UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 3 – Doha- दोहा (रहीम) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 3 दोहा का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर दोहा सम्पूर्ण पाठ के साथ रहीम का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।
Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Poetry Section Chapter Doha. Here the complete text, biography and works of Rahim along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given.
Chapter Name | Doha- दोहा (रहीम) Rahim |
Class | 9th |
Board Nam | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary) |
जीवन–परिचय
रहीम
स्मरणीय तथ्य
जन्म | सन् 1556 ई०, लाहौर। |
मृत्यु | सन् 1627 ई० के लगभग। |
पिता | बैरम खाँ। |
रचनाएँ | ‘रहीम सतसई’, ‘बरवै नायिका भेद’, ‘मदनाष्टक’, ‘रास पंचाध्यायी’ आदि। |
काव्यगत विशेषताएँ
वर्ण्य–विषय | नीति, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, श्रृंगार । |
रस | श्रृंगार, शान्त, हास्य। |
भाषा | अवधी तथा ब्रज, जिसमें अरबी, फारसी, संस्कृत के शब्दों का मेल है। |
शैली | नीतिकारों की प्रभावोत्पादक वर्णनात्मक शैली। |
अलंकार | दृष्टान्त, उपमा, उदाहरण, उत्प्रेक्षा आदि। |
छन्द | दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त, सवैया। |
जीवन–परिचय
रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। ये अकबर के दरबारी कवि थे। इनके पिता का नाम बैरम खाँ था। इनका जन्म सन् 1556 ई० के आस-पास लाहौर में हुआ था जो आजकल पाकिस्तान में है। रहीम अकबर के दरबारी नवरत्नों में से एक थे। कवि होने के साथ-साथ वीर योद्धा और कुशल नायक भी थे। अकबर के प्रधान सेनापति और मन्त्री होने का गौरव भी इन्हें प्राप्त था। इनका स्वभाव अत्यन्त ही उदार था। ये कवियों और कलाकारों का समुचित सम्मान करते थे। रहीम के जीवन का अन्तिम समय अत्यन्त ही कष्ट में बीता था। अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर ने रहीम पर रुष्ट हो उनके ऊपर राजद्रोह का आरोप लगाकर उनकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली थी। रहीम इधर-उधर भटकते रहे, किन्तु कभी आत्मसम्मान नहीं गँवाया। सन् 1627 ई० में इनकी मृत्यु हो गयी। रहीम अरबी, फारसी, तुर्की और संस्कृत आदि कई भाषाओं के पण्डित तथा हिन्दी काव्य के मर्मज्ञ थे। गोस्वामी तुलसीदास जी से भी इनका परिचय था।
रचनाएँ
रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली तथा बरवै नायिका-भेद आदि रहीम की उत्कृष्ट रचनाएँ हैं। इन्होंने खड़ीबोली के साथ-साथ फारसी में भी रचनाएँ की हैं। रहीम की रचनाओं का संग्रह ‘रहीम-रत्नावली’ के नाम से प्रकाशित हुआ है।
भाषा– शैली– अवधी तथा ब्रज, जिसमें अरबी, फारसी, संस्कृत के शब्दों का मेल है। एवं इनकी शैली नीतिकारों की प्रभावोत्पादक वर्णनात्मक शैली।
दोहा
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।। 1 ।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत दोहा रहीम (अब्दुल रहीम खानखाना) द्वारा रचित ‘रहीम ग्रन्थावली‘ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य‘ में संकलित ‘दोहा‘ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
व्याख्या–रहीम कवि का कहना है कि जो उत्तम स्वभाव और दृढ़ चरित्रवाले व्यक्ति होते हैं, बुरी संगति में रहने पर भी उनके चरित्र में विकार उत्पन्न नहीं होता है। जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष पर चाहे जितने भी विषैले सर्प लिपटे रहें, परन्तु उस पर सर्पों के विष का प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् चन्दन का वृक्ष अपनी सुगन्ध और शीतलता के गुण को छोड़कर जहरीला नहीं हो जाता है। इस प्रकार सज्जन भी अपने सद्गुणों को कभी नहीं छोड़ते ।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली – उपदेशात्मक मुक्तक ।
रस – शान्त।
छन्द – दोहा।
अलंकार – दृष्टान्त ।
रहिमन प्रीति सराहिए मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून ।।2।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या–रहीम कवि कहते हैं कि उसी प्रेम की प्रशंसा करनी चाहिए जिसमें दोनों प्रेमियों का प्रेम मिलकर दुगुना हो जाता है। दोनों प्रेमी अपना अलग-अलग अस्तित्व भूलकर एक-दूसरे में समाहित हो जाते हैं; जैसे हल्दी पीली होती है और चूना सफेद, परन्तु दोनों मिलकर एक नया (लाल) रंग बना देते हैं। हल्दी अपने पीलेपन को और चूना सफेदी को छोड़कर एकरूप हो जाते हैं। सच्चे प्रेम में भी ऐसा ही होता है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज
शैली – मुक्तक ।
रस – शान्त ।
छन्द– दोहा।
अलंकार – दृष्टान्त ।
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।।3।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या– वे कहते हैं कि यदि सज्जन रूठ भी जायें तो उन्हें शीघ्र मना लेना चाहिए। यदि सौ बार भी नाराज हों तो भी उन्हें सौ बार ही मनायें; क्योंकि वे जीवन के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। जिस प्रकार सच्चे मोतियों का हार टूट जाने पर उसे बार-बार पिरोया जाता है, उसी प्रकार सज्जनों को भी बार-बार रूठने पर मनाकर रखना चाहिए; क्योंकि वे मोतियों के समान ही मूल्यवान होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज।
शैली– मुक्तक।
रस – शान्त।
छन्द– दोहा।
अलंकार – दृष्टान्त और पुनरुक्तिप्रकाश ।
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।4।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या –रहीम जी कहते हैं कि आँसू, आँखों से निकलते ही मन के सारे दुःख प्रकट कर देते हैं। कवि का कथन है कि जिस व्यक्ति को घर से निकाला जायेगा, वह घर के सारे भेद क्यों न कह देगा। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार कोई व्यक्ति घर से निकाले जाने पर घर के सारे भेद दूसरों के सामने खोल देता है, उसी प्रकार से आँखरूपी घर से निकाले जाने पर आँसू भी मन के सारे भेद प्रकट कर देता है। आँसू अपनी उपस्थिति से यह प्रकट करते हैं कि व्यक्ति के हृदय में दुःख है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली – मुक्तक ।
रस – शान्त।
अलंकार – दृष्टान्त ।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति-कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत ।।5।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या– कवि रहीम कहते हैं कि जब व्यक्ति के पास सम्पत्ति होती है तो अनेक लोग तरह-तरह से उसके सगे-सम्बन्धी बन जाते हैं किन्तु जो विपत्ति के समय भी मित्रता नहीं छोड़ते, वे ही सच्चे मित्र होते हैं। इस प्रकार सच्चा मित्र विपत्ति की कसौटी पर सदैव खरा उतरता है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली – मुक्तक ।
रस – शान्त।
छन्द– दोहा।
अलंकार – अनुप्रास, रूपक।
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़त छोह । ।6।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – जब मछली पकड़ने के लिए नदी में जाल डाला जाता है, तब मछली जाल में फँस जाती है और पानी अपनी सहेली मछली का मोह त्यागकर आगे निकल जाता है, परन्तु मछली को जल से इतना प्रेम है कि वह पानी के जिना तड़प-तड़पकर मर जाती है। सच्चे प्रेम की यही पहचान है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली– मुक्तक।
रस – शान्त।
छन्द – दोहा।
अलंकार – अन्योक्ति ।
दीन सबन को लखत हैं, दीनहि लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै , दीनबन्धु सम होय ।।7।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या–रहीम जी कहते हैं कि निर्धन व्यक्ति तो सबको देखता है अर्थात् सभी के सहयोग का आकांक्षी होता है तथा सभी को सहयोग देता भी है। इसके विपरीत गरीब की ओर किसी का भी ध्यान नहीं होता है। उसकी सभी उपेक्षा करते हैं। जो लोग गरीबों को देखते हैं अर्थात् उनसे प्रेम करते हैं और उनका सहयोग करते हैं, वे दीनों के भाई अर्थात् भगवान् के समान होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली– मुक्तक ।
छन्द– दोहा।
रस – शान्त ।
गुण – प्रसाद ।
अलंकार – अनुप्रास ।
प्रीतम छबि नैननि बसी, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आपु फिरि जाय।।8।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – रहीम कवि कहते हैं कि मेरे नेत्रों में परमात्मारूपी प्रियतम का सौन्दर्य समाया हुआ है, फिर दूसरे के सौन्दर्य के लिए मेरे नेत्रों में कोई स्थान नहीं है। यदि कोई सराय यात्रियों से भरी रहे तो पथिक उसमें स्थान न पाकर स्वयं लौटकर अन्यत्र चला जाता है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली – मुक्तक
रस – श्रृंगार या भक्ति।
छन्द – दोहा ।
अलंकार – दृष्टान्त।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय।
टूटे से फिरि ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय।।9।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या–रहीम जी कहते हैं कि प्रेमरूपी धागे को चटकाकर मतं तोड़ो। जिस प्रकार धागा एक बार टूट जाने पर फिर नहीं जुड़ता और यदि वह जुड़ भी जाता है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम- सम्बन्ध यदि एक बार टूट जाय तो फिर उसका जुड़ना कठिन होता है। इसको जोड़ने की कोशिश करने पर उनमें दरार अवश्य पड़ जाती है, पहले जैसी बात नहीं रहती, क्योंकि सम्बन्ध सामान्य होने पर भी व्यक्ति को पुरानी याद आती है कि एक समय था, जब इस मित्र ने दुर्व्यवहार किया था। इसलिए प्रेम सम्बन्ध को कभी तोड़ना नहीं चाहिए।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज।
रस – शान्त।
छन्द– दोहा।
अलंकार – रूपक ।
कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वांति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन।।10।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – स्वाति नक्षत्र में बरसनेवाली जल की बूँदें तो एक जैसी ही होती हैं, किन्तु संगति के अनुसार उनके स्वरूप और गुण पूर्णतया बदल जाते हैं। वही बूँद केले पर गिरती है तो कपूर बन जाती है, सीप में गिरती है तो मोती बन जाती है और सर्प के मुख में गिरने पर वही विष बन जाती है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है, क्योंकि जैसी संगति मनुष्य करता है, उसे वैसा ही फल या परिणाम प्राप्त होता है।
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहिं सुजान ।।11।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – रहीम कवि कहते हैं कि वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते हैं। तालाब भी अपने पानी को स्वयं नहीं पीता है। फल और जल का उपयोग तो दूसरे लोग ही करते हैं। इसी प्रकार सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए ही होती हैं। वे अपनी सम्पत्ति को दूसरों के हित में लगा देते हैं। ‘परोपकाराय सतां विभूतयः‘– में यही सत्य प्रकट हुआ है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली – मुक्तक ।
रस – शान्त ।
छन्द – दोहा ।
अलंकार – ‘सम्पत्ति सँचहिं सुजान’ में अनुप्रास है।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि ।।12।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या–रहीम कवि कहते हैं कि बड़े लोगों को देखकर छोटों का निरादर नहीं करना चाहिए। उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए; क्योंकि जिस स्थान पर सुई काम आती है, उस स्थान पर तलवार काम नहीं कर सकती। इसलिए छोटी चीजें या छोटे लोग भी समय आने पर बड़े काम के होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज ।
शैली – मुक्तक ।
छन्द– दोहा।
अलंकार – अनुप्रास और दृष्टान्त।
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़ी अँखियाँ निरखि, आँखिन को सुख होत।।13।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – कवि कहते हैं कि जिस प्रकार अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को देखकर रूपक्ति की आँखों को सुख मिलता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार को बढ़ता हुआ देखकर प्रसन्न होता है और उसे समृद्ध देखकर अपार सुख का अनुभव करता है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – ब्रज
शैली – मुक्तक
छन्द–दोहा
अलंकार – दृष्टान्त।
रहिमन ओछे नरन ते, तजौ बैर अरु प्रीति।
काटे-चाटे स्वान के, मुँहूँ भाँति विपरीति ।।14।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या–रहीम कहते हैं- जो व्यक्ति संकुचित स्वभाववाले हैं उनसे न शत्रुता रखना अच्छा होता है न प्यार करना। कुत्ता चाहे चाटे या काटे, दोनों ही बातें बुरी हैं। काट लेने पर घाव की पीड़ा अथवा मृत्यु हो सकती है। उसरे चाटने से शरीर अपवित्र होता है। इसी प्रकार ओछे व्यक्तियों की शत्रुता तथा मित्रता, दोनों ही घानक होती है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा–सरल ब्रजभाषा में अर्थ की विशदता सँजोयी गयी है।
शैली – उपदेशात्मक
अलंकार-अनुप्रास तथा दृष्टान्त
गुण – प्रसाद।
रस–शान्त।
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निम्नलिखित पद्याशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
(क) जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष ब्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
प्रश्न– (i) प्रस्तुत दोहे के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर– प्रस्तुत दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं।
(ii) उत्तम प्रकृति वालों पर कुसंगति का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर–) उत्तम प्रकृति वालों पर बुरी संगति में रहने पर भी उनके चरित्र में विकार उत्पन्न नहीं होता है।
(iii) चन्दन के वृक्ष पर विषैले सर्प लिपटे रहने पर क्या होता है?
उत्तर– चन्दन के वृक्ष पर विषैले सर्प लिपटे रहने पर भी चन्दन अपनी शीतलता एवं सुगन्ध नहीं त्यागता है।
(ख) टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिर-फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार ।।
प्रश्न– (i) ‘टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार‘ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– रहीम का आशय है कि यदि सज्जन व्यक्ति नाराज हो जाये तो उन्हें शीघ्र मना लेना चाहिए। यदि वे सौ बार नाराज हो जायें तो उन्हें सौ बार मनाना चाहिए।
(ii) मोतियों का हार टूट जाने पर उन्हें बार–बार क्यों पिरोया जाता है?
उत्तर– मोतियाँ मूल्यवान होती हैं। इसीलिए मोतियों का हार टूट जाने पर बार-बार पिरोया जाता है।
(iii) प्रस्तुत दोहे में कौन–सा अलंकार है?
उत्तर– प्रस्तुत दोहे में दृष्टान्त और पुनरुक्ति अलंकार है।
(ग) कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
बिपति-कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत ।।
प्रश्न– (i) सच्चे मित्र कौन होते हैं?
उत्तर– सच्चा मित्र वही होता है, जो विपत्ति में साथ देता है।
(ii) ‘बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत‘ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– विपत्ति में जो साथ दे, वही सच्चा मित्र है।
(iii) ‘बनत बहुत बहु रीति‘ में कौन–सा अलंकार है?
उत्तर–‘बनत बहुत बहुरीति’ में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) दीन सबन को लखत हैं, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय ।।
प्रश्न– (i)जो लोग गरीबों को देखते हैं अर्थात् उनसे प्रेम करते हैं उन्हें रहीम जी ने क्या कहा है?
उत्तर– जो लोग गरीबों से प्रेम करते हैं, उन्हें रहीम जी ने दीनबन्धु अर्थात् भगवान की संज्ञा दी है।
(ii) ‘दीन सबन को लखत हैं, दीनहिं लखै न कोय‘ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– गरीब व्यक्ति तो सबको देखता है। सबका सहयोग करने का इच्छुक होता है किन्तु गरीब की ओर कोई भी व्यक्ति ध्यान नहीं देता।
(iii) प्रस्तुत दोहे के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर– प्रस्तुत दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं।
(ङ) प्रीतम छबि नैननि बसी, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पचिक आपु फिरि जाय।।
प्रश्न– (i) प्रस्तुत दोहे के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर– प्रस्तुत दोहे के रचनाकार रहीम जी हैं।
(ii) रहीम जी के नेत्रों में किस प्रकार का सौन्दर्य समाया हुआ है?
उत्तर– रहीम जी के नेत्रों में परमात्मा रूपी प्रियतम का सौन्दर्य समाया हुआ है।
(iii) प्रस्तुत दोहे में कौन–सा अलंकार हैं?
उत्तर–प्रस्तुत दोहे में दृष्टान्त अलंकार की अभिव्यक्ति हुई है।
(च) तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहिं सुजान।।
प्रश्न– (1) सज्जनों की सम्पत्तियाँ किसके लिए होती हैं?
उत्तर– सज्जनों की सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं।
(ii) ‘संपति संचहिं सुजान‘ में कौन सा अलंकार है?
उत्तर– ‘संपति संचहिं सुजान’ में अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है।
(iii) प्रस्तुत दोहे में किसकी महत्ता पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर–प्रस्तुत दोहे में परोपकार की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
(छ) रहिमन ओछे नरन ते, तजौ बैर अरु प्रीति।
काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति विपरीति ।।
प्रश्न– (i) रहीम के अनुसार किससे बैर एवं प्रीति करना हानिकारक है?
उत्तर– कवि ने ओछे स्वभाव वाले लोगों से बैर और प्रीति दोनों ही हानिकर बताया है।
(ii) कुत्ते के काटने और चाटने से क्या दोष होता है?
उत्तर– कुत्ते के काट लेने पर घाव की पीड़ा अथवा मृत्यु हो सकती है। उसके चाटने से शरीर अपवित्र हो जाता है।
(iii) उपर्युक्त दोहे में कौन–सा अलंकार है?
उत्तर–उपर्युक्त दोहे में अनुप्रास तथा दृष्टान्त अलंकार है।