UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 12 -Yugvani- युगवाणी (शिवमंगल सिंह ‘सुमन’) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 12 -Yugvani- युगवाणी (शिवमंगल सिंह ‘सुमन’) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary 

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 12 युगवाणी का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर युगवाणी  सम्पूर्ण पाठ के साथ शिवमंगल सिंह ‘सुमन का जीवन परिचय एवं कृतियाँ,द्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi  Poetry Section Chapter Yugvani. Here the complete text, biography and works of  Shivmangal Singh Suman along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given. 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Yugvani- युगवाणी (शिवमंगल सिंह ‘सुमन’) Shivmangal Singh Suman
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

शिवमंगल सिंह सुमन

स्मरणीय तथ्य

जन्म               5 अगस्त,सन 1915 ई०।
जन्म-स्थान   ग्राम– झगरपुर, जनपद-उन्नाव, उ० प्र०
रचनाए मिट्टी की बारात, हिलोल, जीवन के गान
पुरस्कार 1958- (देव पुरस्कार), 1974- (सोबियत- भूमि नेहरू पुरस्कार), 1974-(साहित्य अकादमी पुरस्कार) 1974- (पदमश्री), 1993-(शिखर सम्मान), 1993- भारत भारती पुरस्कार, 1999- पदम  भूषण।
मृत्यु 27 नवम्बर, सन 2002 ई० ।
अध्यापन उज्जैन, मध्य प्रदेश

जीवन-परिचय

डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त, सन् 1915 ई० (संवत् 1972 श्रावण मास शुक्ल पक्ष नागपंचमी) को ग्राम झगरपुर, जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपके पिता का नाम ठाकुर साहब बख्श सिंह था। परिहार वंश में जन्मे सुमन जी का विवर्द्धन गहरवाड़ वंशीय माता के दूध द्वारा हुआ। उनके पितामह ठाकुर बलराज सिंह जी स्वयं रीवा सेना में कर्नल थे तथा प्रपितामह ठाकुर चन्द्रिका सिंह जी को सन् 1857 ई० की क्रान्ति में सक्रिय भाग लेने एवं वीरगति प्राप्त होने का गौरव प्राप्त था।

सुमन जी ने अधिकांश रूप से रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों में रहकर आरम्भिक शिक्षा से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा प्राप्त की है। तत्पश्चात् सन् 1940 ई० में उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से परास्नातक (हिन्दी) की उपाधि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 1942 ई० में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1948 ई० में माधव कॉलेज उज्जैन में हिन्दी विभागाध्यक्ष बने, दो वर्षों के पश्चात् 1950 ई० में उनको ‘हिन्दी गीतिकाव्य का उद्भव-विकास और हिन्दी साहित्य में उसकी परम्परा’ शोध प्रबन्ध पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि प्रदान की। आपने सन् 1954-56 तक होल्कर कॉलेज इन्दौर में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर भी सुचारु रूप से कार्य किया। सन् 1956-61 ई० तक नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में सांस्कृतिक और सूचना विभाग का कार्यभार आपको सौंपा गया।

सन् 1961-68 तक माधव कॉलेज उज्जैन में वे प्राचार्य के पद पर कार्य करते रहे। इन आठ वर्षों के बीच सन् 1964 ई० में वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कला संकाय के डीन तथा व्यावसायिक संगठन, शिक्षण समिति एवं प्रबन्धकारिणी सभा के सदस्य भी रहे। सन् 1968-70 ई० तक सुमन जी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कुलपति के पद पर आसीन रहे।

डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को सन् 1958 ई० में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उनके काव्य संग्रह ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ पर ‘देव’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1964 ई० में ‘पर आँखें नहीं भरीं’ काव्य संग्रह पर ‘नवीन’ पुरस्कार से सम्मानित किये गये। आपको सन् 1973 ई० में मध्य प्रदेश राजकीय उत्सव में सम्मानित किया गया। जनवरी, सन् 1974 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से विभूषित किया गया। भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार द्वारा 20 मई, सन् 1973 ई० को डी०लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। नवम्बर, सन् 1974 ई० को उन्हें ‘सोवियत-भूमि नेहरू पुस्कार’ प्रदान किया गया। 26 फरवरी, 1973 ई० को ‘मिट्टी की बारात’ नामक काव्य संग्रह पर ‘सुमन जी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपने अक्टूबर, सन् 1974 ई० को नागपुर विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र में दीक्षान्त भाषण दिया। पुनः 24 अप्रैल, 1977 ई० को राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में पंचम दिनकर स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत भाषण के लिए आपको आमंत्रित किया गया। सन् 1975 ई० में राष्ट्रकुल विश्वविद्यालय परिषद् के लन्दन विश्वविद्यालय स्थित मुख्यालय में कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति की गई। 17-18 जनवरी, सन् 1977 ई० को भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में हुए बावनवें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। पुनः 15-16 जनवरी, सन् 1978 ई० को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट में भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् के तिरपनवें अधिवेशन की अध्यक्षता की। 27 नवम्बर, 2002 ई० को शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का 87 वर्ष की अवस्था में जनपद उज्जैन (म०प्र०) में निधन हो गया।

रचनाएँ

सुमन जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) हिल्लोल – यह सुमन जी के प्रेम-गीतों का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें हृदय की कोमल भावनाओं को चित्रित किया गया है।

(2) जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया– इन सभी संग्रहों की कविताओं में क्रान्तिकारी भावनाएँ व्याप्त हैं। इन कविताओं में पीड़ित मानवता के प्रति सहानुभूति तथा पूँजीवाद के प्रति आक्रोश है।

(3) विन्ध्य हिमालय – इसमें देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की कविताएँ हैं।

(4) पर आँखें नहीं भरीं- यह प्रेम-गीतों का संग्रह है।

(5) मिट्टी की बारात – इस पर सुमन जी को अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

डॉ० ‘सुमन’ जी प्रगतिवादी कवि के रूप में हमारे समक्ष अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से उपस्थित होते हैं। आपकी कविताओं में दलित, पीड़ित, शोषित एवं वंचित श्रमिक वर्ग का समर्थन किया गया है, साथ ही सामान्य रूप से पूँजीपति वर्ग तथा उनके अत्याचारों का खण्डन भी अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है। सामयिक समस्याओं का विवेचन उनकी कविताओं का प्रमुख अंग रहा है। आपकी कविताओं में आस्था और विश्वास का स्वर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। आपने समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं तथा वर्ण जातिगत विषमताओं एवं भाग्यवादी विचारधारा का खण्डन भी किया है।

 

युगवाणी

हर क्यारी में पद-चिह्न तुम्हारे देखे हैं,

हर डाली में मुस्कान तुम्हारी पायी है,

हर काँटे में दुःख-दर्द किसी का कसका है,

हर शबनम ने जीवन की प्यास जगायी है।

हर सरिता की लचकीली लहरें डसती हैं.

हर अंकुर की आँखों में कोर समाती है,

हर किसलय में अधरों की आभा खिलती है,

हर कली हवा में मचल मचल इठलाती है।

अम्बर में उगती सोने-चाँदी की फसले,

ये ज्वार-बाजरे की मस्ती लहराती है,

अन्तर में इसका बिम्ब उभरता आता है,

चाँदनी, सिन्धु में सौ-सौ ज्वार जगाती है।

मैं कैसे इनकी मोहकता से मुख मोडू,

मैं कैसे जीवन के सौ-सौ धन्धे छोडू,

दोनों को साथ लिए चलना क्या सम्भव है?

तन का, मन का पावन नाता कैसे तोडूं?

क्या उम्र ढलेगी तो यह सब ढल जाएगा,

सूरज चन्दा का पानी गल, जल जाएगा,

जिनके बल पर जीने-मरने का स्वर साधा,

उनका आकर्षण साँसों को छल जाएगा।

जिस दिन सपनों के मोल-भाव पर उतरूंगा,

जिस दिन संघर्षों पर जाली चढ़ जाएगी,

जिस दिन लाचारी मुझ पर तरस दिखाएगी,

उस दिन जीवन से मौत कहीं बढ़ जाएगी।

इन सबसे बढ़कर भूख बिलखती मिट्टी की

पथ पर पथराई आँखें पास बुलाती हैं,

भगवान भूल में रचकर जिनको भूल गया

जिनकी हड्डी पर धर्म-ध्वजा फहराती है।

इनको भूलूँ तो मेरी मिट्टी मिट्टी है

मेरी आँखों का पानी केवल पानी है,

इनको भूलूँ तो मेरा जन्म अकारथ है

मेरा जीना मरने की मूक कहानी है।

मैं देख रहा हूँ तुम इनको फिर भूल चले

बातों-बातों में हमें बहुत बहलाते हो,

बेबसी चीखती जब बच्चों की लाशों पर

उसको आजादी की प्रतिध्वनि बतलाते हो।

 

यों खेल करोगे तुम कब तक असहायों से

कब तक अफीम आशा की हमें खिलाओगे,

बरबाद हो गयी फसल कहीं जोती-बोई

क्या बैठ अकेले ही मरघट पर गाओगे?

विश्वास सर्वहारा का तुमने खोया तो

आसन्न-मौत की गहन गोंस गड़ जाएगी,

यदि बाँध बाँधने के पहले जल सूख गया

धरती की छाती में दरार पड़ जाएगी।

सदियों की कुर्बानी यदि यों बेमोल विकी

जमुहाई लेने में खो गया सबेरा यदि,

जनता पूर्णिमा मनाने की जब तक सोचे

घिर गया अमावस का अम्बर में घेरा यदि।

इतिहास न तुमको माफ करेगा याद रहे

पीढ़ियाँ तुम्हारी करनी पर पछताएँगी,

पूरब की लाली में कालिख पुत जाएगी

सदियों में फिर क्या ऐसी घड़ियाँ आएँगी?

इसलिए समय के सैलाबों को मत रोको

खुशहाल हवाओं में न खिड़कियाँ बन्द करो,

हर किरण जिन्दगी की आँगन तक आने दो

नव-निर्माणों की लपटों को मत मन्द करो।

इस नए सबेरे की लाली को देखो तो

इसकी अपनी कितनी पहचान पुरानी है,

भू, भुवः, स्वर्ग को एक बनाने आयी जो

युग की गायत्री सब छन्दों की रानी है।

(‘विन्ध्य हिमालय’ से)

  • निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

हर क्यारी में पद-चिह्न तुम्हारे देखे हैं,

हर डाली में मुस्कान तुम्हारी पायी है,

हर काँटे में दुःख-दर्द किसी का कसका है,

हर शबनम ने जीवन की प्यास जगायी है।

हर सरिता की लचकीली लहरें डसती हैं,

हर अंकुर की आँखों में कोर समाती है,

हर किसलय में अधरों की आभा खिलती है,

हर कली हवा में मचल-मचल इठलाती है।

प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उद्धृत है।

(ii) क्यारी-क्यारी और खेत-खेत में किसके पदचिह्न बने हुए हैं?

उत्तर- क्यारी-क्यारी और खेत-खेत में श्रमिक एवं कृषक वर्ग के पदचिह्न परिलक्षित होते हैं।

(iii) सुमन जी ने समाज की प्रगति में किसके योगदान को रेखांकित किया है?

उत्तर- सुमन जी ने समाज की प्रगति में श्रमिक एवं कृषक वर्ग के योगदान को रेखांकित किया है।

 

  • अम्बर में उगती सोने-चाँदी की फसलें,

ये ज्वार-बाजरे की मस्ती लहराती है,

अन्तर में इसका बिम्ब उभरता आता है,

चाँदनी, सिन्धु में सौ-सौ ज्वार जगाती है।

मैं कैसे इनकी मोहकता से मुख मोडूं,

मैं कैसे जीवन के सौ-सौ धन्धे छोडूं,

दोनों को साथ लिए चलना क्या सम्भव है?

तन का, मन का पावन नाता कैसे तोडूं?

प्रश्न- (i) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत है।

(ii) सुमन जी के अनुसार आकाश में उगते सूरज, चाँद और सितारे किस प्रकार प्रतीत हो रहे हैं?

उत्तर- आकाश में उगते सूरज, चाँद और सितारे ऐसे मालूम पड़ते हैं जैसे सोने और चाँदी की फसलें उग रही हैं।

(iii) समुद्र में सैकड़ों ज्वार कौन उठा देती है?

उत्तर-चाँद के उदय होने पर समुद्र में चाँदनी सैकड़ों ज्वार उठा देती है।

 

  • यो खेल करोगे तुम कब तक असहायों से

कब तक अफीम आशा की हमें खिलाओगे,

बरबाद हो गयी फसल कहीं जोती-बोई

क्या बैठ अकेले ही मरघट पर गाओगे?

विश्वास सर्वहारा का तुमने खोया तो

आसन्न-मौत की गहन गोंस गड़ जाएगी,

यदि बाँध बाँधने के पहले जल सूख गया

धरती की छाती में दरार पड़ जाएगी।

प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

उत्तर- सुमन जी ने दीन-दुखियों के प्रति शासन की घोर उपेक्षा पर गहरी चोट की है।

(ii) सुमन जी किसे चेतावनी दे रहे हैं?

उत्तर- सुमन जी शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी दे रहे हैं।

(iii) ‘आशा की अफीम’ में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- आशा की अफीम’ में रूपक अलंकार है।

 

  • इतिहास न तुमको माफ करेगा याद रहे

पीढ़ियों तुम्हारी करनी पर पछताएँगी,

पूरब की लाली में कालिख पुत जाएगी

सदियों में फिर क्या ऐसी घड़ियाँ आएँगी?

इसलिए समय के सैलाबों को मत रोको

खुशहाल हवाओं में न खिड़कियाँ बन्द करो,

हर किरण जिन्दगी की आँगन तक आने दो

नव-निर्माणों की लपटों को मत मन्द करो।

प्रश्न- (i) ‘इतिहास न तुमको माफ करेगा’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सुमन जी कहते हैं कि हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। यदि हमने समय का सदुपयोग नहीं किया तो आने वाला समाज हमारी अकर्मण्यता और कर्त्तव्यहीनता पर धिक्कारेगा। इस समय का जो भी इतिहास लिखा जायेगा उसमें किसी भी व्यक्ति को उसकी अकर्मण्यता के लिए क्षमा नहीं किया जायेगा।

(ii) सुमन जी ने समाज कल्याण हेतु किसे प्रोत्साहित किया है?

उत्तर- सुमन जी ने समाज कल्याण हेतु समाज के कर्णधारों को प्रोत्साहित किया है।

(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में सुमन जी की किस भावना की अभिव्यक्ति हुई है?

उत्तर- इन पंक्तियों में सुमन जी की प्रगतिवादी भावना की अभिव्यक्ति हुई है।

 

 

 

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