UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 6 – Nishtamurti Kasturba -निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (काका कालेलकर) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 6 – Nishtamurti Kasturba -निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (काका कालेलकर) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी गद्य खण्ड के पाठ 6  निष्ठामूर्ति कस्तूरबा का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर निष्ठामूर्ति कस्तूरबा सम्पूर्ण पाठ के साथ काका कालेलकर का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात गद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है। 

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Prose Section Chapter 6 Nishtamurti Kasturba. Here, along with the complete text, biography and works of Kaka Kalelkar, passage based quiz i.e. solution of the passage and practice questions are being given. UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Nishtamurti Kasturba -निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (काका कालेलकर) Kaka Kalelkar
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,गद्यांशो का हल(Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

काका कालेलकर

स्मरणीय तथ्य

जन्म सन् 1885 ई०।
मृत्यु सन् 1981 ई०।
जन्म-स्थान महाराष्ट्र में सतारा जिला।
अन्य बातें हिन्दी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी, मराठी भाषाओं पर पूरा अधिकार, राष्ट्रभाषा का प्रचार।
भाषा सरल, ओजस्वी, प्रवाहपूर्ण।
शैली सजीव, प्रभावपूर्ण, कल्पना की उड़ान।
 

साहित्य

संस्मरण, यात्रा वर्णन, सर्वोदय, हिमालय प्रवास, लोकमाता, उस पार के पड़ोसी, जीवन लीला, बापू की झाँकियाँ, जीवन का काव्य आदि।

 जीवन-परिचय

काका कालेलकर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 1 दिसम्बर, सन् 1885 ई० को हुआ था। कालेलकर हिन्दी के उन उन्नायक साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने अहिन्दी भाषा क्षेत्र का होकर भी हिन्दी सीखकर उसमें लिखना प्रारम्भ किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार-कार्य को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत माना है। काका कालेलकर ने सबसे पहले हिन्दी लिखी और फिर दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार का कार्य प्रारम्भ किया। अपनी सूझबूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना देश के प्रमुख अध्यापकों एवं व्यवस्थापकों में होती है। काका साहब उच्चकोटि के विचारक एवं विद्वान् थे। भाषा प्रचार के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी और गुजराती में मौलिक रचनाएँ भी की हैं। सन् 1981 ई० में आपकी मृत्यु हो गयी।

कृतियाँ

काका साहब की कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. निबन्ध संग्रह – जीवन-साहित्य, जीवन का काव्य-इन विचारात्मक निबन्धों में इनके संत व्यक्तित्व और प्राचीन भारतीय संस्कृति की सुन्दर झलक मिलती है।
  2. आत्म-चरित्र’- धर्मोदय’ तथा ‘जीवन लीला’ – इनमें काका साहब के यथार्थ व्यक्तित्व की सजीव झाँकी है।
  3. यात्रा-वृत्त – ‘हिमालय-प्रवास’, ‘लोकमाता’, ‘यात्रा’, ‘उस पार के पड़ोसी’ आदि प्रसिद्ध यात्रावृत्त हैं।
  4. संस्मरण-‘ संस्मरण’ तथा ‘बापू की झाँकी’- इन रचनाओं में महात्मा गाँधी के जीवन का चित्रण है।
  5. सर्वोदय-साहित्य – आपकी ‘सर्वोदय’ रचना में सर्वोदय से सम्बन्धित विचार हैं।
निष्ठामूर्ति कस्तूरबा

महात्मा गाँधी-जैसे महान् पुरुष की सहधर्मचारिणी के तौर पर पूज्य कस्तूरबा के बारे में राष्ट्र को आदर मालूम होना स्वाभाविक है। राष्ट्र ने महात्मा जी को ‘बापू जी’ के नाम से राष्ट्रपिता के स्थान पर कायम किया ही हैं। इसलिए कस्तूरबा भी ‘बा’ के एकाक्षरी नाम से राष्ट्रमाता बन सकी हैं।

किन्तु सिर्फ महात्मा जी के साथ के सम्बन्ध के कारण ही नहीं, बल्कि अपने आन्तरिक सद्‌गुण और निष्ठा के कारण भी कस्तूरबा राष्ट्रमाता बन पायी हैं। चाहे दक्षिण अफ्रीका में हों या हिन्दुस्तान में, सरकार के खिलाफ लड़ाई के समय जब- जब चारित्र्य का तेज प्रकट करने का मौका आया कस्तूरबा हमेशा इस दिव्य कसौटी से सफलतापूर्वक पार हुई हैं।

इससे भी विशेष बात यह है कि बड़ी तेजी से बदलते हुए आज के युग में भी आर्य सती स्वी का जो आदर्श हिन्दुस्तान ने अपने हृदय में कायम रखा है, उस आदर्श की जीवित प्रतिमा के रूप में राष्ट्र पूज्य कस्तूरबा को पहचानता है। इस तरह की विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है।

कस्तूरबा अनपढ़ थीं। हम यह भी कह सकते हैं कि उनका भाषा ज्ञान सामान्य देहाती से अधिक नहीं था। दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहीं इसलिए वह कुछ अंग्रेजी समझ सकती थीं और पचीस-तीस शब्द बोल भी लेती थीं। मिस्टर एण्डूज-जैसे कोई विदेशी मेहमान घर आने पर उन शब्दों की पूँजी से वह अपना काम चला लेतीं और कभी-कभी तो उनके उस सम्भाषण से विनोद भी पैदा हो जाता।

कस्तूरबा को गीता के ऊपर असाधारण श्रद्धा थी। पढ़ानेवाला कोई मिले तो वह भक्तिपूर्वक गीता पढ़ने के लिए बैठ जातीं। किन्तु उनकी गाड़ी कभी भी बहुत आगे नहीं जा सकी। फिर भी आगाखाँ महल में कारावास के दरमियान उन्होंने बार-बार गीता के पाठ लेने की कोशिश चालू रखी थी।

उनकी निष्ठा का पात्र दूसरा ग्रन्थ था तुलसी-रामायण। बड़ी मुश्किल से दोपहर के समय उनको आधे घण्टे की जो फुरसत मिलती थी उसमें वह बड़े अक्षरों में छपी तुलसी रामायण के दोहे चश्मा चढ़ाकर पढ़ने बैठती थीं। उनका यह चित्र देखकर हमें बड़ा मजा आता। कस्तूरबा रामायण भी ठीक ढंग से कभी पढ़ न सकीं। राष्ट्रीय सन्त तुलसीदास के द्वारा लिखा हुआ सती- सीता का वर्णन भले ही वह ठीक समझ न सकी हों, फिर भी प्रत्यक्ष सती-सीता तो बन ही सकीं।

दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति। इसमें कोई शक नहीं कि ‘शब्दों’ ने सारी पृथ्वी को हिला दिया है। किन्तु अन्तिम शक्ति तो ‘कृति’ की है। महात्मा जी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की।

दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने जब उन्हें जेल भेज दिया, कस्तूरबा ने अपना बचाव तक नहीं किया। न कोई सनसनाती पैदा करनेवाला निवेदन प्रकट किया। “मुझे तो वह कानून तोड़ना ही है जो यह कहता है कि मैं महात्मा जी की धर्मपत्नी नहीं हूँ।” इतना कहकर वह सीधे जेल में चली गयीं। जेल में उनकी तेजस्विता तोड़ने की कोशिशें वहाँ की सरकार ने बहुत कीं किन्तु अन्त में सरकार की उस समय की जिद्द ही टूट गयी।

डॉक्टर ने जब उन्हें धर्मविरुद्ध खुराक लेने की बात कही तब भी उन्होंने धर्मनिष्ठा पर कोई व्याख्यान नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा- “मुझे अखाद्य खाना खाकर जीना नहीं है। फिर भले ही मुझे मौत का सामना करना पड़े।”

कस्तूरबा की कसौटी केवल सरकार ने ही की हो ऐसी बात नहीं है। खुद महात्मा जी ने भी कई बार उनसे कठोर और मर्मस्पर्शी बातें कहीं, तब भी उन्होंने हार कबूल नहीं की। पति का अनुसरण करना ही सती का कर्त्तव्य है, ऐसी उनकी निष्ठा होने के कारण मन में किसी भी प्रकार का सन्देह लाये बिना वह धर्म के मामलों में पति का अनुसरण करती रहीं।

कस्तूरबा के प्रथम दर्शन मुझे शान्ति निकेतन में हुए। सन् 1915 के प्रारम्भ में जब महात्मा जी वहाँ पधारे, तब स्वागत का शुभारम्भ पूरा होते ही सब लोगों ने सोने की तैयारियों कीं। आँगन के बीच एक चबूतरा था। महात्मा जी ने कहा, हम दोनों यहीं सोयेंगे। अगल-बगल में बिस्तरे बिछाकर बापू और बा सो गये और हम सब लोग आँगन में आस-पास अपने बिस्तरे बिछाकर सो गये। उस दिन मुझे लगा, मानो हमें आध्यात्मिक माँ-बाप मिल गये हैं।

उनके आखिरी दर्शन मुझे उस समय हुए जब वह बिड़ला हाउस में गिरफ्तार की गयीं। महात्मा जी को गिरफ्तार करने के लिए सरकार की ओर से कस्तूरबा को कहा गया, ‘अगर आपकी इच्छा हो तो आप भी साथ में चल सकती हैं।’ बा बोलीं, ‘अगर आप गिरफ्तार करें तो मैं जाऊँगी वरना आने की मेरी तैयारी नहीं है।’ महात्मा जी जिस सभा में बोलनेवाले थे उस सभा में जाने का उन्होंने निश्चय किया था। पति के गिरफ्तार होने के बाद उनका काम आगे चलाने की जिम्मेदारी बा ने कई बार उठायी है। शाम के समय जब वह व्याख्यान के लिए निकल पड़ीं, सरकारी अमलदारों ने आकर उनसे कहा, ‘माता जी सरकार का कहना है कि आप घर पर ही रहें, सभा में जाने का कष्ट न उठायें।’ बा ने उस समय उन्हें न देश सेवा का महत्त्व समझाया और न उन्होंने उन्हें ‘देशद्रोह करनेवाले तुम कुत्ते हो’ कहकर उनकी निर्भर्त्सना ही की। उन्होंने एक ही वाक्य में सरकार की सूचना का जवाब दिया, ‘सभा में जाने का मेरा निश्चय पक्का है, मैं जाऊँगी ही।’

आगाखाँ महल में खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। हवा की दृष्टि से भी स्थान अच्छा था। महात्मा जी का सहवास भी था। किन्तु कस्तूरबा के लिए यह विचार ही असह्य हुआ कि ‘मैं कैद में हूँ।’ उन्होंने कई बार कहा- “मुझे यहाँ का वैभव कतई नहीं चाहिए, मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसन्द है।” सरकार ने उनके शरीर को कैद रखा किन्तु उनकी आत्मा को वह कैद सहन नहीं हुई। जिस प्रकार पिंजड़े का पक्षी प्राणों का त्याग करके बन्धनमुक्त हो जाता है उसी प्रकार कस्तूरबा ने सरकार की कैद में अपना शरीर छोड़ा और वह स्वतन्त्र हुईं। उनके इस मूक किन्तु तेजस्वी बलिदान के कारण अंग्रेजी साम्राज्य की नींव ढीली हुई और हिन्दुस्तान पर उनकी हुकूमत कमजोर हुई। कस्तूरबा ने अपनी कृतिनिष्ठा के द्वारा यह दिखा दिया कि शुद्ध और रोचक साहित्य के पहाड़ों की अपेक्षा कृति का एक कण अधिक मूल्यवान् और आबदार होता है। शब्दशास्त्र में जो लोग निपुण होते हैं उनको कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य की हमेशा ही विचिकित्सा करनी पड़ती है। कृतिनिष्ठ लोगों को ऐसी दुविधा कभी परेशान नहीं कर पाती। कस्तूरबा के सामने उनका कर्त्तव्य किसी दीये के समान स्पष्ट था। कभी कोई चर्चा शुरू हो जाती तब ‘मुझसे यही होगा’ और ‘यह नहीं होगा’ इन दो वाक्यों में अपना ही फैसला सुना देतीं।

आश्रम में कस्तूरबा हम लोगों के लिए माँ के समान थीं। सत्याग्रहाश्रम यानी तत्त्वनिष्ठ महात्मा जी की संस्था थी। उग्रशासक मगनलाल भाई उसे चलाते थे। ऐसे स्थान पर अगर वात्सल्य की आर्द्रता हमें मिलती थी तो वह कस्तूरबा से ही। कई बार बा आश्रम के नियमों को ताक पर रख देतीं। आश्रम के बच्चों को जब भूख लगती थी तब उनकी बात बा ही सुनती थीं। नियमनिष्ठ लोगों ने बा के खिलाफ कई बार शिकायतें करके देखीं। किन्तु महात्मा जी को अन्त में हार खाकर निर्णय देना पड़ा कि अपने नियम बा को लागू नहीं होते।

आश्रम में चाहे बड़े-बड़े नेता आयें या मामूली कार्यकर्त्ता आयें, उनके खाने-पीने की पूछताछ अत्यन्त प्रेम के साथ यदि किसी ने की है तो वह पूज्य कस्तूरबा ने ही। आलस्य ने तो उनको कभी छुआ तक नहीं। किसी प्राणघातक बीमारी से मुक्त होकर चंगी हुई हों और शरीर में जरा-सी शक्ति आयी हो कि तुरन्त बा आश्रम की रसोई में जाकर काम करने लग जातीं। ठेठ आखिर में उनके हाथ-पाँव थक गये थे, शरीर जीर्ण-शीर्ण हुआ था। मुँह में एक दाँत बचा नहीं था। आँखें निस्तेज हो गयी थीं तब भी वह रसोई में जातीं और जो काम बन सके, आस्थापूर्वक करतीं। मैं जब उनसे मिलने जाता और जब वह खाने के लिए मुझे कुछ देतीं, तब छोटे बच्चों की तरह हाथ फैलाने में मुझे असाधारण धन्यता का अनुभव होता था।

वह भले ही अशिक्षित रही हों, संस्था चलाने की जिम्मेदारी लेने की महत्त्वाकांक्षा भले ही उनमें कभी जागी नहीं हो, देश में क्या चल रहा है और उसकी सूक्ष्म जानकारी वह प्रश्न पूछ-पूछकर या अखबारों के ऊपर नजर डालकर प्राप्त कर ही लेती थीं।

महात्मा जी जब जेल में थे तब दो-तीन बार राजकीय परिषदों का या शिक्षण सम्मेलनों के अध्यक्ष का स्थान कस्तूरबा को लेना पड़ा था। उनके अध्यक्षीय भाषण लिख देने का काम मुझे करना पड़ा था। मैंने उनसे कहा- “मैं अपनी ओर से एक भी दलील भाषण में नहीं लाऊँगा। आप जो बतायेंगी, मैं ठीक भाषा में लिख दूँगा।” हों-ना कहकर वह अपने भाषण की दलीलें मुझे बता देतीं। उस समय उनकी वह शक्ति देखकर मैं चकित हो जाता था।

अध्यक्षीय भाषण किसी से लिखवा लेना आसान है। लेकिन परिषद् जब समाप्त होती है, तब उसका उपसंहार करना हर एक को अपनी प्रत्युत्पन्नमति से करना पड़ता है। जब कस्तूरबा ने उपसंहार के भाषण किये उनकी भाषा बहुत ही आसान रहती थी, किन्तु उपसंहार परिपूर्ण सिद्ध होता था। इनके इन भाषणों में परिस्थिति की समझ, भाषा की सावधानी और खानदानी की महत्ता आदि गुण उत्कृष्टता से दिखायी देते थे।

आज के जमाने में स्वी-जीवन सम्बन्ध के हमारे आदर्श हमने काफी बदल लिये हैं। आज कोई स्वी अगर कस्तूरबा की तरह अशिक्षित रहे और किसी तरह महत्त्वाकांक्षा का उदय उसमें न दिखायी दे तो हम उसका जीवन यशस्वी या कृतार्थ नहीं कहेंगे। ऐसी हालत में जब कस्तूरबा की मृत्यु हुई पूरे देश ने स्वयं स्फूर्ति से उनका स्मारक बनाने का तय किया और सहज इकट्ठी न हो पाये, इतनी बड़ी निधि इकट्ठी कर दिखायी। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारा प्राचीन तेजस्वी आदर्श अब देशमान्य है। हमारी संस्कृति की जड़ें आज भी काफी मजबूत हैं।

यह सब श्रेष्ठता या महत्ता कस्तूरबा में कहाँ से आयी? उनकी जीवन-साधना किस प्रकार की थी? शिक्षण के द्वारा उन्होंने बाहर से कुछ नहीं लिया था। सचमुच, उनमें तो आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण ही थे। असाधारण मौका मिलते ही और उतनी ही असाधारण कसौटी आ पड़ते ही उन्होंने स्वभावसिद्ध कौटुम्बिक सद्गुण व्यापक किये और उनके जोरों पर हर समय जीवन-सिद्धि हासिल की। सूक्ष्म प्रमाण में या छोटे पैमाने पर जो शुद्ध साधना की जाती है उसका तेज इतना लोकोत्तरी होता है कि चाहे कितना ही बड़ा प्रसंग आ पड़े, व्यापक प्रमाण में कसौटी हो, चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकार ही करने का होता है।

सती कस्तूरबा सिर्फ अपने संस्कार बल के कारण पातिव्रत्य को, कुटुम्ब-वत्सलता को और तेजस्विता को चिपकाये रहीं और उसी के जोरों महात्मा जी के माहात्म्य के बरावरी में आ सकीं। आज हिन्दू, मुस्लिम, पारसी, सिख, बौद्ध, ईसाई आदि अनेक धर्मी लोगों का यह विशाल देश अत्यन्त निष्ठा के साथ कस्तूरबा की पूजा करता है और स्वातन्त्र्य के पूर्व की शिवरात्रि के दिन उनका स्मरण करके सब लोग अपनी-अपनी तेजस्विता को अधिक तेजस्वी बनाते हैं।

काका कालेलकर

 

  • निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क) चाहे दक्षिण अफ्रीका में हों या हिन्दुस्तान में, सरकार के खिलाफ लड़ाई के समय जब-जब चारित्र्य का तेज प्रकट करने का मौका आया कस्तूरबा हमेशा इस दिव्य कसौटी से सफलतापूर्वक पार हुई हैं।       इससे भी विशेष बात यह है कि बड़ी तेजी से बदलते हुए आज के युग में भी आर्य सती स्त्री का जो आदर्श हिन्दुस्तान ने अपने हृदय में कायम रखा है, उस आदर्श की जीवित प्रतिमा के रूप में राष्ट्र पूज्य कस्तूरबा को पहचानता है। इस तरह की विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता

है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर – सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक उच्चकोटि के विचारक काका कालेलकर हैं। प्रस्तुत अवतरण में कस्तूरबा के गुणों का वर्णन किया गया है।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या- कस्तूरबा का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि चाहे भारत में हो या दक्षिण अफ्रीका में सरकार के खिलाफ संघर्ष के अवसर पर कस्तूरबा पीछे नहीं रहीं और उसका सफलतापूर्वक संचालन किया। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कस्तूरबा ने आदर्श भारतीय नारी के स्वरूप का विधिवत् पालन किया है। भारत ने स्त्री का जो आदर्श अपने हृदय में धारण किया है, कस्तूरबा उसकी प्रतिमूर्ति थीं। इन्हीं गुणों के कारण कस्तूरबा भारतीय समाज में समादृत हैं।

(iii) किस योग्यता के कारण सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है?

उत्तर –विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है।

 

(ख) दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति। इसमें कोई शक नहीं कि शब्दों’ ने सारी पृथ्वी को हिला दिया है। किन्तु अन्तिम शक्ति तो ‘कृति’ की है। महात्मा जी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – सन्दर्भ- पूर्ववत्

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या- शब्द अर्थात् ‘कहना’ तथा कृति अर्थात् ‘करना’ वास्तव में इस संसार की ये ही दो अचूक शकियाँ हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि शब्दों की शक्ति ऐसी है जिसने सारे विश्व को प्रभावित कर रखा है, किन्तु शब्दों की अपेक्षा ‘कृति’ वाली शक्ति और भी महत्त्व रखती है। महात्मा गाँधी ने उक्त दोनों शक्तियों की असाधारण साधना की थी अर्थात् उन्होंने कथनी और करनी में सामंजस्य स्थापित किया था, किन्तु कस्तूरबा ने सबसे पहले महत्त्वपूर्ण शक्ति ‘कृति’ की नम्रतापूर्वक साधना की और अपने जीवन को सफल सिद्ध किया। ‘बा’ ने केवल काम करने को ही महत्त्व दिया और इसी के बल पर वे सर्वपूज्य हो गयीं। दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने गाँधी जी को जब जेल भेज दिया तो कस्तूरबा ने अपना बचाव तक नहीं किया और न कहीं निवेदन किया। वे एक दृढ़ संकल्प वाली महिला थीं।

(iii) कस्तूरबा कैसी महिला थी?

उत्तर – कस्तूरबा एक दृढ़ संकल्प वाली महिला थीं।

 (iv) शब्द और कृति क्या है?

उत्तर – शब्द और कृति दो अमोघ शक्तियाँ हैं।

(v) गाँधीजी ने किसकी उपासना की?

उत्तर –गाँधी जी ने शब्द और कृति दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है।

 

(ग) यह सब श्रेष्ठता या महत्ता कस्तूरबा में कहाँ से आयी? उनकी जीवन-साधना किस प्रकार की थी? शिक्षण के द्वारा उन्होंने बाहर से कुछ नहीं लिया था। सचमुच, उनमें तो आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण ही थे। असाधारण मौका मिलते ही और उतनी ही असाधारण कसौटी आ पड़ते ही उन्होंने स्वभावसिद्ध कौटु‌म्बिक सद्‌गुण व्यापक किये और उनके जोरों पर हर समय जीवन-सिद्धि हासिल की। सूक्ष्म प्रमाण में या छोटे पैमाने पर जो शुद्ध साधना की जाती है उसका तेज इतना लोकोत्तरी होता है कि चाहे कितना ही बड़ा प्रसंग आ पड़े, व्यापक प्रमाण में कसौटी हो, चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकार ही करने का होता है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर – सन्दर्भ- पूर्ववत्

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या- कस्तूरबा ने शिक्षण द्वारा कुछ नहीं ग्रहण किया था, बल्कि उन्होंने जो कुछ सीखा-समझा वह व्यवहारतः था। वास्तव में उनमें आदर्श कौटुम्बिक सद्‌गुण थे, बल्कि अवसर मिलने पर उन्होंने स्वभाव सिद्ध पारिवारिक सद्‌गुणों का विस्तार किया और उसी के बल पर जीवन में सफलता प्राप्त की। छोटे पैमाने पर जो साधना की जाती है उसमें असीम शक्ति होती है। चरित्रवान व्यक्ति सदैव कसौटी पर खरा उतरता है। कस्तूरबा एक चरित्रवान् महिला थीं। अपने चारित्रिक गुणों और कौटुम्बिक सदगुणों के कारण उन्होंने भारतीय समाज में ख्याति प्राप्त की।

(iii) चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का क्या करना चाहिए?

उत्तर – चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकर ही करना होता है।

(iv) चारित्र्यवान् व्यक्ति की क्या विशेषता होती है?

उत्तर – चारित्र्यवान् व्यक्ति की विशेषता है कि उसमें कौटुम्बिक सद्गुण होते हैं।

(v) किस साधना का तेज लोकोत्तरी होता है?

उत्तर – शुद्ध साधना का तेज लोकोत्तरी होता है।

 

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 5 – Smriti – स्मृति (श्री राम शर्मा) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary – Copy

 

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