UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 2 – Padavali – पदावली (मीराबाई) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 2 पदावली का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर पदावली सम्पूर्ण पाठ के साथ मीराबाई का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।
Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Poetry Section Chapter Padavali. Here the complete text, biography and works of Mirabai along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given.
Chapter Name | Padavali – पदावली (मीराबाई) Mirabai |
Class | 9th |
Board Nam | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary) |
जीवन– परिचय
मीराबाई
स्मरणीय तथ्य
जन्म | सन् 1498 ई० |
मृत्यु | 1546 ई० के आसपास । |
पति | महाराणा भोजराज । |
पिता | रतन सिंह । |
रचना | गेय पद। |
काव्यगत विशेषताएँ
वर्ण्य–विषय | विनय, भक्ति, रूप-वर्णन, रहस्यवाद, संयोग वर्णन। |
रस | श्रृंगार (संयोग-वियोग), शान्त। |
भाषा | ब्रजभाषा, जिसमें राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पंजाबी और फारसी के शब्द मिले हैं। |
शैली | गीतकाव्य की भावपूर्ण शैली। |
छन्द | राग-रागनियों से पूर्ण गेय पद। |
अलंकार | उपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि। |
जीवन–परिचय
मीराबाई का जन्म राजस्थान में मेड़ता के पास चौकड़ी ग्राम में सन् 1498 ई० के आसपास हुआ था। इनके पिता का नाम रतनसिंह था। उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ इनका विवाह हुआ था, किन्तु विवाह के थोड़े ही दिनों बाद इनके पति की मृत्यु हो गयी।
मीरा बचपन से ही भगवान् कृष्ण के प्रति अनुरक्त थीं। सारी लोक-लज्जा की चिन्ता छोड़कर साधुओं के साथ कीर्तन-भजन करती रहती थीं। उनका इस प्रकार का व्यवहार उदयपुर के राज-मर्यादा के प्रतिकूल था। अतः उन्हें मारने के लिए जहर का प्याला भी भेजा गया था, किन्तु ईश्वरीय कृपा से उनका बाल-बाँका तक नहीं हुआ। परिवार से विरक्त होकर वे वृन्दावन और वहाँ से द्वारिका चली गयीं और सन् 1546 ई० में स्वर्गवासी हुईं।
रचनाएँ
मीराबाई ने भगवान् श्रीकृष्ण के प्रेम में अनेक भावपूर्ण गेय पदों की रचना की है जिसके संकलन विभिन्न नामों से प्रकाशित हुए हैं। नरसीजी का मायरा, राम गोविन्द, राग सोरठ के पद, गीत गोविन्द की टीका मीराबाई की रचनाएँ हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भाव–पक्ष–मीरा कृष्णभक्ति शाखा की सगुणोपासिका भक्त कवयित्री हैं। इनके काव्य का वर्ण्य-विषय एकमात्र नटवर नागर श्रीकृष्ण का मधुर प्रेम है।
(1) विनय तथा प्रार्थना सम्बन्धी पद – जिनमें प्रेम सम्बन्धी आतुरता और आत्मस्वरूप समर्पण की भावना निहित है।
(2) कृष्ण के सौन्दर्य वर्णन सम्बन्धी पद – जिनमें मनमोहन श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
(3) प्रेम सम्बन्धी पद – जिनमें मीरा के श्रीकृष्ण प्रेम सम्बन्धी उत्कट प्रेम का चित्रांकन है। इनमें संयोग और वियोग दोनों पक्षों का मार्मिक वर्णन हुआ है।
(4) रहस्यवादी भावना के पद – जिनमें मीरा के निर्गुण भक्ति का चित्रण हुआ है।
(5) जीवन सम्बन्धी पद – जिनमें उनके जीवन सम्बन्धी घटनाओं का चित्रण हुआ है।
भाषा– शैली– ब्रजभाषा, जिसमें राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पंजाबी और फारसी के शब्द मिले हैं। और इनकी शैली गीतकाव्य की भावपूर्ण शैली।
पदावली
बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल, अरुण तिलक दिये भाल।।
मोहनि मूरति साँवरि सूरति, नैना बने बिसाल।
अधर-सुधा-रस मुरली राजत, उर बैजंती-माल ।।
छुद्र घंटिका कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल ।। 1 ।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य‘ में संकलित श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीराबाई के काव्य-ग्रन्थ ‘मीरा–सुधा–सिन्धु‘ के अन्तर्गत ‘पदावली‘ शीर्षक से अवतरित है।
व्याख्या– कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा कहती हैं कि नन्दजी को आनन्दित करने वाले है श्रीकृष्ण! आप मेरे नेत्रों में निवास कीजिए। आपका सौन्दर्य अत्यन्त आकर्षक है। आपके सिर पर मोर के पंखों में निर्मित मुकुट एवं कानों में मछली की आकृति के कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं। मस्तक पर लगे हुए लाल तिलक और सुन्दर विशाल नेत्रों से आपका श्यामवर्ण का शरीर अतीव सुशोभित हो रहा है। अमृतरस से भरे आपके सुन्दर होंठों पर बाँसुरी शोभायमान हो रही है। आप हृदय पर वन के पत्र-पुष्पों से निर्मित माला धारण किये हुए हैं। आपकी कमर में बँधी करधनी में छोटी-छोटी घण्टियाँ सुशोभित हो रही हैं। आपके चरणों में बँधे घुँघरुओं की मधुर ध्वनि बहुत रसीली प्रतीत होती है। हे प्रभु! आप सज्जनों को सुख देनेवाले, भक्तों से प्यार करनेवाले और अनुपम सुन्दर हैं। आप मेरे नेत्रों में बस जाओ।
काव्यगत सौन्दर्य
- यहाँ भगवान् कृष्ण की मनमोहक छवि का परम्परागत वर्णन किया गया है।
- मीराबाई की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना प्रकट हुई है।
भाषा – सुमधुर ब्रज ।
शैली– मुक्तक काव्य की पद शैली है।
छन्द – संगीतात्मक गेय पद।
रस – भक्ति एवं शान्त।
अलंकार– ‘मोर मुकुट मकराकृति कुण्डल’ तथा ‘मोहनि मूरति साँवरि सूरति’ में अनुप्रास है।
भाव–साम्य – कविवर बिहारी भी मीरा की तरह कृष्ण के इस रूप को अपने मन में बसाना चाहते हैं-
पायो जी म्हैं तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोइ चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायो।।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भव-सागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो।।2।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या– मैंने भगवान् के नामरूपी रत्न सम्पदा को प्राप्त कर लिया। मेरे सच्चे गुरु ने यह अमूल्य वस्तु मुझ पर दया करके मुझे प्रदान की थी, मैंने उसे अंगीकार किया था। इस प्रकार मैंने गुरुदीक्षा के कारण कई जन्मों की संचित पूँजी (पुण्य फल) प्राप्त कर ली और संसार की सारी मोह-मायाओं का त्याग कर दिया। यह राम नाम की पूँजी ऐसी विचित्र है कि यह खर्च करने पर भी कम नहीं होती और न इसे चोर ही चुरा सकते हैं। यह प्रतिदिन अधिक होती जाती है। मैंने इसी सत्यनाम (ईश्वर का नाम) रूपी नौका पर सवार होकर, जिसके केवट मेरे सच्चे गुरु हैं, संसाररूपी सागर को पार कर लिया है। अंत में मीराबाई कहती हैं कि गिरधरनागर श्रीकृष्ण भगवान् ही एकमात्र मेरे स्वामी हैं। मैं प्रसन्न होकर उनका गुणगान कर रही हूँ।
काव्यगत सौन्दर्य
अलंकार– अनुप्रास और रूपक ।
भाषा – राजस्थानी मिश्रित ब्रज।
शैली– मुक्तक ।
छंद– गेयपद ।
रस – शान्त और भक्ति।
माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल।
कोई कहै छाने कोई कहे चुपके, लियो री बजन्ता ढोल।।
कोई कहै मुँहघो कोई कहै मुँहघो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल।।
याही कूँ सब जाणत हैं, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूँ प्रभु दरसण दीन्यौ, पूरब जनम कौ कौल ।।3।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – मीरा कहती हैं-मैंने तो अपने गोविन्द को मोल ले लिया है। लोग मेरे इस प्रेम-व्यापार पर नाना प्रकार के आक्षेप करते हैं। कोई कहता है कि मैंने श्रीकृष्ण को छिपकर अपनाया है और कोई कहता है कि मैंने उससे चुपचाप प्रेम-सम्बन्ध जोड़ा है, पर मैंने तो ढोल बजाकर सभी को बताकर उसे अपनाया है। कोई कहता है कि मेरा यह सौदा बड़ा महँगा (कष्टदायक) है और कोई कहता है कि मैंने श्रीकृष्ण को बड़े सस्ते में (सहज प्रयत्न से) पा लिया है, पर मैंने उसे सब प्रकार से परखकर, हृदयरूपी तराजू पर तौलकर मोल लिया है। चाहे उसे कोई काला कहे चाहे गोरा, मेरे लिए तो वह जैसा भी है, अमूल्य है, क्योंकि उसे हृदय जैसी मूल्यवान वस्तु के बदले खरीदा गया है। सभी जानते हैं कि मीरा ने कृष्ण को आँख बन्द करके-अंधविश्वास में लिप्त होकर स्वीकार नहीं किया है। उसने तो आँखें खोलकर, सब कुछ सोच समझकर उससे प्रीति सम्बन्ध जोड़ा है। मीरा कहती हैं- मेरे प्रभु पूर्वजन्म से मेरे साथ वचनबद्ध हैं, अतः उन्होंने मुझे दर्शन देकर कृतार्थ किया है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा– सरस, सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त ऊजी है।
शैली–आत्मनिवेदनात्मक, भावात्मक तथा व्यंग्य का संस्पर्श लिये है।
रस–भक्ति।
गुण–प्रसाद।
छन्द-गेय पद।
अनेक मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
मैं तो साँवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बाँधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाँची।।
गयी कुमति लई साधु की संगति, भगत रूप भई साँची।
गाय-गाय हरि के गुण निसदिन, काल ब्याल सूँ बाँची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब काँची।
मीरा श्री गिरधरन लाल सूँ, भगति रसीली जाँची।।4।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – मीरा कहती हैं कि मैं तो साँवले कृष्ण के श्याम रंग में रँग गयी हूँ अर्थात् उनके प्रेम में आत्मविभोर हो गयी हूँ। मैंने तो लोक-लाज को छोड़कर अपना पूरा श्रृंगार किया है और पैरों में घुँघरू बाँधकर नाच भी रही हूँ। साधुओं की संगति से मेरे हृदय की सारी कालिमा मिट गयी है और मेरी दुर्बुद्धि भी सद्बुद्धि में बदल गयी है और मैं श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त बन गयी हूँ। मैं प्रभु श्रीकृष्ण का नित्य गुणगान करके कालरूपी सर्प के चंगुल से बच गयी हूँ अर्थात् अब मैं जन्म-मरण के चक्र से छूट गयी हूँ। अब कृष्ण के बिना मुझे यह संसार निस्सार और सूना लगता है, अतः उनकी बातों के अलावा अन्य बातें व्यर्थ लगती हैं। मीराबाई को केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में ही आनन्द मिलता है, संसार की किसी अन्य वस्तु में नहीं।
काव्यगत सौन्दर्य
(1) श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की एकनिष्ठ भक्ति का सुन्दर चित्रण हुआ है।
(2) कृष्ण की दीवानी मीरा को उनके बिना यह संसार निस्सार और सूना लगता है।
भाषा – राजस्थानी मिश्रित ब्रज
शैली–मुक्तक ।
छन्द – गेय पद।
रस – भक्ति और शान्त ।
गुण – माधुर्य ।
अलंकार – अनुप्रास, रूपक।
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बन्धु, आपनो न कोई।।
छॉड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई। संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई ।।
अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेलि बोई। अब तो बेल फैल गयी, आणंद फल होई।।
भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई ।।5।।
सन्दर्भ– पूर्ववत्
व्याख्या – मीरा कहती हैं- अब तो मैं अपना नाता केवल एक श्रीकृष्ण से मानती हूँ और कोई भी मेरा इस संसार में अपना नहीं है। सिर पर मोरमुकुट धारण करनेवाले नटवर-नागर ही मेरे पति हैं। पिता, माता, भाई, बन्धु आदि से अब मेरा कोई नाता नहीं रहा। मैंने तो कृष्ण-प्रेम के लिए अपने कुल की प्रतिष्ठा को भी त्याग दिया है। अब मेरा कोई क्या कर लेगा? सभी कहते हैं कि मैंने सन्तों का सत्संग करके स्त्रियोचित लोक-लज्जा को भी तिलांजलि दे दी है। पर मुझे इसकी चिन्ता नहीं। मैंने अपनी कृष्ण- प्रेम की लता को अपने आँसुओं से सींचकर (महान् कष्ट सहन करके) बढ़ाया है। अब तो यह प्रेम-लता बहुत फैल चुकी है, अब तो इस पर आनन्दरूपी फल लगनेवाले हैं। मुझे तो अब केवल प्रियतम कृष्ण की भक्ति में ही सुख मिलता है। सांसारिक विषयों को देखकर मेरा मन दुःखी होता है। मीराबाई कह ‘रही हैं कि हे गिरिधर गोपाल ! अब आप अपनी दासी मीरा का उद्धार कीजिए और उसे अपनाकर धन्य बना दीजिए।
काव्यगत सौन्दर्य
(1) श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम-भाव और भक्ति को मीरा ने हृदयस्पर्शी शब्दावली में साकार किया है।
अलंकार– अनुप्रास रूपक (‘प्रेम-बेलि’ और ‘आनन्द-फल’) तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं।
भाषा –सरस, सरल, किन्तु भाव-वहन में पूर्ण समर्थ है।
शैली–आत्मनिवेदनात्मक एवं भावात्मक है।
गुण–प्रसाद, छन्द-गेय पद।
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निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
(क) बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोर मुकुट मकराकृति कुंडल, अरुण तिलक दिए भाल।।
मोहनि मूरति साँवरि सूरति, नैना बने बिसाल।
अधर-सुधा-रस मुरली राजत, उर बैजंती-माल ।।
छुद्र घंटिका कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल ।।
प्रश्न– (1) मीरा किसे अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं?
उत्तर–मीरा भगवान श्रीकृष्ण को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं।
(ii) मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर–मीरा कहती हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के सिर पर मोर के पंखों से निर्मित मुकुट और कानों में मछली के आकार का कुण्डल और माथे पर तिलक सुशोभित हो रहा है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश में किस रस की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर–भक्ति एवं श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है।
(iv) मीरा अपने हृदय में किसे बसा लेना चाहती है?
उत्तर–मीरा अपने हृदय में आराध्य देव श्रीकृष्ण की मनमोहनी छवि को बसा लेना चाहती हैं।
(v) ‘मोहनि मूरति साँवरि सूरति‘ में कौन–सा अलंकार है?
उत्तर–अनुप्रास अलंकार है।
(ख) पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोइ चोर न लेवै, दिनदिन बढ़त सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भव-सागर तर आयो।
मीरों के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो।।
प्रश्न– (i) मीरा ने किस सम्पदा को प्राप्त कर लिया है?
उत्तर–मीरा ने राम रूपी रत्न सम्पदा को प्राप्त कर लिया है।
(ii) कौन–सी पूँजी खर्च करने पर भी कम नहीं होती और न इसे चोर ही चुरा सकता है?
उत्तर–राम नाम की पूँजी खर्च करने पर भी समाप्त नहीं होती और न ही इसे चोर चुरा सकते हैं।
(iii) मीरा ने किस सागर को पार कर लिया है?
उत्तर– मीरा ने संसार रूपी सागर को पार कर लिया है।
(iv) ज्ञानरूपी अमूल्य रत्न किसकी कृपा से प्राप्त होता है? मुक्ति का साधन क्या है?
उत्तर–ज्ञानरूपी अमूल्य रत्न सद्गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है। ईश्वर की भक्ति ही मुक्ति का साधन है।
(ग) मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात आत बन्धु, आपनो न कोई।।
छाड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई।
संतन डिंग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई।।
अँसुवन जल सीचि-सीचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गयी, आणंद फल होई।।
भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।।
प्रश्न– (i) मीरा ने किसे अपना पति माना है?
उत्तर– मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति माना है।
(ii) मीरा का मन क्या देखकर दुःखी होता है?
उत्तर– सांसारिक विषयों को देखकर मीरा का मन दुःखी होता है।
(iii) मीरा ने किसलिए अपने कुल की प्रतिष्ठा का त्याग किया है?
उत्तर–मीरा ने कृष्ण प्रेम के लिए अपने कुल की प्रतिष्ठा को भी त्याग दिया है।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में किसकी व्यंजना हुई है?
उत्तर–इस पद्यांश में कृष्ण भक्ति से प्राप्त होने वाले आनन्द व्यंजना हुई है।
(v) मीरा किससे और क्या विनती करती हैं?
उत्तर–मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण से विनती करती है कि हे गिरिधर की सुन्दर गोपाल! अपनी संसाररूपी सागर के पार उतार दो। मुझे जीवन-मरण के बन्धन से छुटकारा दे दो। दासी मीरा को