UP Board Solution of Class 9 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter- 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे (Aadhunik Vishwa men Charvahe ) लघु उत्तरीय प्रश्न Laghu Uttariy Prashn
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 9वीं की सामाजिक विज्ञान इकाई-1: इतिहास भारत और समकालीन विश्व-1 खण्ड-2 जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज के अंतर्गत चैप्टर-5 आधुनिक विश्व में चरवाहे (Aadhunik Vishwa men Charvahe ) पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 9th] |
Chapter Name | आधुनिक विश्व में चरवाहे (Aadhunik Vishwa men Charvahe ) |
Part 3 | History [इतिहास] |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | भारत और समकालीन विश्व-1 |
आधुनिक विश्व में चरवाहे (Aadhunik Vishwa men Charvahe )
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राइका समुदाय के जीवन-विधि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- राइका देश के पश्चिमी राज्य राजस्थान का प्रमुख चरवाहा समुदाय है। यह क्षेत्र वर्ष में बहुत कम वर्षा प्राप्त करता है। इसीलिए खेती की उपज हर साल घटती-बढ़ती रहती थी। बहुत सारे इलाकों में तो दूर-दूर तक कोई फसल होती ही नहीं थी। इसके चलते राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे। बरसात में तो बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के राइका अपने गाँवों में ही रहते थे क्योंकि इस दौरान उन्हें वहीं चारा मिल जाता था। लेकिन अक्टूबर आते-आते ये चरागाह सूखने लगते थे। परिणामस्वरूप ये लोग नए चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ निकल जाते थे और अगली बरसात में ही वापस लौटते थे। राइकाओं का एक वर्ग ऊँट पालता था जबकि कुछ भेड़-बकरियाँ पालते थे।
प्रश्न 2. अफ्रीका के निर्धन चरवाहों का जीवन उनके मुखिया से किस तरह अलग था?
उत्तर- मुखियाओं के पास नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेल कर बचे रह सकते थे। उन्हें अब चरवाही एवं गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी और अगर उनके जानवर किसी वजह से घट जाते तो वे और जानवर खरीद सकते थे। किन्तु ऐसे चरवाहों का जीवन इतिहास अलग था जो केवल अपने पशुओं पर ही निर्भर थे। प्रायः उनके पास बुरे समय में बचे रहने के लिए स्थान नहीं होते थे। युद्ध और अकाल के दिनों में वे अपना लगभग सब कुछ गंवा बैठते थे।
प्रश्न 3. कोंकण के स्थानीय किसान धंगर चरवाहों का स्वागत क्यों करते हैं?
उत्तर- कोंकण एक उपजाऊ क्षेत्र है और यहाँ पर्याप्त वर्षा होती है। यहाँ के किसान चावल की खेती करते हैं। वे दो कारणों से धंगर चरवाहों का स्वागत करते
- धंगर के पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र मिट्टी में मिल जाता है जिससे भूमि पुनः उर्वरता प्राप्त कर लेती है। प्रसन्न होकर कोंकण के किसान धंगरों को चावल देते हैं जो वे वापस लौटते समय अपने साथ ले जाते हैं।
- जब धंगर कोंकण पहुंचते हैं तब तक खरीफ की कटाई हो चुकी होती है। तब किसानों को अपने खेत रबी की फसल के लिए तैयार करने होते हैं। उनके खेतों में धान के ठूंठ अभी मिट्टी में फैसे होते हैं। धंगरों के पशु इन दूंठों को खा जाते हैं और मिट्टी साफ हो जाती है।
प्रश्न 4. औपनिवेशिक प्रतिबन्धों ने चरवाहा समुदाय पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर- औपनिवेशिक प्रतिबन्धों ने चरवाहा समुदाय को निम्न प्रकार से प्रभावित किया-
- इससे चरागाह क्षेत्रों के कमी की समस्या उत्पन्न हो गई जिसके कारण चरवाहा समुदायों के सामने रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया।
- चरागाहों की कमी होने के कारण बचे हुए चरागाहों पर दबाव बहुत अधिक बढ़ गया जिससे चरागाहों की गुणवत्ता में कमी आई।
- वनों को आरक्षित कर दिया गया जिसके कारण वे वनों में पहले की तरह आजादी से अपने पशुओं को नहीं चरा सकते थे।
- चारे की मात्रा और गुणवत्ता में कमी का प्रभाव पशुओं के स्वास्थ्य एवं संख्या पर भी पड़ा।
प्रश्न 5. चराई-कर ने चरवाहा समुदाय पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर-चराई कर का चरवाहा समुदाय पर प्रभाव- भारत में अंग्रेज सरकार ने 19वीं शताब्दी के मध्य अपनी आय बढ़ाने के लिए अनेक नए कर लगाए। इन्हीं में से एक चराई कर था, जो पशुओं पर लगाया गया था। यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था। कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ-साथ यह कर निरन्तर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परन्तु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया। ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को एक निश्चित कर ही देते थे। फलस्वरूप खानाबदोशों का शोषण होने लगा। अतः बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। फलस्वरूप खानाबदोशों के लिए रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।
प्रश्न 6. औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पर कौन-से प्रतिबन्ध लगाए थे?
उत्तर- औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पर निम्न प्रतिबन्ध लगाए-
- औपनिवेशिक सरकार ने उनके आने-जाने पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिए।
- मासाई लोगों के रेवड़ चराने के विशाल क्षेत्रों को शिकारगाह बना दिया गया। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों को आना मना था।
- वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कट गए और उन्हें एक ऐसी अर्द्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर मजबूर कर दिया गया जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी।
- मूल निवासियों को भी पास जारी किए गए थे जिन्हें दिखाए बिना उन्हें प्रतिबन्धित क्षेत्रों में प्रवेश करने नहीं दिया जाता था।
- बिना किसी वैध परमिट के इन समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।
- चरवाहा समुदायों को विशेष रूप से निर्धारित स्थानों पर निवास करने के लिए बाध्य किया गया।
प्रश्न 7. बार-बार पड़ने वाले अकाल का मासाई समुदाय के चरागाहों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- अकाल किसी भी स्थान की फसलों, चरागाहों और जन-जीवन पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। वर्षा न होने पर चरागाह सूख जाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि चरवाहे स्थानान्तरण न करें तो भोजन के अभाव में जानवरों की मृत्यु निश्चित है। फिर भी औपनिवेशिक प्रशासन में मासाई लोगों को प्रतिबन्धित क्षेत्रों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना ये लोग इनकी सीमाओं के बाहर नहीं जा सकते थे। 1933 और 1934 ई. में पड़े केवल दो वर्ष के भयंकर सूखे में मासाई आरक्षित क्षेत्र के आधे से अधिक जानवर मर चुके थे।
जैसे-जैसे चरने की जगह सिकुड़ती गई, सूखे के दुष्परिणाम भयानक रूप लेते चले गए। बार-बार पड़ने वाले सूखे की वजह से चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई।