UP Board Solution of Class 9 Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter- 1 पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) Laghu Uttariy Prashn

UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] Economics [अर्थशास्त्र] Chapter-1 पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) लघु  उत्तरीय प्रश्न Laghu Uttariy Prashn

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प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-4: अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था खण्ड-1 के अंतर्गत चैप्टर 1 पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani) पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social Science [Class- 9th]
Chapter Name पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani)
Part 3  Economics [अर्थशास्त्र  ]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani)

पालमपुर गाँव की कहानी (Palampur Ganv ki Kahani)

लघु  उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. पालमपुर के किसानों में भूमि किस प्रकार वितरित है?

उत्तर कृषि कार्य में लगे हुए सभी लोगों के पास खेती के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है। पालमपुर में लगभग 150 परिवार हैं जो भूमिहीन हैं और दलित वर्ग से सम्बन्धित हैं। 240 परिवार 2 हेक्टेयर से कम भूमि पर खेती करते हैं। यहाँ 60 परिवार हैं जिनके पास कृषि के लिए 2 एकड़ से अधिक भूमि है। बहुत कम किसानों के पास 10 हेक्टेयर भूमि है। यह प्रदर्शित करता है कि पालमपुर में भूमि का वितरण असमान है। इस प्रकार की स्थिति सम्पूर्ण भारत में पायी जाती है।

प्रश्न 2. खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?

उत्तर खेतिहर श्रमिक गरीब हैं क्योंकि –

  1. इनके परिवार बड़े होते हैं।
  2. ये श्रमिक भूमिहीन हैं या उनके पास भूमि का बहुत छोटा भाग है।
  3. ये गरीब होते हैं, गरीबी ही गरीबी को जन्म देती है।
  4. वर्ष के दौरान उनके पास कोई कार्य नहीं है।
  5. ये अशिक्षित, अस्वस्थ एवं अकुशल होते हैं।
  6. इन मजदूरों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी प्राप्त नहीं होती है।

प्रश्न 3. पालमपुर में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर पालमपुर में सारी भूमि जुताई के अन्तर्गत है। भूमि का कोई भी टुकड़ा बंजर नहीं छोड़ा गया है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में 3 अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं।

बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाता है।

इसके बाद अक्टूबर से दिसम्बर के बीच आलू की खेती की जाती है। सदर्दी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूँ बोया जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजार में बेच दिया जाता है।

गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बनाकर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है।

प्रश्न 4. पालमपुर में कृषि कार्य हेतु श्रमिक कौन उपलब्ध कराता है?

उत्तर कृषि में बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। छोटे किसान अपने परिवार सहित अपने खेतों में काम करते हैं। किन्तु मध्यम या बड़े किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए श्रमिकों को मजदूरी देनी पड़ती है। इन श्रमिकों को कृषि मजदूर कहा जाता है। ये कृषि मजदूर या तो भूमिहीन परिवारों से होते हैं या छोटे खेतों पर काम करने वाले परिवारों में से। किसानों के विपरीत इन लोगों का खेत में उगाई गई फसल पर कोई अधिकार नहीं होता। इन्हें किसान द्वारा काम के बदले. में पैसे या किसी अन्य प्रकार से मजदूरी मिलती है जैसे कि फसल। एक कृषि मजदूर दैनिक आधार पर कार्यरत हो सकता है या खेत में किसी विशेष काम के लिए जैसे कि कटाई, या फिर पूरे वर्ष के लिए भी।

प्रश्न 5. डाला और रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?

उत्तर– पालमपुर निवासी डाला और रामकली भूमिहीन खेतिहर श्रमिक हैं। वे पालमपुर में दैनिक मजदूरी करते हैं। उन्हें निरन्तर काम की खोज में रहना पड़ता है। सरकार द्वारा खेतिहर श्रमिक के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी 300 रुपये प्रतिदिन है किन्तु डाला और रामकली को केवल 160 रुपये ही मिलते हैं। पालमपुर के खेतिहर श्रमिकों में बहुत अधिक स्पर्धा है इसलिए लोग कम दरों पर मजदूरी के लिए तैयार हो जाते हैं। डाला और रामकली दोनों ही गाँव के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं।

प्रश्न 6. कृषि में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से क्या हानि होती है?

उत्तर– रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति घट जाती है। रासायनिक खाद के कारण भूमिगत जल, नदियों व झीलों का पानी प्रदूषित हो जाता है। रासायनिक खाद के निरन्तर प्रयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया है। भू-उर्वरता एवं भूमिगत जल जैसे पर्यावरणीय संसाधन बनने में वर्षों लग जाते हैं। एक बार नष्ट होने के बाद इनकी पुनर्स्थापना कर पाना बहुत कठिन होता है। कृषि के भावी विकास को सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्यावरण का ध्यान रखना चाहिए।

 

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