UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 4 -Gillu – गिल्लू (महादेवी वर्मा) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी गद्य खण्ड के पाठ 4 गिल्लू का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर गिल्लू सम्पूर्ण पाठ के साथ महादेवी वर्मा का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात गद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।
Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Prose Section Chapter 4 Gillu. Here, along with the complete text, biography and works of Mahadevi Verma, passage based quiz i.e. solution of the passage and practice questions are being given.
Chapter Name | Gillu – गिल्लू (महादेवी वर्मा) Mahadevi Verma |
Class | 9th |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जीवन परिचय,गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,गद्यांशो का हल(Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary) |
जीवन परिचय
महादेवी वर्मा
स्मरणीय तथ्य
जन्म | सन् 1907 ई०। |
जन्म–स्थान | फर्रुखाबाद। |
पिता | गोविन्दप्रसाद वर्मा। |
माता | श्रीमती हेमरानी। |
शिक्षा | एम० ए० । |
पति | रूपनारायण किन्तु परित्यक्ता। |
अन्य बातें | ‘चाँद’ पत्र का सम्पादन, ‘साहित्य संसद्’ की स्थापना। |
काव्यगत विशेषताएँ | छायावादी, रहस्यवादी रचनाएँ, वेदना की प्रधानता। |
मृत्यु | सन् 1987 ई० |
जीवन–परिचय
श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद जिले के एक सम्पन्न कायस्थ परिवार में सन् 1907 ई० में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० करने के पश्चात् ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। तब से अन्त तक इसी पद पर कार्य किया। बीच में कुछ वर्षों तक आपने ‘चाँद‘ नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया था। इन्हें ‘सेकसरिया‘ एवं ‘मंगलाप्रसाद पुरस्कार‘ भी प्राप्त हो चुके हैं। इनकी विद्वता पर भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण‘ की उपाधि से अलंकृत किया है। ये उत्तर प्रदेश विज्ञान परिषद् की सम्मानित सदस्या भी रह चुकी हैं। सन् 1987 में इनका देहावसान हो गया था।
कृतियाँ
महादेवी जी का कृतित्व गुणात्मक दृष्टि से तो अति समृद्ध है ही, परिमाण की दृष्टि से भी कम नहीं है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- क्षणदा’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा निबन्ध’ उनके प्रसिद्ध निबन्ध संग्रह हैं।
- ‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के साथी’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘मेरा परिवार’ उनके संस्मरणों और रेखाचित्रों के संग्रह हैं।
- ‘हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य’ और काव्य-ग्रन्थों की भूमिकाओं तथा फुटकर आलोचनात्मक निबन्धों में उनका सजग आलोचक-रूप व्यक्त हुआ है।
- ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’ आदि उनके कविता संग्रह हैं। ‘चाँद’ और ‘आधुनिक कवि’ का उन्होंने सम्पादन किया।
भाषा–शैली– महादेवी जी की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है। एवं उनकी शैली विवरणात्मक, विवेचनात्मक, आत्मव्यंजक है।
गिल्लू
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। उसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कन्धे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राणी की खोज है।
परन्तु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो।
अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौए एक गमले के चारों ओर चोंचों से छुवा-छुवौवल- जैसा खेल खेल रहे हैं। यह कागभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है-एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित।
हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं, हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधु सन्देश इनके कर्कश स्वर ही में दे देना पड़ता है। दूसरी ओर हम कौआ और काँव-काँव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।
मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की सन्धि में छिपे एक छोटे-से जीव पर मेरी दृष्टि रुक गयी। निकट जाकर देखा, गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है, जो सम्भवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौए जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं।
काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे। अतः वह निश्चेष्ट-सा गमले में चिपटा पड़ा था।
सबने कहा कि कौए की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे ही रहने दिया जाय।
परन्तु मन नहीं माना, उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में ले आयी, फिर रूई से रक्त पोंछकर घावों पर पेन्सिलीन का मरहम लगाया।
रूई की पतली बत्ती दूध में भिगोकर जैसे-तैसे उसके नन्हें-से मुँह में लगायी, पर मुँह खुल न सका और दूध की बूँदें दोनों ओर लुढ़क गयीं।
कई घण्टे के उपचार के उपरान्त उसके मुँह में एक बूंद पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उँगली अपने दो नन्हें पंजों से पकड़कर, नीले काँच की मोतियों-जैसी आँखों से इधर-उधर देखने लगा।
तीन-चार मास में उसके स्निग्ध रोएँ, झब्बेदार पूँछ और चंचल चमकीली आँखें सबको विस्मित करने लगीं।
हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हल्की डलिया में रूई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया।
वही दो वर्ष गिल्लू का घर रहा। वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झूलता और अपनी काँच के मनकों-सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने क्या देखता-समझता रहता था, परन्तु उसकी समझदारी और कार्यकलाप पर सबको आश्चर्य होता था।
जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला।
वह मेरे पैर तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उत्तरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता, जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती।
कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लम्बे लिफाफे में इस प्रकार रख देती कि अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघु गात लिफाफे के भीतर बन्द रहता। इस अद्भुत स्थिति में कभी-कभी घण्टों मेज पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आँखों से मेरा कार्यकलाप देखा करता।
भूख लगने पर चिक-चिक करके मानो वह मुझे सूचना देता और काजू या विस्कुट मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफाफे से बाहरवाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता रहता।
फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम वसन्त आया। नीम-चमेली की गन्ध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लगी। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके न जाने क्या कहने लगीं।
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकते देखकर मुझे लगा कि इसे मुक्त करना आवश्यक है।
मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते और बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी।
आवश्यक कागज-पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बन्द ही रहता है। मेरे कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा। तब से यह नित्य का क्रम हो गया।
मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिनभर गिलहरियों के झुण्ड का नेता बना, हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता।
मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गयी थी। कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में।
मेरे पास बहुत-से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परन्तु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरे थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।
गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया, जहाँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफाई से खाता रहता। काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर यह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बन्द कर देता था या झूले के नीचे फेंक देता था।
उसी चीच मुझे मोटर दुर्घटना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाजा खोला जाता, गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर उसी तेजी से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे काजू दे जाते, परन्तु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात हुआ कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कम खाता रहा।
मेरी अस्वस्थता में वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से ये मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता, न अपने झूले में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठण्डक में भी रहता।
गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन-यात्रा का अन्त आ ही गया। दिनभर उसने न कुछ खाया और न बाहर गया। रात में अन्त की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठण्डे पंजों से मेरी वही उँगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
पंजे इतने ठण्डे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया, परन्तु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया।
उसका झूला उतारकर रख दिया है और खिड़की की जाली बन्द कर दी गयी है, परन्तु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर वसन्त आता ही रहता है।
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गयी इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी इसलिए भी कि लघुगात का, किसी वासन्ती दिन, जुही के पीलाभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास मुझे सन्तोष देता है।
महादेवी वर्मा
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निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
(1) सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। उसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कन्धे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राणी की खोज है।
परन्तु वह तो अब तक इन सौनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो।
अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौए एक गमले के चारों ओर चौंचों से छुवा- छुर्वीवल-जैसा खेल खेल रहे हैं। यह कागभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है-एक साथ समादरित, अनादरित, अप्ति सम्मानित, अति अवमानित।
प्रश्न (1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
उत्तर– सन्दर्भ– प्रस्तुत अवतरण पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य‘ में संकलित एवं महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘गिल्लू‘ नामक पाठ से अवतरित है। महादेवी जी को सोनजुही की लता में एक पीली कली को देखकर गिलहरी के बच्चे ‘गिल्लू’ की याद आ जाती है। लेखिका ने एक कोमल लघुप्राणी (गिलहरी) को प्रकृति का मानवीय संवेदना तथा समता के आधार पर चित्रण किया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर– रेखांकित अंश की व्याख्या– लेखिका कहती है कि सोनजुही की लता में मुझे जो एक पीली कली दिखायी दे रही है, उसको देखकर मुझे एक छोटे-से कोमल प्राणी गिलहरी के बच्चे ‘गिल्लू’ का संस्मरण हो रहा है। जिस प्रकार लताओं के बीच उसकी कली छिपी हुई है, ठीक उसी प्रकार गिल्लू भी उसी लता में छिपकर बैठता था। जब मैं लता के निकट कलियों एवं पुष्पों को लेने जाती थी, तो लता के बीच छिपा हुआ गिल्लू मेरे कंधे पर कूदकर मुझे अचानक चौंका देता था। वह इस जगत् से जीवन समाप्त कर चुका है, किन्तु मेरी आँखें उसे आज भी खोज रही हैं। लेकिन अब वह इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा। शायद वह इस स्वर्णिम कली के बहाने मुझे चौंकाने के लिए ऊपर आ गया हो। इसे कौन जान सकता है।
एक दिन अचानक मैंने कमरे से बरामदे में आकर देखा कि दो कौए एक गमले में चोंचों से छुवा-छुवौवल का खेल खेल रहे हैं। धार्मिक ग्रन्थों में कौए का वर्णन ‘कागभुशुण्डि’ के नाम से किया गया है। बड़ा ही अद्भुत प्राणी है। लोक मानस में यह एक साथ विरोधी व्यवहार प्राप्त करता है। कभी यह अत्यधिक आदर प्राप्त करता है और कभी अनादर, कभी सम्मानित होता है और कभी अपमानित ।
(iii) गिल्लू को कहाँ समाधि दी गयी?
उत्तर– गिल्लू की सोनजुही की लता के नीचे समाधि दी गयी।
(vi) प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका किसकी बात कर रही हैं? इस गद्यांश में वे किसे खोज रही हैं?
उत्तर– प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका गिल्लू नाम की एक गिलहरी की बात कर रही है। लेखिका पहले सोनजुही के पौधे में एक कली को खोजा करती थीं, लेकिन अब वे गिल्लू को खोज रही हैं, जो उसके पत्तों में छिपा करता था।
(v) कौन लेखिका को चौंकाने के लिए ऊपर आ गया था?
उत्तर– गिल्लू लेखिका के कन्धे पर कूदकर उन्हें चौंका दिया करता था। सोनजुही में जब एक पीली कली लगी तो लेखिका को यह प्रतीत हुआ कि गिल्लू ही उन्हें चौंकाने के लिए कली के रूप में ऊपर आ गया था।
(2) मेरे पास बहुत–से पशु–पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परन्तु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरे थाला में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।
गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया, जहाँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफाई से खाता रहता। काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बन्द कर देता था या झूले के नीचे फेंक देता था।
प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
उत्तर – सन्दर्भ– पूर्ववत्
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखिका कहती है कि मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं। सभी के साथ मेरा असीम लगाव है, लेकिन किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत नहीं हुई। गिल्लू इसका अपवाद था। मैं खाना खाने के लिए जैसे ही मेज के पास जाती गिल्लू कूद-फाँदकर खाने की मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठना चाहता। मैंने बड़ी मुश्किल से उसे थाली के पास बैठना सिखाया। उसके बाद गिल्लू मेरी थाली के पास बैठकर एक-एक चावल निकालकर खाता था। काजू उसे बेहद पसंद था। यदि कई दिन काजू न मिले तो अन्य चीजें भी खाना बन्द कर देता था या झूले के नीचे गिरा देता था।
(iii) गिल्लू को क्या बेहद पसंद था?
उत्तर –गिल्लू को काजू बेहद पसंद था।
(3) मेरी अस्वस्थता में वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से ये मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता, न अपने झूले में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठण्डक में भी रहता।
गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन-यात्रा का अन्त आ ही गया। दिनभर उसने न कुछ खाया और न बाहर गया। रात में अन्त की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठण्डे पंजों से मेरी वही उँगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
पंजे इतने ठण्डे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया, परन्तु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया।
प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
उत्तर– सन्दर्भ– पूर्ववत्
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर– रेखांकित अंश की व्याख्या– लेखिका कहती है कि गर्मियों में जब मैं अपने लिखने-पढ़ने में व्यस्त रहती तो गिल्लू न बाहर जाता था और न ही अपने झूले पर जाता था। वह सदैव मेरे करीब ही रहता था। गिल्लू गर्मी से बचने के लिए मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता था। इस तरह वह एक पल भी मुझसे अलग नहीं होना चाहता था।
गिलहरियों की जीवनावधि बहुत अल्प होती है, मुश्किल से दो वर्ष। इसलिए जब गिल्लू की जीवन-यात्रा का अन्त करीब आया तो उसने दिनभर न कुछ खाया-पिया और न ही बाहर गया। रात में अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और मेरी उँगली पकड़कर मेरे हाथ से चिपक गया जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था। उसका शरीर अत्यन्त ठण्डा पड़ गया था। मैंने हीटर जलाकर उसे गर्मी प्रदान करने का प्रयास किया लेकिन गिल्लू का अन्त तो करीब था। प्रातःकाल होते ही उसने इस संसार से विदा ले ली।
(iii) गिल्लू गर्मी से बचने के लिए किस पर लेट जाता था?
उत्तर– गिल्लू गर्मी से बचने के लिए सुराही पर लेट जाता था।