UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 6 Paramhansa Ramkrishna (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ -6 परमहंसः रामकृष्णः(अनिवार्य संस्कृत-खण्ड)
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी संस्कृत-खण्ड के पाठ 6 परमहंसः रामकृष्णः का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर परमहंसः रामकृष्णः सम्पूर्ण पाठ के साथ गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात गद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है।
UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 6 Paramhansa Ramkrishna.(Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ-6 परमहंसः रामकृष्णः (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड) – up board class 9th anivary sanskrit lesson 6 Paramhansa Ramkrishna based on new syllabus of uttar pradesh madhymik shiksha parishad prayagraj.
Chapter Name | Paramhansa Ramkrishna.-परमहंसः रामकृष्णः |
Class | 9th |
Board Name | UP Board (UPMSP) |
Topic Name | गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,गद्यांशो का हल(Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary ) |
षष्ठः पाठः–परमहंसः रामकृष्णः
[ पाठ–परिचय — प्रस्तुत पाठ में स्वामी रामकृष्ण परमहंस का आदर्श जीवन और उनके अनुभवों का वर्णन है ।]
- रामकृष्णः एकः विलक्षणः महापुरुषः अभवत्। तस्य विषये महात्मना गान्धिना उक्तम्-
अथवा “परमहंसस्य रामकृष्णस्य जीवनचरितं धर्माचरणस्य प्रायोगिकं विवरणं विद्यते। तस्य जीवनम् अस्मभ्यम् ईश्वरदर्शनाय शक्ति प्रददाति । तस्य वचनानि न केवलं कस्यचित् नीरसानि ज्ञानवचनानि अपितु तस्य जीवन-ग्रन्थस्य पृष्ठानि एव। तस्य जीवनम् अहिंसायाः मूर्तिमान् पाठः विद्यते।”
शब्दार्थ — विलक्षणः = विचित्र, अलौकिक । उक्तम् = कहा था । प्रायोगिकम् = व्यवहार में लाया गया। मूर्तिमान = साकार ।
सन्दर्भ— यह गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘परमहंसः रामकृष्ण: ‘ नामक पाठ से उद्धृत है।
हिन्दी अनुवाद – रामकृष्ण एक अलौकिक महापुरुष थे। उनके विषय में महात्मा गांधी ने कहा था- “रामकृष्ण परमहंस का जीवन-चरित धर्म के आचरण का व्यावहारिक विवरण है। उनका जीवन हमारे लिए ईश्वर दर्शन की शक्ति प्रदान करता है। उनके वचन न केवल किसी के नीरस ज्ञान के वचन हैं, अपितु उनकी जीवनरूपी पुस्तक के पृष्ठ ही हैं। उनका जीवन अहिंसा का साकार पाठ है। ”
- स्वामिनः रामकृष्णस्य जन्म बंगेषु हुगलीप्रदेशस्य कामारपुकुरस्थाने १८३६ ख्रिस्ताब्दे अभवत्। तस्य पितरौ परमधार्मिकौ आस्ताम्। बाल्यकालादेव रामकृष्णः अद्भुतं चरित्रम् अदर्शयत्। तदानीमेव ईश्वरे तस्य सहजा निष्ठा अजायत्। ईश्वरस्य आराधनावसरे स सहजे समाधौ अतिष्ठत्।
शब्दार्थ — बंगेषु = बंगाल प्रदेश में । ख्रिस्ताब्दे = ईसवी सन् में। पितरौ (माता च पिता च) = माता-पिता। सहजा = नैसर्गिक, स्वाभाविक। निष्ठा = विश्वास। आराधनावसरे (आराधना + अवसरे) = ईश्वर की आराधना के समय । समाधो = समाधि में ।
सन्दर्भ– पूर्ववत् ।
हिन्दी अनुवाद – स्वामी रामकृष्ण का जन्म बंगाल में हुगली प्रदेश के ‘कामारपुकुर’ नामक स्थान में 1836 ईस्वी सन् में हुआ था। उनके माता-पिता अत्यन्त धार्मिक विचारों के थे। बचपन से ही रामकृष्ण ने (अपने) अद्भुत चरित्र को प्रदर्शित किया। समय उनकी ईश्वर में स्वाभाविक आस्था हो गयी। ईश्वर की आराधना के समय वे स्वाभाविक समाधि में बैठ जाते थे
- परमसिद्धोऽपि सः सिद्धीनां प्रदर्शनं नोचितम् अमन्यत्। एकदा केनचित् भक्तेन कस्यचित् महिमा एवं वर्णितः, “असौ महात्मा पादुकाभ्यां नदीं तरति, इति महतो विस्मयस्य विषयः।” परमहंसः रामकृष्णः मन्दम् अहसत् अवदत् च “अस्याः सिद्धेः मूल्यं पणद्वयमात्रम्, पणद्वयेन नौकया सामान्यो जनः नदीं तरति। अनया सिद्धया केवलं पणद्वयस्य लाभो भवति। किं प्रयोजनम् एतादृश्याः सिद्धेः प्रदर्शनेन।”
शब्दार्थ – नोचितम् (न + उचितम्) = उचित नहीं अमन्यत् = मानते थे। पादुकाभ्याम् = खड़ाओं से ।
पणद्वयमात्रम् = केवल दो पैसे। एतादृश्याः = इस प्रकार की । ।
हिन्दी अनुवाद – परमसिद्ध होते हुए भी वे सिद्धियों के प्रदर्शन को उचित नहीं मानते थे। एक बार किसी भक्त ने किसी की महिमा का इस प्रकार वर्णन किया – ” वह महात्मा खड़ाऊँ से नदी पार कर जाता है, यह बड़े आश्चर्य की बात है । ” परमहंस रामकृष्ण धीरे से हँसे और बोले—’ इस सिद्धि का मूल्य केवल दो पैसे हैं। दो पैसों से साधारण व्यक्ति नाव द्वारा नदी पार कर लेता है। इस सिद्धि से केवल दो पैसों का लाभ होता है। इस प्रकार की सिद्धि के प्रदर्शन से क्या लाभ है?”
- रामकृष्णस्य विषये एवंविधा बहवः कथानकाः प्रसिद्धाः सन्ति। आजीवनं सः आत्मचिन्तने निरतः आसीत्। अस्मिन् विषये तस्य अनेके अनुभवाः लोके प्रसिद्धाः।
तस्य एव वचनेषु तस्य अध्यात्मानुभवाः वर्णिताः-
(१) “जले निमज्जिताः प्राणाः यथा निष्क्रमितुम् आकुलाः भवन्ति तथैव चेत् ईश्वर-दर्शनाय अपि समुत्सुकाः भवन्तु जनाः तदा तस्य दर्शनं भवितुम् अर्हति।”
(२) “किमपि साधनं साधयितुं मत्कृते दिनत्रयाधिकः कालः नैव अपेक्ष्यते।”
(३) “नाहं वाञ्छामि भौतिकसुखप्रदां विद्याम्, अहं तु तां विद्यां वाञ्छामि यथा हृदये ज्ञानस्य उदयो भवति।”
शब्दार्थ – निरतः = संलग्न। निमज्जिताः = डूबे हुए। निष्क्रमितुम् आकुलाः = बाहर आने के लिए व्याकुल। मत्कृते = मेरे लिए। अपेक्ष्यते = आवश्यक है। सुखप्रदाम् = सुखों को प्रदान करनेवाली । चेत = यदि, साधयितुम = साधन करने में । बहवः = बहुत से।
हिन्दी अनुवाद – रामकृष्ण के विषय में इस प्रकार की बहुत-सी कथाएँ प्रसिद्ध हैं। वे जीवन भर आत्म-चिन्तन में लीन रहे। इस विषय में उनके अनेक अनुभव संसार में प्रसिद्ध हैं। उन्हीं के शब्दों में उनके आध्यात्मिक अनुभव (इस प्रकार ) वर्णित हैं
- “जल में डूबे हुए प्राण जिस प्रकार बाहर निकलने के लिए व्याकुल होते हैं, उसी प्रकार लोग ईश्वर-दर्शन के लिए भी उत्सुक होंवे, तब उसका (ईश्वर का) दर्शन हो सकता है। “
- ” किसी भी साधना को पूरा करने के लिए मुझे तीन दिन से अधिक का समय नहीं चाहिए ।”
- “मैं भौतिक (सांसारिक) सुखों को प्रदान करनेवाली विद्या नहीं चाहता हूँ। मैं तो उस विद्या को चाहता हूँ, जिससे हृदय ज्ञान का उदय होता है।”
- अयं महापुरुषः स्वकीयेन योगाभ्यासबलेनैव एतावान् महान् सञ्जातः। स ईदृशः विवेकी शुद्धचित्तश्च आसीत् यत् तस्य कृते मानवकृताः विभेदाः निर्मूलाः अजायन्त। स्वकीयेन आचारेण एव तेन सर्वं साधितम्।
अथवा विश्वविश्रुतः स्वामी विवेकानन्दः अस्यैव महाभागस्य शिष्यः आसीत्। तेन न केवलं भारतवर्षे अपितु पाश्चात्यदेशेष्वपि व्यापकस्य मानवधर्मस्य डिण्डिमघोषः कृतः। तेन अन्यैश्च शिष्यैः जनानां कल्याणार्थं स स्थाने स्थाने रामकृष्णसेवाश्रमाः स्थापिताः। ईश्वरानुभवः दुःखितानां जनानां सेवया पुष्यति, इति रामकृष्णस्य महान् सन्देशः।
शब्दार्थ – एतवान् = इतने । विभेदः = भेदभाव । मानवकृताः = मानव के द्वारा बनाये गये । निर्मूला = निरर्थक । विश्वविश्रुतः = संसार में प्रसिद्ध । महाभागस्य = महानुभाव के । डिण्डिमघोषः = उच्च स्वर से घोषणा, ढिंढोरा ।
हिन्दी अनुवाद – यह महापुरुष अपने योगाभ्यास के बल से ही इतने महान हो गये थे। वे ऐसे विवेकशील और शुद्ध चित्त वाले (पवित्र मन के) थे कि उनके लिए मानव के द्वारा बनाये गये विभेद निराधार हो गये थे। अपने आचरण से ही उन्होंने सब कुछ सिद्ध किया । संसार में प्रसिद्ध स्वामी विवेकानन्द इन्हीं महानुभाव के शिष्य थे। उन्होंने केवल भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु पश्चिमी देशों में भी व्यापक मानव धर्म का डंका बजाया (उच्च-स्वर से घोषणा की। उन्होंने और उनके दूसरे शिष्यों ने लोगों के कल्याण के लिए स्थान-स्थान पर रामकृष्ण-सेवाश्रम स्थापित किये। “ईश्वर का अनुभव दुःखी लोगों की सेवा से ही पुष्ट होता है” – यह रामकृष्ण का महान् सन्देश है।
पाठ पर आधारित प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1. स्वामिनः रामकृष्णस्य जन्म कुत्र कदा च अभवत्?
उत्तर: स्वामिनः रामकृष्णस्य जन्म हुगली प्रदेशे कामारपुकुर स्थाने 1836 ख्रीस्ताब्दे अभवत् ।
प्रश्न 2. रामकृष्ण परमहंसः कीदृशः पुरुषः आसीत्?
उत्तर : रामकृष्ण परमहंस : एक विलक्षण: महापुरुषः आसीत् ।
प्रश्न 3. कस्य जीवन चरित धर्माचरणस्य प्रायोगिक विवरणं विद्यते?
उत्तर : परमहंसस्य रामकृष्णस्य जीवन चरितं धर्माचरणस्य प्रायोगिक विवरणं विद्यते
प्रश्न 4. रामकृष्णस्य पितरौ कीदृशौ आस्ताम् ?
उत्तर : रामकृष्णस्य पितरौ परम धार्मिकौ आस्ताम् ।
प्रश्न 5. एकदा भक्तेन कस्यचित् किं महिमा वर्णितः ?
उत्तर : एकदा भक्तेन कस्यचित् महिमा वर्णित :- ‘असौ महात्मा पादुकाभ्याम् नदीं तरति इति महतो विस्मयस्य विषयः ।
प्रश्न 6. रामकृष्णः कथं महान् सञ्जातः ?
उत्तर : रामकृष्णः योगाभ्यास बलेन महान् सञ्जातः ।
प्रश्न 7. स्वामी विवेकानन्दः कस्य शिष्यः आसीत्?
उत्तर : स्वामी विवेकानन्दः रामकृष्णस्य शिष्यः आसीत्
प्रश्न 8. रामकृष्णस्य विषये महात्मा गान्धिनः किम् उक्तम् ?
उत्तर : रामकृष्ण परमहंसस्य विषये महात्मना गान्धिना उक्तम् यत् तस्य जीवनम् अस्मभ्यम् ईश्वर दर्शनाय शक्ति प्रददाति इति
प्रश्न 9. रामकृष्णस्यः कः महानः सन्देशः ?
उत्तर : रामकृष्णस्य महान् सन्देशः अयम् अस्ति यत् ईश्वरानुभवः दुखितानां जनानां सेवया पुष्यति ।
प्रश्न 10. रामकृष्णस्य सेवाश्रमाः केन स्थापिताः ?
उत्तर : रामकृष्ण सेवाश्रमाः स्वामी विवेकानन्दः स्थापिताः।
प्रश्न 11. ईश्वरानुभवः केषां जनानां सेवयापुष्यति ?
उत्तर : ईश्वरानुभव: दुखितानाम् जनानां सेवया पुष्यति ।
2.बहुविकल्पीय प्रश्न
- स्वामी विवेकानन्द कस्य शिष्यः आसीत्?
(अ) रामकृष्णस्य (ब) दयानन्दस्य
(स) राजा राम मोहनस्य (द) रवीन्द्रनाथ टैगोरस्य
- रामकृष्णः कथं महान सञ्जातः?
(अ) योगाभ्यास बलेन (ब) कर्म बलेन
(स) तप बलेन (द) एतेषु न कश्चिदामपि
- रामकृष्णस्य सेवाश्रमः केन स्थापितः?
(अ) दयानन्द सरस्वती (ब) विवेकानन्दः
(स)राजा राम मोहन राय: (द) रवीन्द्रनाथ
- स्वामी रामकृष्ण का जन्म कहाँ हुआ था?
(अ) हुगली प्रदेश (ब) चौबीस परगना जनपद
(स) मुर्शिदाबाद (द) बोलपुर
- स्वामी रामकृष्ण का जन्म कब हुआ था?
(अ) 1830 ई. (ब) 1836 ई.
(स) 1840 ई. (द)1845 ई.
- रामकृष्ण परमहंस किस प्रकार के पुरुष ये?
(ञ) विलक्षण प्रतिभा (ब) सामान्य प्रतिभ
(स)प्रतिभाहीन (ब) इनमें से कोई नहीं
- स्वामी रामकृष्ण किस प्रकार की विद्या की इच्छा रखते थे?
(अ) सुख देने वाली विद्या
(स) व्यावसायिक विद्या
(ब) हृदय में ज्ञान उत्पन्न करने वाली विद्या
(द) इनमें से कोई नहीं
- रामकृष्ण का महान सन्देश क्या है?
(अ) ईश्वर का अनुभव (ब) दुःखी लोगों की सेवा
(स) (अ) और (ब) दोनों (द) तप करना