UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter- 1 फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) Long Answer

UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter- 1 फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Long Answer

UP Board Solution of Class 9 Social Science इतिहास (History) Chapter- 1 फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) MCQ, Important Year, Important word

प्रिय छात्र ! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान  इकाई-1: इतिहास भारत और समकालीन विश्व-1  खण्ड-1 घटनायें और प्रक्रियायें  के अंतर्गत चैप्टर-1  फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti) पाठ के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं।  आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।

Subject Social  Science [Class- 9th]
Chapter Name फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti)
Part 3  History [इतिहास]
Board Name UP Board (UPMSP)
Topic Name भारत और समकालीन विश्व-1

फ्रांसीसी क्रान्ति (Francisi Kranti)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?

उत्तर- फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत निम्न परिस्थितियों में हुई—

  1. राजनैतिक कारण – तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधियों ने मिराब्यों एवं ओबेसिए के नेतृत्व में स्वयं को राष्ट्रीय सभा घोषित कर इस बात की शपथ ली कि जब तक वे लोग सम्राट की शक्तियों को सीमित करने तथा अन्यायपूर्ण विशेषाधिकारों वाली सामंतवादी प्रथा को समाप्त करने वाला संविधान नहीं बना लेंगे तब तक राष्ट्रीय सभा को भंग नहीं करेंगे। राष्ट्रीय सभा जिस समय संविधान बनाने में व्यस्त थी, उस समय सामंतों को विस्थापित करने के लिए अनेक स्थानीय विद्रोह हुए। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1774 में लुई XVIवाँ फ्रांस का राजा बना था। वह एक सज्जन परन्तु अयोग्य शासक था। राजा पर उसकी पत्नी ‘मैरी एंतोएनेत’ का भारी प्रभाव था। प्रांतीय प्रशासन दो भागों में बँटा हुआ था जिन्हें क्रमशः ‘गवर्नमेंट’ तथा ‘जनरेलिटी’ के नामों से जाना जाता था। फ्रांसीसी शासन में एकरूपता का अभाव था। देश के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कानून लागू थे। इसी बीच खाद्य संकट गहरा गया तथा जनसाधारण का गुस्सा गलियों में फूट पड़ा। 14 जुलाई को सम्राट ने सैन्य टुकड़ियों को पेरिस में प्रवेश करने के आदेश दिए। इसके प्रत्युत्तर में सैकड़ों क्रुद्ध पुरुषों एवं महिलाओं ने स्वयं की सशस्त्र टुकड़ियाँ बना लीं। ऐसे ही लोगों की एक सेना बास्तील किले की जेल (सम्राट की निरंकुश शक्ति का प्रतीक) में जा घुसी और उसको नष्ट कर दिया। इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति का प्रारंभ हुआ और व्यवस्था बदलने को आतुर लोग क्रांति में शामिल हो गए।
  2. फ्रांस की आर्थिक परिस्थितियाँ – बूर्बो वंश का लुई XVIवाँ 1774 में फ्रांस का राजा बना। उसने ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मैरी एंतोएनेत से विवाह किया। उसके सत्तासीन होने के समय फ्रांस का कोष रिक्त था। राज्य पर कर्ज का बोझ निरंतर बढ़ रहा था। राज्य की कर व्यवस्था असमानता और पक्षपात के सिद्धांत पर निर्मित होने के कारण अत्यंत दूषित थी। कर दो प्रकार के थे- प्रत्यक्ष कर (टाइल) और धार्मिक कर (टाइद)। पादरी वर्ग और कुलीन वर्ग जिनका फ्रांस की लगभग 40% भूमि पर स्वामित्व था, प्रत्यक्ष करों से पूर्ण मुक्त थे तथा अप्रत्यक्ष करों से भी प्रायः मुक्त थे। ऐसे समय में अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के सरकारी निर्णय ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया।

सेना का रखरखाव, दरबार का खर्च, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने जैसे अपने नियमित खर्च निपटाने के लिए सरकार कर बढ़ाने पर बाध्य हो गई। कर बढ़ाने के प्रस्ताव को पारित करने के लिए फ्रांस के सम्राट लुई XVIवें ने 5 मई, 1789 को एस्टेट के जनरल की सभा बुलाई। प्रत्येक एस्टेट को सभा में एक वोट डालने की अनुमति दी गई। तृतीय एस्टेट ने इस अन्यायपूर्ण प्रस्ताव का – विरोध किया। उन्होंने सुझाव रखा कि प्रत्येक सदस्य का एक वोट होना चाहिए। सम्राट ने इस अपील को ठुकरा दिया तथा तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि सदस्य विरोधस्वरूप सभा से चाक आउट कर गए। फ्रांसीसी जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी के कारण इसे समय खाद्यान्न की माँग बहुत बढ़ गई थी। परिणामस्वरूप, पावरोटी (अधिकतर लोगों के भोजन का मुख्य भाग) के भाव बढ़ गए। बढ़ती कीमतों व अपर्याप्त मजदूरी के कारण अधिकतर जनसंख्या जीविका के आधारभूत साधन भी वहन नहीं कर सकती थी। इससे जीविका संकट उत्पन्न हो गया तथा अमीर और गरीब के मध्य दूरी बढ़ गई।

  1. दार्शनिकों का योगदान- इस काल में फ्रांसीसी समाज में मॉण्टेस्क्यू, वोल्टेयर तथा रूसो आदि विचारकों के विचारों के कारण तर्कवाद का प्रसार आरम्भ हुआ। इन विचारकों ने अपने साहित्य द्वारा पादरियों, चर्च की सत्ता तथा सामंती व्यवस्था की जड़ों को हिला दिया। 18वीं सदी के दौरान मध्यम वर्ग शिक्षित एवं धनी बनकर उभरा। सामंतवादी समाज द्वारा प्रचारित विशेषाधिकार प्रणाली उनके हितों के विरुद्ध थी। शिक्षित होने के कारण इस वर्ग के सदस्यों की पहुँच फ्रांसीसी एवं अंग्रेज राजनैतिक एवं सामाजिक दार्शनिकों द्वारा सुझाए गए समानता एवं आजादी के विभिन्न विचारों तक थी। ये विचार सैलून एवं कॉफी-घरों में जनसाधारण के बीच चर्चा तथा वाद-विवाद के फलस्वरूप पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा लोकप्रिय हो गए। दार्शनिकों के विचारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जॉन लॉक, जीन जैक्स रूसो एवं मॉण्टेस्क्यू ने राजा के दैवीय सिद्धान्त को नकार दिया।
  2. सामाजिक परिस्थितियाँ- फ्रांस में सामंतवादी प्रथा प्रचलित थी, जो तीन वर्गों में प्रचलित थी। इन वर्गों को एस्टेट कहते थे। प्रथम एस्टेट में पादरी वर्ग आता था। इनका देश की 10% भूमि पर अधिकार था। द्वितीय एस्टेट में फ्रांस का कुलीन वर्ग सम्मिलित था। इनका देश की 30% भूमि पर अधिकार था। तृतीय एस्टेट में फ्रांस की लगभग 94% जनसंख्या आती थी। इस वर्ग में मध्यम वर्ग (लेखक, डॉक्टर, जज, वकील, अध्यापक, असैनिक अधिकारी आदि), किसानों, मजदूरों और दस्तकारों को सम्मिलित किया जाता था। यह केवल तृतीय एस्टेट ही थी जो सभी कर देने को बाध्य थी। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों को सरकार को कर देने से छूट प्राप्त थी परन्तु सरकार को कर देने के साथ-साथ किसानों को चर्च को भी कर देना पड़ता था। यह एक अन्यायपूर्ण स्थिति थी जिसने तृतीय एस्टेट के सदस्यों में असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया।
  3. तात्कालिक कारण- लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 को नए करों के प्रस्ताव हेतु सन् 1614 में निर्धारित संगठन के आधार पर तीनों एस्टेट की एक बैठक बुलाई। तृतीय एस्टेट की माँग थी कि सभी एस्टेट की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाए तथा ‘एक व्यक्ति एक मत’ के आधार पर मतदान कराया जाए। लुई सोलहवें ने ऐसा करने से मना कर दिया। अतः 20 जून को तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि टेनिस कोर्ट में एकत्रित हुए तथा नवीन संविधान बनाने की घोषणा की।

प्रश्न 2. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?

उत्तर- फ्रांसीसी क्रान्ति में सर्वाधिक लाभ तृतीय एस्टेट के धनी सदस्यों को हुआ। तृतीय एस्टेट में किसान, मजदूर, वकील, छोटे अधिकारीगण, अध्यापक, डॉक्टर एवं व्यवसायी शामिल थे। क्रांति से पहले इन्हें सभी कर अदा करने पड़ते थे। साथ ही इन लोगों को पादरियों और कुलीनों के द्वारा अपमानित भी किया जाता था। लेकिन क्रांति के बाद उनके साथ समाज के उच्च वर्ग के समान व्यवहार किया जाने लगा। पादरियों एवं कुलीन वर्ग के लोगों को अपने विशेषाधिकारों को त्यागने पर विवश होना पड़ा। क्रान्ति के परिणामों से महिलाओं को निराशा हुई क्योंकि वे लैंगिक आधार पर पुरुषों की समानता का अधिकार हासिल नहीं कर सकी।

प्रश्न 3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई?

उत्तर- इस क्रान्ति से विश्व के लोगों को निम्न विरासत प्राप्त हुई-

  1. इसने यूरोप के लगभग सभी देशों सहित दक्षिण अमेरिका में प्रत्येक क्रान्तिकारी आंदोलन को प्रेरित किया।
  2. फ्रांसीसी क्रान्ति वैश्विक स्तर पर मानव इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।
  3. इसने देश के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार की अवधारणा का प्रचार किया जो बाद में कानून के सम्मुख लोगों की समानता की धारणा का आधार बना।
  4. यह विश्व का पहला ऐसा राष्ट्रीय आंदोलन था जिसने स्वतंत्रता, समानता और भाई-चारे जैसे विचारों को अपनाया। 19वीं व 20वीं सदी के प्रत्येक देश के लोगों के लिए ये विचार आधारभूत सिद्धान्त बन गए।
  5. इसने राजतंत्रात्मक स्वेच्छाचारी शासन का अन्त कर यूरोप तथा विश्व के अन्य भागों में गणतंत्र की स्थापना को बढ़ावा दिया।
  6. राजा राममोहन राय जैसे नेता फ्रांसीसियों द्वारा राजशाही एवं उसके निरंकुशवाद के विरुद्ध प्रचारित विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे।
  7. इसने ‘राष्ट्रवादी आंदोलन’ को बढ़ावा दिया। इस क्रांति ने पोलैण्ड, जर्मनी, नीदरलैण्ड तथा इटली के लोगों को अपने देशों में राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हेतु प्रेरित किया।
  8. इस क्रान्ति ने जनता की आवाज को प्रश्रय दिया। जनता उस समय दैवी अधिकार की धारणा, सामंती विशेषाधिकार, दास प्रथा एवं नियंत्रण को समाप्त करके योग्यता को सामाजिक उत्थान का आधार बनाना चाहती थी।

प्रश्न 4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है।

उत्तर-ऐसे लोकतांत्रिक अधिकार जिनका हम आज सरलता से प्रयोग करते हैं तथा जिनका उद्भव फ्रांस की क्रान्ति के फलस्वरूप हुआ था, उनका विवरण इस प्रकार है-

  1. स्वतंत्रता का अधिकार
  2. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  3. संपत्ति का अधिकार।
  4. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  5. सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  7. एकत्र होने तथा संगठन बनाने का अधिकार
  8. विचार अभिव्यक्ति का अधिकार
  9. समानता का अधिकार

प्रश्न 5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अंतर्विरोध थे?

उत्तर- विश्व में नागरिक अधिकारों की प्रथम घोषणा का प्रयास संभवतः फ्रांस में ही किया गया। फ्रांस के सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के तीन मौलिक सिद्धान्तों पर बल दिया गया। वर्तमान में सभी लोकतांत्रिक देशों द्वारा इन सिद्धान्तों को अंगीकार किया गया है। लेकिन यह सत्य है कि फ्रांस का सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश अनेक विरोधाभासों से घिरा हुआ है

जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. व्यापार और कार्य की स्वतंत्रता का कोई उल्लेख नहीं था।
  2. स्वतंत्रता को अधिक प्रोत्साहन दिया गया था।
  3. व्यक्ति के चहुंमुखी विकास को लक्ष्य नहीं बनाया गया।
  4. शिक्षा के अधिकार को कोई महत्त्व नहीं दिया गया।
  5. घोषणा में कहा गया था कि “कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं।” किन्तु जब फ्रांस एक संवैधानिक राजशाही बना तो लगभग 30 लाख नागरिक जिनमें 25 वर्ष से कम आयु के पुरुष एवं महिलाएँ शामिल थीं, उन्हें बिल्कुल वोट ही नहीं डालने दिया गया।
  6. फ्रांस ने उपनिवेशों पर कब्जा करना व उनकी संख्या बढ़ाना जारी रखा।
  7. फ्रांस में उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक दास प्रथा जारी रही।

प्रश्न 6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?

उत्तर- नेपोलियन का उदय सन् 1796 में निर्देशिका के पतन के बाद हुआ। निदेशकों का प्रायः विधान सभाओं से झगड़ा होता था जो कि बाद में उन्हें बर्खास्त करने का प्रयास करती। निर्देशिका राजनैतिक रूप से अत्यधिक अस्थिर थी; अतः नेपोलियन सैन्य तानाशाह के रूप में सत्तारूढ़ हुआ। सन् 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट बना लिया। सन् 1799 ई. में डायरेक्टरी के शासन का अंत करके वह फ्रांस का प्रथम काउंसलर बन गया। शीघ्र ही शासन की समस्त शक्तियाँ उसके हाथों में केंद्रित हो गईं।

सन् 1793-96 के मध्य फ्रांसीसी सेनाओं ने लगभग सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोप पर विजय हासिल कर ली। जब नेपोलियन माल्टा, मिस्त्र और सीरिया की ओर बढ़ा (1797-99) तथा इटली से फ्रांसीसियों को बाहर धकेल दिया गया तब सत्ता पर नेपोलियन का कब्जा हुआ, फ्रांस ने अपने खोए हुए भूखण्ड पुनः वापस ले लिए। उसने आस्ट्रिया को सन् 1805 में, प्रशा को सन् 1806 में और रूस को सन् 1807 में परास्त किया। समुद्र के ऊपर ब्रिटिश नौ सेना पर फ्रांसीसी अपना प्रभुत्व कायम नहीं कर सके। अंततः लगभग सारे यूरोपीय देशों ने मिलकर सन् 1813 में लिव्जिंग में फ्रांस को परास्त किया। बाद में इन मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने पेरिस (फ्रांस की राजधानी) पर अधिकार कर लिया। जून, 1815 ई. में नेपोलियन ने वाटरलू में पुनः विजय प्राप्त करने का असफल प्रयास किया। नेपोलियन ने अपने शासन काल में निजी संपत्ति की सुरक्षा और नाप-तौल की एक समान दशमलव प्रणाली सम्बन्धी कानून बनाए।

प्रश्न 7. फ्रांस के नए संविधान में शक्तियों का विभाजन किस प्रकार किया गया था? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- फ्रांस में नया संविधान बनाने के लिए राष्ट्रीय सभा ने 6 जुलाई, 1789 को एक समिति गठित की थी। इस नवनियुक्त समिति ने दो आधार पर संविधान तैयार किया- (i) जनता की प्रभुता और (ii) शक्ति विभाजन। इस तरह संविधान पर मॉण्टेस्क्यू का प्रभाव स्पष्ट था। संविधान में शक्तियों का विभाजन- (i) विधायिका, (ii) कार्यपालिका और (iii) न्यायपालिका के मध्य किया गया जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. विधायिका- नए संविधान के अन्तर्गत एक सदनीय विधान सभा की स्थापना की गयी। इसमें प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित 745 सदस्य रखे गए, जिनका कार्यकाल दो वर्ष निर्धारित किया गया। निर्वाचन के लिए नागरिक दो भागों में विभक्त किए गए। जिन नागरिकों की अवस्था कम से कम 25 वर्ष की थीं, जो कम से कम 3 दिन की आय कर के रूप में देते थे और जिनके नाम नगरपालिका के रजिस्टरों में तथा राष्ट्रीय रक्षक दल में दर्ज थे वे ‘सक्रिय’ नागरिकों की श्रेणी में रखे गए, शेष ‘निष्क्रिय’ नागरिक रहे। सक्रिय नागरिक प्रति सौ नागरिकों के लिए एक निर्वाचक चुनते थे और इन निर्वाचकों का ‘निर्वाचक-मंडल’ प्रतिनिधि चुनता था। निर्वाचक के लिए यह जरूरी था कि वह संपत्ति का स्वामी हो और वर्ष में 10 दिन की आय कर के रूप में देता हो। प्रतिनिधि कोई भी सक्रिय नागरिक चुना जा सकता था, उसके लिए भूमि का स्वामी होना और 54 फ्रैंक कर के रूप में देना जरूरी था। परन्तु न्यायिक अथवा प्रशासनिक पद पर नियुक्त कोई भी व्यक्ति विधान-सभा का सदस्य नियुक्त नहीं हो सकता था। इस विधान सभा को कानून-निर्माण के पूर्ण अधिकार थे। उस पर एकमात्र नियंत्रण राजा के ‘स्थगनकारी निषेध’ (सस्पेंशन वीटो) का था। राजा किसी भी कानून को दो सत्रों के लिए स्वीकार करने से इनकार कर सकता था, परन्तु उसका यह अधिकार आर्थिक बातों में लागू नहीं होता था।
  1. कार्यपालिका- कार्यपालिका प्रमुख के रूप में राजा का अस्तित्व बना रहा। उसे मंत्रियों की नियुक्ति, सेना का नेतृत्व एवं विदेश नीति को निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त था, लेकिन विधान सभा उसके प्रभाव से पूरी तरह मुक्त थी। वह विधानसभा के अधिवेशन आमंत्रित नहीं कर सकता था, न उसे भंग कर सकता था और न ही उसके सामने कानून के प्रस्ताव ही प्रस्तुत कर सकता था। उसे केवल स्थगनकारी निषेध का अधिकार मिला। न्यायालयों तथा न्यायाधीशों पर भी उसका कोई अधिकार नहीं रहा। उसके मंत्री विधानसभा के सदस्य नहीं हो सकते थे और इस तरह उन पर सभा का कोई नियंत्रण नहीं था। इस प्रकार राष्ट्रीय सभा ने इंग्लैण्ड का अनुकरण करके संवैधानिक एकतंत्र स्थापित किया, परन्तु इसके साथ मॉण्टेस्क्यू के सिद्धान्त तथा अमेरिका के उदाहरण के अनुसार कार्यपालिका और विधायिका का परस्पर कोई संबंध नहीं रखा।
  2. न्यायपालिका- फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने देश में प्रचलित प्राचीन न्याय-व्यवस्था के स्थान पर नए केन्द्रीय एवं स्थानीय न्यायालयों का निर्माण किया। इन न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए सक्रिय न्यायाधीशों द्वारा निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। मुद्रायुक्त पत्रों का चलन अवरुद्ध कर दिया गया और जूरी द्वारा मुकदमे पर विचार करने की व्यवस्था की गयी।

प्रश्न 8. फ्रांस में राजतंत्र का अन्त एवं गणतन्त्र की स्थापना किस प्रकार हुई?

उत्तर- सन् 1791 में फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने संविधान का पूर्ण प्रपत्र तैयार किया। संविधान द्वारा राजा के अधिकार सीमित करते हुए शासन की शक्तियाँ विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में वितरित की गयीं। इस प्रकार फ्रांस, को संवैधानिक राजतंत्र में रूपांतरित किया गया। संविधान का प्रारम्भ पुरुष एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा के साथ हुआ जिन्हें नैसर्गिक एवं अहरणीय रूप में स्थापित किया गया जिन्हें कोई नहीं छीन सकता था। यह सरकार का कर्त्तव्य था कि वह प्रत्येक नागरिक के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करे।

यद्यपि लुई XVIवें ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे तथापि उसने प्रशा के राजा से गुप्त समझौता कर लिया। इससे पहले कि लुई XVIयाँ सन् 1789 की गर्मियों से चली आ रही घटनाओं को दबाने की अपनी योजनाओं पर अमल कर पाता, राष्ट्रीय सभा ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया। जनसंख्या के बड़े वर्गों का यह विश्वास था कि क्रांति को आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी क्योंकि सन् 1791 के संविधान ने धनी वर्ग को ही राजनैतिक अधिकार प्रदान किए थे। राजनैतिक क्लब उन लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण बैठक स्थल बन गए जो सरकार की नीतियों पर चर्चा करना चाहते थे और अपनी रणनीति की योजना बनाई जाती थी। इनमें से एक जैकोबिन क्लब था। जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध वर्ग से सम्बन्ध रखते थे जैसे कि छोटे दुकानदार, कारीगर, जूते बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले, नौकर तथा दैनिक मजदूर आदि। उनके नेता का नाम मैक्समिलियन रोब्सपियरे था। इन जैकोबिन लोगों को सौं कुलॉत के नाम से जाना जाने लगा। सौं कुलॉत लोग इसके अतिरिक्त एक लाल टोपी भी पहनते थे जो आजादी का प्रतीक थी।

सन् 1792 की गर्मियों में जैकोबिन लोगों ने प्रशा के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई जो कि जन आपूर्ति एवं खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों से गुस्साए हुए थे। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर आक्रमण कर दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और स्वयं राजा को घण्टों तक बंधक बनाए रखा। बाद में सभा ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। चुनाव कराए गए तथा तब से 21 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी पुरुष, चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं, सभी को वोट डालने का अधिकार मिल गया।

फ्रांस में नवनिर्वाचित सभा को कन्वेंशन नाम दिया गया। 21 सितम्बर, 1792 ई. को फ्रांस गणतन्त्र घोषित कर दिया गया। इसी के साथ फ्रांस में वंशानुगत राजतंत्र का अन्त हो गया। न्यायालय ने राजद्रोह के आरोप में लुई XVIवें को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई। प्लेस डी ला कन्कोर्ड में 21 जनवरी, 1793 को लुई XVIवें को फाँसी दे दी गयी और इसके बाद रानी मैरी ऐन्तोएनेत को भी फाँसी दे दी गयी।

प्रश्न 9. फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए प्रथम एस्टेट का उत्तरदायित्व सिद्ध कीजिए।

उत्तर- फ्रांस में प्रथम एस्टेट में पादरी वर्ग को शामिल किया जाता था। इस वर्ग में एक लाख तीस हजार के लगभग पादरी थे और इनका देश की 10 प्रतिशत भूमि पर नियंत्रण था। चर्च भी किसानों से टाइद (धार्मिक कर) नामक कर वसूलता था। इन्हें सरकारी करों से मुक्ति प्राप्त थी। साथ ही चर्च राज्य को दिए जाने वाले पंचवर्षीय अनुदान के द्वारा सरकार पर वित्तीय दबाव डालने की स्थिति में थे। फ्रांस की शिक्षा पद्धति, प्रचार के साधन तथा नैतिक व अनैतिक में अन्तर करने का अधिकार भी उन्हीं के हाथ में था।

फ्रांस का चर्च 18वीं सदी में बहुत ज्यादा बदनाम तथा अलोकप्रिय हो गया था। इस अलोकप्रियता के कारण पादरियों के व्यक्तिगत चरित्र एवं जीवन से कम तथा तत्कालीन ऐतिहासिक परिस्थितियों से अधिक संबद्ध थे। व्यक्तिगत तौर पर आम पादरी का आचरण अपने युग के अनुकूल ही था, उससे बुरा नहीं। लोगों की नजरों में खटकने वाली बात तो यह थी कि चर्च की बढ़ती हुई सम्पदा के साथ पादरी अपने धार्मिक कर्त्तव्यों की उपेक्षा करते जा रहे थे। चर्च की अलोकप्रियता का एक मुख्य कारण फ्रांस, विशेषकर उसके नगरों तथा मध्यम वर्ग के व्यक्तियों में लोकप्रिय होती हुई संशयवाद की प्रवृत्ति थी जिसके प्रभाव में ईश्वर का अस्तित्व तथा चर्च की उपयोगिता दोनों ही विवाद का विषय बन गए थे। एक दूसरा कारण चर्च के सामंतीय अधिकार तथा उनका कठोरता के साथ लागू किया जाना था, जिसके कारण किसानों में उसके विरुद्ध असंतोष उत्पन्न होता रहा। अन्त में पादरी-वर्ग के अन्दर ही एकता का अभाव था। चर्च के उच्च पदों पर कुलीन-वर्ग के वंशजों का एकाधिकार था और इससे छोटे पादरियों में असंतोष बढ़ा तथा वे चर्च के प्रजातंत्रीय स्वरूप की स्थापना हेतु उत्सुक हो रहे थे।

प्रश्न 10. क्रांति से पहले की फ्रांस की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर- क्रान्ति (1789) से पहले फ्रांस की आर्थिक स्थिति – फ्रांस की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कठिन दौर से गुजर रही थी, ऐसे में सरकार की फिजूलखचीं ने दशा को और भी शोचनीय बना दिया। उस समय फ्रांस में कर दो प्रकार के थे- प्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष कर (टाइथ) जायदाद, व्यक्तिगत संपत्ति तथा आय पर लिए जाते थे। कुलीन वर्ग और पादरी इनमें से कुछ करों से तो बिल्कुल मुक्त थे और शेष करों से प्रायः मुक्त थे क्योंकि कर निर्धारण करने वाले राज्य-कर्मचारी डरकर उन पर नाममात्र का कर लगाया करते थे। उसकी सारी कमी शेष जनता पर कर लगाकर पूरी की जाती थी और इस प्रकार उस पर करों का अत्यधिक भार था। कुलीन-वर्ग और पादरी भी सम्पन्न थे, रुपये में तीन आने भी कर नहीं देते थे जबकि मध्यम वर्ग के व्यक्ति से प्रायः दस गुना कर वसूल लिया जाता था। परोक्ष करों में मुख्य रूप से नमक, शराब, तंबाकू आदि पर लिए जाने वाले कर थे।

दूषित कर-व्यवस्था के फलस्वरूप राज्य जनता की सम्पत्ति का राष्ट्रीय कामों के लिए उपयोग नहीं कर सकता था। उसकी वाणिज्य-नीति भी ऐसी थी जिसमें राज्य में सम्पत्ति की उत्पत्ति भी पूरी तरह न हो पाती थी। फ्रेंच व्यापार अभी पूरी तरह से उन्नति नहीं कर पाया था। इस दोषपूर्ण अर्थ-व्यवस्था का परिणाम यह निकला कि राज्य का व्यय हमेशा ही उसकी आय से अधिक रहा था तथा इस घाटे की पूर्ति हेतु सरकार को ऋण का आश्रय लेना पड़ा। अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के सरकारी निर्णय ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया। अगर इस संघर्ष में सम्मिलित होने के समय को फ्रांस सरकार के संकट का प्रारम्भ-बिन्दु माना जाए तो अत्युक्ति न होगी। इस संघर्ष की सफल समाप्ति ने फ्रांस में स्वतंत्रता की भावना को बल ही प्रदान नहीं किया अपितु उसका आर्थिक भार सरकार के लिए एक असह्य बोझ सिद्ध हुआ जिसे सम्भाल सकने के कारण वह टूटकर बिखर गई।

प्रश्न 11. फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की सामाजिक दशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर- क्रांति के समय फ्रांस का सामाजिक ढाँचा दोषपूर्ण था। सभी लोगों को न तो एक समान समझा जाता था और न हीं उन्हें समान अधिकार प्राप्त थे। समाज में सभी लोग समान और स्वतंत्र नहीं थे। कुछ लोगों को विशेष अधिकार मिले हुए थे, परंतु कुछ लोगों को कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं था। वास्तव में फ्रांस का समाज तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था- सामंत, चर्च के अधिकारी और साधारण जनता। सामंत और चर्च के अधिकारियों को राज्य की ओर से विशेष अधिकार प्राप्त थे। ये सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। इनकी कुल संख्या देश की जनसंख्या का लगभग एक प्रतिशत थी। इतनी कम संख्या में होने पर भी ये लोग बहुत ज्यादा प्रभाव रखते थे। इनके विपरीत साधारण जनता संख्या में बहुत अधिक थी, परंतु इसकी स्थिति दयनीय थी। इसे कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे। करों का सारा बोझ इसी वर्ग के ऊपर था। समाज की इस असमानता के कारण लोगों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। मेडलिन के शब्दों में, “सन् 1789 की क्रांति निरंकुशता की अपेक्षा असमानता के विरुद्ध एक विद्रोह था।”

  1. चर्च के अधिकारी- चर्च फ्रांस राज्य के अंदर एक अन्य राज्य के समान था। चर्च की अपनी अलग सरकार थी और इसके अपने कर्मचारी थे। फ्रांस 1/5 की भूमि का भाग इसकी संपत्ति थी। इस भूमि से चर्च को भारी आय प्राप्त होती थी। इसके अलावा चर्च को लोगों पर कर लगाने का अधिकार भी प्राप्त था। भूमि की उपज का 1/10 भाग चर्च को कर के रूप में मिलता था। चर्च को अपनी भूमि तथा संपत्ति पर राज्य को कोई कर नहीं देना पड़ता था। इन सभी बातों के कारण चर्च की शक्ति और प्रभाव की कोई सीमा न थी। राज्य के बाद शक्ति तथा प्रभाव में चर्च का ही नंबर आता था। चर्च की प्रभावशाली पुरोहित-श्रेणी को दो भागों में बाँटा जा सकता था-उच्च पुरोहित और सामान्य पुरोहित।

(i) साधारण पुरोहित- सामान्य पुरोहितों की संख्या सवा लाख के लगभग थी। उच्च पुरोहितों ने धार्मिक कर्त्तव्यों का भार इन पुरोहितों पर छोड़ रखा था। इनकी दशा बड़ी शोचनीय थी। ये बच्चों को पढ़ाते थे और साधारण लोगों की भाँति बड़ी कठिनाई से जीवन व्यतीत करते थे। वास्तव में सारा काम यही लोग करते थे, परंतु चर्च की आय में से इन्हें बहुत ही कम भाग मिलता था। परिणामस्वरूप साधारण पुरोहित उच्च पुरोहितों से घृणा करते थे। यही कारण था कि क्रांति के समय उन्होंने जनता का साथ दिया।

(ii) उच्च पुरोहित– फ्रांस में उच्च पुराहितों की संख्या लगभग 6,000 थी। ये लोग बड़े प्रभावशाली थे। ये सामंतों की भाँति बड़ी शान से रहते थे। उनके पास विशाल दुर्ग, भव्य गिरजाघर, सुंदर महल, मूल्यवान चित्र, सोने के बर्तन और हीरे-जवाहरात जड़ित चोगे थे। इनमें कुछ ऐसे भी थे जो राजदरबार में विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे और षड्यंत्रों में भाग लेते थे। इन्होंने अपने धार्मिक कर्त्तव्यों का पालन करना छोड़ दिया था। इनमें से कुछ पुरोहितों की वार्षिक आय लाखों डालर थी। इस राशि को वे सहभोजों तथा मदिरापान में उड़ा देते थे। उन्हें न तो राज्य-कर देने की कोई चिंता थी और न ही राज्य के प्रति कोई कर्त्तव्य निभाने की। ये बातें तो केवल साधारण जनता के भाग्य में लिखी थीं। उस समय फ्रांस में लोग कहा करते थे, “जागीरदार युद्ध करते हैं पुरोहित प्रार्थना करते हैं और जनता कर देती है।”

  1. सामंत – उच्च पुरोहितों की भाँति सामंतों को भी अनेक प्रकार के विशेष अधिकार प्राप्त थे। ये सामंत फ्रांस की कुल भूमि के 1/4 भाग के स्वामी थे। ये सभी प्रकार के करों से मुक्त थे।

 

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