UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 11 -Achcha Hota, Sitar Sangeet Ki Raat- अच्छा होता, सितार-संगीत की रात (केदारनाथ अग्रवाल) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 11 -Achcha Hota, Sitar Sangeet Ki Raat- अच्छा होता, सितार-संगीत की रात (केदारनाथ अग्रवाल) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी पद्य खण्ड के पाठ 11 अच्छा होता, सितार-संगीत की रात का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर अच्छा होता, सितार-संगीत की रात सम्पूर्ण पाठ के साथ केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय एवं कृतियाँ,द्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात पद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi  Poetry Section Chapter Achcha Hota, Sitar Sangeet Ki Raat. Here the complete text, biography and works of  Kedarnath Agarwal along with solution of Poetry based quiz i.e. Poetry and practice questions are being given. 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Achcha Hota, Sitar Sangeet Ki Raat- अच्छा होता, सितार-संगीत की रात (केदारनाथ अग्रवाल) Kedarnath Agarwal
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,पद्यांशो का हल (Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

केदारनाथ अग्रवाल

स्मरणीय तथ्य

जन्म 1 अप्रैल, सन् 1911 ई०।
मृत्यु 22 जून, सन् 2000 ई०।
जन्म-स्थान बाँदा (कमासिन गाँव)।
पिता का नाम श्री हनुमान प्रसाद।
भाषा-सरल सहज, सीधी-ठेठ।

      जीवन-परिचय 

केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी प्रगतिशील कविता के अन्तिम रूप से गौरवपूर्ण स्तम्भ थे। ग्रामीण परिवेश और लोकजीवन को सशक्त वाणी प्रदान करनेवाले कवियों में केदारनाथ अग्रवाल विशिष्ट हैं। परम्परागत प्रतीकों को नया अर्थ सन्दर्भ देकर केदार जी ने वास्तुतत्त्व एवं रूपतत्त्व दोनों में नयेपन के आग्रह को स्थापित किया है। अग्रवाल जी प्रज्ञा और व्यक्तित्व-बोध को महत्त्व देनेवाले प्रगतिशील सोच के अग्रणी कवि हैं।

अमर कवि केदारनाथ अग्रवाल बाँदा की धरती में कमासिन गाँव में 1 अप्रैल, 1911 ई० को पैदा हुए। इनकी माँ का नाम घसिट्टो एवं पिता हनुमान प्रसाद थे, जो बहुत ही रसिक प्रवृत्ति के थे। रामलीला वगैरह में अभिनय करने के साथ ब्रजभाषा में कविता भी लिखते थे। केदार बाबू ने काव्य के संस्कार अपने पिता से ही ग्रहण किये थे।

केदार बाबू की शुरुआती शिक्षा अपने गाँव कमासिन में ही हुई। कक्षा तीन पढ़ने के बाद रायबरेली पढ़ने के लिए भेजे गये, जहाँ उनके बाबा के भाई गया बाबा रहते थे। छठी कक्षा तक रायबरेली में शिक्षा पाकर, सातवीं-आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कटनी एवं जबलपुर भेजे गये, वह सातवीं में पढ़ ही रहे थे कि नैनी (इलाहाबाद) में एक धनी परिवार की लड़की पार्वती देवी से विवाह हो गया, जिसे उन्होंने पत्नी के रूप में नहीं प्रेमिका के रूप में लिया गया, ब्याह में युवती लाने/प्रेम ब्याह कर संग में लाया।

विवाह के बाद उनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई। नवीं में पढ़ने के लिए उन्होंने इविंग क्रिश्चियन कालेज में दाखिला लिया। इण्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद केदार बाबू ने बी० ए० की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।

यहाँ उनका सम्पर्क शमशेर और नरेन्द्र शर्मा से हुआ। घनिष्ठता बढ़ी। उनके काव्य संस्कारों में एक नया मोड़ आया। साहित्यिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ी। फलतः वह बी० ए० में फेल हो गये। इसके बाद वकालत पढ़ने कानपुर आये। यहाँ डी० ए० वी० कालेज में दाखिला लिया।

सन् 1937 में कानपुर से वकालत पास करने के बाद सन् 1938 में बाँदा आये। इस समय उनके चाचा बाबू मुकुन्द लाल शहर के नामी वकीलों में से थे। उनके साथ रहकर वकालत करने लगे।

वकालत केदार जी के लिए कभी पैसा कमाने का जरिया नहीं रही। कचहरी ने उनके दृष्टिकोण को मार्क्स के दर्शन के प्रति और आधारभूत दृढ़ता प्रदान की।

सन् 1963 से 1970 तक सरकारी वकील रहे। सन् 1972 ई० में बाँदा में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन का आयोजन किया। सन् 1973 ई० में उनके काव्य संकलन, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ के लिए उन्हें ‘सोवियतलैण्ड नेहरू’ सम्मान दिया गया। 1974 ई० में उन्होंने रूस की यात्रा सम्पन्न की। 1981 ई० में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने पुरस्कृत एवं सम्मानित किया। 1981 ई० में मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ ने उनके कृतित्व के मूल्यांकन के लिए ‘महत्त्व केदारनाथ अग्रवाल’ का आयोजन किया। 1987 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने उन्हें उनके ‘अपूर्वा’ काव्य संकलन के लिए अकादमी सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1990-91 ई० में मध्य प्रदेश शासन ने उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1986 ई० में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् द्वारा ‘तुलसी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1993-94 ई० में उन्हें ‘बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय ने डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने ‘साहित्य वाचस्पति’ उपाधि से सम्मानित किया, 22 जून, 2000 ई० को केदारनाथ अग्रवाल का 90 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया।

रचनाएँ

युग की गंगा (1947), नींद के बादल (1947), लोक और आलोक (1957), फूल नहीं रंग बोलते हैं (1965), आग का आईना (1970), देश-देश की कविताएँ, अनुवाद (1970), गुल मेंहदी (1978), पंख और पतवार (1979), हे मेरी तुम (1981), मार प्यार की थापें (1981), कहे केदार खरी-खरी (1983), बम्बई का रक्त स्नान (1983), अपूर्वा (1984), बोले बोल अबोल (1985), जो शिलाएँ तोड़ते हैं (1985), जमुन जल तुम (1984), अनिहारी हरियाली (1990), खुली आँखें खुले डैने (1992), आत्मगन्ध (1986), पुष्पदीप (1994), वसन्त में हुई प्रसन्न पृथ्वी (1996), कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह (1997), चेता नैया खेता (नयी कविताओं का संग्रह, परिमल प्रकाशन, इलाहाबाद) ।

गद्य साहित्य – समय-समय पर (1970), विचार बोध (1980), विवेक-विवेचन (1980), यात्रा संस्मरण-बस्ती खिले गुलाबों की (1974), दतिया (उपन्यास, 1985), बैल बाजी मार ले गये (अधूरा उपन्यास) जो साक्षात्कार मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् की पत्रिका में प्रकाशित।

भाषा-सरल- सहज, सीधी-ठेठ।

 

अच्छा होता

     अच्छा होता

अगर आदमी

आदमी के लिए

 

परार्थी-

पक्का-

और नियति का सच्चा होता

न स्वार्थ का चहबच्चा-

न दगैल-दागी-

न चरित्र का कच्चा होता।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ नामक कविता उद्धृत की गयी हैं।

व्याख्या- कवि कहता है कि यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता जब एक आदम दूसरे आदमी के हित में काम करता। वह स्वार्थी न होकर परोपकारी होता। उसकी नियति स्वच्छ अ साफ होती तो यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता। वह स्वार्थी और दागी न होकर निःस्वाध और निष्कलंक होता तो बहुत बेहतर होता। आगे वह यह भी कहता है कि व्यक्ति को सद्धरित्र का होन चाहिए। कहीं भी व्यक्ति के चरित्र में खोट नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक सचरित्रवान व्यक्ति ही अच् आचरण का व्यवहार करने में सक्षम है। कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है जिसमें जन-साधारण को भी कष्ट न हो।

काव्यगत सौन्दर्य

(1) इन पंक्तियों में कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है, जो परोपकार एवं निःस्वार्थपूर्ण हो

(2) भाषा – सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य।

 

अच्छा होता

अगर आदमी

आदमी के लिए

दिलदार-

दिलेर-

और हृदय की थाती होता,

न ईमान का घाती-

ठगैत ठाकुर

न मौत का बराती होता।

(‘अपूर्वा’ से)

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- कवि कहता है कि यह कितना अच्छा होता कि जब आदमी, आदमी के लिए मर-मिटने को तैयार रहता। आदमी, आदमी के दुःख-दर्द में शामिल होता। दूसरे का हित करनेवाला, दूसरे के सुख-दुःख को बाँटने वाला व्यक्ति सबको प्रिय होता है। आज आदमी ईमानदारी की धज्जियाँ उड़ा रहा है, ठगी में लिप्त है। चारों तरफ मौत का ताण्डव है। यदि ये सब न होते तो समाज कितना खुशहाल होता। समाज में अमन-चैन कायम हो जाता। समाज में आज इतनी ठगी है, हिंसा एवं रक्तपात है जिसके चलते एक स्वच्छ समाज की कल्पना साकार नहीं हो सकती है।

काव्यगत सौन्दर्य

(1) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मानवता का संदेश दिया है। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में, “वही मनुष्य, मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।”

(2) भाषा – सरल एवं बोधगम्य ।

सितार-संगीत की रात

आग के ऑट बोलते हैं

सितार के बोल,

खुलती चली जाती हैं

शहद की पंखुरियाँ,

चूमनी अँगुलियों के नृत्य पर,

राग-पर-राग करते हैं किलोल,

रात के खुले वक्ष पर,

चन्द्रमा के साथ,

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित सितार-संगीत की रात’ शीर्षक से उद्धृत हैं।

व्याख्या- कवि कहता है कि सितार की ध्वनि जब निकलती है तो शहदयुक्त पंखुड़ियाँ खुलती चली जाती हैं। अँगुलियाँ नृत्य करने लगती हैं। रात के खुले आसमान पर चन्द्रमा के साथ जो ध्वनियाँ निकलती हैं, वह अत्यन्त मोहक होती हैं। कवि ने अग्निवत ओंठ के बोल की तुलना सितार के बोल से की है।

 

शताब्दियों झाँकती हैं

अनंत की खिड़कियों से,

संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है,

हर्ष का हंस दूध पर तैरता है.

जिस पर सवार भूमि की सरस्वती

काव्य-लोक में विचरण करती हैं।

सन्दर्भ- पूर्ववत्

व्याख्या- कवि कहता है कि अनंत आकाश की खिड़कियों से मानो शताब्दियाँ झाँक रही हों। संगीत के इस समारोह में कौमार्य झलकता है। हर्ष रूपी हंस माँनो दूध पर तैर रहा है। ऐसा मालूम पड़ रहा है जैसे धरती की सरस्वती हंस पर सवार होकर काव्य-लोक में भ्रमण कर रही हैं।

 

  • निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(अच्छा होता)

  • अच्छा होता

अगर आदमी

आदमी के लिए

परार्थी-

पक्का-

और नियति का सच्चा होता

न स्वार्थ का चहबच्चा-

न दगैल-दागी-

न चरित्र का कच्चा होता।

प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित अच्छा होता’ नामक कविता से उद्धृत की गयी हैं।

(ii) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि की क्या इच्छा है?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि आदमी को अच्छा इंसान बनाने की इच्छा करता है।

(iii) व्यक्ति के चरित्र में खोट होने से क्या हानि होती है?

उत्तर- व्यक्ति के चरित्र में खोट होने से वह सचरित्रवान व्यक्ति नहीं बन सकता है।

अगर आदमी

आदमी के लिए

दिलदार-

दिलेर-

और हृदय की थाती होता,

न ईमान का घाती-

ठगैत ठाकुर

न मौत का बराती होता।

प्रश्न- (i) कविता के माध्यम से कवि ने क्या सन्देश दिया है?

उत्तर-कविता के माध्यम से कवि ने मानवता का सन्देश दिया है।

(ii) व्यक्ति समाज में लोकप्रिय कैसे बनता है?

उत्तर-दूसरों का हित करने वाला, दूसरों के सुख-दुःख में समान रूप से भागीदार होने वाला व्यक्ति ही समाज में लोकप्रिय होता है।

(iii) देश में स्वच्छ समाज की कल्पना साकार क्यों नहीं हो सकती?

उत्तर- समाज में आज इतनी ठगी है, हिंसा एवं रक्तपात है जिसके चलते एक स्वच्छ समाज की कल्पना साकार नहीं हो सकती है।

 

(सितार-संगीत की रात)

  • आग के ओंठ बोलते हैं

सितार के बोल,

खुलती चली जाती हैं

शहद की पंखुरियाँ,

चूमतीं अँगुलियों के नृत्य पर,

राग-पर-राग करते हैं किलोल,

रात के खुले वक्ष पर,

चन्द्रमा के साथ,

प्रश्न- (i) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित सितार-संगीत की रात शीर्षक से उद्धृत हैं।

(ii) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में किसकी बोल का वर्णन है?

उत्तर- उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में सितार की बोल का वर्णन है।

(iii) कवि ने अग्निवत ओंठ के बोल की तुलना किससे की है?

उत्तर- कवि ने अग्निवत ओंठ के बोल की तुलना सितार के बोल से की है।

 

  • शताब्दियाँ झाँकती हैं

अनंत की खिड़कियों से,

संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है,

हर्ष का हंस दूध पर तैरता है,

जिस पर सवार भूमि की सरस्वती

काव्य-लोक में विचरण करती हैं।

प्रश्न- (i) हर्ष रूपी हंस किस पर तैर रहा है?

उत्तर- हर्ष रूपी हंस मानो दूध पर तैर रहा है।

(ii) अनन्त आकाश की खिड़कियों से कौन झाँक रहा है?

उत्तर- अनन्त आकाश की खिड़कियों से मानो शताब्दियाँ झाँक रही हैं।

(iii) प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘सितार-संगीत की रात’ शीर्षक से उद्धृत हैं।

 

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Padya Chapter 10 – Badal Ko Ghirte Dekha- बादल को घिरते देखा है (नागार्जुन) Jivan Parichay, Padyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy

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