 2. भारतीय कृषि ने खाद्य उत्पादन में घटती प्रवृत्ति क्यों प्रारंभ कर दी है?

या कृषि की तीन प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

या भारत में कृषि क्षेत्र की समस्याएँ लिखिए।

या कृषि क्षेत्र की तीन प्रमुख समस्याओं के नाम लिखिए।

उत्तर – भारत में हजारों वर्षों से कृषि की जा रही है, परंतु प्रौद्योगिकी और संस्थागत परिवर्तन के अभाव में लगातार भूमि संसांधन के प्रयोग से कृषि का विकास अवरुद्ध हो जाता है। भारत में कृषि के पिछड़ेपन के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-

  1. भूमि की उपजाऊ शक्ति का ह्रास भारत की कृषि भूमि पर हजारों वर्षों से खेती की जा रही है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है। अधिक रसायनों तथा उर्वरकों का प्रयोग करने से भी भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है।
  2. मृदा अपरदन भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का एक अन्य बड़ा कारण मृदा अपरदन है। पेड़ों को काटने, पशुओं द्वारा अतिचराई से पानी तथा हवा के तेज बहाव के कारण मृदा अपरदन तेजी से होता है जिससे भूमि खेती के योग्य नहीं रहती।
  3. खेती के पुराने उपकरण तथा ढंग देश के कई भागों में किसान अभी भी पुराने उपकरणों से खेती करता है जिससे कम उत्पादन होता है। अभी भी किसान मानसून और भूमि की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करता है।
  4. खेतों का छोटा आकार भारत में अभी भी किसान गरीब है। उसके खेतों का आकार छोटा है तथा उत्तराधिकार कानून के अनुसार खेतों का आकार और भी छोटा हो जाता है जिससे खेत आर्थिक रूप से अलाभकारी हो जाते हैं।
  5. सिंचाई सुविधाजा का अभाव जल की कमी के कारण सिंचाई क्षेत्र में कमी आई है। भूमिगत जल के भण्डार में कमी आती जा रही है। परिणामस्वरूप कई कुएँ और नलकूप सूख गए हैं इससे सीमांत और छोटे किसान कृषि छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं।
  6. अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ तथा बाजार के अभाव में भी किसान हतोत्साहित होते हैं। इस प्रकार किसान दोहरा नुकसान उठाते हैं। एक तो कृषि लागतों के लिए अधिक दाम देने पड़ते हैं तथा दूसरी ओर खरीद मूल्य बढ़ाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। किसानों की पैदावार एक साथ मंडी में पहुँचती है जिसके कारण खरीद मूल्य कम मिलता है।

आज भारतीय कृषि दोराहे पर है। भारतीय कृषि को सक्षम और लाभदायक बनाना है तो सीमांत और छोटे किसानों की स्थिति सुधारने पर जोर देना होगा। भारत में जलवायु विभिन्नता का विभिन्न प्रकार की कीमती फसलें उगाकर उपयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 3. कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।

उत्तर – भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश के 60 प्रतिशत से भी अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ संस्थागत तथा प्रौद्योगिक सुधार किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किसानों के लिए जमींदारी प्रथा एक अभिशाप थी। इसलिए सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करके भूमिहीन काश्तकारों को जमीन का मालिकाना हक दे दिया तथा जोतों की अधिकतम सीमा निश्चित कर दी गई।

(ii) खेतों की चकबंदी पहले किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जो आर्थिक रूप से गैर-लाभकारी होते थे इसलिए छोटे खेतों की चकबंदी कर दी गई।

(iii) हरित क्रांति सरकार ने किसानों को अधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध करवाये जिससे कृषि विशेषकर गेहूँ की कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इसे ‘हरित क्रांति’ का नाम दिया गया।

(iv) प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण किसानों को पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए कई छोटी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की गईं।

(v) फसल बीमा फसलें प्रायः सूखा, बाढ़, आग आदि के कारण नष्ट हो जाती थीं जिससे किसानों को बहुत हानि उठानी पड़ती थी। इन आपदाओं से बचने के लिए फसल बीमा योजना शुरू की गई। इसके द्वारा फसल नष्ट हो जाने पर किसानों को पूरा मुआवजा मिलने लगा जिससे उसे सुरक्षा प्राप्त हुई।

(vi) सरकारी संस्थाएँ किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना की गई। ये संस्थाएँ किसानों को महाजनों के चंगुल से बचाती हैं। रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा मौसम की जानकारी तथा कृषि संबंधी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

(vii) किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना शुरू की है।

(viii) किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य और कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की सरकार घोषणा करती है।

(ix) खेती में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया जाने लगा। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई।

(x) भारतीय कृषि में सुधार के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिससे कृषि के उत्पादन में वृद्धि हो सके।

प्रश्न 4. भारत की मुख्य फसलों पर एक टिप्पणी लिखिए।

या भारत में पायी जाने वाली मुख्य फसलों पर एक लेख लिखिए।

या गेहूँ की खेती के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ बताइए।

उत्तर- भारत की मुख्य फसलें- भारत में खाद्य अथवा गैर-खाद्य फसलों के उत्पादन में विविधता का कारण देश की मृदा, जलवायु तथा कृषि पद्धति में अंतर का होना है। भारत में उत्पादित की जाने वाली महत्त्वपूर्ण फसलें चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, कपास तथा जूट हैं।

चावल चावल भारत की अधिकांश जनसंख्या का प्रमुख ‘खाद्यान्न’ है। चावल एक खरीफ फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान (25℃ से ऊपर) तथा अधिक आर्द्रता (100 सेमी से अधिक वर्षा) अनिवार्य होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सिंचाई की बेहतर सुविधा उपलब्ध करा करके चावल की खेती की जा सकती है। भारत में चावल उत्तर तथा उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र, तटीय क्षेत्र तथा डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नहरों की वृहद् संरचना तथा नलकूपों से सिंचाई की व्यवस्था के कारण पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चावल की खेती की जा रही है। पश्चिमी राजस्थान में भी कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई सुविधा के साथ चावल की खेती की जाती है।

गेहूँ गेहूँ भारत की दूसरी प्रमुख खाद्यान्न फसल है। यह देश के उत्तर तथा उत्तर-पश्चिमी हिस्से में उत्पादित की जाती है। गेहूँ एक रबी फसल है जिसे उगाने के लिए शीत ऋतु तथा पकने के समय खिली धूप का होना अनिवार्य है। गेहूँ की फसल को 50 से 75 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में आसानी से उगाया जा सकता है। देश में गेहूँ उगाने वाले दो प्रमुख क्षेत्र हैं- 1. उत्तर-पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान तथा 2. दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार गेहूँ उत्पादित करने वाले प्रमुख राज्य हैं।

मोटे अनाज दीर्घ उत्तरीय प्रश्न में प्रश्न 1 का उत्तर देखें।

दलहन भारत, विश्व में दालें का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है। शाकाहारी भोजन में दाल सर्वाधिक प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ है। तुअर (अरहर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर तथा चना भारत में उत्पादित होने वाली प्रमुख दलहनी फसलें हैं।

दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है, इन्हें शुष्क परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। फलीदार होने के कारण अरहर को छोड़कर अन्य दलहनी फसलें वायुमण्डल से नाइट्रोजन ग्रहण कर मृदा की उर्वरता को बनाए रखने का कार्य करती हैं। इस कारण दलहनी फसलों को अन्य फसलों के चक्रण (Rotation) में बोया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

गन्ना लघु उत्तरीय प्रश्न में प्रश्न 3 का उत्तर देखें।

तिलहन भारत में नौ प्रकार की तिलहन फसलें उत्पादित की जाती हैं, ये हैं- मूँगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरण्डी, बिनौला, अलसी तथा सूरजमुखी। इनमें से अधिकांश खाद्य तेल का उत्पादन करने वाली फसलें हैं, किन्तु कुछ फसलों से बनाए गए तेल का उपयोग साबुन, प्रसाधन सामग्री (श्रृंगार का सामान) तथा उबटन उद्योग इत्यादि में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है।

मूँगफली खरीफ फसल है। देश में कुल तिलहन उत्पादन का 50% मूँगफली से प्राप्त होता है। गुजरात इसका प्रमुख उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र मूँगफली के अन्य मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

अलसी और सरसों रबी की फसलें हैं। तिल उत्तर भारत में खरीफ मौसम में उत्पादित होता है जबकि दक्षिण भारत में यह रबी मौसम में उगाया जाता है। अरण्डी खरीफ और रबी दोनों की ही फसल है।

चाय रोपण कृषि में चाय एक महत्त्वपूर्ण फसल का उदाहरण है। भारत में पिय पदार्थ के रूप में यह अत्यधिक लोकप्रिय है। इसकी शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई। अंग्रेजों द्वारा भारत में पहला चाय बागान वर्ष 1837 में असम में स्थापित किया गया।

चाय को उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में उत्पादित किया जाता है। ह्यूमस तथा जीवांश युक्त मिट्टी में इसका उत्पादन होता है। सुगम जल निकास के लिए ढाल युक्त क्षेत्रों में यह उगायी जाती है। भारत में चाय के मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में असम, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग तथा जलपाईगुड़ी की पहाड़ियाँ तमिलनाडु और केरल प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, आन्ध्र प्रदेश तथा त्रिपुरा में भी चाय उगायी जाती है।

कॉफी भारतीय कॉफी अपनी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। हमारे देश में अरेबिका किस्म की कॉफी अधिक उत्पादित की जाती है। अरेबिका किस्म की कॉफी यमन से लाई गई थी। इसकी वैश्विक बाजार में अधिक माँग है। कॉफी की खेती बाबा बूदन की पहाड़ियों में आरंभ हुई थी। नीलगिरि की पहाड़ियों के निकट कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु का क्षेत्र कॉफी उत्पादन के लिए अधिक श्रेष्ठ हैं।

कपास जूट लघु उत्तरीय प्रश्न में प्रश्न 4 का उत्तर देखें।

 

UP Board Solution of Class 10 Social Science (Geography) Chapter- 3 जल संसाधन (Jal Sansaadhan) Notes

error: Copyright Content !!
Scroll to Top