UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 10 – Badal Ko Ghirte Dekha- बादल को घिरते देखा है (नागार्जुन) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 10 – Badal Ko Ghirte Dekha- बादल को घिरते देखा है (नागार्जुन) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 10 बादल को घिरते देखा है का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ परबादल को घिरते देखा है सम्पूर्ण पाठ के साथ नागार्जुन का जीवन परिचय एवं कृतियाँ,द्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi  Poetry Section Chapter Badal Ko Ghirte Dekha. Here the complete text, biography and works of  Nagarjun along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given. 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Badal Ko Ghirte Dekha- बादल को घिरते देखा है (नागार्जुन) Nagarjun
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

नागार्जुन

स्मरणीय तथ्य

जन्म सन् 1911 ई०, तरौनी (जिला दरभंगा (बिहार)।
मृत्यु सन् 1998 ई० ।
शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में, श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा।
वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र।
रचनाएँ युगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य), बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा (उपन्यास), दीपक, विश्वबन्धु (सम्पादन)।

 काव्यगत विशेषताएँ

वण्यं-विषय सम-सामयिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं का चित्रण, दलित वर्ग के प्रति संवेदना, अत्याचार- पीड़ित एवं त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति।
भाषा-शैली तत्सम शब्दावली प्रधान शुद्ध खड़ीबोली। ग्रामीण और देशज शब्दों का प्रयोग। प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग।
अलंकार व छन्द उपमा, रूपक, अनुप्रास। मुक्तक छन्द।

 जीवन-परिचय 

श्री नागार्जुन का जन्म दरभंगा जिले के तरौनी ग्राम में सन् 1911 ई० में हुआ था। आपका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है। आपका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था। जीवन के अभावों ने ही आगे चलकर आपके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया। व्यक्तिगत दुःख ने आपको मानवता के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई। सन् 1936 ई० में आप श्रीलंका गये और वहाँ पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। सन् 1938 ई० में आप स्वदेश लौट आये। राजनीतिक कार्यकलापों के कारण आपको कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। आप बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा घुमक्कड़ एवं फक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं। आप निरन्तर भ्रमण करते रहे। सन् 1998 ई० में आपका निधन हो गया।

रचनाएँ

युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य) आदि।

उपन्यास – बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा आदि।

सम्पादन – दीपक, विश्व-बन्धु पत्रिका।

मैथिली के ‘पत्र-हीन नग्न-गाछ’ काव्य-  संकलन पर आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है।

भाषा-शैलीतत्सम शब्दावली प्रधान शुद्ध खड़ीबोली। ग्रामीण और देशज शब्दों का प्रयोग। प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग।

 

बादल को घिरते देखा है

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है।

छोटे मोटे मोती जैसे, अतिशय शीतल वारि कणों को

मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है।

तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी बड़ी कई झीलों के

श्यामल शीतल अमल सलिल में

समतल   देशों  के  आ – आकर

पावस  की   ऊमस  से आकुल

तिक्त मधुर बिसतंतु खोजते, हंसों को तिरते देखा है।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में जनकवि नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ नामक कविता से अवतरित हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘प्यासी-पथाई आँखें’ में संकलित है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मैंने निर्मल, चाँदी के समान सफेद और बर्फ से मण्डित पर्वत की चोटियों पर घिरते हुए बादलों के मनोरम दृश्य को देखा है। मैंने मानसरोवर में खिलनेवाले स्वर्ण-जैसे सुन्दर कमल-पुष्पों पर मोती के समान चमकदार अत्यधिक शीतल जल की बूँदों को गिरते हुए देखा है।

कवि हिमालय की प्राकृतिक सुषमा का अंकन करते हुए कहता है कि उस पर्वत-प्रदेश में हिमालय के ऊँचे शिखररूपी कन्धों पर छोटी-बड़ी अनेक झीलें फैली हुई हैं। मैंने उन झीलों के नीचे शीतल, स्वच्छ, निर्मल जल में ग्रीष्म के ताप के कारण व्याकुल और समतल क्षेत्रों से आये (अर्थात् मैदानों से आये हुए) हंसों को कसैले और मधुर कमलनाल के तन्तुओं को खोजते हुए और उन झीलों में तैरते हुए देखा है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा सरल व प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग।

गुण – माधुर्य।

रस – श्रृंगार ।

शब्द-शक्ति- लक्षणा ।

अलंकार – अनुप्रास, उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश, रूपकातिशयोक्ति ।

 

एक दूसरे से वियुक्त हो

अलग अलग रहकर ही जिनको

सारी रात बितानी होती

निशा काल के चिर अभिशापित

वेबस उन चकवा-चकई का,

बन्द हुआ क्रन्दन फिर उनमें

उस महान सरवर के तीरे

शैवालों की हरी दरी पर, प्रणय कलह छिड़ते देखा है।

कहाँ गया धनपति कुबेर वह.

कहाँ गयी उसकी वह अलका?

नहीं ठिकाना कालिदास के,

व्योम-वाहिनी गंगाजल का!

ढूँढ़ा बहुत परन्तु लगा क्या, मेघदूत का पता कहीं पर!

कौन बताये यह यायावर, बरस पड़ा होगा न यहीं पर!

जाने दो वह कवि-कल्पित था,

मैंने तो भीषण जाड़ों में, नभचुम्बी कैलाश शीर्ष पर

महामेध को झंझानिल से, गरज-गरज भिड़ते देखा है।

दुर्गम बर्फानी घाटी में,

शत सहस्त्र फुट उच्च शिखर पर

अलख नाभि से उठने वाले

अपने ही उन्मादक परिमल

के ऊपर धावित हो-होकर

तरल तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है।

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- कवि कहता है कि चकवा-चकवी आपस में एक-दूसरे से अलग रहकर सारी रात बिता देते हैं। किसी शाप के कारण वे रात्रि में मिल नहीं पाते हैं। विरह में व्याकुल होकर वे क्रन्दन करने लगते हैं। प्रातः होने पर उनका क्रन्दन बन्द हो जाता है और वे मानसरोवर के किनारे मनोरम दृश्य में एक-दूसरे से मिलते हैं और हरी घास पर प्रेम-क्रीड़ा करते हैं।

महाकवि कालिदास द्वारा मेघदूत महाकाव्य में वर्णित अपार धन के स्वामी कुबेर और उसकी सुन्दर अलका नगरी अब कहाँ है? आज आकाश मार्ग से जाती हुई पवित्र गंगा का जल कहाँ गया? बहुत ढूँढ़ने पर भी मुझे मेघ के उस दूत के दर्शन नहीं हो सके। ऐसा भी हो सकता है कि इधर-उधर भटकते रहनेवाला यह मेघ पर्वत पर यहीं कहीं बरस पड़ा हो। छोड़ो, रहने दो, यह तो कवि की कल्पना थी। मैंने तो गगनचुम्बी कैलाश पर्वत के शिखर पर भयंकर सर्दी में विशाल आकारवाले बादलों को तूफानी हवाओं से गरज-बरस कर संघर्ष करते हुए देखा है।

हजारों फुट ऊँचे पर्वत-शिखर पर स्थित बर्फानी घाटियों में जहाँ पहुँचना बहुत कठिन होता है, कस्तूरी मृग अपनी नाभि में स्थित अगोचर कस्तूरी की मनमोहक सुगन्ध से उन्मत्त होकर इधर-उधर दौड़ता रहता है। निरन्तर भाग-दौड़ करने पर भी जब वह उस कस्तूरी को प्राप्त नहीं कर पाता तो अपने-आप पर झुंझला उठता है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा – तत्सम प्रधान खड़ीबोली।

रस- श्रृंगार।

गुण – माधुर्य।

अलंकार – अनुप्रास ।

 

शत-शत निर्झर निर्धारिणी-कल

मुखरित देवदारु कानन में

शोणित धवल भोज पत्रों से छाई हुई कुटी के भीतर

रंग बिरंगे और सुगन्धित फूलों से कुन्तल को साजे

इन्द्रनील की माला डाले शंख सरीखे सुधर गले में,

कानों में कुवलय लटकाये, शतदल रक्त कमल वेणी में;

रजत-रचित मणि खचित कलामय

पान-पात्र द्राक्षासव पूरित

रखे सामने अपने-अपने,

लोहित चन्दन की त्रिपदी पर

नरम निदाग बाल कस्तूरी

मृग छालों पर पल्बी मारे

मदिरारुण आँखों वाले उन

उन्मद किन्नर किन्नरियों की

मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।

(नागार्जुन: ‘प्यासी-पथराई आँखों से’)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या – कवि का कथन है कि आकाश में बादल छा जाने के बाद किन्नर-प्रदेश की शोभा अद्वितीय हो। जाती है। सैकड़ों छोटे-बड़े झरने अपनी कल-कल ध्वनि से देवदार के वन को गुंजित कर देते हैं अर्थात् गिरते हुए झरनों का स्वर देवदार के वनों में गूंजता रहता है। इन वनों के बीच में लाल और श्वेत भोजपत्रों से छाये हुए कुटीर के भीतर किन्नर और किन्नरियों के जोड़े विलासमय क्रीडाएँ करते रहते हैं। वे अपने केशों को विभिन्न रंगों के सुगन्धित पुष्पों से सुसज्जित किये रहते हैं। सुन्दर शंख जैसे गले में इन्द्र-नीलमणि की माला धारण करते हैं, कानों में नीलकमल के कर्णफूल पहनते हैं और उनकी वेणी में लाल कमल सजे रहते हैं।

कवि का कथन है कि किन्नर प्रदेश के नर-नारियों के मदिरापान करनेवाले बर्तन चाँदी के बने हुए हैं। वे मणिजड़ित तथा कलात्मक ढंग से बने हुए हैं। वे अपने सम्मुख निर्मित तिपाई पर मदिरा के पात्रों को रख लेते हैं और स्वयं कस्तूरी मृग के नन्हें बच्चों की कोमल और दागरहित छाल पर आसन लगाकर बैठ जाते हैं। मदिरा पीने के कारण उनके नेत्र लाल रंग के हो जाते हैं। उनके नेत्रों में उन्माद छा जाता है। मदिरा पीने के बाद वे लोग मस्ती को प्रकट करने के लिए अपनी कोमल और सुन्दर अँगुलियों से सुमधुर स्वरों में वंशी की तान छेड़ने लगते हैं। कवि कहता है कि इन सभी दृश्यों की मनोहरता को मैंने देखा है।

काव्यगत सौन्दर्य

भाषा – संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।

रस – श्रृंगार।

अलंकार – उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश।

शब्द-शक्ति – लक्षणा।

 

  • निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

 

  • अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है।

छोटे मोटे मोती जैसे, अतिशय शीतल वारि कणों को

मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है।

तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी बड़ी कई झीलों के

श्यामल  शीतल  अमल  सलिल  में

समतल    देशों    के   आ – आकर

पावस  की ऊमस   से आकुल

तिक्त मधुर बिसतंतु खोजते, हंसों को तिरते देखा है।

प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

(ii) कवि किसकी प्राकृतिक सुषमा का वर्णन किया है?

उत्तर- कवि ने हिमालय के वर्षाकालीन सौन्दर्य का वर्णन किया है।

(iii) कवि किस प्रकार बादलों के मनोरम दृश्य का वर्णन किया है?

उत्तर-निर्मल, चाँदी के समान सफेद और बर्फ से मण्डित पर्वत की चोटियों पर घिरते हुए बादलों के मनोरम दृश्य का वर्णन किया गया है।

 

  • एक दूसरे से वियुक्त हो

अलग अलग रहकर ही जिनको

सारी रात बितानी होती

निशा काल के चिर अभिशापित

बेबस उन चकवा-चकई का,

बन्द हुआ क्रन्दन फिर उनमें

उस महान सरवर के तीरे

शैवालों की हरी दरी पर, प्रणय कलह छिड़ते देखा है।

कहाँ गया धनपति कुबेर वह,

कहाँ गयी उसकी वह अलका?

नहीं ठिकाना कालिदास के,

व्योम-वाहिनी गंगाजल का !

ढूँढ़ा बहुत परन्तु लगा क्या, मेघदूत का पता कहीं पर!

कौन बताये यह यायावर, बरस पड़ा होगा न यहीं पर!

जाने दो वह कवि-कल्पित था,

मैंने तो भीषण जाड़ों में, नभचुम्बी कैलाश शीर्ष पर

महामेघ को झंझानिल से, गरज-गरज भिड़ते देखा है।

दुर्गम  बर्फानी  घाटी  में,

शत सहस्त्र फुट उच्च शिखर पर

अलख  नाभि  से उठने  वाले

अपने  ही उन्मादक परिमल

के ऊपर धावित हो-होकर

तरल तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है।

प्रश्न- (i) चकवा और चकवी आपस में रात में क्यों नहीं मिलते हैं?

उत्तर- चकवा और चकवी किसी शाप के कारण रात में एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं।

(ii) कवि किस स्थल का मनोरम वर्णन किया है?

उत्तर- चकवा और चकवी किसी शाप के कारण रात में एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं।

(iii) प्रस्तुत कविता में किस अलंकार की अभिव्यक्ति हुई है?

उत्तर-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार की अभिव्यक्ति हुई है।

 

  • शत-शत निर्झर निर्धारिणी-कल

मुखरित देवदारु कानन में

शोणित धवल भोज पत्रों से छाई हुई कुटी के भीतर

रंग बिरंगे और सुगन्धित फूलों से कुन्तल को साजे

इन्द्रनील की माला डाले शंख सरीखे सुघर गले में,

कानों में कुवलय लटकाये, शतदल रक्त कमल वेणी में;

रजत-रचित मणि खचित कलामय

पान-पात्र द्राक्षासव पूरित

रखे सामने अपने-अपने,

लोहित चन्दन की त्रिपदी पर

नरम निदाग बाल कस्तूरी

मृग छालों पर पल्थी मारे

मदिरारुण आँखों वाले उन

उन्मद किन्नर किन्नरियों की

मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।

प्रश्न- (i) आकाश में बादल छा जाने पर किस प्रदेश की शोभा अद्वितीय हो जाती है?

उत्तर- आकाश में बादल छा जाने पर किन्नर प्रदेश की शोभा अद्वितीय हो जाती है।

(ii) देवदार के वन को गुंजित कौन करता है?

उत्तर- सैकड़ों छोटे-बड़े झरने अपनी कल-कल ध्वनि से देवदार के वन को गुंजित कर देते हैं।

(iii) किन्नर और किन्नरियों के जोड़े विलासमय क्रीड़ाएँ कहाँ करते हैं?

उत्तर-वनों के बीच में लाल और श्वेत भोजपत्रों से छाये हुए कुटीर के भीतर किन्नर और किन्नरियों के जोड़े विलासमय क्रीड़ाएँ करते रहते हैं।

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 9 – Path ki Pehchan- पथ की पहचान (हरिवंशराय बच्चन) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy

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