Hindi Vyakaran – Vakya aur Vakya Ke Bhed , Vakya Aru Upvakya : वाक्य, वाक्य के भेद, पदबंध, वाक्य और उपवाक्य – Hindi Grammar
Hindi Vakya in Hindi Vyakran : वाक्य किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं? वाक्य क्या है कुछ उदाहरण दीजिए? वाक्य कैसे पहचाने? वाक्य – वाक्य की परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण.
१. वाक्य (Sentence)
परिभाषा : मनुष्य के विचारों को पूर्णता से प्रकट करनेवाले पदसमूह को वाक्य कहते हैं। वाक्य सार्थक शब्दों का व्यवस्थित रूप है। यदि शब्द भाषा की प्रारंभिक अवस्था है, तो वाक्य, उसका विकास।
“वाक्य वह सार्थक ध्वनि है, जिसके माध्यम से लेखक लिखकर तथा वक्ता बोलकर अपने भाव या विचार पाठक या श्रोता पर प्रकट करता है।”
सर्वसाधारण की अपेक्षा शिक्षितों की वाक्य संरचना में एक विशेषता रहती है। शिक्षितों की वाक्य रचना और वाक्य प्रयोग में एक प्रकार का क्रम और व्यवस्था रहती है, जो व्याकरण के नियमों से अनुशासित होती है। शिक्षित व्यक्ति वाक्य का प्रयोग करते समय व्याकरण के सामान्य नियमों से परिचित रहता है।
साधारण व्यक्ति जैसा चाहता है, शब्दों और वाक्यों का प्रयोग कर लेता है। व्याकरण में वाक्य संरचना का अपना विधान है। उसके सजाने और सँवारने के अपने नियम हैं। किंतु, भाव की अभिव्यक्ति में जो वाक्य जितना अधिक सहायक होगा, वह उतना ही प्रभाव डालनेवाला होगा। स्पष्टता वाक्य संरचना की एक बड़ी विशेषता है।
दूसरी विशेषता पाठक या श्रोता के सोए भावों या विचारों को जागरित करने की सामर्थ्य है। तीसरी विशेषता है पदों या शब्दों का तारतम्य । चौथी विशेषता है संक्षिप्तता या व्यर्थ पदों या शब्दों का न आना।
साहित्यिक दृष्टि से माधुर्य भी वाक्य संरचना की एक विशेषता है। वाक्य जितना ही कानों को सुख – दे, हृदय को आनंदित करे और मस्तिष्क को संतुलित करे, वह उतना ही अच्छा समझा जाएगा। इस प्रकार, वाक्य की संरचना जितनी ही संयत, निर्दोष, स्पष्ट और संतुलित होगी, मन को उतना ही मुग्ध करेगी।
वाक्य में आकांक्षा, योग्यता और क्रम
वाक्य में आकांक्षा, योग्यता और क्रम का होना आवश्यक है। आकांक्षा से पदविशेष की पूर्ति होती है। वाक्य के एक पद को सुनकर दूसरे पद को सुनने या जानने की जो स्वाभाविक उत्कंठा जागती है, उसे आकांक्षा कहते हैं।
जैसे— ‘दिन में काम करते हैं?’ इस वाक्य को सुनकर हम प्रश्न करते हैं— ‘कौन लोग काम करते हैं?’ यदि हम कहें कि ‘दिन में सभी काम करते हैं’, तो ‘सभी’ कह देने से प्रश्न का उत्तर मिल जाता है और वाक्य ठीक हो जाता है। अतः, इस वाक्य में ‘सभी’ शब्द की आकांक्षा थी, जिसकी पूर्ति करने पर वाक्य पूरा हो गया।
वाक्य में योग्यता का तात्पर्य है, पदों के अर्थबोधन का सामर्थ्य | जब वाक्य का प्रत्येक पद या शब्द अर्थबोधन में सहायक हो, तो समझना चाहिए कि वाक्य में योग्यता वर्तमान है।
जैसे— ‘किसान लाठी से खेत जोतता है।’ इस वाक्य में ‘योग्यता’ का अभाव खटकता है, क्योंकि ‘लाठी से’ खेत जोतने का काम नहीं होता। ‘लाठी’ के स्थान पर ‘हल’ का प्रयोग होता, तो वाक्य की योग्यता संगत होती ।
क्रम आकांक्षा और योग्यता के विधान को पूर्णता प्रदान करता है । वाक्यों में प्रयुक्त पदों या शब्दों की विधिवत् स्थापना को ‘क्रम’ कहते हैं। जैसे— ‘रोटी मैंने खाई।’ यह वाक्य ठीक नहीं है, क्योंकि ‘रोटी’ शब्द को ‘मैंने’ के बाद आना चाहिए।
२. पदबंध (Padbndh)
डॉ॰ हरदेव बाहरी’ के अनुसार – ‘पदबंध’ की परिभाषा
वाक्य के उस भाग को, जिसमें एक से अधिक पद परस्पर संबद्ध होकर अर्थ तो देते हैं, किंतु पूरा अर्थ नहीं देते – पदबंध या वाक्यांश कहते हैं।
इस प्रकार रचना की दृष्टि से पदबंध में तीन बातें आवश्यक हैं- – एक तो यह कि इसमें एक से अधिक पद होते हैं। दूसरे, ये पद इस तरह से संबद्ध होते हैं कि उनसे एक इकाई बन जाती है। तीसरे, पदबंध किसी वाक्य का अंश होता है। शब्द-भेदों की तरह इसके आठ प्रकार माने गए हैं। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि पदबंध का शब्दक्रम निश्चित होता है।
पदबंध के कुछ उदाहरण
संज्ञा-पदबंध —
वाक्य में संज्ञा का काम करनेवाला पदसमूह- इतने धनी-मानी व्यक्ति, भारत के प्रधानमंत्री, गोली से घायल बच्चे, रात को पहरा देनेवाला, मिट्टी का तेल इत्यादि ।
विशेषण पदबंध—
किसी संज्ञा की विशेषता बतानेवाला पदसमूह – नाली में बहता हुआ (पानी), चाँदी से भी प्यारा (मुखड़ा), शेर के समान बलवान (आदमी), एक किलोभर (आटा), गज-दो गज (रस्सी), कुल चार ( आदमी), ध्यान में मग्न (साधक), काम में लगा हुआ (आदमी) इत्यादि ।
सर्वनाम पदबंध —
सर्वनाम का काम देनेवाला पदसमूह — मुझ अभागे ने, दैव का मारा वह।
क्रिया-पदबंध—
क्रिया का काम देनेवाला पदसमूह — लौटकर कहने लगा, जाता रहा था, कहा जा सकता है इत्यादि ।
क्रियाविशेषण पदबंध —
क्रियाविशेषण का काम करनेवाला पदसमूह — घर से होकर (जाऊँगा), पहले से बहुत धीरे ( बोलनेवाला), जमीन पर लोटते हुए (चिल्लाया); दोपहर ढले, किसी-न-किसी तरह इत्यादि ।
पदबंध और उपवाक्य में अंतर है
उपवाक्य (clause) भी पदबंध (phrase) की तरह पदों का समूह है, लेकिन इससे केवल आंशिक भाव प्रकट होता है, पूरा नहीं । पदबंध में क्रिया नहीं होती, उपवाक्य में क्रिया रहती है; जैसे- ‘ज्योंही वह आया, त्योंही मैं चला गया।’ यहाँ ‘ज्यों ही वह आया’ एक उपवाक्य है, जिससे पूर्ण अर्थ की प्रतीति नहीं होती।
३. वाक्य और उपवाक्य
सामान्य तौर पर वाक्य सार्थक शब्द का समूह है, जिसमें कर्ता और क्रिया दोनों होते हैं। जैसे— ‘मोहन, सोहन, बाग, घर, मैदान।’
यह एक शब्दसमूह है, पर क्रियापद एक भी नहीं है। अतएव, इसे हम वाक्य नहीं कह सकते।
इसी प्रकार, ‘खाता है, रोता है, पढ़ता है, वाचता है’ आदि क्रियापदों के समूह को भी वाक्य नहीं कह सकते । वाक्य उसी शब्दसूमह को कहेंगे, जब उसमें क्रिया (विधेय) और कर्ता (उद्देश्य) दोनों होंगे। जैसे- – मोहन खेलता है।
इसमें ‘मोहन’ कर्ता के रूप में है और ‘खेलता है’ क्रिया । इस वाक्य से पूरा अर्थबोध होता है। अतः, यह एक वाक्य है।
वाक्य में क्रिया भी निकट रहे, न कि ‘मोहन’ तो वाक्य में पहले लिखा जाए और उसकी क्रिया पाँच छह वाक्यों के बाद। यदि ऐसा किया जाएगा, तो भावबोध में बाधा होगी। इसलिए कर्ता और क्रिया को अपनी-अपनी जगह पास ही होना चाहिए। यह वाक्य की दूसरी विशेषता है।
साथ ही, वाक्य-रचना में यह ध्यान रखना चाहिए कि उद्देश्य और विधेय के अर्थों में परस्पर विरोध न हो; जैसे- ‘मोहन आग से खेत सींचता है।’ व्याकरण की दृष्टि से वाक्य तो ठीक है, पर वाक्य में भावबोध कराने की योग्यता नहीं है, क्योंकि आग से खेत सींचने का काम नहीं होता, सींचने का काम तो जल से होता है। अतएव, यह कहना उपयुक्त होगा कि ‘मोहन जल से खेत सींचता है’।
कभी-कभी हम देखते हैं कि एक वाक्य में अनेक वाक्य होते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि उसमें एक वाक्य तो प्रधान वाक्य होता है और शेष उपवाक्य । एक उदाहरण लीजिए— मोहन ने कहा कि मैं खेलूँगा।
इसमें ‘मोहन ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं खेलूँगा’ उपवाक्य । इस प्रकार हम देखते हैं कि उपवाक्य भी दो या दो से अधिक पदों का समूह है, जो किसी वाक्य का एक अंश है और उसमें उद्देश्य और विधेय भी हैं। इसे हम इस ढंग से परिभाषित कर सकते हैं— ऐसा पदसमूह, जिसका अपना अर्थ हो, जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उद्देश्य और विधेय हों, उपवाक्य कहलाता है।
उपवाक्यों के आरंभ में अधिकतर कि, जिससे, ताकि, जो, जितना, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि होते हैं।
उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं—
१. संज्ञा – उपवाक्य २.विशेषण-उपवाक्य और ३.क्रियाविशेषण – उपवाक्य ।
१. संज्ञा-उपवाक्य (Noun Clause ) —
जो आश्रित उपवाक्य संज्ञा की तरह व्यवहृत हों, उसे ‘संज्ञा-उपवाक्य’ कहते हैं। यह कर्म (सकर्मक क्रिया) या पूरक (अकर्मक क्रिया) का काम करता है, जैसा संज्ञा करती है। ‘संज्ञा- उपवाक्य’ की पहचान यह है कि इस उपवाक्य के पूर्व ‘कि’ होता है। जैसे- ‘राम ने कहा कि मैं पढूँगा।’ यहाँ ‘मैं पढूँगा’ संज्ञा-उपवाक्य है। ‘मैं नहीं जानता कि वह कहाँ है’- इस वाक्य में ‘वह कहाँ है’ संज्ञा – उपवाक्य है।
२. विशेषण – उपवाक्य (Adjective Clause ) —
जो आश्रित उपवाक्य विशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे ‘विशेषण-उपवाक्य’ कहते हैं। जैसे—वह आदमी जो कल आया था, आज भी आया है। यहाँ ‘जो कल आया था’ विशेषण-उपवाक्य है। इसमें ‘जो’, ‘जैसा’, ‘जितना’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
३. क्रियाविशेषण – उपवाक्य (Adverb Clause ) —
जो उपवाक्य क्रियाविशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे ‘क्रियाविशेषण-उपवाक्य’ कहते हैं। जैसे—जब पानी बरसता है, तब मेढ़क बोलते हैं। यहाँ ‘जब पानी बरसता है’ क्रियाविशेषण-उपवाक्य है। इसमें प्रायः ‘जब’, ‘जहाँ’, ‘जिधर’, ‘ज्यों’, ‘यद्यपि’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। इसके द्वारा समय, स्थान, कारण, उद्देश्य, फल, अवस्था, समानता, मात्रा इत्यादि का बोध होता है।
क्रिया – परिभाषा, भेद |
संधि – सामान्य नियम |
भाषा की परिभाषा |
विशेषण |
पद-परिचय |
हिंदी भाषा का परिचय |
विराम चिह्नों के प्रयोग |
ध्वनि |
Post Overview
Post Name | क्रिया – परिभाषा, भेद, और उदाहरण : हिन्दी, Verb/Kriya in Hindi Grammar |
Class | All |
Subject | Hindi Grammar (हिंदी व्याकरण) |
Topic | Jivan Parichay/ Biography/ Jeevani |
Exams | TGT PGT KVS NVS UPP B.Ed. entrance, NET/JRF (Hindi), Sikshaka/Adhyapaka/Prawakta recruitment, UDA/LDA, Assistant Grade, Stenographer, Auditor, Hindi Translator, Police Sub-Inspector, Deputy Jailer, CBI, Bank exams, LIC, PCS, RRB, NTPC, SI UPP Constable, UPP, SSC, PO Hindi Bhasha (Hindi Language), Hindi Vyakarana (Hindi Grammar) |
State | All State of INDIA |
Session | All |
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