UP Board Solution of Class 10 Social Science [सामाजिक विज्ञान] History [इतिहास] Chapter 3 भूमण्डलीकृत विश्व का बनना (Bhumandlikrit Vishwa ka Banana) लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Notes
प्रिय पाठक! इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान ईकाई 1 इतिहास भारत और समकालीन विश्व-2 खण्ड-2 जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज के अंतर्गत चैप्टर 3 भूमण्डलीकृत विश्व का बनना पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रदान कर रहे हैं। जो की UP Board आधारित प्रश्न हैं। आशा करते हैं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करेंगे।
Subject | Social Science [Class- 10th] |
Chapter Name | भूमण्डलीकृत विश्व का बनना |
Part 3 | इतिहास (History) |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज |
भूमंडलीकृत विश्व का बना Bhumandlikrit Vishva ka Banana
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डाला? स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध का ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा-
(1) उत्पादन गिरने लगा और बेरोजगारी बढ़ने लगी – ब्रिटेन के उद्योगों का उत्पादन गिरने लगा और बेरोजगारी बढ़ने लगी।
(2) ब्रिटेन की ऋणी होना – इस युद्ध ने ब्रिटेन को अमेरिकी बैंकों और अमेरिकी जनता का ऋणी बना दिया।
(3) जापान की शक्ति का प्रभुत्व – एशिया में जापान की बढ़ती शक्ति को अवरुद्ध करना ब्रिटेन के लिए मुश्किल हो गया।
(4) भारतीय बाजार में अपना वर्चस्व रखना मुश्किल – ब्रिटेन के लिए भारतीय बाजार में अपना वर्चस्व बनाए रख पाना कठिन हो गया।
प्रश्न 2. ‘कॉर्न लॉ’ के निरस्त होने के बाद ब्रिटेन की खाद्य समस्या का हल किस प्रकार हुआ? स्पष्ट करें।
उत्तर- (1) ‘कॉर्न लॉ’ के निरस्त होने के बाद ब्रिटेन की खाद्य समस्या लगभग हल हो गयी। अब कम कीमत पर लोगों के लिए खाद्य पदार्थों का आयात करना संभव हो गया।
(2) आयातित खाद्य पदार्थों की कीमत ब्रिटेन में उत्पादित खाद्य पदार्थों से भी कम थी।
(3) खाद्य पदार्थों की कीमत में गिरावट आने से ब्रिटेन में उपयोग का स्तर बढ़ गया। औद्योगिक प्रगति के चलते ब्रिटेन के लोगों की आय में वृद्धि हुई जिससे खाद्य पदार्थों का पहले से अधिक आयात होने लगा।
प्रश्न 3. अफ्रीका में 1980 के दशक में फैली रिंडरपेस्ट (मवेशी रोग) नामक बीमारी के प्रभावों का संक्षेप में वर्णन करें।
अथवा रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग के अफ्रीका पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर- (1) 1890 के दशक में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी अफ्रीका में तेजी से फैली। मवेशियों में प्लेग की तरह फैलने वाली इस बीमारी में बड़ी संख्या में मवेशियो की मृत्यु होने से अफ्रीकी लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। रिडरपेस्ट नामक यह बीमारी ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से आए जानवरों से अफ्रीका में फैली थी। (2) अफ्रीका में रिडरपेस्ट नामक बीमारी से 90 प्रतिशत मवेशियों की मृत्यु हो गयी। पशुओं की इतने बड़े पैमाने पर मृत्यु से अफ्रीकी लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन ही समाप्त हो गया। परिणामस्वरूप समस्त अफ्रीका धीरे-धीरे औपनिवेशिक शक्तियो के अधीन गुलाम बनकर रह गया।
प्रश्न 4. कॉर्न लॉ क्यों निरस्त किए गये? किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (i) आयात पर प्रतिबन्ध लगाने से – कॉर्न लॉ के आयात पर प्रतिबन्ध लगाने से ब्रिटेन में खाद्य पदार्थों की कीमत बहुत बढ़ गयी थी।
(ii) महँगाई रोकने के लिए – महंगाई से त्रस्त नागरिक लोगों और उद्योपतियों ने ब्रिटिश सरकार पर कॉर्न लॉ को समाप्त करने के लिए दबाव डाला।
(iii) खाद्यान्नों के मूल्य को कम करने के लिए – कॉर्न लॉ के आयात पर प्रतिबंध लगाने से खाद्यान्नों के मूल्य में अत्यधिक वृद्धि के कारण ब्रिटेन के लोगों के सम्मुख भरण-पोषण की समस्या उत्पन्न हो गयी।
प्रश्न 5. रेशम मार्ग की तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (1) जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये रास्ते न केवल एशिया के विशाल क्षेत्र को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।
(2) लगभग 15वीं शताब्दी तक ये सिल्क मार्ग अस्तित्व में आ चुके थे। इसी मार्ग से होकर ‘चीनी पॉटरी’ जाती थी और इसी मार्ग से भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले विश्व के दूसरे भागों में पहुँचते थे। वापसी में सोने- चाँदी जैसी कीमती वस्तुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थीं।
(3) शुरुआती काल में ईसाई मिशनरी निश्चित रूप से इसी मार्ग से एशिया में धर्म प्रचार के लिए आते थे। कुछ सदी बाद मुस्लिम धर्मोपदेशक भी इसी मार्ग के सहारे विश्व में फैल गए। इससे भी बहुत पहले पूर्वी भारत में उपजा बौद्ध धर्म सिल्क मार्ग की विविध शाखाओं से ही कई दिशाओं में फैल चुका था।
प्रश्न 6. समूह-77 क्या है? समूह 77 के देशों ने नई औद्योगिक आर्थिक प्रणाली की क्यों माँग की? स्पष्ट करें।
उत्तर- ‘जी-77’ विकासशील देशों का एक संगठन है। इसकी स्थापना 1964 ई० में संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में की गई थी। विकासशील देशों ने अपनी समस्याएं सुलझाने के लिए नई अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली (NIEO) के लिए आवाज उठाई और समूह-77 (जी-77) के रूप में संगठित हो गए। NIEO से उनका आशय एक ऐसी अर्थव्यवस्था से था जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर सही मायनों में नियंत्रण प्राप्त हो सके जिससे उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल के लिए उचित मूल्य मिले और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।
प्रश्न 7. वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का उदय 1890 ई. में हुआ। इसके प्रभावस्वरूप पूँजी प्रवाह, तकनीकी एवं पारिस्थितिकी एवं श्रम विस्थापन की प्रवृत्ति में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए, जिनका विवरण इस प्रकार थे-
(i) परिवर्तित परिस्थितियों में खाद्य पदार्थों का गाँव व कस्बों से निकलकर विश्व के अन्य स्थानों पर पहुँचना संभव हुआ। खाद्य पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने के लिए रेल नेटवर्क तथा पानी के जहाजों का प्रयोग किया जाने लगा।
(ii) वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था में भू-स्वामी स्वयं कृषि कार्य नहीं करते थे। वे कृषि कार्य औद्योगिक मजदूरों से करवाने लगे।
(iii) एशिया, अफ्रीका, कैरीबियाई द्वीप समूह, दक्षिणी यूरोप के मजदूरों को आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अमेरिका ले जाकर कम वेतन पर कार्य करवाया गया।
प्रश्न 8. वैश्विक मंदी (1929 ई.) का भारत पर प्रभाव बताइए।
अथवा 1929 की आर्थिक मंदी का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – वैश्विक मंदी (1929 ई.) ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डाला। 1928 से 1934 ई. के बीच भारत के व्यापार (आयात-निर्यात) में 50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी। गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत गिर गयी। नगरवासियों की अपेक्षा ग्रामीण और किसानों को मंदी ने अधिक व्यथित किया। एक ओर जहाँ कृषि उत्पादों की कीमत तेजी से नीचे गिर रही थी, वहीं सरकार ने लगान में छूट देने से मना कर दिया। विश्व बाजार के लिए उत्पादन करने वाले किसानों पर मंदी की मार अधिक घातक थी। टाट का निर्यात बंद होने से पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी। मंदी के इन्हीं वर्षों में भारत कीमती धातु सोने का निर्यात करने लगा। 1931 ई. में जब मंदी अपने शीर्ष पर थी तब भारत का ग्रामीण क्षेत्र अत्यन्त मुश्किल दौर से गुजर रहा था।
प्रश्न 9. प्रथम विश्व युद्ध के किन्हीं तीन परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम – प्रथम विश्व युद्ध की घटना ने यूरोप की ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक दिशा को बदल दिया। इन राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिणामों का उल्लेख निम्नलिखित है-
राजनीतिक परिणाम – राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर विश्व युद्ध का अनेक तरीकों से प्रभाव पड़ा। राजनीतिक परिणामों ने संपूर्ण विश्व की व्यवस्था ही बदल दी। इन परिणामों में राजतंत्रीय सरकारों का पतन, जनतंत्रीय भावना का विका1स, राष्ट्रीयता की भावना का विकास, अंतर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास, अधिनायकवाद का उदय, अमेरिका का उदय, अमेरिका का उत्कर्ष, जापान का उत्कर्ष ये सभी शामिल हैं।
आर्थिक परिणाम – प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व के सभी राष्ट्रों को महान आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा जिसमें प्रत्यक्ष रूप से लगभग 10 खरब रुपये व्यय हुए तथा अप्रत्यक्ष रूप से किये गए व्ययों का तो अनुमान लगाना असंभव सा प्रतीत होता है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद आर्थिक क्षति के प्रमुख कारण उत्पादन क्षमता ह्रास वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हाष्ट्रीय ऋण भार, जनता पर विधिन्न करों का भार व बेरोजगारी आदि थे।
सामाजिक परिणाम – प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् कई सामाजिक परिणाम भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सामने आए जैसे-जनहानि, महिलाओं के सामाजिक स्तर में सुधार, जातीय कटुत्ता की भावना में कमी, श्रमिकों में जागृति, शिक्षा की प्रगति एवं विकास आदि थे।
प्रश्न 10. वैश्वीकरण ने किस प्रकार राष्ट्रीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने योग्य बनाया?
उत्तर – वैश्वीकरण का दौर आरंभ होते ही भारत का वाणिज्य-व्यापार विशेष रूप से प्रभावित हुआ। पूर्व में देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन शीघ्र ही भारत सरकार ने विदेशी उत्पादकों से प्रतिस्पर्द्धा का निश्चय किया तथा देश के उत्पादन की गुणवत्ता एवं उसमें सुधार को प्राथमिकता दी। इसी कारण वर्ष 1991 में भारत सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों में व्यापक परिवर्तन कर उदारीकरण का दौर आरंभ किया। इस उदारीकरण के फलस्वरूप विदेशी कंपनियों तथा निवेशकों को भारत में निवेश करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत आगमन से राष्ट्रीय कंपनियों को उनसे प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ी साथ ही नई प्रौद्योगिकी तथा उत्पादन प्रणाली में निवेश कर उत्पादन मानकों एवं गुणवत्ता में वृद्धि करनी पड़ी। फलस्वरूप इन राष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद को विश्व के अन्य देशों के बाजार भी मिलने लगे। कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, यथा- विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व व्यापार संगठन ने वैश्वीकरण में महती भूमिका निभाई नथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाया। वैश्वीकरण के कारण कई भारतीय कंपनियों ने विदेशी कंपनियों के साथ सहयोग एवं समझौता कर उन्नत तकनीक हासिल करके लाभ कमाया। कई भारतीय कंपनियों ने अपनी उन्नत तकनीक तथा गुणवत्तापूर्ण उत्पाद को लेकर स्वयं को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में विश्व में स्थापित किया है। टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी, एशियन पेंट्स आदि कंपनियां विश्व स्तर पर अपने उत्पादों का प्रसार कर रहीं हैं। विभिन्न सेवा प्रदान करने वाली भारतीय कंपनियों तथा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियों को विश्व बाजार में विशेष लाभ मिला है तथा इन कंपनियों ने बहुराष्ट्रीय कंपनी के रूप में स्वयं को स्थापित किया है। इसके अलावा ठण्डे पेय पदार्थ, खाद्य वस्तुएँ, बैंकिंग, बीमा आदि अनेक क्षेत्रों में विश्वव्यापी बाजार में भारतीय कंपनियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में सेवा प्रदान कर रही हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बताइए पूर्व-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद की?
उत्तर (ⅰ) 16वीं सदी के मध्य तक पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो गया था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।
(ii) यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थीं। स्पेनिश विजेताओं के पास तो कोई परंपरागत किस्म का सैनिक हथियार नहीं था। यह हथियार तो चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफ़सरों के साथ वहाँ जा पहुँचे थे।
(iii) लाखों साल से दुनिया से अलग-थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी।
(iv) इस नए स्थान पर चेचक बहुत मारक साबित हुई। एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद तो यह बीमारी पूरे महाद्वीप में फैल गई।
(v) जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे थे, वहाँ के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे। इसने सभी समुदायों को खत्म कर डाला। इस तरह घुसपैठियों की जीत का रास्ता आसान होता चला गया।
(vi) बंदूकों को तो खरीदकर या छीनकर हमलावरों के खिलाफ भी इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु चेचक जैसी बीमारियों के मामले में तो ऐसा नहीं किया जा सकता था क्योंकि हमलावरों के पास उससे बचाव का तरीका भी था और उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित हो चुकी थी। इस तरह से बिना किसी चुनौती के बड़े साम्राज्यों को जीतकर अमेरिका में उपनिवेशों की स्थापना हुई।
प्रश्न 2. खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर- 1890 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी। इससे तकनीक में भी बदलाव आ चुके थे। खाद्य उपलब्धता पर भी तकनीक का प्रभाव पड़ने लगा जो इस प्रकार था-
- रेलवे का विकास – अब भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हज़ारों मील दूर से आने लगा था। खाद्य-पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाजों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था।
- नहरों का विकास– खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव का बहुत अच्छा उदाहरण हम पंजाब में देखते हैं। यहाँ ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूँ की खेती की जा सके। इससे पंजाब में गेहूँ का उत्पादन कई गुना बढ़ गया और गेहूँ को बाहर बेचा जाने लगा।
- रेफ्रिजरेशन तकनीक का विकास– 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। उस समय जिंदा जानवर ही भेजे जाते थे, जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था। लेकिन जिंदा जानवर बहुत ज्यादा जगह घेरते थे। काफी संख्या में ये लंबे सफर में मर जाते थे। अधिकांश का वजन गिर जाता था या वे खाने लायक नहीं रहते थे। इसलिए मांस खाना एक महँगा सौदा था। नई तकनीक के आने पर यह स्थिति बदल गई। पानी के जहाज़ों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई, जिससे जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी लंबी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था। अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सब जगह से जानवरों की बजाए उनका मांस ही यूरोप भेजा जाने लगा। इससे न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। अब अधिकांश लोगों के भोजन में मांसाहार शामिल हो गया।
प्रश्न 3. 18वीं शताब्दी के अंत में हुए उन परिवर्तनों का वर्णन कीजिए जिन्होंने ब्रिटेन के स्वरूप को बदल दिया।
या ‘कॉर्न लॉ’ के निरस्त होने के बाद ब्रिटेन की खाद्य समस्या का हल किस प्रकार हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – 18वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए जिन्होंने इसके स्वरूप को बदल दिया। ये परिवर्तन अग्रलिखित थे-
(i) 18वीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटेन की आबादी तेजी से बढ़ लगी थी। इससे देश में भोजन की माँग बढ़ी।
(ii) जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योग बढ़ने लगे, कृषि उत्पादों की माँग भी बढ़ने लगी।
(iii) कृषि उत्पाद महँगे होने लगे।
(iv) बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर सरकार ने मक्का के आयात पर ‘कॉर्न-लॉ’ द्वारा पाबंदी लगा दी।
(v) खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी बाशिंदों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह कॉर्न लॉ को समाप्त कर दें।
(vi) कॉर्न-लॉ के खत्म होने के बाद कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी। फलस्वरूप ब्रिटिश किसानों की हालत बिगड़ने लगी क्योंकि वे आयातित माल की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
(vii) विशाल भू-भागों पर खेती बंद हो गई थी। हजारों लोग बेरोजगार हो गए।
(viii) खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट आई तो ब्रिटेन में उपभोग का स्तर बढ़ गया।
(ix) 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटेन की औद्योगिक प्रगति काफी तेज़ रही जिससे लोगों की आय में वृद्धि हुई।
(x) खाद्य पदार्थों का और ज्यादा मात्रा में आयात होने लगा।
(xi) दुनिया के हर हिस्से में ब्रिटेन का पेट भरने के लिए जमीनों को साफ करके खेती की जाने लगी। इन कृषि क्षेत्रों को बंदरगाहों से जोड़ने के लिए रेलवे का विकास किया।
(xii) ज्यादा मात्रा में माल ढुलाई के लिए नई गोदियाँ बनाईं और पुरानी गोदियों को फैलाया गया।
(xiii) नयी जमीनों पर खेती करने के लिए यह जरूरी था कि दूसरे इलाकों के लोग वहाँ आकर बस गए।
(xiv) इन सारे कामों के लिए पूँजी और श्रम की जरूरत थी। इसके लिए लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से पूँजी आने लगी।
(xv) 1890 तक तकनीकी परिवर्तन हो चुके थे। भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हजारों मील दूर से आने लगा था।
(xvi) अपने खेतों पर खुद काम करने वाले किसान ही खाद्य पदार्थ पैदा नहीं कर रहे थे। अब यह काम ऐसे औद्योगिक मजदूर करने लगे थे जो संभवतः हाल ही में वहाँ आए थे।
(xvii) खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाजों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था। इन जहाजों पर दक्षिण यूरोप, एशिया और अफ्रीका के मजदूरों से बहुत कम वेतन पर काम करवाया जाता था।
प्रश्न 4. यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने किस प्रकार अफ्रीका को गुलाम बनाया?
उत्तर – यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीका को इस प्रकार गुलाम बनाया-
(i) प्राचीन काल से ही अफ्रीका में जमीन की कोई कमी नहीं रही जबकि वहाँ की आबादी बहुत कम थी। सदियों तक अफ्रीकियों की जिंदगी व कामकाज ज़मीन और पालतू पशुओं के सहारे ही चलता रहा है।
(ii) वहाँ पैसे या वेतन पर काम करने का चलन नहीं था। 19वीं सदी के आखिर में अफ्रीका में ऐसे उपभोक्ता बहुत कम थे, जिन्हें वेतन के पैसे से खरीदा जा सकता था।
(iii) 19वीं सदी के अंत में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका के विशाल भू-क्षेत्र और खनिज भंडारों को देखकर इस महाद्वीप की ओर आकर्षित हुई थीं।
(iv) यूरोपीय लोग अफ्रीका में बागानी खेती करने और खादानों का दोहन करना चाहते थे ताकि उन्हें वापस यूरोप भेजा जा सके।
(v) लेकिन वहाँ के लोग वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे। अतः मजदूरों की भर्ती के लिए मालिकों ने कई तरीके अपनाए।
(vi) उन पर भारी-भरकम कर लाद दिए गए जिनका भुगतान केवल तभी किया जा सकता था जब करदाता खादानों या बागानों में काम करता हो। खानकर्मियों को बाड़ों में बंद कर दिया गया।
(vii) उनके खुलेआम घूमने-फिरने पर पाबंदी लगा दी गई।
(viii) तभी वहाँ रिंडरपेस्ट नामक विनाशकारी पशु रोग फैल गया। यह बीमारी ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से आये जानवरों के जरिए फैली थी।
(ix) अफ्रीका के पूर्वी हिस्से से शुरू होकर बीमारी पूरे महाद्वीप में जंगल की आग की तरह फैल गई।
(x) इस बीमारी ने अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया।
(xi) पशुओं के खत्म हो जाने से अफ्रीकियों के रोजी-रोटी के साधन ही खत्म हो गए।
(xii) अपनी सत्ता को और मज़बूत करने तथा अफ्रीकियों को श्रम बाज़ार में ढकेलने के लिए वहाँ के बागान मालिकों, खान मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने बचे-खुचे पशु भी अपने कब्जे में ले लिए।
(xiii) इससे यूरोपीय उपनिवेशकारों को पूरे अफ्रीका को जीतने व उसे गुलाम बना लेने का बेहतरीन मौका हाथ लग गया।
प्रश्न 5. 19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था, जिसे नयी दास प्रथा भी कहा जाता था, का अर्थ बताइए। भारत के संदर्भ में इसका उल्लेख कीजिए।
या उन्नीसवीं शताब्दी में भारत से विदेश को श्रमिकों को क्यों ले जाया गया? ये श्रमिक अधिकतर किस प्रदेश के थे? उन्हें किस शर्त पर स्वदेश लौटने की छूट दी जाती थी?
उत्तर- 19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था को काफी लोगों ने ‘नयी दास प्रथा’ का नाम दिया है। 19वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को बागानों, खादानों और सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था।
भारत के संदर्भ में – भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को खास तरह के अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि यदि मज़दूर अपने मालिक के बागानों में पाँच साल काम कर लेंगे तो वे स्वदेश लौट सकते हैं। भारत के ज्यादातर अनुबंधित श्रमिक मौजूदा पूर्वी उत्तर-प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु के सूखे इलाकों से जाते थे। 19वीं सदी के मध्य में इन इलाकों में भारी बदलाव आने लगे थे। कुटीर उद्योग खत्म हो रहे थे, जमीनों का किराया बढ़ रहा था। खानों और बागानों के लिए जमीनों को साफ किया जा रहा था। इन परिवर्तनों से गरीबों के जीवन पर गहरा असर पड़ा। वे बँटाई पर जमीन तो ले लेते थे लेकिन उसका भाड़ा नहीं चुका पाते थे। काम की तलाश में उन्हें अपने घर-बार छोड़ने पड़े। भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह, मॉरीशस व फिजी से लाया जाता था। तमिल अप्रवासी सीलोन और मलाया जाकर काम करते थे। अधिकांश अनुबंधित श्रमिकों को असम के चाय बागानों में काम करवाने के लिए ले जाया जाता था। मजदूरों की भर्ती का काम मालिकों के एजेंट किया करते थे। एजेंटों को कमीशन मिलता था। अधिकतर अप्रवासी अपने गाँव में होने वाले उत्पीड़न और गरीबी से बचने के लिए भी इन अनुबंधों को मान लेते थे। एजेंट भी भावी अप्रवासियों को फुसलाने के लिए झूठी जानकारियाँ देते थे। अधिकतर श्रमिकों को यह भी नहीं बताया जाता था कि उन्हें लंबी समुद्री यात्रा पर जाना है। बागानों में या कार्यस्थल पर पहुँचने के बाद मज़दूरों को पता चलता था कि वे जैसी उम्मीद कर रहे थे यहाँ वैसे हालात नहीं हैं। नयी जगह का जीवन एवं कार्य स्थितियाँ कठोर थीं और मज़दूरों के पास कानूनी अधिकार कहने भर को भी नहीं थे। अधिकांश मज़दूर भागकर जंगलों में चले गए। यदि ऐसे मज़दूर पकड़े जाते तो उन्हें भारी सज़ा दी जाती थी। अधिकांश ने अपनी पुरानी और नई संस्कृतियों का सम्मिश्रण करते हुए व्यक्तिगत और सामूहिक आत्माभिव्यक्ति के नए रूप खोज लिए।
20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में हमारे देश के राष्ट्रवादी नेता इस प्रथा का विरोध करने लगे थे। उनकी राय में यह बहुत अपमानजनक और क्रूर व्यवस्था थी। इसी दबाव के कारण 1921 में इसे खत्म कर दिया गया। लेकिन इसके बाद भी कई दशक तक भारतीय अनुबंधित मजदूरों के वंशज कैरीबियाई द्वीप समूह में बेचैन अल्पसंख्यकों का जीवन जीते रहे। वहाँ के लोग उन्हें ‘कुली’ मानते थे और उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे।
प्रश्न 6. प्रथम विश्वयुद्ध के विश्व पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
या प्रथम विश्वयुद्ध के किन्हीं तीन परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से लेकर 1919 तक चला। यह युद्ध दो खेमों में लड़ा गया था। एक तरफ मित्र राष्ट्र यानी ब्रिटेन, फ्रांस और रूस थे तो दूसरी तरफ केंद्रीय शक्तियाँ यानी जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और ऑटोमन तुर्की थे। मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा भीषण युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था। इस युद्ध में दुनिया के प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र एक-दूसरे से जूझ रहे थे। इसके विश्व पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-
(i) यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों, हवाई जहाज़ों और रासायनिक हथियारों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया। ये सभी चीजें आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थीं।
(ii) इस युद्ध ने मौत और विनाश की जैसी विभीषिका रची उसकी औद्योगिक युग से पहले और औद्योगिक शक्ति के बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और लगभग दो करोड़ लोग घायल हुए।
(iii) मृतकों और घायलों में से ज्यादातर कामकाजी लोग थे। इस महाविनाश के कारण यूरोप में कामकाज करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रह गई। परिवार के सदस्य घट जाने से युद्ध के बाद परिवारों की आय भी गिर गई।
(iv) युद्ध के कारण दुनिया की कुछ सबसे शक्तिशाली आर्थिक ताकतों के बीच आर्थिक संबंध टूट गए। अब वे देश एक-दूसरे से बदला लेने पर उतारू थे।
(v) इस युद्ध के लिए ब्रिटेन को अमेरिकी बैंकों और अमेरिकी जनता से भारी कर्जा लेना पड़ा। फलस्वरूप इस युद्ध ने अमेरिका को कर्जदार की बजाए कर्जदाता देश बना दिया। कहने का आशय यह है कि युद्ध के बाद दूसरे देशों में अमेरिका व उसके नागरिकों की संपत्तियों की कीमत अमेरिका में दूसरे देशों की सरकारों या उसके नागरिकों की संपत्ति से कहीं ज्यादा हो चुकी थी।
इस प्रकार युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी जबकि युद्ध के बाद सबसे लंबा संकट उसे ही झेलना पड़ा। युद्ध खत्म होने तक ब्रिटेन भारी विदेशी कर्जे में दब चुका था।
प्रश्न 7. आर्थिक महामंदी के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
या महामंदी का क्या आशय है? इसके मुख्य दो कारण बताइए। इसके दो प्रभाव भी लिखिए।
उत्तर- आर्थिक महामंदी का प्रारंभ 1929 में हुआ और यह संकट तीस के दशक तक बना रहा। इस दौरान दुनिया के अधिकतर हिस्सों के उत्पादन, रोज़गार, आय और व्यापार में भयानक गिरावट दर्ज की गई। इस महामंदी के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(i) कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। कृषि उत्पादों की गिरती कीमतों के कारण स्थिति और खराब हो गई थी। कीमतें गिरीं और किसानों की आय घटने लगी तो आमदनी बढ़ाने के लिए किसान उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे ताकि कम कीमत पर ही सही लेकिन ज्यादा पैदावारी करके वे अपना आय स्तर बनाए रख सकें। इससे बाजार में कृषि उत्पादों की आमद और भी बढ़ गई। कीमतें गिर गईं। खरीददारी के अभाव में कृषि उपज पड़ी-पड़ी सड़ने लगी।
(ii) 1920 के दशक के मध्य में अधिकांश देशों ने अमेरिका से कर्जे लेकर अपनी निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया था जब हालात अच्छे थे तो अमेरिका से कर्जा जुटाना बहुत आसान था लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिकी उद्यमियों के होश उड़ गए। जो देश अमेरिकी कर्जे पर निर्भर थे उनके सामने गहरा संकट आ खड़ा हुआ।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर महामंदी का प्रभाव – इस महामंदी का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ा। यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गए। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह गिर गई। अमेरिका और अन्य स्थानों पर कृषि एवं कच्चे मालों की कीमतें तेजी से लुढ़कने लगीं, किंतु इस महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा जो इस प्रकार था-
(i) कीमतों में कमी और मंदी की आशंका को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्जे देना बंद कर दिया।
(ii) जो कर्जे दिए जा चुके थे उनकी वसूली तेज कर दी गई।
(iii) किसान उपज नहीं बेच पा रहे थे। परिवार तबाह हो गए, कारोबार ठप पड़ गए।
(iv) आमदनी में गिरावट आने पर अमेरिका के अधिकांश परिवार कजें चुकाने में नाकामयाब रहे, जिसके चलते उनके मकान, कार और सारी जरूरी चीजें कुर्क कर ली गईं।
(v) बेरोजगारी बढ़ी तो लोग काम की तलाश में दूर-दूर तक जाने लगे।
(vi) आखिरकार अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था भी धराशायी हो गई। निवेश से लाभ न पा सकने, कर्ज वसूल न कर पाने और जमाकर्ताओं की जमा पूँजी न लौटा पाने के कारण हजारों बैंक दिवालिया हो गए और बंद कर दिए गए।
प्रश्न ৪. विश्व अर्थव्यवस्था ने कैसे स्थान ग्रहण किया? इसमें तकनीकी का क्या योगदान है?
या विश्व की अर्थव्यवस्था के विकास में तकनीक का क्या योगदान है। उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर – विश्व अर्थव्यवस्था द्वारा स्थान ग्रहण करना – लघु उत्तरीय प्रश में प्रश्न 9 का उत्तर देखें।
विश्व अर्थव्यवस्था में तकनीकी का योगदान – दीर्घ उत्तरीय प्रश्न में प्रश्न 2 का उत्तर देखें।
प्रश्न 9. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
या उन्नीसवीं शताब्दी में अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए तीन प्रकार के प्रवाहों की व्याख्या कीजिए।
या उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए किन्हीं दो प्रवाहों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहो तथा तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण इस प्रकार हैं-
(क) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियाँ या प्रवाह – अर्थशास्त्रियों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों की तीन प्रकार की ‘गतियों’ अथवा ‘प्रवाहों’ का उल्लेख किया गया है। इन तीनों प्रकार के प्रवाहों की विशेषता यह थी कि ये तीनों एक-दूसरे से सम्बद्ध थे। साथ ही लोगों के जीवन को प्रभावित करते थे। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता था कि इन प्रवाहों के बीच के सम्बन्ध टूट जाते थे। उदाहरणस्वरूप वस्तुओं अथवा पूँजी के आने की तुलना में श्रमिकों पर सामान्यतः अधिक शर्तें और बन्धन लगा दिए जाते थे।
इन प्रवाहों का उल्लेख इस प्रकार है-
- व्यापार का प्रवाह – पहला प्रवाह व्यापार का होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में यह प्रवाह मुख्य रूप से वस्तुओं (कपड़ा, गेहूँ आदि) के व्यापार तक ही सीमित था।
- श्रम का प्रवाह – दूसरा प्रवाह; श्रम का प्रवाह कहलाता है, जिसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हैं।
- पूँजी का प्रवाह – तीसरा प्रवाह; पूँजी का प्रवाह कहा जाता है। इस प्रवाह के अन्तर्गत पूँजी को कम या अधिक समय के लिए दूर स्थित क्षेत्रों या बाहर के देशों में निवेश कर दिया जाता है।
(ख) तीनों प्रकार के प्रवाहों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक–एक उदाहरण – भारत में प्राचीनकाल से ये तीनों प्रकार के प्रवाह या गतियाँ देखने को मिलती हैं। इनका उल्लेख निम्नवत् है-
- प्राचीनकाल से ही भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ वस्तुओं का आयात-निर्यात करने हेतु व्यापारिक सम्बन्ध बना रखे थे। भारत के विभिन्न शहरों के व्यापारी; भारत से कपास और विभिन्न प्रकार के मसाले लेकर विदेशों में जाया करते थे और वापसी में विदेशों की आवश्यक वस्तुएँ भारत लेकर आते थे।
- अनेक भारतीय कारीगर, इंजीनियर आदि विदेशों में सड़क निर्माण, खनन, रेलवे-निर्माण, बागान आदि से सम्बन्धित कार्यों के लिए जाते थे।