UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Geography [भूगोल] Chapter- 6 विनिर्माण उद्योग (Vinirman Udhyog) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-2 : भूगोल समकालीन भारत-2 खण्ड-2 के अंतर्गत चैप्टर-6 विनिर्माण उद्योग पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | विनिर्माण उद्योग |
Part 3 | Geography [भूगोल] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | विनिर्माण उद्योग |
विनिर्माण उद्योग (Vinirman Udhyog)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लोहा और इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है-
(i) सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं।
(ii) विविध प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन, वैज्ञानिक उपकरण इस पर आधारित हैं।
(iii) विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के लिए भी इस्पात की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2. उद्योग वायु को किस प्रकार प्रदूषित करते हैं? प्रदूषण के बुरे प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उद्योगों द्वारा अधिक अनुपात में अंनचाही गैसों की उपस्थिति; जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण के कारण हैं। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों में ठोस व द्रवीय दोनों ही प्रकार के कण होते हैं; जैसे- धूल, स्प्रे, कुहासा तथा धुआँ। रसायन व कागज उद्योग, ईंटों के भट्ठे, तेल-शोधनशालाएँ, प्रगलन उद्योग, जीवाश्म ईंधन दहन तथा छोटे-बड़े कारखाने धुआँ निष्कासित करते हैं।
प्रदूषण के बुरे प्रभाव – वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य, पशुओं, पौधों, इमारतों तथा पूरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
प्रश्न 3. प्रारंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात की कपास उत्पादक पेटी में क्यों संकेंद्रित था? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रारंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास उत्पादक क्षेत्रों तक सीमित थे। इसके निम्न कारण थे-
(i) महाराष्ट्र और गुजरात में मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, नासिक, बड़ौदा, पुणे जैसे कई बड़े महानगर हैं जहाँ पर सूती वस्त्र की खपत काफी आसानी से हो जाती है।
(ii) समुद्र के निकटता के कारण सूती धागों में नमी बनी रहती है।
(iii) महाराष्ट्र और गुजरात में कई छोटे-बड़े बंदरगाह हैं, जहाँ से निर्मित वस्त्र विदेशों में भेजे जाते हैं।
प्रश्न 4. “कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस कथन का तीन उदाहरणों सहित विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं-
उद्योगों द्वारा कई कृषि यंत्रों को निर्मित किया जाता है; जैसे- ट्रैक्टर, ट्यूबवैल, कीटनाशक दवा, रासायनिक खाद, थ्रेसर मशीन तथा अन्य कृषि यंत्रों का निर्माण उद्योगों द्वारा होता है। इसी तरह से कृषि द्वारा कई उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पादित किया जाता है; जैसे- चीनी उद्योग के लिए गन्ना, सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास, ऊनी वस्त्र के लिए ऊन, रेशमी वस्त्र के लिए रेशम, जूट उद्योग के लिए पटसन, रबड़ उद्योग के लिए रबड़, कागज उद्योग के लिए बाँस और घास प्रमुख हैं।
प्रश्न 5. भारत की अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं? इसके चार प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर- भारत की अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में स्थित होने के कारण अग्रलिखित हैं-
(i) पश्चिम बंगाल में पटसन बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।
(ii) इस उद्योग में पानी की बहुत आवश्यकता होती है जो हुगली नदी से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।
(ii) इस उद्योग के लिए अधिक और सस्ते श्रमिक ओडिशा और बिहार के प्रांतों से खूब मिल जाते हैं।
(iv) तैयार माल को बेचने के लिए कोलकाता बंदरगाह उपयोगी है।
(v) कोलकाता एक बड़े नगरीय केंद्र के रूप में बैंकिंग, बीमा कंपनियों की सुविधाएँ प्रदान करता है।
(vi) कच्चे माल को मिलों तक ले जाने के लिए सस्ता जल, सड़क, रेल परिवहन का जाल होना।
प्रश्न 6. भारत में चीनी उद्योग के सामने प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर- भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। चीनी मिलों का 60 प्रतिशत उत्तर प्रदेश तथा बिहार में है। इस उद्योग के सामने कुछ चुनौतियाँ इस प्रकार हैं-
(i) यह उद्योग मौसमी है। यह अल्पकालिक होता है।
(ii) इस उद्योग में अभी भी पुरानी व असक्षम तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
(iii) परिवहन असक्षमता के कारण गन्ना सही समय पर कारखानों में नहीं पहुँच पाता तथा खोई का अधिकतम इस्तेमाल नहीं हो पाता।
प्रश्न 7. पर्यावरणीय निम्नीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- पर्यावरणीय निम्नीकरण. से अभिप्राय पर्यावरण के विभिन्न घटकों; यथा- मृदा, वायु, जल तथा जैवविविधता के वास्तविक गुणों एवं विशेषताओं में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन से है। प्रकृति में सामान्य परिस्थितियों में निम्नीकरण एवं निर्माणकारी प्रक्रियाएँ एक चक्रीय रूप में घटित होती हैं; एवं इनमें सन्तुलन की स्थिति बनी रहती है। परन्तु वर्तमान में इस तकनीकी प्रधान एवं वैश्वीकृत युग में मानवीय गतिविधियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन से यह चक्र असन्तुलित हो रहा है। भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की तीव्र दर तथा उपभोक्तावादी संस्कृति ने निम्नीकरण की दर को तीव्र कर दिया है जिसका परिणाम पर्यावरण असन्तुलन के रूप में सामने आ रहा है।
प्रश्न 8. आधारभूत उद्योग क्या है? उदाहरण देकर बताइए।
उत्तर- वे उद्योग जो केवल अपने लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि बहुत-से उद्योग इन उद्योगों पर निर्भर करते हैं। इसलिए ये महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसे उद्योगों को आधारभूत उद्योग कहते हैं; जैसे- लोहा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग हैं, क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं। विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन, वैज्ञानिक उपकरण और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 9. सूती कपड़ा मिलें समस्त भारत में क्यों फैली हुई हैं?
उत्तर- सूती कपड़ा मिलों के समस्त भारत में फैलने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(i) सूती कपड़ा उद्योग के लिए जिन आवश्यक कारकों; जैसे – परिवहन के साधनों, बिजली और बैंकिंग सुविधाएँ आदि की आवश्यकता होती हैं वे भारत के अनेक भागों में उपलब्ध हैं।
(ii) सूती कपड़ा उद्योग भारत का सबसे प्राचीन उद्योग है। ग्रामीण क्षेत्रों में हथकरघा उद्योग फल-फूल रहा है जबकि शहरी क्षेत्रों में अनेक कपड़ा मिलें हैं जो दिन-रातं चलती रहती हैं।
(iii) सूती कपड़ा उद्योग में मजदूरों की एक बड़ी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। भारत के विभिन्न भागों में मजदूर, कारीगर आसानी से मिल जाते हैं इसलिए सूती वस्त्र की मिलें सारे भारत में देखने को मिलती हैं।
प्रश्न 10. विनिर्माण क्या है?
उत्तर- कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को वस्तु निर्माण या विनिर्माण कहते हैं; जैसे- लकड़ी से कागज बनाना, गन्ने से चीनी बनाना तथा लौह अयस्क से लोहा इस्पात संयंत्र लगाना आदि। विनिर्माण उद्योग किसी भी देश के विकास की रीढ़ माने जाते हैं, क्योंकि ये कृषि के आधुनिकीकरण के साथ-साथ अन्य उद्योगों के विकास में भी सहायक होते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. उद्योगों के वर्गीकरण को समझाइए।
या उद्योगों का एक संक्षिप्त वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए। या स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर- उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
प्रयुक्त कच्चे माल के स्त्रोत के आधार पर–
- कृषि आधारित – सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, काफी तथा वनस्पति तेल उद्योग।
- खनिज आधारित – लोहा और इस्पात, सीमेंट, ऐलुमिनियम, मशीन, औजार तथा पेट्रोरसायन उद्योग।
प्रमुख भूमिका के आधार पर–
- आधारभूत उद्योग – जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर हैं; जैसे-लोहा-इस्पात, ताँबा प्रगलन व ऐलुमिनियम प्रगलन उद्योग।
- उपभोक्ता उद्योग – जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं; जैसे-चीनी, दंतमंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।
पूँजी निवेश के आधार पर–
एक लघु उद्योग को परिसंपत्ति की एक इकाई पर अधिकतम निवेश मूल्य के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया जाता है। यह निवेश सीमा, समय के साथ परिवर्तित होती रहती है। अधिकतम स्वीकार्य निवेश के आधार पर की जाती है। यह निवेश मूल्य समय के साथ बदला गया है। वर्तमान में अधिकतम निवेश एक करोड़ रुपये तक स्वीकार्य है।
स्वामित्व के आधार पर–
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग – वे उद्योग जिनका स्वामित्व राज्य सरकार या केंद्रीय सरकार के किसी संगठन के पास होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं; जैसे- भारतीय रेल, लोहा-इस्पात उद्योग आदि। ऐसे उद्योगों में लाभ तथा हानि सरकार की होती है। इन उद्योगों पर सभी सरकारी कानून लागू होते हैं।
- निजी क्षेत्र के उद्योग – वे उद्योग जिनका स्वामित्व एवं प्रबंध एक व्यक्ति, कुछ व्यक्तियों अथवा फर्मों या कंपनियों के पास होता है, उन्हें निजी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं। इसमें होने वाला लाभ तथा हानि निजी व्यक्तियों का होता है; जैसे-टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि।
- संयुक्त उद्योग – ऐसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाए जाते हैं, संयुक्त उद्योग कहलाते हैं; जैसे- ऑयल इंडिया लिमिटेड आदि।
- सहकारी उद्योग – वे उद्योग जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों, श्रमिकों या दोनों के हाथों में होता है। संसाधनों का कोष संयुक्त होता है तथा लाभ-हानि का विभाजन भी आनुपातिक होता है। ऐसे उद्योग सहकारी उद्योग कहलाते हैं; जैसे- महाराष्ट्र के चीनी उद्योग तथा केरल के नारियल उद्योग आदि इसके उदाहरण हैं।
कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर–
- भारी उद्योग; जैसे- लोहा तथा इस्पात आदि।
- हल्के उद्योग जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं; जैसे- विद्युतीय उद्योग।
प्रश्न 2. उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
या पर्यावरण प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? उद्योग हमारे पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
या उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं? किन्हीं चार प्रकार के प्रदूषण का उल्लेख कीजिए।
या पर्यावरणीय प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? उद्योगों से भारत के पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- पर्यावरणीय प्रदूषण – हमारी वायु, भूमि तथा जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछित परिवर्तन, पर्यावरणीय प्रदूषण कहलाता है। वे पदार्थ अथवा कारक जिनके कारण यह परिवर्तन उत्पन्न होता है, प्रदूषक कहलाते हैं।
उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उद्योगों ने बहुत-से लोगों को काम दिया है और राष्ट्रीय आय में वृद्धि की है तथापि इनके द्वारा बढ़ते भूमि, वायु, जल तथा पर्यावरण प्रदूषण को भी नकारा नहीं जा सकता। उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं- 1. वायु, 2. जल, 3. भूमि, 4. ध्वनि ।
- वायु प्रदूषण – अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति; जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण के कारण हैं। रसायन व कागज उद्योग, ईंटों के भट्ट, तेल शोधन शालाएँ, प्रगलन उद्योग, जीवाश्म ईंधन दहन तथा छोटे-बड़े कारखाने प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करते हुए धुआँ निष्कासित करते हैं। इसका बहुत भयानक तथा दूरगामी प्रभाव हो सकता है। वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य, पशुओं, पौधों, इमारतों तथा पूरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
- जल प्रदूषण – उद्योगों द्वारा कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण के मुख्य कारक कागज, लुगदी, रसायन, वस्त्र एवं रँगाई उद्योग, तेलशोधनशालाएँ, चमड़ा उद्योग हैं जो रंग, अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ; जैसे- सीसा, पारा, उर्वरक, कार्बन तथा रबर सहित कृत्रिम रसायन जल में वाहित करते हैं। इसकी वजह से पानी किसी काम के योग्य नहीं रहता तथा उसमें पनपने वाले जीव भी खतरे में पड़ जाते हैं।
- भूमि का क्षरण – कारखानों से निकलने वाले विषैले द्रव्य पदार्थ और धातुयुक्त कूड़ा-कचरा भूमि और मिट्टी को भी प्रदूषित किए बिना नहीं छोड़ते हैं। जब ऐसा विषैला पानी किसी भी स्थान पर बहुत समय तक खड़ा रहता है तो वह भूमि के क्षरण का एक बड़ा कारण सिद्ध होता है।
- ध्वनि प्रदूषण – औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यांत्रिकी तथा विद्युत ड्रिल ध्वनि प्रदूषण को फैलाते हैं। ध्वनि प्रदूषण से श्रवण असक्षमता, हृदय गति, रक्तचाप आदि बीमारियाँ फैलती हैं।
औद्योगिक बस्तियों का पर्यावरण पर प्रभाव – औद्योगिक क्रांति के कारण गंदी औद्योगिक बस्तियों का निर्माण हो जाता है जिससे सारा इलाका एक गंदी बस्ती में बदल जाता है। चारों तरफ प्रदूषण फैल जाता है और कई प्रकार की महामारियाँ फैल जाती हैं।
प्रश्न ३. भारत के आर्थिक विकास में खनिज-आधारित उद्योगों के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर- लोहा और इस्पात, सीमेंट, ऐलुमिनियम, मशीन, औजार तथा पेट्रो-रसायन आदि भारत के खनिज आधारित उद्योग हैं। इन उद्योगों का भारत के आर्थिक विकास में अग्रलिखित योगदान है –
(i) रोजगार – ये उद्योग कुशल तथा अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार का एक प्रमुख साधन हैं।
(ii) बड़े पैमाने और छोटे पैमाने के उद्योग – इन उद्योगों में बड़े और छोटे पैमाने दोनों की विनिर्माण इकाइयाँ होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं।
(iii) भूमि पर दबाव की कमी – ये उद्योग श्रमिकों को रोजगार देकर भूमि पर दबाव को कम करते हैं।
(iv) कृषि का विकास – ये उद्योग कृषि के विकास में सहायक होते हैं। उदाहरणतः लोहा और इस्पात उद्योग कृषि सम्बन्धी क्षेत्रों का निर्माण करता है जबकि रसायन उद्योग कीटनाशकों की आपूर्ति करता है।
(v) विदेशी मुद्रा का अर्जन – इन उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों के निर्यात से भारंत विदेशी मुद्रा का अर्जन करता है।