UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 8 – Tota – तोता (रवीन्द्र नाथ टैगोर) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 8 – Tota – तोता (रवीन्द्र नाथ टैगोर) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 9 हिंदी गद्य खण्ड के पाठ 8  तोता का सम्पूर्ण हल प्रदान कर रहे हैं। यहाँ पर तोता सम्पूर्ण पाठ के साथ रवीन्द्र नाथ टैगोर  का जीवन परिचय एवं कृतियाँ, गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर अर्थात गद्यांशो का हल, अभ्यास प्रश्न का हल दिया जा रहा है। 

Dear students! Here we are providing you complete solution of Class 9 Hindi Prose Section Chapter  Tota. Here, along with the complete text, biography and works of Rabindranath Tagore , passage based quiz i.e. solution of the passage and practice questions are being given.

UP Board Solution of Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 - Baat - बात (प्रतापनारायण मिश्र) Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary

Chapter Name Tota – तोता (रवीन्द्र नाथ टैगोर) Rabindranath Tagore
Class 9th
Board Nam UP Board (UPMSP)
Topic Name जीवन परिचय,गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर,गद्यांशो का हल(Jivan Parichay, Gadyansh Adharit Prashn Uttar Summary)

जीवन-परिचय

रवीन्द्र नाथ टैगोर

स्मरणीय तथ्य

जन्म 7 मई, 1861 ई० ।
मृत्यु 7 अगस्त 1941 ई० ।
जन्म-स्थान कोलकाता के जोड़ासाकोकी ठाकुर बाड़ी।
शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षा सेन्ट जेवियर नामक स्कूल में तथा लंदन के विश्वविद्यालय में बैरिस्टर के लिए दाखिला परन्तु बिना डिग्री लिए वापस आ गये।
रचनाएँ दूज का चाँद, गीतांजलि, भारत का राष्ट्रगान (जन-गण-मन), बागवान।
कहानी संग्रह हंगरी स्टोन्स, काबुलिवाला, माई लॉर्ड, दी बेबी, नयन जोड़ के बाबू, जिन्दा अथवा मुर्दा, घर वापसी।
उपन्यास गोरा, नाव दुर्घटना, दि होम एण्ड दी वर्ल्ड।
नाटक पोस्ट ऑफिस, बलिदान, प्रकृति का प्रतिशोध, मुक्तधारा, नातिर-पूजा, चाण्डालिका, फाल्गुनी, वाल्मीकि प्रतिभा, राजा और रानी।
आत्म जीवन-परिचय मेरे बचपन के दिन ।
साहित्य-सेवा कवि, गद्य लेखक एवं सम्पादक के रूप में।
निबन्ध व भाषण मानवता की आवाज ।
भाषा बांग्ला, अंग्रेजी।

 जीवन-परिचय

रवीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 ई० को कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था। इनके बाबा द्वारका नाथ टैगोर अपने वैभव के लिए चर्चित थे। ये राजा राममोहन राय के गहरे दोस्त थे और भारत के पुनर्जागरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। रवीन्द्र नाथ के पिता द्वारका नाथ के सबसे बड़े पुत्र थे जो सुप्रसिद्ध विचारक एवं दार्शनिक थे। इसीलिए उन्हें महर्षि कहा जाता था। वे ब्रह्म समाज के स्तम्भ थे। इनकी माता का नाम सरला देवी था जो एक गृहस्थ महिला थीं। इनका निधन 7 अगस्त, 1941 ई. को हुआ।

रवीन्द्र नाथ टैगोर हमारे देश के एक प्रसिद्ध कवि, देशभक्त तथा दार्शनिक थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा कविताओं की रचना की। उन्होंने अपनी स्वयं की कविताओं के लिए अत्यन्त कर्णप्रिय संगीत का सृजन किया। वे हमारे देश के एक महान चित्रकार तथा शिक्षाविद् थे। 1901 ई० में उन्होंने शान्ति निकेतन में एक ललित कला स्कूल की स्थापना की, जिसने कालान्तर में विश्व भारती का रूप ग्रहण किया, एक ऐसा विश्वविद्यालय जिसमें सारे विश्व की रुचियों तथा महान् आदर्शों को स्थान मिला जिसमें भिन्न-भिन्न सभ्यताओं तथा परम्पराओं के व्यक्तियों को साथ जीवन-यापन की शिक्षा प्राप्त हो सके।

सर्वप्रथम टैगोर ने अपनी मातृभाषा बंगला में अपनी कृतियों की रचना की। जब उन्होंने अपनी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी में किया तो उन्हें सारे संसार में बहुत ख्याति प्राप्त हुई। 1913 ई० में उन्हें नोबल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया जो उन्हें उनकी अमर कृति ‘गीतांजलि’ के लिए दिया गया। ‘गीतांजलि’ का अर्थ होता है गीतों की अंजलि अथवा गीतों की भेंट। यह रचना उनकी कविताओं का मुक्त काव्य में अनुवाद है जो स्वयं टैगोर ने मौलिक बंगला से किया तथा जो प्रसिद्ध आयरिश कवि डब्ल्यू. बी. येट्स के प्राक्कथन के साथ प्रकाशित हुई। यह रचना भक्ति गीतों की है, उन प्रार्थनाओं का संकलन है जो टैगोर ने परम पिता परमेश्वर के प्रति अर्पित की थीं।

ब्रिटिश सरकार द्वारा टैगोर को ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया परन्तु उन्होंने 1919 ई० में जलियाँवाला नरसंहार के प्रतिकार स्वरूप इस सम्मान का परित्याग कर दिया।

टैगोर की कविता गहन धार्मिक भावना, देशभक्ति और अपने देशवासियों के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत है। वे सारे संसार में अति प्रसिद्ध तथा सम्मानित भारतीयों में से एक हैं। हम उन्हें अत्यधिक सम्मानपूर्वक ‘गुरुदेव’ कहकर सम्बोधित करते हैं। वे एक विचारक, अध्यापक तथा संगीतज्ञ हैं। उन्होंने अपने स्वयं के गीतों को संगीत दिया, उनका गायन किया और अपने अनेक रंगकर्मी शिष्यों को शिक्षित करने के साथ ही अपने नाटकों में अभिनय भी किया। आज के संगीत जगत में उनके रवीन्द्र संगीत को अद्वितीय स्थान प्राप्त है।

टैगोर एक गहरे धार्मिक व्यक्ति थे लेकिन अपने धर्म को ‘मानव का धर्म’ के नाम से वर्णित करना पसन्द करते थे। वे पूर्ण स्वतंत्रता के प्रेमी थे। उन्होंने अपने शिष्यों के मस्तिष्क में सच्चाई का भाव भरा। प्रकृति, संगीत तथा कविता के निकट सम्पर्क के माध्यम से उन्होंन स्वयं अपनी तथा अपने शिष्यों की कल्पना शक्ति को सौन्दर्य, अच्छाई तथा विस्तृत सहानुभूति के प्रति जागृत किया।

टैगोर की प्रमुख रचनायें

काव्य- दूज का चाँद, गीतांजलि, भारत का राष्ट्रगान (जन-गण-मन), बागवान।

कहानी- हंगरी स्टोन्स, काबुलीवाला, माई लॉर्ड, दी बेबी, नयनजोड़ के बाबू, जिन्दा अथवा मुर्दा, घर वापिसी।

उपन्यास – गोरा, नाव दुर्घटना, दि होम एण्ड दी वर्ल्ड।

नाटक पोस्ट ऑफिस, बलिदान, प्रकृति का प्रतिशोध, मुक्तधारा, नातिर-पूजा, चाण्डालिका, फाल्गुनी, वाल्मीकि प्रतिभा, रानी और रानी।

आत्म-जीवन चरित- मेरे बचपन के दिन।

निबन्ध व भाषण – मानवता की आवाज ।

तोता

(1)

एक था तोता। वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था। उछलता था, फुदकता था, उड़ता था, पर यह नहीं जानता था कि कायदा-कानून किसे कहते हैं।

                राजा बोले, “ऐसा तोता किस काम का? इससे लाभ तो कोई नहीं, हानि जरूर है। जंगल के फल खा जाता है, जिससे राजा-मण्डी के फल-बाजार में टोटा पड़ जाता है।”

मंत्री को बुलाकर कहा, “इस तोते को शिक्षा दो।”

(2)

                तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला।

पंडितों की बैठक हुई। विषय था, “उक्त जीव की अविद्या का कारण क्या है?” बड़ा गहरा विचार हुआ।

सिद्धान्त ठहरा: तोता अपना घोंसला साधारण खर-पात से बनाता है। ऐसे आवास में विद्या नहीं आती। इसलिए सबसे पहले तो यह आवश्यक है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाय।

राज-पण्डितों को दक्षिणा मिली और वे प्रसन्न होकर अपने-अपने घर गये।

(3)

                सुनार बुलाया गया। वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट पड़ा। पिंजरा ऐसा अनोखा बना कि उसे देखने के लिए देश- विदेश के लोग टूट पड़े। कोई कहता, “शिक्षा की तो इति हो गयी।” कोई कहता, “शिक्षा न भी हो तो क्या, पिंजरा तो बना। इस तोते का भी क्या नसीब है।”

सुनार को थैलियाँ भर-भरकर इनाम मिला। वह उसी घड़ी अपने घर की ओर रवाना हो गया।         पण्डित जी तोते को विद्या पढ़ाने बैठे। नस लेकर बोले, “यह काम थोड़ी पोथियों का नहीं है।”

राजा के भानजे ने सुना। उन्होंने उसी समय पोथी लिखने वालों को बुलवाया। पोथियों की नकल होने लगी। नकलों के और नकलों की नकलों के पहाड़ लग गये। जिसने भी देखा, उसने यही कहा कि “शाबाश! इतनी विद्या के धरने को जगह भी नहीं रहेगी।”

नकलनवीसों को लहू बैलों पर लाद लादकर इनाम दिये गए। वे अपने-अपने घर की ओर दौड़ पड़े। उनकी दुनिया में तंगी का नाम-निशान भी बाकी न रहा।

दामी पिंजरे की देख-रेख में राजा के भानजे बहुत व्यस्त रहने लगे। इतने व्यस्त कि व्यस्तता की कोई सीमा न रही। मरम्मत के काम भी लगे ही रहते। फिर झाडू-पोंछ और पालिश की धूम भी मची ही रहती थी। जो ही देखता, यही कहता कि “उन्नति हो रही है।”

इन कामों पर अनेक-अनेक लोग लगाये गये और उनके कामों की देख-रेख करने पर और भी अनेक अनेक लोग लगे। सब महीने-महीने मोटे-मोटे वेतन ले-लेकर बड़े-बड़े सन्दूक भरने लगे। वे और उनके चचेरे-ममेरे-मौसेरे भाई-बंद बड़े प्रसन्न हुए और बड़े-बड़े कोठों-बालाखानों में मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर बैठ गये।

(4)

                संसार में और-और अभाव तो अनेक हैं, पर निन्दकों की कोई कमी नहीं है। एक ढूँढ़ो हजार मिलते हैं। वे बोले, “पिंजरे की तो उन्नति हो रही है, पर तोते की खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है।               बात राजा के कानों में पड़ी। उन्होंने भानजे को बुलाया और कहा, “क्यों भानजे साहब, यह कैसी बात सुनाई पड़ रही है?”

भानजे ने कहा, “महाराज, अगर सच-सच बात सुनना चाहते हों तो सुनारों को बुलाइये, पण्डितों को बुलाइये, नकलनवीसों को बुलाइये, मरम्मत करने वालों को और मरम्मत की देखभाल करने वालों को बुलाइये। निन्दकों को हलवे-मॉड़े में हिस्सा नहीं मिलता, इसीलिए वे ऐसी ओछी बात करते हैं।” जवाब सुनकर राजा ने पूरे मामले को भली-भाँति और साफ-साफ तौर से समझ लिया। भानजे के गले में तत्काल सोने के हार पहनाये गये।

(5)

                राजा का मन हुआ कि एक बार चलकर अपनी आँखों से यह देखें कि शिक्षा कैसे धूमधड़ाके से और कैसी बगटुट तेजी के साथ चल रही है। सो, एक दिन वह अपने मुसाहबों, मुँहलगों, मित्रों और मन्त्रियों के साथ आप ही शिक्षा-शाला में आ धमके। उनके पहुँचते ही ड्‌योढ़ी के पास शंख, घड़ियाल, ढोल, तासे, खुरदक, नगाड़े, तुरहियाँ, भेरियाँ, दमामें, काँसे, बाँसुरियाँ, झाल, करताल, मृदंग, जगझम्प आदि-आदि आप ही आप बज उठे।

पण्डित गले फाड़-फाड़कर और बूटियाँ फड़का-फड़काकर मन्त्र-पाठ करने लगे। मिस्त्री, मजदूर, सुनार, नकलनवीस, देखभाल करने वाले और उन सभी के ममेरे, फुफेरे, चचेरे, मौसेरे भाई जय-जयकार करने लगे।

भानजा बोला, “महाराज, देख रहे हैं न?”

महाराज ने कहा, “आश्चर्य! शब्द तो कोई कम नहीं हो रहा!

भानजा बोला, “शब्द ही क्यों, इसके पीछे अर्थ भी कोई कम नहीं!” राजा प्रसन्न होकर लौट पड़े। ड्योढ़ी को पार करके हाथी पर सवार होने ही वाले थे कि पास के झुरमुट में छिपा बैठा निन्दक बोल उठा, “महाराज आपने तोते को देखा भी है?” राजा चौंके। बोले, “अरे हाँ! यह तो मैं बिलकुल भूल ही गया था। तोते को तो देखा ही नहीं।” लौटकर पण्डित से बोले, “मुझे यह देखना है कि तोते को तुम पढ़ाते किस ढंग से हो।” पढ़ाने का ढंग उन्हें दिखाया गया। देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। पढ़ाने का ढंग तोते की तुलना में इतना बड़ा था कि तोता दिखाई ही नहीं पड़ता था। राजा ने सोचा: अब तोते को देखने की जरूरत ही क्या है? उसे देखे बिना भी काम चल सकता है। राजा ने इतना तो अच्छी तरह समझ लिया कि बंदोबस्त में कहीं कोई भूल-चूक नहीं है। पिंजरे में दाना-पानी तो नहीं था, थी सिर्फ शिक्षा। यानी ढेर की ढेर पोथियों के ढेर के ढेर पत्रे फाड़-फाड़कर कलम की नोंक से तोते के मुँह में घुसेड़े जाते थे। गाना तो बन्द हो ही गया था, चीखने-चिल्लाने के लिए भी कोई गुंजायश नहीं छोड़ी गयी थी। तोते का मुँह ठसाठस भरकर बिलकुल बन्द हो गया था। देखने वाले के रोंगटे खड़े हो जाते।

अब दुबारा जब राजा हाथी पर चढ़ने लगे तो उन्होंने कान-उमेडू सरदार को ताकीद कर दी कि “निन्दक के कान अच्छी तरह उमेठ देना।”

(6)

                तोता दिन पर दिन भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया। अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफी आशाजनक हो रही है। फिर भी पक्षी-स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था। सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बड़ी ही अन्याय भरी रीति से अपने हुन हुने फड़फड़ाने लगता था। इतना ही नहीं, किसी- किसी दिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह अपनी रोगी चोंचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है।

कोतवाल गरजा, “यह कैसी बेअदबी है।”

फौरन लुहार हाजिर हुआ। आग, भाथी और हथौड़ा लेकर।

वह धम्माधम्म लोहा-पिटाई हुई कि कुछ न पूछिये! लोहे की सांकल तैयार की गई और तोते के डैने भी काट दिये गये।

राजा के सम्बन्धियों ने हाँड़ी-जैसे मुँह लटका कर और सिर हिलाकर कहा, “इस राज्य के पक्षी सिर्फ बेवकूफ ही नहीं, नमक-हराम भी हैं।” और तब, पण्डितों ने एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में बरछा ले-लेकर वह कांड रचाया, जिसे शिक्षा कहते हैं।

लुहार की लुहसार बेहद फैल गयी और लुहारिन के अंगों पर सोने के गहने शोभने लगे और कोतवाल की चतुराई देखकर राजा ने उसे सिरोपा अदा किया।

(7)

                तोता मर गया। कब मरा. इसका निश्चय कोई भी नहीं कर सकता। कमबख्त निन्दक ने अफवाह फैलायी कि “तोता मर गया!”

राजा ने भानजे को बुलवाया और कहा, “भानजे साहब यह कैसी बात सुनी जा रही है?”

भानजे ने कहा, “महाराज, तोते की शिक्षा पूरी हो गई है।”

राजा ने पूछा, “अब भी वह उछलता-फुदकता है?”

भानजा बोला, “अजी, राम कहिये!”

(8)

                “अब भी उड़ता है?”

“ना; कतई नहीं।”

“अब भी गाता है?”

“नहीं तो।”

“दाना न मिलने पर अब भी चिल्लाता है?”

“ना!”

राजा ने कहा, “एक बार तोते को लाना तो सही, देखूँगा जरा!”

तोता लाया गया। साथ में कोतवाल आये, प्यादे आये, घुड़सवार आये।

राजा ने तोते को चुटकी से दबाया। तोते ने न हाँ की, न हूँ की। हाँ, उसके पेट में पोथियों के सूखे पत्ते खड़खड़ाने जरूर लगे। बाहर नव-बसन्त की दक्षिणी बयार में नव-पल्लवों ने अपने निश्वासों से मुकुलित वन के आकाश को आकुल कर दिया।

 

  • निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(1) तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला। पण्डितों की बैठक हुई। विषय था, उक्त जीव की अविद्या का कारण क्या है?” बड़ा गहरा विचार हुआ। सिद्धान्त ठहरा: तोता अपना घोंसला साधारण खर-पतवार से बनाता है। ऐसे आवास में विद्या नहीं आती। इसलिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाय। राज-पण्डितों को दक्षिणा मिली और वे प्रसन्न होकर अपने-अपने घर गये।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘तोता’ नामक कहानी से उधृत है।

(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर राज दरबार में जब तोते को बेवकूफ मान लिया गया तो इस पर विचार हुआ कि तोते को बुद्धिमान कैसे बनाया जाय? इस तोते की अविद्या का क्या कारण है? पण्डितों ने विचार किया कि तोता अपना घोंसला खरपतवार से बनाता है। अतः ऐसे घर में विद्या नहीं आती है।

(iii) तोते को शिक्षा देने का काम किसे मिला?

उत्तरतोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला।

(iv) तोता अपना घोंसला किससे बनाता है?

उत्तर तोता अपना घोंसला घास-फूस से बनाता है।

(v) दक्षिणा किसे मिली?

उत्तरराज-पण्डितों को दक्षिणा मिली।

 

(2) संसार में और-और अभाव तो अनेक हैं, पर निन्दकों की कोई कमी नहीं है। एक ढूँढ़ो हजार मिलते हैं। वे बोले, *”पिंजरे की तो उन्नति हो रही है, पर तोते की खोज-खबर कोई लेने वाला नहीं है।” बात राजा के कानों में पड़ी। उन्होंने भानजे को बुलाया और कहा, “क्यों भानजे साहब, यह कैसी बात सुनायी पड़ रही है?” भानजे, “महाराज अगर सच- सच सुनना चाहते हों तो सुनारों को बुलाइए। निन्दकों को हलवे-माड़े में हिस्सा नहीं मिलता, इसलिए वे ऐसी ओछी बातें करते हैं।”

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर सन्दर्भ- पूर्ववत्

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर संसार में अनेक अभाव हैं। सामान्य लोग अभाव का ही जीवन व्यतीत करते हैं। किन्तु निन्दकों की संसार में कोई कमी नहीं है। आप जहाँ निगाह डालिए, निन्दक मौजूद रहेंगे।

(iii) संसार में किसकी कमी नहीं है?

उत्तर संसार में निन्दकों की कमी नहीं है।

(iv) किसकी उन्नति हो रही है?

उत्तर पिंजरे की उन्नति हो रही है।

(v) निन्दक निन्दा क्यों करते हैं?

उत्तर किसी के लाभ में निन्दक को कुछ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए वह निन्दा करता है।

 

(3) तोता दिन भर भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया। अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफी आशाजनक हो रही है। फिर भी पक्षी स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था। सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बड़ी ही अन्याय भरी रीति से अपने डैने फड़फड़ाने लगता था। इतना ही नहीं किसी-किसीदिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह अपनी रोगी चोचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर सन्दर्भ- पूर्ववत्

 (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर दाना-पानी न मिलने के कारण तोता अधमरा हो गया था। उसकी देख-रेख करने वालों ने सोचा कि तोते में काफी प्रगति हो रही है अर्थात् तोता सभ्य एवं सुशिक्षित हो रहा है।

(iii) तोता क्यों अधमरा हो गया?

उत्तर तोते को अन्न-जल कुछ भी नहीं मिल पा रहा था। उसके पेट में सिर्फ पोथी के पन्ने ही जा रहे थे। इसलिए वह अधमरा हो गया।

(iv) तोते का कौन-सा दोष छूट नहीं पाया था?

उत्तर सबेरा होते ही तोता टुकुर-टुकुर निहारने लगता, और अपने डैने को फड़फड़ाने लगता था।

(v) तोता अपनी चोचों से क्या कर रहा था?

उत्तरतोता अपनी चोंच से पिंजरे की सलाखें काट रहा था।

 

 

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